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गुरुवार, 30 दिसंबर 2010

जयपुर दर्शन --------- 2

जयपुर का राज-प्रासाद
"बान्दरवाल का दरवाजा"
दुदुम्भी-पोल
जलेब-चौक
उदय-पोल
दीवान-ऐ-आम
सवाई मानसिंह म्यूजियम
सर्वतोभद्र --- दीवान-ऐ-ख़ास
मुबारक महल
चन्द्रमहल
जनानी ड्योढ़ी
जंतर-मंतर वेधशाला
हवामहल
जयनिवास उद्यान
गोविंददेवजी का मंदिर
ताल कटोरा
बादल महल
त्रिपोलिया
ईसरलाट -- सरगासूली 


जयपुर शहर जिस माप, पैमाने और ढर्रे पर सवाई जयसिंह ने बसाया वह आज भी सबका मन मोह लेता है.  इसकी सबसे बड़ी मिसाल जयपुर का नगर-प्रासाद या राजमहल है जो नौ चौकडियों के इस शहर के बीचों-बीच स्थित है. परकोटे से घिरे शहर का कुल सातवाँ हिस्सा इस महल की सरहद में आता है.
जयपुर राजमहल का यह क्षेत्र एक तरह से शहर के अन्दर शहर है. राजा-रानियों की नगरी, जिसमें अनेक भव्य महल, दर्जनों मंदिर,लम्बे चौड़े बाग़ बगीचे, आवासीय घर भरें है.
जयपुर का यह नगर-प्रसाद वस्तुतः नगर-कोट है. सामरिक स्थापत्य में आठ तरह के किले माने गए है. इनमें नगर कोट वह है जो धराधार तो होता ही है, जनसंकुल नगर से भी घिरा होता है. जब जयपुर शहर की आयोजना हो रही थी तो राजा के निवास के लिए नगर का यह मध्यवर्ती क्षेत्र सर्वथा उपयुक्त माना गया. क्योंकि उत्तर दिशा में नाहरगढ़ और गणेश गढ़ की पहाड़ियां व ताल कटोरा और राजामल के तालाब से, जिनमें मगरमच्छ भी खूब थे, सुरक्षित था. दक्षिण में मोदीखाना और विश्वेश्वर जी की चौकडियाँ, पश्चिम में पुरानी बस्ती और उसके सामने तोपखाना की चौकडियाँ रहनी थी. और पूर्व में गलताजी व लाल डूंगरी की पहाड़ियों से प्राकृतिक सुरक्षा प्राप्त थी.

"बान्दरवाल का दरवाजा"

जयपुर के इस भव्य राजमहल में प्रवेश का परम्परागत प्रवेश द्वार है सिरह ड्योढ़ी का पूर्व की ओर देखता दरवाजा जिसे "बान्दरवाल का दरवाजा"  भी कहतें है.  इस पोल से राजाओं के आवास चन्द्रमहल तक पहुँचने के लिए थोड़ी-थोड़ी दूरी पर बने हुए दरवाजों या "पोळो" की श्रंखला में से होकर निकलना होता था. इस सारे रास्तें में कदम कदम पर राजसी वैभव, दरबारी भव्यता की प्रतीति होती है.
बान्दरवाल के दरवाजें में प्रवीश करतें ही दायीं तरफ दो दुमंजिले "नोले" (गैरेज) हैं, जिनमें ऐसे 'रथ' या गाड़ियाँ बंद है जो अपने आप में पूरी की पूरी हवेली है. ऐसा रथ जो दो-दो हाथियों को जोतकर खींचा जाता था, हाथियों के इस रथ को "इन्द्र-विमान" कहतें है.
इन्द्र-विमान

दुदुम्भी-पोल
यहाँ से जलेब-चौक में दुदुम्भी-पोल या नक्कारखाने के दरवाजें से होकर प्रवेश किया जाता है. एक स्थापत्य-कला मर्मज्ञ का कहना है की दुदुम्भी-पोल भारत के सर्वोत्तम दरवाजों में से एक है. राजतंत्र के जमाने में यहाँ सुबह-शाम नौबत बजती थी .
दुदुम्भी-पोल (नक्कारखाना)

दरवाजा क्या है एक हवेली है जो पहले रंगों की सजावट से भरा था. सरमिर्जा इस्माइल के जमाने में इस पर एक ही सस्ता रामराज का पीला रंग पोत दिया गया जिससे इसकी पुरानी शोभा तो जाती रही, लेकिन इमारती खूबियाँ आज भी मुंह बोलती है.


