इतनी दिल्लगी सजन यूँ किया ना किजिये
दिल लगाया है आप से दुखाया ना कीजिये
कब चाहा है हमने पहलू में ही बैठा कीजिये
बस नज़रें इनायत उडती सी ही कर दीजिये
मर्जी जो है आपकी नाम ना लेंगे कभी जुबां से
क्या करियेगा जब लोग सुनेंगे कब्र की फिजां में
साखी क्या दूँ इस बात की बिन तुम्हारे ना जियेंगे
अमित प्रेम हमारा दास्ताँ कियामत तक लोग कहेंगे