सोमवार, 7 फ़रवरी 2011

"मन आज मुझे ना जाने क्या-क्या कहता. नंगों को ही नंगा करने को कहता" --- प्रतुल वशिष्ठ

शांत चित्त कवि-ह्रदय प्रतुल जी वसंत पर्व पर एक नवीन ही आराधना कर रहे है. एक नवीन सरस्वती-आराधना गीत में उन्होंने अपने भाव प्रज्वलित किये है, आप भी इस आग में जलें आपके भी सीने में यही तपन पहुंचे, इसलिए आपको अपने साथ प्रतुल जी के ब्लॉग पर चलने का निमंत्रण देता हूँ ।
देखिये इस अंश में ही कितनी गर्मी है ---

मैं आज विवश होकर विषपान करूँगा.
पर कंठ तलक ही विष को मैं रक्खूँगा.
मेरी वाणी को सुन पापी तड़पेगा.
अन्दर से मरकर बाहर से भड़केगा


3 टिप्‍पणियां:

  1. अमित जी,
    अपनी पूजा की थाल में इस आग को लेकर यदि अपने मित्रों और परिचितों को बुलाओगे तो शायद ही इस कोई इस पूजा-अर्चना में आकर खड़ा हो.
    मुझे तो संशय है. आज फिल्मी गानों में स्त्री नामों पर जो फूहड़ता परोसी जा रही है, वह बेहद शर्मनाक है. उसको भक्तजन अपने कार्यक्रमों में और परिवार के लोग अपने बच्चों के 'बर्थ-डे' में बजवाते हैं और नाचते-गाते हैं. ....... ऐसे आस्तिक लोग तो आने से रहे इस आराधना में.
    फिर भी आपका औपचारिक आमंत्रण सजगता का सूचक है.

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