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सोमवार, 11 अक्टूबर 2010

सूरज, चंदा, तारे, दीपक, जुगनू तक से ले रश्मि-रेख

आज आप सभी का ब्लॉग-जगत की नई रौशनी की किरण या यूँ कह लीजिये की रश्मि रेख  से परिचय करवाने की मंशा है, जिसका आमंत्रण ब्लॉग खुद देता है ..................

"गुलजार चमन को करने को, आओ मिल कर लायें बहार
सूखे मरुथल हित, बादल से, मांगें थोड़ी शीतल फुहार
सूरज, चंदा, तारे, दीपक, जुगनू तक से ले रश्मि-रेख ;
जीवन में कुछ उजास भर लें, मेटें कुछ मन का अंधकार ।।"
- अरुण मिश्र


ज्यादा कुछ नहीं कहूँगा इस ब्लॉग और इन ब्लोगर के बारे में. बस ब्लॉग का रस-पान ब्लॉग पर ही आकर कीजिये, बस आपके चखने के लिए कुछ बूंदे यहाँ रख देता हूँ >>>>>

हमेशा इन्तज़ार में तेरे मगर ऐ दोस्त,
रहेंगी आंखें बिछी और खुली हुई बाहें॥"

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तुम, बनाने वाले की नज़रों से जो देखो ‘अरुन’
ना तो वो ही म्लेच्छ हैं, ना ये ही हैं काफ़िर मियाँ।।
 
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पन्द्रह अगस्त की शब,
दिल्ली के आसमाँ में,
उस ख़ुशनुमां फ़िज़ाँ में,
इक अजीब चाँद चमका,
रंगीन चाँद चमका।।


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कोई शम्मा तो ’अरुन’ रौशन करो।
आयेंगे ख़ुद, चाहने वाले बहुत।।

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बहन, मेरी कलाई पर,
जो तुमने तार बॉधा है।
तो, इसके साथ स्मृतियों-
का, इक संसार बॉधा है।।

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हम सॅभल सकते थे, कमज़र्फ  नहीं  थे  इतने। 
काश  उस  शोख़  ने,  पल्लू तो  सॅभाला  होता।।


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तोपें-तलवारें सदा, गल जायेंगी  इस  ऑच से।
सच-अहिंसा, शस्त्र  गॉधी जी के, अंगारे से हैं।।
 

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कभी कोसों-कोस की  दूरियां भी, पलक झपकते  सिमट गईं। 
कभी  बरसों-बरस  न हो सका, तय हाथ भर का भी फ़ासला।।

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जो है  सुब्हो-शाम  बिखेरता, यूँ   उफ़क़  पे,  अपने  शफ़क़ के  रंग |
नहीं तोड़ सकता वो शम्स भी , कभी रोज़ो-शब का  ये सिलसिला ||

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काफी दिनों से रसपान कर रहा था अकेला ही फिर सोचा की अपने दूसरे ब्लॉग-परिजनों से धोखा करके अकेले ही कैसे आनंद लूं तो आप को भी बता दिया, अब आप पर है की आप कितना रस-पान करतें है, फिर ना कहियेगा की हमें नहीं बताया  :)