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सोमवार, 7 फ़रवरी 2011

"मन आज मुझे ना जाने क्या-क्या कहता. नंगों को ही नंगा करने को कहता" --- प्रतुल वशिष्ठ

शांत चित्त कवि-ह्रदय प्रतुल जी वसंत पर्व पर एक नवीन ही आराधना कर रहे है. एक नवीन सरस्वती-आराधना गीत में उन्होंने अपने भाव प्रज्वलित किये है, आप भी इस आग में जलें आपके भी सीने में यही तपन पहुंचे, इसलिए आपको अपने साथ प्रतुल जी के ब्लॉग पर चलने का निमंत्रण देता हूँ ।
देखिये इस अंश में ही कितनी गर्मी है ---

मैं आज विवश होकर विषपान करूँगा.
पर कंठ तलक ही विष को मैं रक्खूँगा.
मेरी वाणी को सुन पापी तड़पेगा.
अन्दर से मरकर बाहर से भड़केगा