राजेंद्र स्वर्णकार जी की आवाज में, बाबा को टूटे-फूटे शब्दों में श्रद्धांजली----- "
ॐ
आज फिर से रात भर आपकी याद आई
आज फिर से रात भर आपकी याद आई
आज फिर से रात भर हुई नींद से रुसवाई
तस्वीर जो देखी आपकी चली फिर से पुरवाई
गुजरी हर एक बात दौड़ी आँखों में भर आई
जिन्दगी की धूप से जब कभी परेशां हुआ था
आप का ही साया मैंने हमेशा सर पे पाया था
साये तो वैसे अब भी जिन्दगी में खूब मिले है
पर मिला ना अब तक आप सा हमसाया कोई
याद आती है अब भी बैठ काँधे पे घूमना आपके
घुमाता हूँ जब बैठा काँधे पे पडपोते को आपके
यादों में ही आएंगे क्या अब दिने - क़यामत तक
कहिये तो फिर आ चलें "अमित" जरा बाज़ार तक
ब्रह्मलीन श्रद्धेय दादाजी
जवाब देंहटाएंको
सादर विनम्र श्रद्धांजली !
- राजेन्द्र स्वर्णकार
इस रचना में श्रद्धेय दादा जी के प्रति असीम प्यार झलक रहा है अमित !
जवाब देंहटाएंश्रद्धांजलि अर्पित करता हूँ !
राजेंद्र भाई को धन्यवाद !
भगवान् से आपके सुखद, समृद्ध, शांतिपूर्ण और संतोषपूर्ण जीवन की कामना करते हुए मैं भी आपके पूज्य दादा जी को सादर विनम्र श्रद्धांजली अर्पित करता हूँ.
जवाब देंहटाएंआपके अनन्य श्रद्धा भाव में हम भी सम्मलित है।
जवाब देंहटाएंसादर विनम्र श्रद्धांजली!!
दादाजी की पुण्यात्मा शास्वत सुखों को प्राप्त करे।
पूज्य दादा जी को सादर श्रद्धा सुमन अर्पित करता हूँ...
जवाब देंहटाएंउपरोक्त भाव को पढ़ते पढ़ते मुझे भी अपने दिवंगत दादा जी की याद हो आई...
भाव के रचियता को शत शत नमन करता हूँ...
मुझे तो अपने बाबा का साथ बचपन में ही छोड़ना पड़ा...
जवाब देंहटाएंभाई साहब कृपया प्रेम की परिभाशा बतायें प्रेम के क्याा गुण होते हैं मै मानवप्रेम की बात कर रहा हूं
जवाब देंहटाएंमुहब्बत भरी खिराज ए अकीदत आपके दादाजी के लिए मेरी तरफ से और आपके लिए दुआएं .
जवाब देंहटाएंतस्वीर जो देखी आपकी चली फिर से पुरवाई
जवाब देंहटाएंगुजरी हर एक बात दौड़ी आँखों में भर आई
जब भी कोई अपने उन रिश्तेदारों को याद करता है जो दुनिया मैं नहीं रहे तो अच्छा लगता है. हकीकत मैं मुहब्बत इसी को कहते हैं.
.
जवाब देंहटाएंपूज्य स्वर्गीय दादाजी को मेरी भावभीनी श्रद्धांजली.
..
अमित,
जवाब देंहटाएंपूज्य दादाजी के प्रति आपकी भावनायें मन को छू गईं। स्वर्गीय दादाजी को मेरी तरफ़ से श्रद्धांजलि। उनके स्नेह की कीमत चुकाने की योग्यता आप में है, अच्छे विचारों को बांटिये तो यही सच्ची श्रद्धांजलि होगी।
राजेन्द्र स्वर्णकार जी का आभार।
अमित जी शब्दों में ढले आपके मन के भावों को पहले भी पढ़ा और पसंद किया था पर इस बार राजेंद्र जी कि आवाज ने इसमें चार चाँद लगा दिए. स्वर्णकार महोदय को धन्यवाद. राजेंद्र जी एक बहुत अच्छी आवाज के मालिक हैं.
