मंगलवार, 12 अप्रैल 2011

भये प्रगट कृपाला दीनदयाला --- श्रीराम नवमी की हार्दिक बधाई

जय श्री राम !!

भये प्रगट कृपाला दीनदयाला कौसल्या हितकारी .
हरषित महतारी मुनि मन हारी अद्भुत रूप बिचारी ..

लोचन अभिरामा तनु घनस्यामा निज आयुध भुज चारी .
भूषन वनमाला नयन बिसाला सोभासिन्धु खरारी ..

कह दुइ कर जोरी अस्तुति तोरी केहि बिधि करौं अनंता .
माया गुन ग्यानातीत अमाना वेद पुरान भनंता ..

करुना सुख सागर सब गुन आगर जेहि गावहिं श्रुति संता .
सो मम हित लागी जन अनुरागी भयौ प्रकट श्रीकंता ..

ब्रह्मांड निकाया निर्मित माया रोम रोम प्रति बेद कहै .
मम उर सो बासी यह उपहासी सुनत धीर मति थिर न रहै ..

उपजा जब ग्याना प्रभु मुसुकाना चरित बहुत बिधि कीन्ह चहै .
कहि कथा सुहाई मातु बुझाई जेहि प्रकार सुत प्रेम लहै ..

माता पुनि बोली सो मति डोली तजहु तात यह रूपा .
कीजे सिसुलीला अति प्रियसीला यह सुख परम अनूपा ..

सुनि बचन सुजाना रोदन ठाना होइ बालक सुरभूपा .
यह चरित जे गावहि हरिपद पावहि ते न परहिं भवकूपा ..

बिप्र धेनु सुर संत हित लीन्ह मनुज अवतार .
निज इच्छा निर्मित तनु माया गुन गो पार ॥


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त्रिभुवन जननायक मर्यादा पुरुषोतम अखिल ब्रह्मांड चूडामणि श्री राघवेन्द्र सरकार
के जन्मदिन की हार्दिक बधाई हो !!

सोमवार, 11 अप्रैल 2011

भारतीय काल गणना ----- भारत में सूर्य,चन्द्र और पृथ्वी तीनों के भ्रमण का ध्यान रखकर पंचांग बनाया गया है।

पिछली पोस्ट से लगातार .........

तब
राजुल बोला की यह तो हुयी रोमन और अरबी कैलेंडर की बात। अब हिंदी केलेंडर की बात बता, जिसका
तू इतना गुणगान करता है
मैंने कहा की देख गुणगान करने की बात नहीं है, संसार में जितने भी बड़े हैं सभी आदर के पात्र होते है लेकिन अपने माता-पिता के सम्मान को परे रखकर दूसरें बड़ों का आदर करना कैसे ठीक कहला सकता है।

चल छोड़ इस बात को मुद्दे की बात करते है की भारतीय कैलेण्डर कैसे ज्यादा सटीक है।
जैसा की मैंने बताया कि चंद्र-वर्ष केवल चन्द्रमा कि गति से सम्बन्ध रखता है इसलिए इसका मौसम से कोई रिश्ता नहीं रहता। वैसे ही सौर - गणना का सम्बन्ध चन्द्रमा से नहीं रहता। तू ही बता कि क्या रोमन कैलेण्डर से यह बताया जा सकता है कि अमावस्या कब आएगी और पूर्णिमा कब होगी ?

इन दोनों गणनाओं कि यह कमीं भारतीय गणना में दूर होती है। भारत में सूर्य,चन्द्र और पृथ्वी तीनों के भ्रमण का ध्यान रखकर पंचांग बनाया गया है।

