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शनिवार, 11 दिसंबर 2010

आज़ादी .........कहानी नहीं हकीकत --1

मैं भौचक्का खडा था...........दिमाग सुन्न होता जा रहा था .............. पर उसके चेहरे पर एक भरपूर चमक थी  मानो कायनात की शहँशाई मिली है उसे........... बड़ा खुश होकर वह कह रहा था..........


"यार जिन्दगी जीने का असली मजा ही अब आ रहा है, सब काम अपने हिसाब से करता हूँ. किसी भी काम के लिए किसी से कुछ परमिशन का झंझट ही नहीं .  अनु भी बहुत खुश है जो जी करता है वही खाना बनाती है. कोई रोक टोक नहीं . अपनी पसंद के कपडे पहनती है.  सच यार बड़ा मज़ा आ रहा है अब लाइफ में . पूरी आजादी है अब ."


अपने माँ बाप का इकलौता लड़का अभिनव अपने परिवार की कैद से आज़ाद हो गया.
( कहानी नहीं हकीकत )