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शुक्रवार, 18 फ़रवरी 2011

देश,संस्कृति को छोड़, शीला की चिंता खात है

भंड भांड बहुत फिरे पी वारूणी मतवारे
हरी कीर्तन भूले, गावें मुन्नी गान सारे

जोबन युवान को सारो गर्त में ही चल्यो जात है
देश,संस्कृति को छोड़, शीला की चिंता खात है

मोहल्ला में कौन मर्यो बस्यो कछु खबर नहीं
पर आर्कुट,फेसबुक पर सिगरो जगत बतरात है

अरे यह काहे को जोबन और कैसी जबानी है
खाली फूंकनी सी नसान में बहयो जात पानी है

अब भी ऊठ चेत करलो रे संगी, बनजा सत्संगी
देश-संस्कृति की कीरत को अमित वृक्ष बड़ो जंगी
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वारूणी ---- शराब
सिगरो ---- सारा, सभी
चेत ---- जागना, होश
बतरात ---- बात करना
नसान ---- नसों में (स्थानिक रूप में प्रयुक्त)
कीरत ---- कीर्ती