जलेब-चौक
अरे नहीं जलेबी-चौक नहीं, जलेब कहिये. जलेब का आशय रक्षा-डाल से है और जलेब-चौक वह विशाल चौकोर चौक है जिसमें सिरह ड्योढ़ी या मर्दानी ड्योढ़ी से आजीविका कमाने वाले शागिर्द-पेशा लोग रहते थे और दरबार या राजा की सवारी का सारा ताम-झाम जुटाते थे. जलेब चौक के सामने उदय-पोल  से सिरह ड्योढ़ी या ख़ास महल को जाने वाला रास्ता है.

उदय-पोल
पलस्तर पर चितराम (चित्रकारी) या रंगीन बेलबूटों के काम पर लोई घिसाई से जैसा चिकनापन इस शहर की पुरानी इमारतों में लायी जाती थी, उसका यह दरवाजा बेहतरीन नमूना है. 

उदयपोल

यहाँ से दाहिनी ओर घुम्तें ही विजय-पोल है इसके बाद एक बड़ा चौक, यहाँ से बायीं ओर घुमने पर जयपोल है और उसके आगे फिर एक छोटा चौक और गणपतिपोल, जो उस विशाल चौक की आड़ बना हुआ है जिसमें "दीवाने-आम" है.
इस तरह बंदरवाल दरवाजे से यहाँ तक छ: "पोल" पार करने पर "दीवाने-आम" और सांतवीं अम्बापोल पार करने पर "दीवाने-ख़ास" या "सर्वतोभद्र" आता है.

दीवान-ऐ-आम
दीवान-ऐ-आम एक विशाल सभा भवन या दरबार हॉल है जो एक चबूतरे या ऊँची कुर्सी पर बना है. यह तीन तरफ से खुला और बरामदों से घिरा है, जिनकी कामदार किनारों वाली मेहराबें संगमरमर के शुण्डाकार स्थम्भो की दोहरी कतारों से उठी है. मेहराबों और छत में रंगों और सोने के पानी के काम से जैसे डिजाईन बनाए गए है वह दुर्लभतम है .इस बुलंद इमारत की ऊँची छत में जो विशाल झाड फानूस लटक रहे है, जब रोशन हो  जातें है तो सब-कुछ स्वप्न-लोक सा लगने लगता है.

जयपुर के आखिरी राजा सवाई मानसिंह द्वितीय (1992-1970 ई.) ने  इसी दीवाने-आम में 16081 वर्ग मील में फ़ैली और चौबीस लाख की आबादी वाली जयपुर रियासत को राजस्थान के राज-प्रमुख की शपथ लेकर इतिहास के गर्भ में विलीन होते देखा था. 30 मार्च, 1949 के दिन दीवाने-आम में जो आख़री दरबार हुआ था वह उस सारे इलाके की किस्मत बदलने वाला था जिसे अब राजस्थान कहते हैं . जिस भवन में कोई भी हिंदुस्थानी पगड़ी बांधे बिना प्रवेश नहीं पाता था, उसमें सोने के सिंहासन पर भारत के लौह-पुरुष सरदार वल्लभ भाई पटेल "उघाड़े-माथे"-नंगे सिर- विराजमान थे. जर्क-बर्क साफा बांधे सवाई मानसिंह और उनके साथ दूसरे राजा तो अपने राज-पाट ख़ुशी-ख़ुशी छोड़ रहे थे, लेकिन सफ़ेद टोपी वाले --जो भारत का राज संभालने जा रहे थे-- आगे बैठने के इंतजाम को लेकर ही आपस में झगड़ने लगे थे और कुछ तो "वॉक-आउट" भी कर गए थे

 
जयपुर रियासत का राजस्थान में विलय. 30 मार्च को सरदार वल्लभ भाई पटेल महाराजा सवाई मानसिंह को राजप्रमुख की शपथ ग्रहण कराते हुए

इसी दीवाने-आम में अब सवाई मानसिंह म्यूजियम है. महाराजा सवाई मानसिंह ने पोथिखाना और सिलेह्खाना से कुछ चीजें चुनकर यह संग्राहलय स्थापित किया था.
संग्राहलय में पोथिखाना की कुल 93 पांडुलिपियाँ प्रदर्शित की गयी है और इनके अलावा बीस पांडुलिपियाँ ऐसी है जिन्हें "कलात्मक" वस्तुओं में गिना जाता है. क्योंकि हस्तलेख और चित्रों, दोनों ही द्रष्टियों से यह महत्वपूर्ण और मूल्यवान है.
आमेर-जयपुर  शैली के उत्कृष्ट चित्रों के नमूने जो रागमाला, भागवत, देवी महातम्य आदि ग्रंथों को सचित्र बनाने के लिए तैयार किये गए थे, प्रदर्शित हैं.



