भगवती दुर्गा को जगत माता कहकर पुकारा जाता है, फिर उन्ही जगत माता को कुकर्मिजन जगत के जीवों की बलि चढ़ा देते हैं, फिर वे जगत माता कैसे सिद्ध हुयी. स्पष्ट है असुर स्वाभाव के मनुष्यों ने अपने जीभ के स्वाद के लिए हर उपासना पद्दत्ति में बलि परम्परा को परमेश्वर के नाम पर प्रविष्ट कर दिया. और ईश्वर का नाम ले लेकर अपने पेट को बूचड़-खाना बना डाला.
मेरा विरोध हर उस कृत्य के प्रति है जो कहीं भी मात्र अपने जीभ के स्वाद और उपासना के नाम पर हिंसा करता है, फिर वोह चाहे अल्लाह की राह में कुर्बानी का ढोंग हो या देवी-देवताओं के निमित्त बलि का पाखण्ड.
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रहम करो परवरदिगार
मुझे बचाओ ..... मुझे बचाओ
............ चीखें आती कानों में
लेकिन उन चीखों की .. ऊँची
........... कीमत है दुकानों में.
अल्लाह किस पर मेहरबान है
........ समझ नहीं है खानों में.
ईद मुबारक ..... ईद मुबारक
.......... बेजुबान की जानों में.
रहम करो ...... परवरदिगार
पशु कत्लगाह - ठिकानों में.
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खानों — खान का बहुवचन ............ चीखें आती कानों में
लेकिन उन चीखों की .. ऊँची
........... कीमत है दुकानों में.
अल्लाह किस पर मेहरबान है
........ समझ नहीं है खानों में.
ईद मुबारक ..... ईद मुबारक
.......... बेजुबान की जानों में.
रहम करो ...... परवरदिगार
पशु कत्लगाह - ठिकानों में.
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दूसरा अर्थ — भक्ष्य-अभक्ष्य में हमें अपने भोजन की ही समझ नहीं रही.
अल्लाह किस पर मेहरबान है हम पर या बेजुबान जानवरों पर?
जबकि यह आयत जीवहिंसा को हराम ठहराती है।
जवाब देंहटाएं"ला तुकातिलुन्नफ्स मा हर्रमल्लाह "(कुरआन 6 :152)
किसी भी जीव की हत्या को अल्लाह ने हराम कर दिया है .
अमित शर्मा जी, हर इंसान का फ़र्ज़ है की वोह अपने धर्म की खूबियों को लोगों तक पहुंचाए और अपने ही धर्म मैं जो ग़लत धारणाएं लोगों ने बना राखी हैं, ग़लत परंपरा चला राखी है, उसपे बोलिएँ. दूसरों के धर्म के खिलाफ बोलना, उनके तरीकों पे ऊँगली उठाना, का नतीजा नफरत के सिवाए कुछ नहीं.
जवाब देंहटाएंधर्म की मिसाल से बात ना समझ आये तो ऐसे समझ लें. बच्चा आप का हो या मेरा, बहुत सी अच्छी और बुरी आदतें दोनों के बच्चों मैं होंगी. मैं अगर आप के बच्चे की कामिआं बताने लागों गा तो आप की नफरत के सिवाए कुछ हासिल नहीं होगा.
शाकाहारी होना या मांसाहारी होना. दो अलग अलग सोंच है और दोनों के पास उसकी दलीलें हैं. ऐसे मैं आप अपनी दलीलिएँ पेश करें, ना की दूसरे का मजाक उडाएं. मैंने तो आप सबको दीपावली की मुबारक बाद दी. क्या उसका जवाब ऐसे ही ईद मुबारक के साथ दिया जाता है? मेरा ख्याल है आप मेरी बातों को सही मेने मैं लेंगे और शांति की ओर एक क़दम बढ़ाएंगे.
@ आदरणीय मासूम जी,
जवाब देंहटाएंईश्वर की कृपा आप पर नित्य बरसती रहे .
बाकी आज बड़ी मासूमियत से आप """ दूसरों के धर्म के खिलाफ बोलना, उनके तरीकों पे ऊँगली उठाना, का नतीजा नफरत के सिवाए कुछ नहीं.""" की शिक्षा दे रहें है जबकि आपको खुद को मालूम है की नफरत की बयार किसने बहाई थी. और आप इस पोस्ट पर यह बात कह रहें है, जबकि इसमें तो किसी एक धर्म विशेष के लिए नहीं कहा गया है बलि प्रथा के बारे में मेरा विरोध मात्र दर्ज करवाया है मैंने.
मजाक कौन किसका बेहतरी से उड़ाना जानता है, और उडाता है आप बेहतर जानते हैं .
परमेश्वर ने यह मानव जीवन हमें दिया है, इसकी आपस में आपको बधाई देते हुए आपसे निवेदित करना चाहुंगा की मैं व्यक्तिगत रूप से ऐसे किसी भी पर्व पर जिसमें हिंसा होती है से उल्लासित नहीं होता हूँ , चाहे फिर ईद हो या देवि-बलिदान कर्म. तो जिस पर्व पर मेरा ह्रदय ही राजी नहीं है उसी की बधाई किस तरह प्रसारित करूँ , आप ही निर्देशन कीजिये आप बड़े हैं .
सुज्ञ जी,
जवाब देंहटाएंहम एक बहुत बड़ी ग़लती करते हैं, की हम दूसरों की धार्मिक किताबों मैं क्या लिखा है, पढने की आवश्यकता नहीं समझते और बग़ैर पुष्टि के इन्टरनेट पे भी देने से नहीं चूकते. ऐसे झूट जो हमारी खुद की बातों को हल्का कर देते हैं. हर वोह बात जो हमारे दिल को भा जाए सत्य नहीं हुआ करती
६: १५२ कुरआन का तर्जुमा यह है हिंदी मैं
और अनाथ के धन को हाथ न लगाओ,किन्तु ऐसे तरीके से जो उत्तम हो , वो यह की उनका धन उनको मिले जब वह अपनी युवावस्था को पहुँच जाए। और इनसाफ के साथ पूरा- पूरा नापो और तौलो। हम किसी
व्यक्ति पर उसी काम की ज़िम्मेदारी का बोझ डालते है जो उसकी समर्थ मे हो। और जब
बात कहो, तो न्याय की कहो, चाहे मामला अपने नातेदार ही का क्यों न हो, और अल्लाह की
प्रतिज्ञा को पूरा करो। ये बाते है,जिनकी उसने तुम्हें ताकीद की है । आशा है तुम ध्यान
रखोगे.
और यह है इंग्लिश मैं
Do not handle the property of the orphans except with a good reason until they become mature and strong. Maintain equality in your dealings by the means of measurement and balance. No soul is responsible for what is beyond it's ability. Be just in your words, even if the party involved is one of your relatives and keep your promise with God. Thus does your Lord guide you so that you may take heed. (6:152)
अब आप अपने तर्जुमे को देखिएं , कहीं सर पैर ही नहीं है. क्यूँ दूसरों के धर्म पे बग़ैर , कुरान को समझे और पढ़े ऊँगली उठाते हो?
भाई हम सब इंसान हैं, इंसान बन के क्यों नहीं रह सकते? हर इंसान पहले अपने ईमान की , धार्मिक उपदेशों का पालन कर ले यही बहुत है.
सुज्ञ जी आप एक अच्छे इंसान हैं, यह ग़लती अनजाने मैं ही हुई होगी ऐसा मेरा मान ना है. इस ग़लती को सूधार लें. आप शाकाहारी हैं, मैं आप की सूंच की इज्ज़त करता हूँ. जो मांसाहारी हैं, उनको उनके धरम का पालन करने दो.
प्रेम बांटो , नफरत नहीं, यह सभी धर्म का सन्देश है.
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जवाब देंहटाएंअमित जी
जवाब देंहटाएंयदि आप को लगता है की किसी ने , आपके धर्म को बुरा भला कहा, तो इसका जवाब यह नहीं की आप भी वही ग़लती करें. मैं मुसलमान हूँ, बड़े ब्लॉग हैं, जहाँ झूट सच ना जाने क्या क्या भरा है इस्लाम के खिलाफ. क्या सभी जगह जा के उनके धर्मों की कमिय और बुराइयां निकलता रहूँ? क्या यह सही जवाब है?
नहीं.