राजुल बीच में उछला कि यार चाँद और धरती कि गती तो समझ में आती है पर सूरज बाबा तो एक ही जगह रहता है उसकी गती का क्या मतलब ????
मैंने कहा कि मेरे भोले भंडारी जिस तरह चन्द्रमा पृथ्वी कि परिक्रमा करता है, पृथ्वी सूर्य की उसी तरह सूर्य भी अपने सौरमंडल को साथ लेकर ब्राह्मांड में आकाश गंगा के केन्द्र की परिक्रमा करता है। इसको परिक्रमा करनें में२२ से २५ करोड़ वर्ष लगते हैं, इसे एक निहारिका वर्ष भी कहते हैं। इसके परिक्रमा करने की गति २५१ किलोमीटर प्रति सेकेंड है। इसलिए इन तीनो कि गति के आधार पर बना भारतीय पंचांग ज्यादा वैज्ञानिक है। और इसी कारण थोडा कठिन भी है।

ग्रहों, नक्षत्रों कि गती, भ्रमण काल, भ्रमण मार्ग की सुक्षम्तम गणना भारत के वैज्ञानिकों ने की थी।
हमारे यहाँ "समय" कि सूक्ष्मतम इकाई "त्रुटि" मानी गयी है.
त्रुटी माने गलती !!!!!!!!! अरे नहीं भई तू चुपचाप सुन ........ मेरा ध्यान मत डिगा, मैं झुन्झुलाया।

इस त्रुटि का मान एक सेकेण्ड का ३३७५० वाँ हिस्सा होता है। और "तल्लाक्षण" को समय कि सबसे बड़ी इकाई बताया गया है। तल्लाक्षण का मान
10^53 होता है यानी १ के आगे ५३ जीरो लगाने पर जो संख्या आये।
वोह फिर से अपनी पर गया और बोला कि देख तू मुझे पागल बनाने कि कोशिश कर रहा है ना, मैं मानता हूँ कि पहले इंडियन बहुत बड़े साइंटिस्ट थे पर !!!!!!! देख थोडा हिसाब कि फेंक :)
अब मैं बहुत पछताया कि किस कुघड़ी में मैंने इसे यह सब बताने कि सोची, "नादान कि दोस्ती जी का जंजाल" .............. चल ठीक है मैंने पहले ही कहा था कि समय कि इकाइयों को समझने के चक्कर में तू उठकर भाग जाएगा। अपन साल,दिन,महीने पर ही आगे चलते है।

साल में बारह महीने प्रारंभ से ही भारतीय गणना में मौजूद है, हर महीने में पंद्रह पंद्रह दिन के दो पक्ष होते है - शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष। जब अमावस्या के बाद चन्द्रमा बढ़ता है और अपनी उजली रौशनी फैलाता है तो वह पक्ष शुक्ल कहलाता है और जब पूर्णिमा के बाद जब चाँद की उज्वलता धीरे धीरे कम होती जाती है तो वह समय कृष्ण पक्ष कहलाता है।

अच्छा अब हिंदी के बारह महीनो के नाम सुन -- . चैत्र, . वैशाख, . ज्येष्ठ, . आषाढ़, . श्रावण, . भाद्रपद, . आश्विन, . कार्तिक, . मार्गशीर्ष, १०. पौष, ११. माघ, १२. फाल्गुन