मुग़ल काल के बेहतरीन कालीन-गलीचे, सोने-चांदी का हाथी का हौदा, तख्ते रवां , अम्बाबादी,पालकी और रानियों के बैठने की छोटी गाडी, जैसे सवारी के कुछ साधन प्रदर्शित है.
 



सिलेह्खाने के अस्त्र-शस्त्र इस संग्राहलय का दूसरा भाग है जो आगे  चलकर मुबारक महल के चौक में एक दूसरे हिस्से में प्रदर्शित है. यहाँ तरह तरह की तलवारें. किसी की मूठ मीनाकारी की है तो किसी में जवाहरात जड़ें हैं. तरह तरह की बंदूकें, ढाल,गुर्ज,बाघनख,जिरह-बख्तर और ना जाने क्या-क्या हथियार ! अकबर के सेनापति आमेर शशक राजा मानसिंह प्रथम का खांडा (तलवार) देखकर अचम्भा होता है की इसे उठाने वाला किस डील-डौल का रहा होगा.




संग्राहलय का तीसरा विभाग एक प्रकार से वस्त्र प्रदर्शनी है. यह मुबारक महल में ऊपर है.



जयपुर दर्शन श्रंखला में जयपुर के राज-प्रासाद की सैर अभी शुरू ही हुयी है. बहुत कुछ बाकी है अभी.
फिर इसके बाद चार दिवारी से बाहर निकल कर नए जयपुर और आस-पास के स्थानों में घूमेंगे जी .
बड़ी मुश्किल से यह पोस्ट लग पायी है, लगातार संपर्क भी बना नहीं रह पायेगा शायद .........पर आप तो जयपुर दर्शन का मज़ा लीजिये :)   

21 टिप्‍पणियां:

  1. वाह अमित, विस्तृत विवरण के लिये बहुत बहुत शुक्रिया। असमंजस में डाल दिया है यार तुमने! इतने विस्तार से सब बता दिया कि जयपुर जाने की जरूरत भी नहीं रही और जाने की इच्छा भी बढ़ गई:)
    चारदीवारी से बाहर का भी बेसब्री से इंतज़ार रहेगा।

    जवाब देंहटाएं
  2. .

    जयपुर के महलों में पहले
    इधर-उधर घुमाया.
    बिन पाँवों से सैर कराकर
    मित्र धर्म निभाया.
    लेकिन मन को चोरी से तुम
    साथ ले गये अपने.
    अब केवल है 'अ'मन यहाँ पर
    भाव जा रहा छपने.

    ____________
    मेरे
    मनभाव – मन = भाव (मनशून्य)

    .

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  3. पहली बार जयपुर शहर को ध्यान से समझा है, जयपुर शहर का नाम जयसिंह के रहस्यमय खजानों के लिए भी मशहूर है अगली बार उन गुप्त राजप्रसाद के रास्तों और विधियों की भी चर्चा करें तो बहुत रोचक रहेगा !
    चित्र नहीं खुल पा रहे ....
    नववर्ष मंगलमय हो अमित !

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  4. बहुत सुंदर जी सभी चित्र ओर विवरण बहुत रोचक लगा, लेकिन ऎसे नही जब हम आयेगे तो आप को हमारे लिये समय निकालना पडेगा, यह सब दिखाने के लिये:) धन्यवाद

    जवाब देंहटाएं
  5. आज का भ्रमण तो शानदार हुआ,
    तस्वीरें सभी जानदार है।
    आभार!!

    जवाब देंहटाएं
  6. अमित जी ....जयपुर के बारे में इतनी बातें जानकर अच्छा लगा।
    इसके लिए आपको दिल से आभार............

    आपको नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएँ देते हुए अपार हर्ष का अनुभव हो रहा है। आपकी सभी मंगलकामनाएँ पूरी हों।

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  7. बहुत बढ़िया लेख. अच्छा लगा.

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  8. अमित-एक नक्शा भी देते कि किधर से प्रारम्भ कर कहां अन्त करें. कैसे कैसे जायें.. मतलब कि पूरा टूर प्लान तो और भी अच्छा रहता..

    जवाब देंहटाएं
  9. आपको,नववर्ष 2011 की हार्दिक शुभकामनाएं !!बंधु
    आपके अभिष्ट कार्य और शुभ संकल्प पारिपूर्ण हो!!