आपने कहा परमेश्वर ने यह मानव जीवन हमें दिया है, इसकी आपस में आपको बधाई देते हुए आपसे निवेदित करना चाहुंगा की मैं व्यक्तिगत रूप से ऐसे किसी भी पर्व पर जिसमें हिंसा होती है से उल्लासित नहीं होता हूँ ,
आपकी बढ़ाई के लिए धन्यवाद् अमित जी. और यह आप की जाती सोंच है,और आप को हक है की किसी ऐसी जगह ना जाएं जहाँ आप को आपकी परिभाषा के अनुसार हिंसा लगती हो. और मैं आप की सोंच की कद्र करता हूँ.
लेकिन दूसरों के मज़हब की सोंच को निशाना बनाना सही नहीं. चाहे वोह कोई बनाए.
अपने अपने धर्म के उपदेशों को दूसरों तक पहुँचाओ, और समाज मैं शांति काएम करो यही सबसे बड़ा धर्म है
दुनिया तज कर खाक रमाई
जवाब देंहटाएंसंत ज्ञानेश्वर
मराठी भाषा की गीता माने जानी वाली ‘ज्ञानेश्वरी‘ के रचयिता संत ज्ञानेश्वर महान संत गोरखनाथ की परम्परा में हुए। इनका जन्म सन 1275 ई. माना जाता है। जन्मस्थान आलंदी ग्राम है जो महाराष्ट्र् के पैठण के निकट है। इनके तिा का नाम विट्ठल पंत था। अपने बड़े भाई ग्यारह वर्षीय निवृत्तिनाथ से आठ वर्षीय ज्ञानेश्वर ने दीक्षा ली और संत बन गए। नाथपंथी, हठयोगी होते हुए, वेदांत के प्रखर विद्वान होने के बावजूद भक्ति के शिखर को छूने वाले संत ज्ञानेश्वर ने चार पुरुषार्थों के अतिरिक्त भक्ति को पांचवे पुरुषार्थ के रूप में स्थापित किया।
संत ज्ञानेश्वर, जो ज्ञानदेव के नाम से भी विख्यात हैं, वारकरी संप्रदाय के प्रवर्तक थे। वारकरी का अर्थ है- यात्रा करने वाला। संत ज्ञानेश्वर सदा ही यात्रारत रहे। इन्होंने उज्जयिनी, काशी, गया, अयोध्या, वृंदावन, द्वारिका,पंढरपुर आदि तीर्थों की यात्राएं कीं। ज्ञानेश्वरी के पश्चात अपने गुरु की प्रेरणा से अपने आध्यात्मिक विचारों को आकार देते हुए एक स्वतंत्र ग्रंथ ‘अमृतानुभव‘ की रचना की। इस ग्रंथ में 806 छंद हैं। इसके अतिरिक्त इनके द्वारा रचित अन्य ग्रंथ चांगदेवपासष्टी, हरिपाठ तथा योगवशिष्ठ टीका है।
तीर्थयात्रा से लौटकर संत ज्ञानेश्वर ने अपनी समाधि की तिथि निश्चित की। शक संवत 1218 कृष्णपक्ष त्रयोदशी, गुरुवार तदनुसार 25 अक्ठूबर 1296 को मात्र 22 वर्ष की अल्पायु में संत ज्ञानेश्वर ने आलंदी में समाधि ली।
प्रस्तुत है नागरी प्रचारिणी पत्रिका में प्रकाशित उनका एक पद-
सोई कच्चा वे नहिं गुरु का बच्चा।
दुनिया तजकर खाक रमाई, जाकर बैठा बन मा।
खेचरी मुद्रा बज्रासन मा, ध्यान धरत है मन मा।
तीरथ करके उम्मर खोई, जागे जुगति मो सारी।
हुकुम निवृति का ज्ञानेश्वर को, तिनके उपर जाना।
सद्गुरु की जब कृपा भई तब, आपहिं आप पिछाना।
भावार्थ-
बाह्याचरण, सन्यास लेकर, शरीर पर राख मलकर, वन में वास करके और विभिन्न मुद्राओं में आसन लगाने से सच्चा वैराग्य उत्पन्न नही होता। ऐसे ही तीर्थों में जाकर स्नान पूजा करना भी व्यर्थ है। इस संसार में गुरु के आदेशों पर चलने से अध्यात्म सधता है और आत्म तत्व की पहचान होती है।
मासूम साहब,
जवाब देंहटाएंबहुत धन्यवाद, मैं अहिंसा, दया, करूणा के उपदेश सभी धर्म ग्रंथो में ढूंढ्ता रहता हूँ, इस विश्वास के साथ कि सर्वज्ञ यह उपदेश तो देते ही रह्ते है। उसी प्रयास में कही यह आयत नज़र आई। अगर इसका कोई सिर पैर नहिं है, तो मैं गलती स्वीकार करते हूं, मेरा भ्रम तोडने और निश्च्य पर पहूंचाने के लिये पुनः आभार!!
..
जवाब देंहटाएंमेरे कई साथी मांसाहारी हैं. वे क़त्ल नहीं देख सकते. आज़ के दिन उन्हें जामा मस्जिद के पास से गुजरने में गुरेज़ है. वे जब मासूम पशु-पक्षियों के काटने पर अफ़सोस जताते हैं. तब मैं उनकी दोहरे चरित्र पर मुस्कुराता हूँ. वे मेक्स की आलिशान केन्टीन में बड़े चाव से चिकन मटन आमलेट सब खाते हैं, उसके स्वाद-बेस्वाद पर बातें करते हैं. लेकिन उसकी सम्पूर्ण प्रक्रिया को जानने से बचते हैं.
जबकि पशु वध में एक ही शामिल नहीं माना जाता. उस कुकृत्य में आठ लोग शामिल होते हैं :
[१] वध के लिये पशु बेचने वाला/ बीच का दलाल
[२] उसे खरीदने वाला / मीट की दुकान मालिक भी
[३] उसे काटने वाला / बधिक
[४] उसे काटकर बेचने वाला / विक्रेता
[५] उसे खरीदने वाला / उपभोक्ता
[६] उसे पकाने वाला / पाचक
[७] उसे परोसने वाला / सेवक या सेविका या स्वयं
[८] उसे खाने वाला / भोगी
..
..
जवाब देंहटाएंसुज्ञ जी,
मासूमियत से जवाब दें, जिसके सिर-पाँव नहीं होते वे भी तीव्र दौड़ लगा लेते हैं.
"सर्प"
..
मासूम साहब,
जवाब देंहटाएंएक सहायता और कर दिजिये, क्या कुरआन में जीवों की अहिंसा की एक भी आयत नहिं है?
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जवाब देंहटाएं..
जवाब देंहटाएंहे अनाम पाठक !
भक्तिकाल में अनेक ऐसे संत हुए जो छोटे-छोटे व्यवसायों से जुड़े हुए थे. उनका जितना स्वाध्याय था, जितना मानसिक स्तर था, जितना दायरा था ... वे सभी अपने-अपने अनुभवों के आधार पर तय कर रहे थे कि अनुचित क्या है, इसलिये उनके लिये वेद, शास्त्र, पूजा-अर्चना, संन्यास, वर्ण-आश्रम व्यवस्था, के लिये उनके ह्रदय में अपार द्वेष भर गया था, सनातन वैदिक धर्म में विकृतियाँ अवश्य आयी थीं, जिसका कारण मुग़ल आक्रान्ताओं के द्वारा हमारे उजाले अत्तीत को नष्ट करना रहा, जिसके दूरगामी परिणाम हुए, स्वाध्याय छूटा, अध्ययन नहीं रहा, वैदिक ऋचाओं के मनमाने अर्थ हुए, पुराण पंथियों ने अनर्गल अर्थ देकर समाज के विभिन्न वर्गों में वैमनस्य भर दिया.
आपने सन्त ज्ञानेश्वर जी की ठीक बाते ही रखीं हैं लेकिन उससे योग, संन्यास और वैराग्य की उपयोगिता कम नहीं हो जाती.
हाँ यह सत्य है कि बाह्य-आडम्बर अधिक मात्रा में नहीं होने चाहिए.
कुछ मात्रा में इसलिये होने चाहिए कि वे भक्त अपने शरीर को उन प्रक्रियाओं में शामिल दिखाना चाहते हैं.
..
सुज्ञ जी @ कुरआन अहिंसा का ही धर्म है और पूरा कुरआन अहिंसा की आयातों से ही भरा पड़ा है. जीव किसे कहते हैं, मनुष्य , मच्छेर ,सर्प और बकरे मैं मैं कैसे फर्क किया जाए. किस जीव को मारना अहिंसा है किस को मारना हिंसा. यह अलग विषय है. जल्द ही किसी ब्लॉग मैं चर्चा करूँगा. आप एक अच्छे इंसान हैं तभी तो आपको मित्र कहता हूँ.