तभी राजुल बीच में ही बोला कि यह कौन कौन से राजा है। मेरे दिमाग का भड़ीन्गा बैठ गया, कि यह क्या सवाल हुआ नाम बता रहा हूँ महीनो के और यह मसखरा राजा महाराजाओं कि घाल-घुसेड कर रहा है। पर बात तुरंत ही समझ में गई कि जनाब रोमन कलेंडर के जुलाई-अगस्त के नामकरण कि कहानी से यहाँ का तुक्का मिला रहेहै :)
मैंने कहा कि भईये यह राजाओं की बारात नहीं है कि कोई चैत्रसिंह नाम का राजा हुआ तो उसने एक महिना अपने नाम पर चैत्र कर लिया, या वैशाखनंदन जी हुए तो उनके नाम पर वैशाख पड़ गया।
तो फिर जल्दी बता यह नाम कैसे पड़े।
अब सुन चुपचाप ......... जिस महीने कि पूर्णिमा को चन्द्रमा चित्रा नक्षत्र में होता है, उस महीने का नाम चैत्र होता है, वैशाख कि पूर्णिमा को चन्द्रमा विशाखा नक्षत्र में, ज्येष्ठ कि पूर्णिमा को ज्येष्ठा में, आषाढ़ कि पूर्णिमा को पूर्वाषाढा या उत्तराषाढा, श्रावण कि पूर्णिमा को श्रवण में, भाद्रपद कि पूर्णिमा को पूर्वाभाद्र या उत्तराभाद्र, आश्विन महीने में अश्विन नक्षत्र में, कार्तिक कि पूर्णिमा कृतिका, मार्गशीर्ष कि पूर्णिमा को मृगशिरा, पौष कि पूर्णिमा को पुष्य, माघ की पूर्णिमा को मघा, और फाल्गुन कि पूर्णिमा को चन्द्रमा पूर्वाफाल्गुनी या उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र में होता है., इसलिए इन नक्षत्रों के आधार पर इनका नाम स्थिर किया गया है।

अब बताओ कि यह नामकरण पूर्णतया वैज्ञानिक है या नहीं। पर अभी उसका कीड़ा मरा थोड़े ही था बोला कि चल यह तो समझ में गया पर तीन साल में पूरा का पूरा महीना किस वैज्ञानिक विधि से बढ़ जाता है।

यह भी सुनो जैसा कि तुम्हे पता है कि यह एक खगोलशास्त्रीय तथ्य है कि सूर्य 30.44 दिन में एक राशि को पार करता है और यही सूर्य का सौर महीना है। ऐसे बारह महीनों का समय जो 365.25 दिन का है, एक सौर वर्ष कहलाता है। चंद्रमा का महीना 29.53 दिनों का होता है जिससे चंद्र वर्ष में 354.36 दिन ही होते हैं। यह अंतर 32.5 महीने के बाद यह एक चंद्र माह के बराबर हो जाता है। इस समय को समायोजित करने के लिए हर तीसरे वर्ष एक अधिक मास होता है। एक अमावस्या से दूसरी अमावस्या के बीच कम से कम एक बार सूर्य की संक्रांति होती है। यह प्राकृतिक नियम है। जब दो अमावस्या के बीच कोई संक्रांति नहीं होती तो वह महीना बढ़ा हुआ या अधिक मास होता है। संक्रांति वाला माह शुद्ध माह, संक्रांति रहित माह अधिक माह और दो अमावस्या के बीच दो संक्रांति हो जायें तो क्षय माह होता है। क्षय मास कभी कभी होता है।
और उस बढे हुए महीने कि पूर्णिमा को चन्द्रमा जिस नक्षत्र में होता है वही उस महीने का नाम होता है।

अधिक मास लगातार पूर्णिमा से पूर्णिमा तक नहीं होता बल्कि अमावस्या से अमावस्या तक होता है क्योंकि इसका आधार सूर्य संक्रांति है इसलिए पहले पूर्णिमा से अमावस्या तक शुद्ध महिना रहता है फिर अमावस्या से अधिक मास चालू होकर अगली अमावस्या तक रहता है फिर उस अमावस्या से पूर्णिमा तक शुद्ध मास का बाकी बचा पक्ष होता है।

तभी मेरे मोबाईल कि घंटी बजने लगी, मैंने कहा कि देख प्रतुल जी का फोन रहा है, अब मुझे आधा पौन घंटा लग जाएगा तब तक तू इस चैप्टर को ढंग से समझ ले फिर आगे बढ़ेंगे ......

जारी ..............

