"गुलजार चमन को करने को, आओ मिल कर लायें बहार।
 सूखे    मरुथल    हित,    बादल  से,  मांगें   थोड़ी  शीतल  फुहार।
 सूरज,    चंदा,    तारे,    दीपक,    जुगनू    तक से ले रश्मि-रेख ;
 जीवन में कुछ उजास भर लें,  मेटें कुछ मन का अंधकार ।।"
- अरुण मिश्र
ज्यादा कुछ नहीं कहूँगा इस ब्लॉग और इन ब्लोगर के बारे में. बस ब्लॉग का रस-पान ब्लॉग पर ही आकर कीजिये, बस आपके चखने के लिए कुछ बूंदे यहाँ रख देता हूँ >>>>>
हमेशा  इन्तज़ार में तेरे मगर ऐ दोस्त,   
रहेंगी आंखें बिछी और खुली हुई बाहें॥"
रहेंगी आंखें बिछी और खुली हुई बाहें॥"
ना  तो वो ही म्लेच्छ हैं, ना ये ही हैं काफ़िर मियाँ।।
 
>>>>>>>>>>>>>पन्द्रह अगस्त की शब,
दिल्ली के आसमाँ में,
उस ख़ुशनुमां फ़िज़ाँ में,
इक अजीब चाँद चमका,
रंगीन चाँद चमका।।
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आयेंगे  ख़ुद,  चाहने  वाले बहुत।।
जो  तुमने  तार  बॉधा है।
तो, इसके साथ स्मृतियों-
का, इक संसार बॉधा है।।
तो, इसके साथ स्मृतियों-
का, इक संसार बॉधा है।।
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हम सॅभल सकते थे, कमज़र्फ  नहीं  थे  इतने। 
काश  उस  शोख़  ने,  पल्लू तो  सॅभाला  होता।। 
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तोपें-तलवारें सदा, गल जायेंगी इस ऑच से।
सच-अहिंसा, शस्त्र गॉधी जी के, अंगारे से हैं।।
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कभी कोसों-कोस की  दूरियां भी, पलक झपकते  सिमट गईं। 
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जो है  सुब्हो-शाम  बिखेरता, यूँ   उफ़क़  पे,  अपने  शफ़क़ के  रंग | 
नहीं तोड़ सकता वो शम्स भी , कभी रोज़ो-शब का  ये सिलसिला ||
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काफी दिनों से रसपान कर रहा था अकेला ही फिर सोचा की अपने दूसरे ब्लॉग-परिजनों से धोखा करके अकेले ही कैसे आनंद लूं तो आप को भी बता दिया, अब आप पर है की आप कितना रस-पान करतें है, फिर ना कहियेगा की हमें नहीं बताया :)
 
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काफी दिनों से रसपान कर रहा था अकेला ही फिर सोचा की अपने दूसरे ब्लॉग-परिजनों से धोखा करके अकेले ही कैसे आनंद लूं तो आप को भी बता दिया, अब आप पर है की आप कितना रस-पान करतें है, फिर ना कहियेगा की हमें नहीं बताया :)
 

 
 
अति उत्तम!
जवाब देंहटाएंअरूण मिश्र जी से मिलना सुखद रहा...
"तुम, बनाने वाले की नज़रों से जो देखो ‘अरुन’।
ना तो वो ही म्लेच्छ हैं, ना ये ही हैं काफ़िर मियाँ।।"
वाह्!
@ अमित भाई
जवाब देंहटाएंअरुण मिश्र जी जैसे व्यक्तित्व से परिचय कराया आपने, आपका आभार
और आपने पोस्ट को जिस तरह से बनाया है वो तो सच में प्रशंसनीय है
नतमस्तक हूँ आपके इस प्रयास के आगे
अमित,
जवाब देंहटाएंआभारी हैं भाई आपके, कि इतने खूबसूरत ब्लॉग से परिचय करवाया। सन तो ये है कि अभी ब्लॉग देखा नहीं है लेकिन जो बानगी दिख रही है, अंदाजा है कि तारीफ़ गलत नहीं की है तुमने।
अमित जी,
जवाब देंहटाएंएक विद्वजन के परिचय हेतु आभार॥
आपके ब्लोग पर अरूणोदय हुआ और हमें मिली ताजी रश्मि-रेख प्रभा!!
तन-मन रोशन
बहुत अच्छा लगा, अरूण मिश्र जी से मिलवाने के लिये आप का धन्यवाद
जवाब देंहटाएंबढ़िया लग रहा है...
जवाब देंहटाएंजानकारी के लिये धन्यवाद मित्र
जवाब देंहटाएं"जे पर भनिति सुनत हरषाहीं |
जवाब देंहटाएंते बर पुरुष बहुत जग नाहीं ||"
- गोस्वामी तुलसीदास जी.
प्रिय अमित जी,
आप के सौजन्य (अहेतुकी कृपालुशीलता) से अभिभूत हूँ | जिन बंधुओं ने अभिमत व्यक्त करने की सदाशयता दिखाई है,उनका भी आभारी हूँ |
श्रद्धा-भेंट स्वरुप अपनी एक बहुत पुरानी ग़ज़ल के तीन शेर'(इस समय तीन ही याद आ रहे हैं), अपने ब्लाग पर पोस्ट कर रहा हूँ |
- अरुण मिश्र.
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जवाब देंहटाएंअरुण जी से परिचय कराने का आभार !
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देश हित में नीचे किये गए लिंक का लेख पढ़ कर सोचे की क्या हमारा भविष्य सुरक्षित है ?
जवाब देंहटाएंrahulworldofdream.blogspot.com/2010/10/blog-post_20.html
बहन, मेरी कलाई पर,
जवाब देंहटाएंजो तुमने तार बॉधा है।
तो, इसके साथ स्मृतियों-
का, इक संसार बॉधा है।।
रचना की कुछ लेने पढ़ कर ही रचनाकार की संवेदनशीलता के बारे में जाना जा सकता है ! बहुत अच्छा लगा अरुण मिश्र को पढ़कर , भविष्य में पढता रहूँगा ! आभार !