जवाब देंहटाएं@ पंडित जी ! जिस देश में लोग भूख से मर रहे हों उस देश में हवन के नाम पर भोजन आग में डालने को आप धार्मिक पाखंड की श्रेणी में रखते हैं या नहीं ?
जवाब देंहटाएंआप पाखंड का विरोध करते हैं अच्छी बात है लेकिन प्राब्लम यह है कि एक हिंदू जिसे धर्म संस्कार कहता है तो दूसरा उसे पाखंड ।
कैसे तय किया जाए कि पाखंड क्या है ?
..
जवाब देंहटाएं— क्या नाम के साथ शरीफ या मासूम लगाने का प्रभाव पड़ता है?
— क्या नाम के आगे मित्र या दोस्त संबोधन जोड़ने से भितरघात की संभावना ख़त्म हो जाती है?
मेरे पडौस में जिस हाजी ने एक अज को बड़े प्रेम से पाला, माला पहनायी उसे आज़ ईद मुबारक कर दिया.
क्या विश्वास की हजामत बनाकर वे हाजी होना पसंद करते हैं.
— मैं अपने नाम के बहुत आगे इंसान लगा लूँ तो क्या बेजुबान जानकार मेरी इंसानियत से खुश होकर मेरे नजदीक आने लगेंगे ?
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जवाब देंहटाएं..
जवाब देंहटाएंजिज्ञासु जमाल जी,
घृत खाने के लाभ केवल एक को ही नसीब होतें हैं. जबकि हवन आदि क्रियाओं से लाभ अनेक को प्राप्त होता है.
आप लाल मिर्च कूटिये अपने आँगन में तब देखिये उसके असली मज़े. एक को मिर्च लगती है या उससे कई लोग परेशान होते हैं.
जो वस्तु जिह्वा द्वारा एक को लाभ दे न दे परन्तु वायु द्वारा समस्त तक लाभ जाता है.
वैज्ञानिक दृष्टिकोण रखिये.
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जवाब देंहटाएंअग्नि सबसे अच्छा माध्यम है ऊर्जा को स्वयं तक ले आने का.
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हवन के विज्ञान-सम्मत लाभ [४]
जवाब देंहटाएंराष्ट्रीय वनस्पति अनुसंधान संस्थान द्वारा किये गये एक शोध में पाया गया है कि पूजा —पाठ और हवन के दौरान उत्पन्न औषधीय धुआं हानिकारक जीवाणुओं को नष्ट कर वातावरण को शुद्ध करता है जिससे बीमारी फैलने की आशंका काफी हद तक कम हो जाती है।
लकड़ी और औषधीय जडी़ बूटियां जिनको आम भाषा में हवन सामग्री कहा जाता है को साथ मिलाकर जलाने से वातावरण मे जहां शुद्धता आ जाती है वहीं हानिकारक जीवाणु 94 प्रतिशत तक नष्ट हो जाते हैं।
उक्त आशय के शोध की पुष्टि के लिए और हवन के धुएं का वातावरण पर पड़ने वाले प्रभाव को वैज्ञानिक कसौटी पर कसने के लिए बंद कमरे में प्रयोग किया गया। इस प्रयोग में पांच दजर्न से ज्यादा जड़ी बूटियों के मिश्रण से तैयार हवन सामग्री का इस्तेमाल किया गया। यह हवन सामग्री गुरकुल कांगड़ी हरिद्वार संस्थान से मंगाई गयी थी। हवन के पहले और बाद में कमरे के वातावरण का व्यापक विश्लेषण और परीक्षण किया गया, जिसमें पाया गया कि हवन से उत्पन्न औषधीय धुंए से हवा में मौजूद हानिकारक जीवाणु की मात्र में 94 प्रतिशत तक की कमी आयी।
इस औषधीय धुएं का वातावरण पर असर 30 दिन तक बना रहता है और इस अवधि में जहरीले कीटाणु नहीं पनप पाते।
धुएं की क्रिया से न सिर्फ आदमी के स्वास्थ्य पर अच्छा असर पड़ता है बल्कि यह प्रयोग खेती में भी खासा असरकारी साबित हुआ है।
वैज्ञानिक का कहना है कि पहले हुए प्रयोगों में यह पाया गया कि औषधीय हवन के धुएं से फसल को नुकसान पहुंचाने वाले हानिकारक जीवाणुओं से भी निजात पाई जा सकती है। [५] मनुष्य को दी जाने वाली तमाम तरह की दवाओं की तुलना में अगर औषधीय जड़ी बूटियां और औषधियुक्त हवन के धुएं से कई रोगों में ज्यादा फायदा होता है और इससे कुछ नुकसान नहीं होता जबकि दवाओं का कुछ न कुछ दुष्प्रभाव जरूर होता है।
धुआं मनुष्य के शरीर में सीधे असरकारी होता है और यह पद्वति दवाओं की अपेक्षा सस्ती और टिकाउ भी है।
मासूम साहब,
जवाब देंहटाएंमेरे पुछने का आश्य साफ़ है,मनुष्यों के प्रति अहिंसा से तो शास्त्र भरे पडे है, मेरा आश्य है पशुओं के प्रति अहिंसा की कोई एक आयत है?
क्योंकि मेरे एक जानकार मित्र ने उक्त आयत बताते हुए कहा था कि यही एक मात्र आयत है जो पशुओ को समर्पित है। और इसे आप गलत साबित कर चुके है। मुझे मात्र यह सुनिश्च्त करना है कि एसी कोई आयत है या नहिं, अथवा मेरे मित्र नें मुझे गलत जानकारी दी।
कृपया, यहाँ समाधान करें।
@ जमाल साहब
जवाब देंहटाएंयह तो हुआ यज्ञ/ हवन का वैज्ञानिक पक्ष, लेकिन अगर सामाजिक पक्ष की बात करें तो गीताजी के सोलवें अध्याय में भगवान् ने कहा है की आसुरी प्रवृत्ति के मनुष्य दम्भ पूर्वक यज्ञ आदि कर्म करते है "आत्मसंभाविताः स्तब्धा धनमानमदान्विताः । यजन्ते नामयज्ञैस्ते दम्भेनाविधिपूर्वकम् ॥ १७॥"
लेकिन उनके वे कर्म निष्फल है. तो समाज में अगर दंभ पूर्वक चोरी अन्याय के धन से धार्मिक अनुष्ठान होते है तो वे सब पाखंड है. लेकिन याद रखिये साध्य पाखण्ड नहीं है, उसके साधन पाखंड रहित होने चाहिये.
..
जवाब देंहटाएंवैसे तो समस्त उत्तर अमित जी ने दे ही दिए हैं मैंने भी लाइट जाने से पूर्व ही जिस टिप्पणी को लिख डाला था उसे कुछ संशोधन करके दे रहा हूँ.
@ हिन्दू शब्द एक ऐसा संबोधन है जो कई मतावलंबियों को एक छत के नीचे ला देता है. इसलिये इसमें कई तरह की इबादत पद्धतियाँ मिलेंगी. है तो इन सभी में एक ही सही, लेकिन किसी एक को सही ठहरा देना जल्दबाजी होगी.
इसलिये पहले विकृतियों पर बात करना ठीक होगा. हम हमेशा तर्क को प्राथमिकता देते हैं. और वह भी वैज्ञानिक तर्क को. पत्थर या कागज़ के भगवानों में आस्था रखें या फिर छिद्रदार जालियों में....... पर आस्था ऎसी भी न हो जो किसी जीव को पीड़ा पहुँचाती हो.
..
उत्तम प्रस्तुति !
जवाब देंहटाएंAaj to gyan ki bate ho rahi hain, jankari dene ke liye sabhi bhai logo ko thanks
जवाब देंहटाएंश्रेष्ठ लेख
जवाब देंहटाएंटिप्पड़ी में भी ज्ञानवर्धक तथ्य है . आशा करता हू जमाल जी को हवन का महत्त्व समझ में आ गया होगा .
अहिंसा की बात और हिंसा का त्यौहार
क्या यह धर्म हिंसक है ??????????
क्यों जानवरों का आधा गला काट कर तडपा तडपा कर मारा जाता है????????? .
और ऊट की गर्दन में छेद कर जिंदा ही खाना शुरू कर देते है ????????????
कुरान और हदीस जो कहे सब सही चाहे वो कितना ही अनर्थकारी हो .