शुक्रवार, 8 अप्रैल 2011

भारतीय काल गणना -----जो बात हर हिंदुस्थानी को मालूम होनी चाहिये, वह हमारी एज्यूकेशन का हिस्सा ही नहीं बन पायी।

"भारतीय काल गणना पूर्णतया वैज्ञानिक विधान पर आधारित है।" जब यह बात मैने अपने दोस्त राजुल से कही तो वह बोला की रहने दे, ज्यादा ज्ञान मत बघारे।
साल सिर्फ ३६५ दिन का होता है, जो सिर्फ ग्रेगरियन कैलेण्डर में ही होता है। लीप ईयर से एक दिन ऊपर नीचे होता है जो ख़ास फर्क नहीं है। पर हिंदी कैलेण्डर का तो कुछ समझ में ही नहीं आता है, कभी कोई तिथि घट जाती है तो कोई बढ़ जाती है। कभी पूरा महीना ही बढ़ जाता है। २००८ से संक्रांति भी तुम्हारे पोंगे पंडतो के हिंदी पंचांग के कारण १४ के बजाये १५ तारीख में झूलने लगी है।
उसके बकवादन से मैं थोडा अकबकाया, फिर पूछा की भईये तूने कभी जानने की कोशिश भी करी है क्या की ऐसा क्यों होता है।
वह बोला की इसमें जानने लायक क्या बात है, सब तुम्हारे पंडतों की पोंगापंथी है।
मैं तमका और जोर से बोला की "ओ लॉर्ड मैकाले के सन-इन-लॉ तेरी भी गलती नहीं है। यह तो भारत का ही करमडा फूटा हुआ है की जो बात सामान्य ज्ञान के नाते हर हिंदुस्थानी को मालूम होनी चाहिये, वह हमारी एज्यूकेशन का हिस्सा ही नहीं बन पायी। फिर हमारी पुरानी पीढ़ियों का भी दोष रहा है की अपनी संतानों को कभी कुछ सांस्कृतिक ज्ञान ही नहीं दिया। और देंगे भी किस मुंह से भाप्डों को खुद ही नहीं पता।"
फिर थोडा ठंडा मैं हुआ थोडा उसे किया और पूछा की अब तू बता की इस बारे में कुछ जानना चाहता है या अपनी कमजोरी का ठीकरा पंडतों के माथे ही फोड़ते रहने की इच्छा है।
तो वे जनाब फ्रिज के एक एड की नक़ल करते हुए कानों में उंगली डालकर बोले की "गाओ बेटा गाओ"
तो साहब हमने भी अपने अस्त्र-शस्त्र निकाल लिए बुकशेल्फ में से और गाने लगें :)
मैंने उससे पूछा की काल मतलब की समय को हम कितनी यूनिट में बाँट सकते है, तो बताया की - सेकेण्ड,मिनिट,घंटा,दिन,महिना और साल।

मैंने कहा की देख अब वैदिक काल गणना की सबसे छोटी इकाई से लेकर सबसे बड़ी इकाई के बारे में तुझे अभी बताने बैठूं तो मुझे डर है की तू जो की मेरा पहला चेला भी है, अभी उठकर भाग जाएगा। इसलिए तेरे बताये इन मोटे विभागों को ही लेकर आगे बढतें है।

अब देख ----
६० सेकेण्ड = १ मिनिट
६० मिनिट = १ घंटा
२४ घंटे = १ दिन-रात
अब यह तो अंग्रेजी घंटा, मिनिट, सेकेण्ड हुए इन्हें हिंदी में घटी,पल और विपल कहते है।
ढाई घटी = १ घंटा
ढाई पल = १ मिनिट
ढाई विपल = १ सेकेण्ड
अब इन्हें इस तरह समझो -----
६० विपल = १ पल
६० पल = १ घटी
६० घटी = १ दिन रात
अब महीने को समझो हिंदी में दो पूर्णिमा के बीच का समय एक महीना है। पर यह गणना उत्तर भारत में है, जबकि दक्षिण भारत में अमावस्या से अमावस्या के बीच का समय एक महिना माना जाता है। एक महीने का समय २९।५ दिन का होता है।
पृथ्वी सूर्य की परिक्रमा लगभग ३६५।२४२२ दिन में करती है। इस समय को सायन वर्ष कहते है।
लेकिन भारतीय काल गणना निरयण वर्ष से होती है भारतीय ज्योतिष में काल-गणना और पंचांग बनाने की विधि (सायन से भिन्न) जो अयन अर्थात् राशि-चक्र की गति पर अवलंबित या आश्रित नहीं होती, बल्कि जिसमें किसी स्थिर तारे या बिंदु से सूर्य के भ्रमण का आरंभ स्थान माना जाता है। जिसका समय ३६५ दिन ६ घंटे ९ मिनिट ९।७ सेकेण्ड के लगभग है।

