रसाई माँगता हूँ नज़रों की तुझसे खुदा
जर्रे जर्रे में तू ही, दिखे ना कोई अलहदा
नाद-ऐ-अनलहक की गूंज में सरसार रहूँ
एक तू ही एक ही तू बार बार हरबार कहूँ
खालिक हो तुम कायनात के मालिक तुम हो
क्या है रीता तुमसे जो बता इन खाफकानो को
गर कहूँ के तू बस वहाँ और ना कहीं यहाँ
तेरी ही बुलंदी पे तोहमत होगा मेरा कहा
सदाकत का जाम पियूँ साकी तुम रहना
सदाअत में बन्दों की तेरे जिंदगानी रखना
गाफिल ना होऊं फ़र्ज़ ओ ईमान से रहनुमाई रखना
भूल जाऊ मैं तुझको मगर तुम याद अमित रखना
जर्रे जर्रे में तू ही, दिखे ना कोई अलहदा
नाद-ऐ-अनलहक की गूंज में सरसार रहूँ
एक तू ही एक ही तू बार बार हरबार कहूँ
खालिक हो तुम कायनात के मालिक तुम हो
क्या है रीता तुमसे जो बता इन खाफकानो को
गर कहूँ के तू बस वहाँ और ना कहीं यहाँ
तेरी ही बुलंदी पे तोहमत होगा मेरा कहा
सदाकत का जाम पियूँ साकी तुम रहना
सदाअत में बन्दों की तेरे जिंदगानी रखना
गाफिल ना होऊं फ़र्ज़ ओ ईमान से रहनुमाई रखना
भूल जाऊ मैं तुझको मगर तुम याद अमित रखना
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रसाई ----------- पहुंचने की क्रिया या भाव। पहुँच।
अलहदा ------- जुदा। पृथक्। अलग। भिन्न।
अनलहक ----- एक अरबी पद जो अहं ब्रह्मास्मि का वाचक है
सरसार -------- मग्न
खालिक -------- सृष्टि की रचना करनेवाला। ईश्वर। स्रष्टा।
कायनात ------ सृष्टि
खाफकानो ------ पागल।
सदाकत ------- सच्चाई। सत्यता।
सदाअत ------- भलाई नेकी
गाफिल ------ बेपरवाह, बेखबर, असावधान, उपेक्षक