MR-मासूम
जवाब देंहटाएंआप कह कह रहे है कि मांसाहारियो को उनके धर्म का पालन करने दो
क्यो पालन करने दे? क्या कोई तानाशाही चल रही है. इस दुनिया मे हर जीव को जीने का अधिकार है.अगर कोई गलत काम कर रहा है तो उसको रोकना हमारा काम है
इन असहाय जीवो की रक्षा की जिम्मेदारी हमारी है
आपको कोई हक नही बनता किसी जीव को धर्म और स्वाद के लिये मारने का.
माना कि अभी सरकारे वोट बैँक के चक्कर मे इसपे रोक नही लगा रही है
लेकिन कल ऐसा नही होगा.
इसपे रोक भी लगेगी और पालन भी होगा.जिसको चिल्लाना हो चिल्लाये
जिसको जो उखाड़ना हो उखाड़े
चाहे जिसकी भावनाये आहत हो
जीवो की कुर्बानी किसी भी हाल मे नही होने दी जायेगी
बड़े आये कर्बानी देने वाले
मुझे पशु बलि के तरीकों और उनकी विपुलता पर आपत्ति है ,जिससे कई तरह की पर्यावरणीय समस्यायें भी उत्पन्न होती हैं !
जवाब देंहटाएंऔर कई बीमारियों जैसे मैड काऊ डिजीज अदि भी बड़े पशुओं के अविवेकी आहार से उत्पन्न होती हैं ...पशु बलि का तरीका भी नृशंस है !
शायद आपको इन बेचारे जानवरों की ही आवाज़े सुनाई देती हैं, क्योंकि वह बोल सकते हैं. लेकिन उन बेजुबान पेड़, पौधों, सब्जियों की आवाजें सुने नहीं देती. और ना ही शायद चलते हुए अनजाने में पैरों के नीचे दफ़न हो जाने वाले करोडो जानवरों की और ना ही मच्छर, मक्खियों, कोक्रोचों की? क्योंकि यह अनजाने में ही नुक्सान पहुचा देते हैं मनुष्य नामक महान प्राणी को?
जवाब देंहटाएंऔर ना ही मुर्दा इंसान के साथ उसके शरीर में वास करने वाले असंख्य जीवों की आवाजें कभी आपको सुनाई देती हों जो की उस बेजान शरीर के साथ ही जल जाने को मजबूर हो जाते हैं.
या आप केवल दिखाई और सुनाई देने वाले बातों में ही विश्वास रखते हैं?
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जवाब देंहटाएंअमित जी,
जवाब देंहटाएंजिस तरह आपने हवन के विज्ञान सम्मत लाभ बताए वैसे ही मांसाहार के भी अनेको विज्ञानं सम्मत लाभ बताए जा सकते हैं. बात केवल इतनी सी है, कि अगर आपको मांसाहार पसंद नहीं है तो मत कीजिए, और खूब लोगों में शाकाहार के फायदे बताइए, लेकिन ज़बरदस्ती किसी औरों को मांसाहार से रोकने अथवा ज़लील करने का प्रयास मत कीजिये. जिसे पसंद होगा वह करेगा जिसे पसंद नहीं होगा वह नहीं करेगा?
@ तारकेश्वर जी !
जवाब देंहटाएं'आज तो ज्ञान की बात हो रही है' से क्या मतलब है आपका ?
क्या और दिनों में यहाँ ज्ञान की बात नहीं होती ?
@ प्रतुल वशिष्ठ जी ! आपका आभार , आपने बताया कि वैज्ञानिकों ने सिद्ध कर दिया है कि हिंदू भाई यज्ञ के धुएं से 94% जैसी भयानक स्थिति तक जीवाणुओं की हत्या करने में सफल रहते हैं । इससे पता चला कि अहिंसा का पाखंड रचने वाले जो लोग यज्ञ में एक बड़े जीव को नहीं भी मारते वे भी यज्ञ के ज़हरीले धुएं से छोटे छोटे खरबों अरब जीवों को तड़पा तड़पा कर क़त्ल किया करते रहते हैं ।
2- आपको क्या हक है कि रोग फैलाने का इल्ज़ाम धर कर 94% जीवों की जान ले लें ?
3- वैसे भी रोग हरेक को नहीं होता बल्कि उन्हें होता है जिनकी रोग प्रतिरोधक शक्ति कमजोर होती है ।
यानि कमज़ोरी अपने अंदर है और क़त्ल कर रहे हैं बेक़सूर नन्हे जीवों को ?
4- आयुर्वेद भी रोगाणुओं को क़त्ल करने के बजाए रोग प्रतिरोधक शक्ति को बलवान बनाने पर बल देता है ।
5- क्या यज्ञ के पाखंड के नाम पर नन्हे जीवों की हिंसा छोड़ देना जैन चेतना और स्वयं दया धर्म के अनुकूल न होगा ?
@ क्यों अमित जी ?
प्रेम बाँटने का धर्मसम्मत तरीका:)
जवाब देंहटाएंएक बात तो जान लो कि अमित जी ने केवल अपने वेदों से अनावश्यक हिंसा पर लिखा था, आप सभी में मांसाहार को मुद्दा बनाया व हिसा को सही ठहराने का तन तोड प्रयास कर रहे है।
जवाब देंहटाएं"जो मांसाहार करते है, करो" ऐसे हिंसक वचन उच्चारने का हमारा आत्म गवाही नहिं देता। हमारे लिये भी ऽइसे शब्द कुफ़्र है।
शाहनवाज जी,
आपको शाकाहार से सम्बंधित जीवो की भरपूर पुकार सुनाई देती है?
यदि हां तो भाई आप तो दोहरी हिंसा में फंसे है। सभी हिंसाएं हमे तो दिखाई देती है, और इसीलिये विवेक से क्रूर हिंसा का त्याग(परहेज) कर रखा है। क्या आप दोनो में से किसी एक का त्याग(कुर्बानी)कर पायेगें? अगर हां तो किसकी?
बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम...
जवाब देंहटाएंआदमी को ही खाया जाय..एक अच्छे किस्म का प्रोटीन मिलता है..अब तो विज्ञान भी सहमत होने लगा है|हा हा हा
वेदों में हिंसा की बात आई..वेद पढ़े हो क्या? संस्कृत आती है?अंग्रेजी में पढ़ा होगा..मैं संस्कृत में बताता हूँ...यदि नो गवां हसी,यद्श्वं,यदि मे पुरुषं,तत्वा सीसेन विध्यामो,वथा नो सो अवीरहा|...यदि तुने मेरे गाय,घोड़े,पुरुष को मारा तो हम तुम्हे सीसे की गोली से भून देंगे|समझे हिंसा किया नहीं..लेकिन प्रेरित करोगे तो तुम्हे छोडेगे भी नहीं
जवाब देंहटाएंhttp://hindivani.blogspot.com/2010/11/blog-post.html
जवाब देंहटाएं.
जवाब देंहटाएंबड़ा बारीक चिंतन कर लेते हैं जमाल जी,
वाह! क्या आप वास्तव में प्रोफ़ेसर हैं? मुझे तो लगता है दार्शनिक हैं.
अरे नहीं, लगता है आप तो प्रकृति के चितेरे हैं. पर्यावरण प्रेमी हैं.
आपके अतिवादी चिंतन को दो कदम आगे लिये चलता हूँ.
कीड़े-मकौड़े ही क्यों, जीवाणु विषाणु ही क्यों अरे कपडे-लत्ते, हर गतिवान वस्तु ही विकास और क्षरण के दौर में पड़ी हुई है.
उसके बारे में भी दिमाग के घोड़े दौड़ाइए और कपडे पहनना छोड़ दीजिये.
पहला पाठ तो आप पढ़ लीजिये पहले आगे के जटिल पाठ भी पढ़ा देंगे.
पहले पाठ का सार है कि आप जीव हिंसा त्यागिये ............ स्थूल जीवों की हिंसा
सूक्ष्म जीवों की हिंसा के बारे में मै दूसरा अध्याय दूँगा फिर उसे यादे करके अमल में लाइयेगा.
पहले आप वचन दो कि यदि यह सिद्ध हो गया कि हिंसा त्याज्य है तो आप सम्पूर्ण हिंसा ताउम्र त्याग देंगे.
आपका वचन "______________________________" इस पंक्ति में आ जाना चाहिए.
इस पंक्ति में आपको लिखना है "हाँ, मैं तैयार हूँ."