जवाब देंहटाएंमुझे अपने पूज्य दादाजी को देखने का सौभाग्य नहीं मिला … अमित भाई के दादाजी को श्रद्धासुमन सहित स्वरांजलि
जवाब देंहटाएंअर्पित करते हुए मैं अपने दादाजी को भी स्मरण करता रहा …
अमित जी का आभारी हूं ,जिन्होंने अपनी भावपूर्ण रचना को गुनगुनाने का अवसर दिया
साथ ही
कृतज्ञ हूं आप सब के प्रति , जिन्होंने पूरे आत्मीय भाव के साथ मेरे नाकुछ गायन को सराह कर मुझे और श्रेष्ठ करने को प्रोत्साहित एवं प्रेरित किया ।
आशा है , आप सबका स्नेह और अपनत्व मुझे सदैव मिलता रहेगा ।
कभी किसी काम लायक समझें तो अपना मान कर अवश्य याद कर लीजिएगा …
- राजेन्द्र स्वर्णकार
पूज्य स्वर्गीय दादाजी को मेरी भावभीनी श्रद्धांजली.
जवाब देंहटाएंराजेंद्र जी को बहुत बहुत धन्यवाद.
सादर श्रद्धांजली...दादाजी पथ प्रदर्शक बन कर हमेशा यादों मे बसे रहें...
जवाब देंहटाएंpujya dadaji ko sadar shradanjali...........
जवाब देंहटाएंsadar.
राजेंद्र काका आपके वातसल्य को शब्दों में बंधना तो मेरा छोटापना ही कहलायेगा.....................बस अब तो जल्द मिलने की उत्कंठा है.................सक्सेनाजी बाबा की मेरे प्रति स्नेह के आगे तो यह किसी कोने में दुबकी मामूली सी नमी है बस ...............विरेंद्रजी सुखद, समृद्ध, शांतिपूर्ण और संतोषपूर्ण जीवन व्यक्ति तभी प्राप्त कर पाता है जबकि वह अपने बुजुर्गों को संतोष दे सके आपकी मंगलकामना के लिए आभार..............मुकेशजी बस अब तो यादें ही बाकी बचती है और वह भी बहाने ढूंढती है इस भाग-दौड़ भरी जिन्दगी में..............नागरिक जी बाबा का साथ छूटने के बाद मैं हर बुजुर्ग में उन्हें महसूस करने की कोशिश करता हूँ शायद आपका भी यही तरीका हो .......................जमाल साहब आप बड़ों की दुआएं ही चहिये की इंसानियत से ना डिग जाऊं कभी.............मासूम जी अच्छा भी लगता पर सबसे ज्यादा दुख होता है जब कभी अपने आस-पास ही बुजुर्गों को अपने लोगों से परेशानी पाते हुयें देखता हूँ...................मौसमजी आपका निर्देशन बना रहें, कभी गलत पैर धरतें देखे तो तुरंत डपट दीजिएगा ...................... प्रतुलजी, विचारीजी,गौरव भाई, अर्चनाजी, संजयजी भावलोक में मेरे साथ चलने के लिए धन्यवाद !
जवाब देंहटाएंअच्छा!! मैं तो परिवार का ही अंग हूं।
जवाब देंहटाएं@ अच्छा!! मैं तो परिवार का ही अंग हूं।
जवाब देंहटाएं# सुग्यजी जल्दबाजी के कारण उल्हाना मिला है आपका...............
अब मान भी लो भाई, मैं परिवार का ही अंग हूं।
जवाब देंहटाएंकैसी बात करतें है सुज्ञ जी, इस सत्य को झुठला कर मुझें कहाँ ठौर है.........आप मेरे घर के बड़ें है.......आप गुरुजनों के कारण ही मन में बुराइयों से बचने की प्रेरणा प्राप्त होती है .......आभार आपका
जवाब देंहटाएंइस मजाकिया प्राणायाम से बिना कुछ कहे अमित शर्मा चले गए इसका अफ़सोस है ...
जवाब देंहटाएंअमित आजकल कुछ अधिक गंभीर हैं कम से कम मुझे यह अच्छा नहीं लगता !
मुझे गर्व है कि यह युवक मेरा आदर्श है !
@ सतीश सक्सेना जी
जवाब देंहटाएंआप कहते हो ग़मज़दा क्यों हो, कुछ कहकहाया भी किया करो
कहकहा क्या ख़ाक लगाएं पर, जब तबियत-ऐ-जहाँ नासाज हो
कोई ना, हामी-ऐ-गैरत यहाँ पर , बस गैरियत सी जमी जहाँ पर
कह ना पाए बात अपनी रवानी में, ठण्ड सी घुली है हर जवानी में
आप जो पूछा किया करते हो हाल-ऐ-अमित तफ़ज्जुल है आपका
वरना तफावत से ही पडा करता है आजकल हमारा वास्ता
अक्सर इंसान की सही शक्ल उसके दोस्तों के कारण पहचानी जाती है.
जवाब देंहटाएंपूज्य स्वर्गीय दादाजी को मेरी भावभीनी श्रद्धांजली.
जवाब देंहटाएं