वह थोडा चकराया, मुझे भी अपनी गुरु-गद्दी हिलती महसूस हुयी की अब अगर इसने और गहराई से समझाने को कहा तो!!!!!! उससे पहले ही मैंने कहा की घबराये मत "कालो हि दुरतिक्रमः" इसकी गति समझने के लिए गहन अध्यन की जरुरत होती है मैं तुझे सिर्फ मोटा मोटी बात बता रहा हूँ ।

यह कहकर मैं आगे कूदा और पोथी-पन्ने संभाल कर बताने लगा की इस तरह गणना की अलग अलग पद्दतियों के कारण कुछ विद्वानों ने बारह चन्द्र महीनो का एक साल मान लिया।
अब एक महिना लगभग २९।५ दिन का होता है, इसलिए एक साल ३५४ दिन का ही हुआ। क्योंकि इस विधि में चन्द्रमा को ज्यादा तवज्जो दी गयी है, इसलिए इसे चन्द्र-वर्ष कहते है। इस्लामिक कैलेण्डर इसी हिसाब से चलता है। अब चूँकि चन्द्र-वर्ष चन्द्रमा के आधार पर चलता है तो इसमें मौसम का तालमेल गड़बड़ाया हुआ है, सारे त्योंहार सारे मौसमों की सैर करते रहतें है ईद कभी गर्मी में आएगी तो कभी सर्दी में,कभी भर बरसात में। इस तरह इस गणना में ही बड़ा भारी लोचा है।


सौर वर्ष पृथ्वी के सूर्य की परिक्रमा लगाने जो की लगभग ३६५।२५ दिन की है को एक वर्ष मानकर अपनाया गया है।
और यह तुम्हारा हैप्पी न्यू ईयर वाला ईस्वी सन सायन सूर्य के भ्रमण पर ही आधारित है। अब पंडितो की सच्ची वैज्ञानिक गणना तो थोड़ी देर बाद में समझेंगे जिसको तू पोंगा-पंथी कहता ,पर पहले ईस्वी सन की पोप-लीला का बखान सुन :)

अब जिसको हजरत ईसा के नाम पर ईस्वी सन कहतें है, उसमें ईसा का जन्म २५ दिसंबर बताया गया है तो नया साल १ जनवरी से क्यों मनाते है?