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तर्क कुतर्क करने से अपराध सही नही हो जाता
जवाब देंहटाएंसीधी बात है माँस खाना है तो अपने बच्चे पैदा करो और उसको मार कर खा जाओ
लेकिन जानवरो को तुमने या किसी ने नही पैदा किया है जो मार के खा जाओ
जानवर वोट नही देते इसका ये मतलब नही की वो बेकार है और कोई भी उनके साथ कुछ करे
कोई अपराध लंबे समय तक होता रहे और उसको रोकने वाला कोई न हो तो इसका मतलब ये नही की वो अपराध नही है और वो हमेशा होता रहेगा
ये अपराध सख्त कानून बनने से रुकेगा
और उस कानून के बनने मे ज्यादा देर नही है
तब तक जितना खाना है खा लो
जिस दिन कानून बनेगा तब जानवरो को छू के देखना.
जानवरो को काटने वाले हाथो को ही काट दिया जायेगा
तब चिल्लाते रहना और अपने कुतर्को को पेश करते रहना.
बस थोड़ा इंतजार करो
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जवाब देंहटाएंhttp://navbharattimes.indiatimes.com/articleshow/6935997.cms
जवाब देंहटाएंप्रिय बंधुवर अमित जी
जवाब देंहटाएंनमस्कार !
विद्वतापूर्ण आलेख के लिए बधाई !
वास्तव में बिना समझ देखादेखी परंपरा के नाम पर , धार्मिक कृत्य के रूप में की जाने वाली जीवहत्या पर जीभ के स्वाद के दृष्टिकोण से हटकर सोचने की ज़रूरत है ।
कुरबानी के पीछे छिपे संदेश को अपने जीवन में उतारने की कोशिश की आवश्यकता है। कुर्बानी का मतलब है त्याग, उस चीज का त्याग जो आपको प्रिय हो ,आपकी सबसे कीमती चीज हो ।
ज़ाहिर है, बकरा प्रिय हो सकता है, कीमती तो परिवाजन ही होंगे !!
शुभकामनाओं सहित …
- राजेन्द्र स्वर्णकार
ऊपर दिया लेख जनाब Yusuf Kirmani जी का है
जवाब देंहटाएंजब कोई व्यक्ति धुम्रपान करता है तो मैं उसका पुरजोर विरोध करता हूँ पर जब वही व्यक्ति शराब पीता है तो मैं शांत रहता हूँ बशर्ते वो उसकी खुद की इच्छा हो और शराबी उत्पात मचाकर आम लोगों को तंग ना करे . ऐसा इसलिए क्योंकि जब भी कोई धुम्रपान करता है तो वो खुद अपने साथ साथ बाकी लोगों को भी नुकसान पहुंचा रहा होता है जबकि शराबी सिर्फ खुद का नुकसान करता है अतः मैं समझता हूँ की मांसाहार को व्यक्ति के स्वविवेक पर छोड़ दिया जाय. आपको पसंद आए तो करें और ना पसंद आए तो ना करें. जिसको नुकसान होगा वो खुद छोड़ देगा और ऐसा होते हुए मैंने देखा भी है. मेरे एक मुस्लिम मित्र हैं जिनके रक्त में कोई एक चीज (मुझे उस चीज का नाम याद नहीं) की मात्र बढ़ गयी थी जिससे उनके सारे शारीरक के जोड़ों में दर्द रहता था. ऐसा उनके भोजन में प्रोटीन की मात्र ज्यादा होने की वजह से हुआ था. तो डाक्टर बाबु ने उन्हें मांसाहार से परहेज करने की सलाह दी जिस पर वो अमल कर रहे हैं. तो मैं समझता हूँ की मांसाहार एक व्यक्तिगत पसंद और नापसंद का मामला है जिसे व्यक्ति विशेष पर ही छोड़ दिया जाना चाहिए.
जवाब देंहटाएंजहाँ तक ईद पर पशुओं के वध की बात है तो वो कोई ऐसी बात नहीं जो अनोखी हो.ये तो रोज ही होता है. कभी dilli ke गाजीपुर की पशुवध शाला में चले जाइए और वहां का हाल देखिये. वहां तो बकरा ईद रोज ही मनती है और वहा कटे बकरों को सभी धर्मों के लोग चाहे वो हिन्दू हों सिख हों मुस्लमान हों या फिर ईसाई हों मिल कर खाते हैं.
@ सुज्ञ
जवाब देंहटाएंशाहनवाज जी,
आपको शाकाहार से सम्बंधित जीवो की भरपूर पुकार सुनाई देती है?
यदि हां तो भाई आप तो दोहरी हिंसा में फंसे है। सभी हिंसाएं हमे तो दिखाई देती है, और इसीलिये विवेक से क्रूर हिंसा का त्याग(परहेज) कर रखा है। क्या आप दोनो में से किसी एक का त्याग(कुर्बानी)कर पायेगें? अगर हां तो किसकी?
सुज्ञ भाई,
मुझे तो मांसाहार से कोई विशेष प्यार नहीं है, लेकिन ऐसा भी नहीं है कि मैं उसे कोई पाप समझता हूँ. हाँ बिना मकसद के शिकार इत्यादि के लिए उन पशुओं की हत्या को अवश्य ही बुरा मानता हूँ जिनका उपयोग मनुष्य के काम नहीं आता है. वहीँ आपकी हिंसा की परिभाषा को भी सही नहीं मानता हूँ. हो सकता हो यह मेरा विचार हो, और आपका विचार कुछ और हो. मैं आपके ऊपर अपना विचार थोपना भी नहीं चाहता हूँ.
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जवाब देंहटाएंअमित जी
वीरू जी की टिप्पणियाँ काफी वज़नदार हैं इन्हें अपने साथ जोड़िये, मुझे इस आलेख की एक उपलब्धि मिली कि वीरू जी के विचारों से परिचय हुआ.
मैं भी जानना चाहूँगा कि वीरू जी कौन हैं, कृपया वे अपने बारे में परिचय दें.
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जहाँ तक आवाज़ सुनाई नहीं आने की बात है, तो आज तो आपको पता चल ही गया है कि यह जीव भी ऐसे ही चिल्लाते हैं, उनको चिल्लाने के बावजूद उनका भक्षण शाकाहारी लोग कर लेते हैं. शरीर में पलने वाले हजारों जीवों को चिता के साथ जला दिया जाता है... तो क्या चिताओं को जलना बंद कर देंगे? मच्छरों, मक्खियों, कोक्रोचों जैसे जीवों को मारना बंद कर देंगे? या केवल इन जीवों को इसलिए मार डालेंगे कि इनके लिए तुम्हारे धर्म में मनाही नहीं है? और दूसरों का केवल इसलिए विरोध करेंगे कि इनके लिए दुसरे धर्म में इजाज़त है? कब तक जीव हत्या के नाम पर केवल कुछ जीवों की हत्या रोकने का ढोंग करते रहेंगे?
जवाब देंहटाएं.
जवाब देंहटाएं.
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@ विचार शून्य जी,
"जहाँ तक ईद पर पशुओं के वध की बात है तो वो कोई ऐसी बात नहीं जो अनोखी हो.ये तो रोज ही होता है. कभी dilli ke गाजीपुर की पशुवध शाला में चले जाइए और वहां का हाल देखिये. वहां तो बकरा ईद रोज ही मनती है और वहा कटे बकरों को सभी धर्मों के लोग चाहे वो हिन्दू हों सिख हों मुस्लमान हों या फिर ईसाई हों मिल कर खाते हैं.
मैं समझता हूँ की मांसाहार एक व्यक्तिगत पसंद और नापसंद का मामला है जिसे व्यक्ति विशेष पर ही छोड़ दिया जाना चाहिए."
सहमत हूँ आपसे, चीजों को उनके सही रूप में देखने के लिये आभार !
हिन्दू धर्म भी अनेक मतों से बना है, शैव मत भी इनमें से एक है... लगभग पूरे पर्वतीय भाग में शैव मतानुयायी काफी संख्या में हैं... और उनमें माँसाहार वर्जित नहीं है... ब्राह्मण भी बिना किसी अपराधबोध के माँसाहार का सेवन कर सकते हैं... आखेट हमारे सभी अवतार पुरूष करते थे।
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हिंसा क्यों नहीं होनी चाहिए?
क्या जीवाणु-विषाणु की हिंसा हिंसा है?
क्या पेड़-पौधे, समस्त वनस्पतियों का भक्षण हिंसा है?
क्या मानसिक, वाचिक और कर्म से की गयी हिंसा एक समान है?
क्या सभी शाकाहार करेंगे तो अपर्याप्त होगा? इसलिये क्या मांसाहार होना ही चाहिए?
