देखिये इस अंश में ही कितनी गर्मी है ---
मैं आज विवश होकर विषपान करूँगा.
पर कंठ तलक ही विष को मैं रक्खूँगा.
मेरी वाणी को सुन पापी तड़पेगा.
अन्दर से मरकर बाहर से भड़केगा।
पर कंठ तलक ही विष को मैं रक्खूँगा.
मेरी वाणी को सुन पापी तड़पेगा.
अन्दर से मरकर बाहर से भड़केगा।