जब कहतें है की ईसा के जन्म से इसका सम्बन्ध है तो नया साल २५ दिसंबर क्यों नहीं या ईसा का जन्म १ जनवरी क्यों नहीं। और घनचक्करी देखो इनकी की पहले ईस्वी साल १० महीनो का ही हुआ करता था। और नया साल मार्च से शुरू होता था। बाद में भूल पता लगने पर दो नए महीने - जेन्युअरी और फेब्रुअरी - क्रमशः ग्यारहवें और बारहवें महीने के रूप में जोड़े। लेकिन इनके साल के दस महीनो नाम क्या रहे होंगे इनका अंदाजा आखिरी छह महीनो के नाम पर आसानी से समझा जा सकता है।
राजुल ने पूछा कैसे मैंने कहा देख ऐसे ------
जब दस महीने थे और मार्च से साल शुरू होता था तो सेप्टेम्बर कौनसे नम्बर पर आता था, सिंपल सी बात है सातवे पर।
और संस्कृत में सात को क्या कहतें है ???? "सप्त" ....... आठ "अष्ट" ..... नौ "नवम" ..... दस "दशम" .......... sept (सेप्ट --सप्त ) ...... oct (ओक्ट -- अष्ट ) novem (नवेम -- नवम) decem (डेसम -- दशम ) अब इसमें भी अष्ट ओक्ट इसलिए बना क्योंकि अंग्रेजी में "C"को प्रायः "क"(K) के रूप में बोला जाता है। अगर स की ही ध्वनी से बोलें तो अष्ट ही कहलायेगा.
अब इनके साल के और हाल भी सुन लो कैलेण्डर जुलियस सीजर ने आवश्यक सुधार किये। अब सुधार किये तो उनका हक तो बनता ही है ना की उनके नाम पर एक महिना हो सो पांचवे महीने का नाम बदलकर जुलियस सीजर के नाम पर जुलाई रख दिया गया, पांचवा इसलिए चुना गया क्योंकि इसी महीने में जुलियस का जन्म हुआ था.
अब इनकी हत्या होने के बाद शासक बने सम्राट आगस्टस, उन्होंने कहा की एक महिना उसके नाम पर भी होना , और इतना ही नहीं वह छटा महिना हो लेकिन ३१ दिन का ही हो; जो हुकुम मेरे आका, नाम रखने में क्या परेशानी होती है नानाजी का खेत ही तो है, जो चाहे रख लो नाम पर पांचवे महीने में ३१ दिन होते है तो क्रमानुसार अगला ३० का ही होगा। तो किसी दूसरे महीने का नाम अपने नाम पर रख दो, पर साहब नहीं माने क्योंकि इन्होने इसी महीने में प्रमुख विजय प्राप्त की थी। ठीक है साहब छठे महीने का नाम अगस्त निश्चित कर दिया पर अब ३१ दिन के लिए १ दिन की व्यवस्था कहा से करें ???? बस गरीब फरवरी की गर्दन पर छुरी चलाकर एक दिन की व्यवस्था कर ली गयी।

अब राजुल मुझे ईसवी सन का पाला छोड़ कर सम्राट विक्रमादित्य की शरण में आता दिखाई देने लगा, लेकिन मैं भी ईस्वी के लगाव को बिलकुल जड़ से ही काट डालना चाहता था।

इसलिए बोला की और सुन आगे की बात --- यह काम रोमन सम्राट जुलियस सीजर के राज में हुआ , इस लिए यह रोमन या जुलियन कैलेण्डर कहलाया। इसमें चार साल में एक बार ३६६ दिन वाले लीप ईयर की व्यवस्था की गयी। पहला लीप ईयर अपनाए जाने के बाद भी भ्रम बना रहा, जब जूलियस सीज़र के किसी अधिकारी की ग़लती के कारण प्रत्येक तीसरे साल को लीप ईयर बनाया जाने लगा। इसे 36 साल बाद जूलियस के उत्तराधिकारी ऑगस्टस सीज़र ने ठीक किया, उसने तीन लीप ईयर बिना किसी अतिरिक्त दिन जोड़े गुज़र जाने दिए और 8 A.D. से दोबारा हर चौथे साल लीप ईयर को नियमपूर्वक लागू करना निश्चित किया।