क्या बर्फीले परदेशों में या जहाँ शाकाहार नहीं पैदा होता वहाँ भी बिना मांसाहार के जीवित रहा जा सकता है?
..... यदि मैं इन समस्त प्रश्नों के तार्किक उत्तर दे दूँ तो क्या मुझे वचन मिलेगा कि वे जो मांसाहार करते हैं वे ताउम्र मांसाहार नहीं करेंगे?
...... यदि कोई अन्य प्रश्न हो तो आप उसे भी इस कड़ी में जोड़ सकते हैं. लेकिन इस वादे के साथ कि आप यदि उत्तर पा जायेंगे तो आप मांसाहार त्याग देंगे.
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हिन्दू धर्म की विभिन्न इकाइयों में मांसाहार क्यों प्रचलन में आ गया?
पर्वतीय परदेशों में मांसाहार की शुरुआत क्यों हुई?
मांसाहार के समर्थक समाधि अवस्था को क्यों नहीं छोड़ पाते?
देव-पूजा और बलि-प्रथा में प्रसाद रूप में मांस वितरण के पीछे का इतिहास आप यदि जान जाएँ तो क्या आप मांसाहार का समर्थन छोड़ देंगे.
यदि छोड़ने का वादा करते हैं तो बताऊँगा अन्यथा धूल में लट्ठ चलाने से क्या लाभ?
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जहाँ तक मेरी समझ है यह प्रतिक्रिया स्वरूप उपजी पोस्ट है...
पहले भाई अमित शर्मा ने लिखा...
वेद साक्षात भगवान् की वाणी है, उनमें ऐसी कोई बात कभी नहीं हो सकती जो मनुष्य को अनर्गल विषयभोग और हिंसा की और जाने के लिए प्रोत्साहित करती हो.
डॉ० अनवर जमाल साहब ने इसका जवाब दिया...
Sacrifice of animals in Vedic yag वैदिक यज्ञ में पशुबलि और ब्राह्मणों द्वारा गोमांसाहार - According to Sayan and Vivekanand
भाई अमित शर्मा ने पहले तो यह टिप्पणी की, फिर इसी को पोस्ट बना दिया...
परंतु क्या डॉ० अनवर जमाल साहब गलत कह रहे थे ? उनका ब्लॉग भले ही धर्म प्रचार के लिये बना हो परंतु यदि कोई ब्लॉगर कोई गलत तथ्य लिख रहा है तो यह अधिकार तो सभी को है कि सही बात बताये...
एक लिंक मैं दे रहा हूँ जिसे भी संदेह हो कि वैदिक काल में पशुबलि या माँस भक्षण नहीं होता था वह प्रसिद्ध इतिहासकार श्री राम सरन शर्मा की इस पुस्तक का पृष्ठ संख्या ४६ से ५० तक पढ़े, फिर भी यदि संदेह रहे तो सभी संदर्भों का अध्य़यन करे जो हर पृष्ठ पर दिये गये हैं, विषय विशेषज्ञों से पूछे, फिर अपना मत रखे...
लिंक है...
Ārya evaṃ Haṛappā: saṃskr̥tiyoṃ kī bhinnatā
By Ram Sharan Sharma
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जवाब देंहटाएं.
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@ प्रतुल वशिष्ठ जी,
मैं न तो मांसाहार का समर्थक हूँ और न शाकाहार का... आहार शरीर के पोषण की जरूरतों को पूरा करता हो, बस यही चाहता हूँ... आप ने जिज्ञासा बढ़ा दी है... अत: अपनी बात रखिये...
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जवाब देंहटाएं.
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केवल शाकाहार ही सही आहार है यह भी एक तरह का कुतर्क ही है...
किसी पाठक के पास यदि समय हो तो यह भी पढ़े...
The Great Fallacies of Vegetarianism
Craig Fitzroy on why it isn't such a good idea to become a vegetarian.
आभार!
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मांसाहार मनुष्य का प्राकृतिक आहार नहीं है। जो लोग मांसाहार करते हैं. उनके रक्त में यूरिक एसिड अधिक मात्ना में बनता है. जिससे उनमें गठिया. मूत्न संबंधी विकार और अन्य बीमारियां होने की संभावना रहती है। वास्तव में मनुष्य को जिन तत्वों की संतुलित मात्ना में जरूरत होती है. उनकी पूíत शाकाहार से हो जाती है।
जवाब देंहटाएंhttp://dr-mahesh-parimal.blogspot.com/2010/05/blog-post_11.html
समय की कमी से ठीक से शामिल नहीं हो पा रहा हूँ
जवाब देंहटाएंथोडा बहुत योगदान ही दे सकूँगा इस चर्चा में
प्रिय मित्र प्रवीण,
जवाब देंहटाएंलेख बहुत लम्बा है पढ़ नहीं सका हूँ .... क्या आप सार में कुछ बताना चाहेंगे ???
और इस पोस्ट पर आपके विचार भी बताएं :)
@मैं न तो मांसाहार का समर्थक हूँ और न शाकाहार का.
@केवल शाकाहार ही सही आहार है यह भी एक तरह का कुतर्क ही है...
विचारों में परिवर्तन इतनी जल्दी कैसे हो रहा है मित्र
ब्रिटिश जर्नल ऑफ कैंसर में 2007 में छपी रिपोर्ट के मुताबिक 35 हजार महिलाओं पर अपने 7 साल लंबे अध्ययन में पाया गया कि ज्यादा मांस खाने वालों के मुकाबले कम मांस खाने वाली महिलाओं को स्तन कैंसर की संभावना कम होती है।
जवाब देंहटाएंhttp://news.bbc.co.uk/2/hi/health/6523009.stm
2006 अमेरिकन जर्नल ऑफ क्लीनिकल न्यूट्रीशन में प्रकाशित हार्वर्ड के अध्ययन में शामिल 1, 35,000 लोगों में से जिन्होंने अक्सर ग्रिल्ड चिकन खाया, उन्हें मूत्राशय का कैंसर होने का खतरा 52 फीसदी तक बढ़ गया।
जवाब देंहटाएंhttp://www.ajcn.org/content/84/5/1177.abstract
प्रवीण जी की बातों का विरोधाभास उनकी अन्यत्र टिप्पणियों में है, मै अभी संदर्भ सहित दूंगा।
जवाब देंहटाएं@यदि कोई ब्लॉगर कोई गलत तथ्य लिख रहा है तो यह अधिकार तो सभी को है कि सही बात बताये...
@मैं न तो मांसाहार का समर्थक हूँ
मांसाहार युवाओं में धैर्य की कमी लाता है
जवाब देंहटाएंअध्ययन के परिणामों ने इस बात की ओर संकेत दिया कि मांसाहार के नियमित सेवन के बाद युवाओं में धैर्य की कमी, छोटी-छोटी बातों पर हिंसक होने और दूसरों को नुकसान पहुंचाने की प्रवृत्ति बढ़ जाती है. सोसाइटी की गतिविधियां शुरूआत में अमेरिकी उपमहाद्वीप तक सीमित रहीं, लेकिन बाद में इसने अपने कार्यक्षेत्र को यूरोपीय महाद्वीप समेत पूरे विश्व में फैलाया. एक अक्टूबर के दिन दुनिया भर में शाकाहार प्रेमी मांसाहार के नुकसान के बारे में लोगों को जानकारी देने के लिए विभिन्न स्थानों पर कार्यक्रमों का आयोजन करते हैं.
http://aajtak.intoday.in/story.php/content/view/19193
@यदि कोई ब्लॉगर कोई गलत तथ्य लिख रहा है तो यह अधिकार तो सभी को है कि सही बात बताये...