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  10. चोखी सैर करवा रहया हो थ्हे जयपुर की।

    राम राम

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  11. अमित भाई,
    सबसे पहले तो आपको और आपके पूरे परिवार को इस राजस्थानी भाई गौरव की ओर से नववर्ष की ढेर सारी शुभकामनाएं

    जवाब देंहटाएं
  12. .... और अब इस शानदार पोस्ट के लिए बहुत बहुत धन्यवाद .....
    अगली पोस्ट का बेसब्री से इन्तजार रहेगा ...

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  13. अमित जी मै वैसे तो जयपुर जाता रहता हु , और इसमे से काफी कुछ देखा भी हु पर इतना बारीक़ से नहीं जान पाया था आपने ये सब बताकर मुझे दुबारा से देखने को मजबूर कर दिया है

    इन तमाम जानकारियों के लिए आपको धन्यबाद


    मेरे ब्लॉग पे भी पधारने की कृपा करियेगा
    http://anubhutiras.blogspot.com/

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  14. जयपुर के संदर्भ में आप की प्रस्तुति सराहनीय है ।

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  15. जयपुर के बारे में रोचक विवरण
    शानदार पोस्ट
    सभी चित्र बहुत सुंदर
    आपको धन्यबाद

    जवाब देंहटाएं
  16. राजस्थान की शैर कराने के लिए अमित जी को बहुत - बहुत धन्यवाद
    बहुत अच्छा लगा

    जवाब देंहटाएं
  17. सुविज्ञ बंधुवर,

    'निरामिष' ब्लॉग के लेखक समुदाय में जुडने के लिये मैंने निमंत्रण मेल किया है। कृपया स्वीकार करें।

    इस ब्लॉग पर मात्र शाकाहार, निरामिष भोजन और सात्विक आहार पर लिखा जायेगा। निरामिष समुदाय में जुडकर कृतार्थ करें
    http://niraamish.blogspot.com/

    आभार सहित,
    हंसराज 'सुज्ञ'

    जवाब देंहटाएं
  18. जनाब जाकिर अली साहब की पोस्ट "ज्‍योतिषियों के नीचे से खिसकी जमीन : ढ़ाई हजा़र साल से बेवकूफ बन रही जनता?" पर निम्न टिप्पणी की थी जिसे उन्होने हटा दिया है. हालांकि टिप्पणी रखने ना रखने का अधिकार ब्लाग स्वामी का है. परंतु मेरी टिप्पणी में सिर्फ़ उनके द्वारा फ़ैलाई जा रही भ्रामक और एक तरफ़ा मनघडंत बातों का सीधा जवाब दिया गया था. जिसे वो बर्दाश्त नही कर पाये क्योंकि उनके पास कोई जवाब नही है. अत: मजबूर होकर मुझे उक्त पोस्ट पर की गई टिप्पणी को आप समस्त सुधि और न्यायिक ब्लागर्स के ब्लाग पर अंकित करने को मजबूर किया है. जिससे आप सभी इस बात से वाकिफ़ हों कि जनाब जाकिर साहब जानबूझकर ज्योतिष शाश्त्र को बदनाम करने पर तुले हैं. आपसे विनम्र निवेदन है कि आप लोग इन्हें बताये कि अनर्गल प्रलाप ना करें और अगर उनका पक्ष सही है तो उस पर बहस करें ना कि इस तरह टिप्पणी हटाये.

    @ज़ाकिर अली ‘रजनीश’ ने कहा "और जहां तक ज्‍योतिष पढ़ने की बात है, मैं उनकी बातें पढ़ लेता हूँ,"

    जनाब, आप निहायत ही बचकानी बात करते हैं. हम आपको विद्वान समझता रहा हूं पर आप कुतर्क का सहारा ले रहे हैं. आप जैसे लोगों ने ही ज्योतिष को बदनाम करके सस्ती लोकप्रियता बटोरने का काम किया है. आप समझते हैं कि सिर्फ़ किसी की लिखी बात पढकर ही आप विद्वान ज्योतिष को समझ जाते हैं?

    जनाब, ज्योतिष इतनी सस्ती या गई गुजरी विधा नही है कि आप जैसे लोगों को एक बार पढकर ही समझ आजाये. यह वेद की आत्मा है. मेहरवानी करके सस्ती लोकप्रियता के लिये ऐसी पोस्टे लगा कर जगह जगह लिंक छोडते मत फ़िरा किजिये.

    आप जिस दिन ज्योतिष का क ख ग भी समझ जायेंगे ना, तब प्रणाम करते फ़िरेंगे ज्योतिष को.

    आप अपने आपको विज्ञानी होने का भरम मत पालिये, विज्ञान भी इतना सस्ता नही है कि आप जैसे दस पांच सिरफ़िरे इकठ्ठे होकर साईंस बिलाग के नाम से बिलाग बनाकर अपने आपको वैज्ञानिक कहलवाने लग जायें?

