
आज हमारी शादी की पांचवी वर्षगाँठ है .
और यह कुछ भाव अपनी प्रिया को वर्षगाँठ पर विशेष भेंट स्वरुप
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अहो मत्त गयंदिनी चपला चित्त-हारिणी
तुम जीवन सखी मम ह्रदय कुञ्ज विहारिणी
थी हुयी प्रविष्ट क्षण जिस तुम जीवन में मेरे
नित मंगल बधाव प्रगटे रस प्रेम सिक्त घनेरे
परिजन आशीष-बल सबल उन्मुक्त था मन
नहीं चिंतन मनन फिरता था चहुँ छोर गगन
कल्पित वातायन में बैठ रचा करता छबी दिव्य
अंकन चित्रण पुनः संपादन ना जानता भवितव्य
निर्विकल्प समाधी सी दशा अजब ही होती जाती थी
पर विधाता ने भी अब भला हमारा करने की ठानी थी
थकित अनवरत प्रतीक्षित थे नयन दो से चार होने को
उत्कंठित प्राण चाहते जानना है कौन संग हमारे होने को
प्रबल चाहना पौत्र विवाह की बाबा की उग्र जब हो आई थी
श्यामसुंदर की लीलावश मैं तुम्हारे तुम सामने मेरे आई थी
प्रिये! क्या अनुपम थी वो प्रथम परिचय कि वेला
विकस उठे थे ह्रदय उपवन में जूही चंपा अरु बेला
रूप माधुरी अतिमधुर तुम्हारी मधुकर नयन हुए थे
हृदयस्थित कामना को पूर्ण शुभ परिणाम मिले थे
एहो प्राणसखी! मम ह्रदय निकुञ्ज विलासिनी प्रिये
सर्वकुटुम्बीजन मनभावनी सौभाग्य वर पावनी श्रिये
धन्य जीवन, सुगम कर्म पथ हुआ संगी तुमसा पाकर
धर्म सभी मेरे तुमने धार लिए मेरी सहधर्मिणी बनकर
कुछ और ना कह पाऊंगा, तेरे उपकार को शब्द ना दे पाउँगा
प्रेम हमारा दिव्या ! अमित रहे काल अनंत तक, यही चाहुंगा