पर भोंटी बुद्धि से तो मोटी गणना ही होती है सो इसमें भी कमी रह गयी जिसे लुइजि गिग्लियो ने दूर किया। पर ताल से ताल अब भी नहीं मिली, इस बेताल के कारण १५८२ तक इस कैलेण्डर में १० अतिरिक्त दिन इक्कट्ठे हो गए। तब पोप ग्रेगोरी ने पोप-लीला से चार अक्तूबर के बाद सीधे १५ अक्तूबर तारीख घोषित कर दी। लोग चार अक्तूबर को सोये थे; पर जागे पंद्रह अक्तूबर को। साल का आखिरी बारहवां महिना दसवें महीने दिसंबर को बना दिया। नया साल मार्च के स्थान पर १ जनवरी से घोषित किया गया, और लीप ईयर की व्यवस्था फरवरी के हिस्से आयी। इस गडबडझाले के झोले से निकला कैलेण्डर ही ग्रेगोरियन कैलेंडर कहलाता है।
सबसे पहले कैथोलिकों ने और १७०० ईo में प्रोटेस्टेंट ईसाईयों ने इसे अपनाया।
१७५२ ईo में इसे ब्रिटेन ने अपनाया और अपने अधीनस्थ सारे उपनिवेशों में भी लागू कर दिया जिसमें नया नया शामिल हुआ अपना भारत भी था।
राजुल जी के समाधि में से डूबे वाक्य सुनाई दिए " कितना दुर्भाग्य है की जिस हिन्दुस्थान की काल गणना की छाप दूसरें देशों पर पड़ी फिर भी वे उसको सटीक नहीं निभा पाए और अंट-शंट तरीके से सुधार पर सुधार करते हुए खोखले पंचांग को हमारे उन्नत पंचांग के ऊपर जबरिया थोप दिया, और हम उसी गुलामी के नशे में ३१ दिसंबर की काली रात में हैप्पी न्यू ईयर का बेसुरा राग अलापतें है"
भाई साहब अपनी मेहनत को सफल जान मैं भी ब्रह्मानंद के समान आनंद लेने लगा, पर अभी तो ग्रेगोरियन कैलेंडर का कुछ और तिया-पाँचा करना बाकी था, और भारतीय काल गणना की वैज्ञानिकता और उन्नत्ता भी सिद्ध करनी थी, राजुल को समाधी से बाहर लेकर आया और एक दो पन्ने उलटे-पुल्टे करके आगे की बात सीधी की।
मैंने उससे पूछा की क्या अब तुम यह मान सकते हो की प्राचीन काल में पूरा संसार भारत के प्रभाव में था, उसका जवाब सकारात्मक आया।
महीनो के नाम ज्यों के त्यों संस्कृत के है इसके अलावा यह जानकर आश्चर्य होगा की अपनी पोप लीला में वे भले ही अपना नया साल १ जनवरी से मना लें, पर भारतीय आधीनता के अवशेष के रूप में पूरे संसार में नया वित्तीय-वर्ष १ अप्रैल को शुरू होता है। (भारतीय नव-वर्ष के आसपास) .
हम जब अंग्रेजों की अधीनता में थे तब भारत का बजट रात के समय पेश होता था,( यह परंपरा गुलाम मानसिकता के नेताओं के कारण पिछले कुछ वर्षों तक मौजूद थी ) क्योंकि तब गौरांग-महाप्रभुओं के देश में दिन रहता था. जिससे की वे वहाँ बैठे सूचनाये प्राप्त कर सकें। अगर यहाँ दिन में बजट पेश किया जाता तो वहाँ उन्हें रात में जागना पड़ता। पराधीन होने के कारण ही यहाँ का काम वहाँ के दिन के हिसाब से तय हुआ मतलब शासकों के समय से कदमताल बैठने के लिए। तब यह सोचो की अंग्रेज रात को बारह बजे अपना नव वर्ष क्यों मानते है ????? जबकि दिन की शुरुवात तो सूर्योदय से होती है ना की आधी रात से !!!!
क्योंकि पूरे विश्व को भारत ने अपने आधीन रखा था, और भारत में दिन का प्रारंभ ब्रह्म मुहूर्त यानी की 4.30 से 5.30 के करीब मानते हैं, और उस समय इंग्लैण्ड आदि देशों में आधी रात होती है, इसलिए अपने शासकों के दिन के उदयमान से अपनी कदमताल मिला कर रखने के लिए वहाँ आधी रात को तारीख बदलने की परिपाटी चालू हुयी थी, इसके अलावा दूसरा कोई कारण नही है।

जारी ..........

( जुलाई अगस्त की कहानी में एक भारी भूल हो गयी थी, जिसकी ओर श्री अनुराग शर्माजी के ध्यान दिलाने के बाद सुधार कर दिया है। शर्मा जी का आभार )