    वैज्ञानिक बनने मे सारा जीवन शोध करने मे निकल जाता है. आप लोग कहीं से अखबारों का लिखा छापकर अपने आपको वैज्ञानिक कहलवाने का भरम पाले हुये हो. जरा कोई बात लिखने से पहले तौल लिया किजिये और अपने अब तक के किये पर शर्म पालिये.

    हम समझता हूं कि आप भविष्य में इस बात का ध्यान रखेंगे.

    सदभावना पूर्वक
    -राधे राधे सटक बिहारी

    जवाब देंहटाएं
  19. जनाब जाकिर अली साहब की पोस्ट "ज्‍योतिषियों के नीचे से खिसकी जमीन : ढ़ाई हजा़र साल से बेवकूफ बन रही जनता?" पर निम्न टिप्पणी की थी जिसे उन्होने हटा दिया है. हालांकि टिप्पणी रखने ना रखने का अधिकार ब्लाग स्वामी का है. परंतु मेरी टिप्पणी में सिर्फ़ उनके द्वारा फ़ैलाई जा रही भ्रामक और एक तरफ़ा मनघडंत बातों का सीधा जवाब दिया गया था. जिसे वो बर्दाश्त नही कर पाये क्योंकि उनके पास कोई जवाब नही है. अत: मजबूर होकर मुझे उक्त पोस्ट पर की गई टिप्पणी को आप समस्त सुधि और न्यायिक ब्लागर्स के ब्लाग पर अंकित करने को मजबूर किया है. जिससे आप सभी इस बात से वाकिफ़ हों कि जनाब जाकिर साहब जानबूझकर ज्योतिष शाश्त्र को बदनाम करने पर तुले हैं. आपसे विनम्र निवेदन है कि आप लोग इन्हें बताये कि अनर्गल प्रलाप ना करें और अगर उनका पक्ष सही है तो उस पर बहस करें ना कि इस तरह टिप्पणी हटाये.

    @ज़ाकिर अली ‘रजनीश’ ने कहा "और जहां तक ज्‍योतिष पढ़ने की बात है, मैं उनकी बातें पढ़ लेता हूँ,"

    जनाब, आप निहायत ही बचकानी बात करते हैं. हम आपको विद्वान समझता रहा हूं पर आप कुतर्क का सहारा ले रहे हैं. आप जैसे लोगों ने ही ज्योतिष को बदनाम करके सस्ती लोकप्रियता बटोरने का काम किया है. आप समझते हैं कि सिर्फ़ किसी की लिखी बात पढकर ही आप विद्वान ज्योतिष को समझ जाते हैं?

    जनाब, ज्योतिष इतनी सस्ती या गई गुजरी विधा नही है कि आप जैसे लोगों को एक बार पढकर ही समझ आजाये. यह वेद की आत्मा है. मेहरवानी करके सस्ती लोकप्रियता के लिये ऐसी पोस्टे लगा कर जगह जगह लिंक छोडते मत फ़िरा किजिये.

    आप जिस दिन ज्योतिष का क ख ग भी समझ जायेंगे ना, तब प्रणाम करते फ़िरेंगे ज्योतिष को.

    आप अपने आपको विज्ञानी होने का भरम मत पालिये, विज्ञान भी इतना सस्ता नही है कि आप जैसे दस पांच सिरफ़िरे इकठ्ठे होकर साईंस बिलाग के नाम से बिलाग बनाकर अपने आपको वैज्ञानिक कहलवाने लग जायें?

    वैज्ञानिक बनने मे सारा जीवन शोध करने मे निकल जाता है. आप लोग कहीं से अखबारों का लिखा छापकर अपने आपको वैज्ञानिक कहलवाने का भरम पाले हुये हो. जरा कोई बात लिखने से पहले तौल लिया किजिये और अपने अब तक के किये पर शर्म पालिये.

    हम समझता हूं कि आप भविष्य में इस बात का ध्यान रखेंगे.

    सदभावना पूर्वक
    -राधे राधे सटक बिहारी

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  20. चित्र और सामग्री दोनों ही एक से बढ़कर एक.

    जवाब देंहटाएं
  21. Amitji
    I really appreciate your efforts for presenting jaipur darshan in this great way.
    Great Job Done.
    Thank You

    जवाब देंहटाएं

जब आपके विचार जानने के लिए टिपण्णी बॉक्स रखा है, तो मैं कौन होता हूँ आपको रोकने और आपके लिखे को मिटाने वाला !!!!! ................ खूब जी भर कर पोस्टों से सहमती,असहमति टिपियायिये :)