ओ पथिक संभलकर जइयो उस देश
महा ठग बैठ्यो है धार ग्वाल को भेष
टेढ़ी टेढ़ी चाल चले,अरु चितवन है टेढ़ी बाँकी
महा ठग बैठ्यो है धार ग्वाल को भेष
टेढ़ी टेढ़ी चाल चले,अरु चितवन है टेढ़ी बाँकी
टेढ़ी हाथ धारी टेढ़ी तान सुनावे बांसुरी बाँकी
तन कारो धार्यो अम्बर पीत,अरु गावे मधुर गीत
बातन बतरावे मधुर मधुर क्षण माहि बने मन मीत
सारो भेद खोल्यो मैं तेरे आगे,पहचान बतरायी है
अमित मन-चित हर लेत वो ऐसो ठग जग भरमाई है
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तन कारो धार्यो अम्बर पीत,अरु गावे मधुर गीत
बातन बतरावे मधुर मधुर क्षण माहि बने मन मीत
सारो भेद खोल्यो मैं तेरे आगे,पहचान बतरायी है
अमित मन-चित हर लेत वो ऐसो ठग जग भरमाई है
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कुंवर जी कान्हा के देश जा रहे थे तो सोचा कि उन्हें वहाँ रहने वाले एक महाठग के बारे में सावधान कर दूँ , जो अपनी बाँकी चितवन से मन हर ले जाता है.