जवाब देंहटाएंमेरे ब्लोग ‘सुज्ञ’ पर एक टिप्पणी में लिखते है………
####"शाकाहारी पशु कुदरती तौर पर बहते जल को चूस कर पीते हैं जबकि मांसाहारी पशु चाट कर, मनुष्य दोनों तरीके से पी सकता है।"####
अब आप ही बताईये क्या मनुष्य चाट कर पानी पी सकता है?
http://shrut-sugya.blogspot.com/2010/08/blog-post_21.html
जरूरत पढी और समय मिला तो और तथ्य भी बाद में , किसी रेफरेंस का दोहराव हो गया हो तो क्षमा चाहता हूँ
जवाब देंहटाएंआहार विशेषज्ञ डा.अनिता सिंह के मुताबिक नियमित रूप से मांसाहार पाचन तंत्र से लेकर हृदय व यकृत [लिवर] की कार्यप्रणाली को प्रभावित करता है। रात में व्यक्ति को हल्का भोजन करना चाहिए। जबकि मांसाहार की प्रवृत्ति गरिष्ठ होती है। रात में इसका नियमित सेवन आपके हाजमे को बिगाड़ सकता है। यही नहीं मांसाहार से शरीर को जरूरी विटामिन, प्रोटीन और एंटी-आक्सीडेंट नहीं मिल पाते। इसका शरीर की प्रतिरोधक क्षमता पर भी दुष्प्रभाव पड़ता है।
http://www.pressnote.in/%E0%A4%B6%E0%A4%BE%E0%A4%95%E0%A4%BE%E0%A4%B9%E0%A4%BE%E0%A4%B0-%E0%A4%85%E0%A4%AA%E0%A4%A8%E0%A4%BE%E0%A4%8F%E0%A4%82-%E0%A4%AC%E0%A5%80%E0%A4%AE%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A5%80-%E0%A4%AD%E0%A4%97%E0%A4%BE%E0%A4%8F%E0%A4%82_47928.html
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जवाब देंहटाएं.
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@ सुज्ञ जी,
मनुष्य चाट कर भी पानी पी सकता है, बस थोड़ा समय ज्यादा लगेगा... आप चाहें तो थाली में पानी डाल यह प्रयोग कर सकते हैं।
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@मैं न तो मांसाहार का समर्थक हूँ
जवाब देंहटाएंअयाज़ अहमद के ब्लोग ‘सोने पे सुहागा’ पर देखें यह टिप्पणी…
समर्थक या प्रचारक?
http://drayazahmad.blogspot.com/2010/09/balanced-diet-for-indian-soldiers-ayaz.html
प्रवीण शाह said...
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आदरणीय डॉक्टर अयाज अहमद साहब,
बहुत बहुत धन्यवाद इस पोस्ट के लिये...जरूरी थी यह...कुदरत में उपलब्ध सर्वश्रेष्ठ प्रोटीन है अंडा...
आप सही कह रहे हैं कि मांसाहार के खिलाफ दुष्प्रचार हो रहा है...धार्मिक कारण तो हैं ही...परंतु सबसे बड़ा कारण है बाजार...सीधे सबूत तो नहीं मिलेंगे... पर यह छुपा नहीं है कि डेयरी लॉबी और दालों के बड़े इम्पोर्टर/सटोरिये इसके पीछे हैं...आप हाल के सालों में देखिये मिल्क प्रोडक्ट्स व दालों के दाम असामान्य तरीके से बढ़े हैं... यही लोग मांसाहार व अंडे खाने के विरूद्ध प्रचार से लाभान्वित होते हैं।
आभार!
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जवाब देंहटाएं.
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@ सुज्ञ जी,
मैं अपनी लिखी बातों पर कायम हूँ... और कोई भी समझ सकता है कि मेरी ऊपर उद्धरित टिप्पणी एक कुतर्की दुष्प्रचार के विरूद्ध है न कि माँसाहार के समर्थन में...
फिर भी आप अपनी समझ व सुविधा के अनुरूप निष्कर्ष निकालने को स्वतंत्र हैं... और मैं आपकी इस स्वतंत्रता का पूरा सम्मान करता हूँ... :)
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प्रवीण साहब,
जवाब देंहटाएं@फिर भी आप अपनी समझ व सुविधा के अनुरूप निष्कर्ष निकालने को स्वतंत्र हैं... और मैं आपकी इस स्वतंत्रता का पूरा सम्मान करता हूँ... :)
व्यक्त होने की स्वतंत्रता देना बहुत बडी बात है। आपका दिल विशाल है।
आभार आपका। :-}
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जवाब देंहटाएं.
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@ मित्र गौरव,
रक्त में यूरिक एसिड ज्यादा बनने के पीछे बहुत सी वजहें हैं... यहाँ देखें...
"Purine-rich diet: A diet rich in meats, organ foods, alcohol,1 and legumes can result in an overproduction of uric acid."
Legumes का अर्थ है फेमिली Leguminaceae के अंतर्गत आने वाली दालें जैसे राजमा, मटर, लोबिया आदि... भारत में यही वजह प्रमुख है... अब कोई गठिया के डर से पालक-मटर या राजमा चावल तो नहीं छोड़ता न... :)
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@Legumes का अर्थ है फेमिली Leguminaceae के अंतर्गत आने वाली दालें जैसे राजमा, मटर, लोबिया आदि... भारत में यही वजह प्रमुख है... अब कोई गठिया के डर से पालक-मटर या राजमा चावल तो नहीं छोड़ता न... :)
जवाब देंहटाएंप्रिय मित्र प्रवीण,
मुझे अंदाजा था आप यही कहेंगे और आप बिलकुल सही कह रहे हैं पर ये चीजें परहेज के रूप में बताईं जाती हैं तो जो चीज परहेज के रूप में उसे कोई क्यों खायेगा ?
आर्थराइटिस या गठिया- अनाज, सुपाच्य दालें जैसे- मूंग, हरी सब्जियां (प्याज को छोड़कर) सभी प्रकार के फल (केले को छोड़कर), सूखे मेवे (कम मात्रा में) लें। दूध और दूध से बने पदार्थ, डिब्बाबंद भोज्य पदार्थ, मैदा, मांस, मछली, अंडा न लें। चीकू, केला, पका पपीता, परवल, कद्दू, टमाटर, लहसुन, प्याज, मूली, अदरक, गाजर, खट्टे फल बिलकुल न लें। उड़द दाल, चना दाल, मसूर दाल, राजमा, बैंगन, गोभी आदि वायुकारक पदार्थो से भी बचें।
http://www.patrika.com/article.aspx?id=17358
इस बात पर ध्यान दीजियेगा
जवाब देंहटाएं"डिब्बाबंद भोज्य पदार्थ, मैदा, मांस, मछली, अंडा न लें"
"मसूर दाल, राजमा, बैंगन, गोभी आदि वायुकारक पदार्थो से भी बचें। "
गठिया विशेषज्ञ डा। अरविन्द चोपड़ा ने बताया कि, " इस अध्ययन के द्वारा भारत के १७ शहरों के वासियों में गठिया के प्रकोप के बारे जानकारी हासिल करने का प्रयास किया गया है। अध्ययन में शामिल लोगों में, लगभग १० - १५% व्यक्ति किसी न किसी प्रकार के गठिया रोग से पीड़ित थे। गठिया के दर्द का जो मुख्य कारण सामने आया है वो है तम्बाकू का सेवन।
जवाब देंहटाएंhttp://notobacco.citizen-news.org/2009/10/blog-post_13.html
असंतुलित आहार, मेदा युक्त और गरिष्ठ भोजन, मांसाहार और व्यायाम की उपेक्षा गठिया होने के मुख्य कारण हैं।
http://khabar.ibnlive.in.com/news/17526/7
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जवाब देंहटाएंमुझे शाह जी टिप्पणियों पर हँसी आ गयी.
वे सुज्ञ जी को कहते हैं —
"मनुष्य चाट कर भी पानी पी सकता है, बस थोड़ा समय ज्यादा लगेगा... आप चाहें तो थाली में पानी डाल यह प्रयोग कर सकते हैं।"
जब यह अभ्यास किया जा सकता है तब नीचे वाले अभ्यास भी किये जा सकते हैं —
— रहने को मनुष्य पेड़ पर भी रह सकता है बस थोड़ा अभ्यास करके रहिये.
— पानी को मनुष्य अश्वनी मुद्रा [एनीमा ] के ज़रिये भी ग्रहण कर सकता है बस थोड़ा अभ्यास करना होगा.
..
प्रतुल जी,
जवाब देंहटाएंबस मै यही चाहता था,जनाब प्रवीण साहब के कथनों का विरोधाभाष पाठकों तक पहूँचे। और सफ़ल।
जनाब प्रवीण साहब और जनाब अनवर साहब में क्या अंतर है?, वे कहते है "अनवर साहब का ब्लॉग भले ही धर्म प्रचार के लिये बना हो"और प्रवीण साहब का ब्लॉग अधर्म प्रचार के लिये॥ बात तो एक ही है।
आंखें खोलती हुई एक बेहतरीन प्रस्तुति!
जवाब देंहटाएंसुज्ञ जी,
जवाब देंहटाएंमैंने कईं बार ध्यान दिया है प्रवीण शाह जी निष्पक्ष रवैया अपनाए होते हैं, वे एक स्वस्थ विचार विमर्श करते हैं , अतः मेरा अनुरोध है की कृपया इस बात को अनदेखा कर दीजिये
@सुज्ञ जी
जवाब देंहटाएंमेरे इस अनदेखा करने के अनुरोध को आप अस्वीकार कर सकते हैं, ये आपका अधिकार है
@अमित भाई
कहाँ हो ??
चलने दो भाईयों… वैसे तो कोशिश बेकार है क्योंकि सभी अपनी-अपनी बात पर अड़े रहेंगे…
जवाब देंहटाएंबुद्धिजीवी की असली पहचान यही है… :) :)
बहरहाल, बहस में मजा आया, एक से बढ़कर एक तर्क (और कुतर्क) पढ़ने को मिले, और क्या चाहिये…
अनवर भाई
जवाब देंहटाएं@ अहिंसा का पाखंड रचने वाले जो लोग यज्ञ में एक बड़े जीव को नहीं भी मारते वे भी यज्ञ के ज़हरीले धुएं से छोटे छोटे खरबों अरब जीवों को तड़पा तड़पा कर क़त्ल किया करते रहते हैं ।
2- आपको क्या हक है कि रोग फैलाने का इल्ज़ाम धर कर 94% जीवों की जान ले लें ?
3- वैसे भी रोग हरेक को नहीं होता बल्कि उन्हें होता है जिनकी रोग प्रतिरोधक शक्ति कमजोर होती है ।
यानि कमज़ोरी अपने अंदर है और क़त्ल कर रहे हैं बेक़सूर नन्हे जीवों को ?
4- आयुर्वेद भी रोगाणुओं को क़त्ल करने के बजाए रोग प्रतिरोधक शक्ति को बलवान बनाने पर बल देता है ।
5- क्या यज्ञ के पाखंड के नाम पर नन्हे जीवों की हिंसा छोड़ देना जैन चेतना और स्वयं दया धर्म के अनुकूल न होगा ? अहिंसा का पाखंड रचने वाले जो लोग यज्ञ में एक बड़े जीव को नहीं भी मारते वे भी यज्ञ के ज़हरीले धुएं से छोटे छोटे खरबों अरब जीवों को तड़पा तड़पा कर क़त्ल किया करते रहते हैं ।
2- आपको क्या हक है कि रोग फैलाने का इल्ज़ाम धर कर 94% जीवों की जान ले लें ?
3- वैसे भी रोग हरेक को नहीं होता बल्कि उन्हें होता है जिनकी रोग प्रतिरोधक शक्ति कमजोर होती है ।
यानि कमज़ोरी अपने अंदर है और क़त्ल कर रहे हैं बेक़सूर नन्हे जीवों को ?
4- आयुर्वेद भी रोगाणुओं को क़त्ल करने के बजाए रोग प्रतिरोधक शक्ति को बलवान बनाने पर बल देता है ।
5- क्या यज्ञ के पाखंड के नाम पर नन्हे जीवों की हिंसा छोड़ देना जैन चेतना और स्वयं दया धर्म के अनुकूल न होगा ?
आपको जीवाणुओं की इतनी चिंता है जानकार अच्छा लगा | अच्छा आपकी तबियत खराब होती है तो आप क्या करते हैं....दवाई तो बिलकुल नहीं लेते होंगे आखिर इससे बीमारी फैलाने वाले वाले कीटाणु और जीवाणु जो मर जायेंगे |
मालिक आपको दिव्य मार्ग पर चलाए और आपको रियल मंजिल तक पहुँचाए ।
जवाब देंहटाएं@ भाई तारकेश्वर जी ! आपकी शुभकामनाएं थ्रू SMS मौसूल हुईं और वह भी बिल्कुल सुबह सुबह ।
धन्यवाद !
जिन्होंने मुझे शुभकामनाएं नहीं भेजीं , वे भी मेरा शुभ ही चाहते हैं ऐसा मेरा मानना है ।
मालिक सबका शुभ करे ।
विशेष : तर्क वितर्क से मेरा मक़सद केवल संवाद है और संवाद का मक़सद सत्पथ की निशानदेही करना है ।
किसी के पास सत्य का कोई अन्य सूत्र है तो मैं प्रेमपूर्वक उसका स्वागत करता हूं , अपने कल्याण के लिए , सबके कल्याण के लिए ।
कल्याण सत्य में निहित है ।
ahsaskiparten.blogspot.com पर देखें
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जवाब देंहटाएं.
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@ मित्र गौरव,
आपके स्नेह से अभिभूत हूँ मित्र, परंतु यह भी कहूँगा, कि, अपनी लड़ाइयां स्वयं लड़ने में समर्थ हूँ... ;)
विषयांतर: क्या आपने अग्रवाल समाज से संबंधित मेरी यह टिप्पणी देखी है, मैंने काफी समय इंतजार किया कि आप कुछ कहेंगे... उसके बाद ही यह टिप्पणी की थी।
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जवाब देंहटाएं.
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@ प्रतुल वशिष्ठ जी,
कल आपने वादा किया था कि बतायेंगे कि क्यों...
"हिन्दू धर्म की विभिन्न इकाइयों में मांसाहार क्यों प्रचलन में आ गया?
पर्वतीय परदेशों में मांसाहार की शुरुआत क्यों हुई?
मांसाहार के समर्थक समाधि अवस्था को क्यों नहीं छोड़ पाते?
देव-पूजा और बलि-प्रथा में प्रसाद रूप में मांस वितरण के पीछे का इतिहास..."
परंतु आज आप मेरी एक टिप्पणी को उसके संदर्भों से हट कर देख और हंस रहे हैं... आपका यह रवैया निराश करता है दोस्त... स्वस्थ संवाद एक स्थापित भारतीय परंपरा है... आशा है आपको इसका ध्यान होगा... :(
@ सभी मान्य पाठकगण,
वेदों को ईश्वरीय ग्रंथ कहा जाता है... यह एक स्थापित तथ्य है कि वैदिक काल में पशुबलि एवं मांसाहार का चलन था... अब यदि यह कहा जा रहा है कि यह सब गलत था... तो वैदिक काल की इस रीति में यह संशोधन कब हुआ, क्यों हुआ और किसने किया... यदि कोई इस पर प्रकाश डाल सके तो आभारी रहूँगा।
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माननीय प्रवीणजी,
जवाब देंहटाएंआप प्रतुलजी की हंसी से दिल छोटा ना कीजिये, स्वस्थ संवाद के बीच में कुछ हँसी मजाक भी होना चाहिये.
@ यह एक स्थापित तथ्य है कि वैदिक काल में पशुबलि एवं मांसाहार का चलन था...
# माननीय आपसे जानना कहूंगा की यह स्थापना किसने की, और क्या ठोस कारण है की इस तथाकथित स्थापित तथ्य को अंतिम व पूर्ण रूपेण सत्य माना जाये ?????
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएं..
जवाब देंहटाएंप्रवीण शाह जी,
मैं वादे से पीछे हटने वालों में नहीं. जिनके प्रश्ने थे पहले वे सभी शपथ-पत्र दाखिल तो कर दें.
मेरी इस शर्त का उल्लेख करना आप अपने अनुरोध में भूल गये हैं.
मैं अब असफल प्रयास नहीं करना चाहता.
..
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जवाब देंहटाएंशेखर सुमन जी वाह-वाह,
आपने मौके पर शुगुफा छोड़ा.
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जवाब देंहटाएं.
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@ भाई अमित शर्मा जी,
"वैदिक काल में पशुबलि एवं मांसाहार का चलन था..."
यह एक मान्य ऐतिहासिक तथ्य है... इतिहासकार श्री राम शरण शर्मा जी की किताब का संदर्भ मैंने ऊपर दिया है... परंतु सभी इतिहासकार इस पर एक मत हैं... यह स्थापना उपलब्ध अभिलेखों, शिलालेखों, वैदिक साइट्स के पुरातात्विक उत्खनन व आज उपलब्ध वैदिक कालीन ग्रंथों के अध्ययन पर आधारित है।
...
@ एस.एम.मासूमजी PARAM ARYA JI, Tarkeshwar Giri Ji, abhishek ji, Arvind Mishra Ji, मोसम जी, Manoj Kumar Singh 'Mayank' JI, वीरुजी, राजेन्द्र स्वर्णकार जी, VICHAAR SHOONYA Ji, Shah Nawaz Ji, स्मार्ट इंडियन जी, Suresh Chiplunkar Ji, Shekhar Suman ji
जवाब देंहटाएंआप सभी का तहे दिल से आभार की आपने अपने भाव व्यक्त कर चर्चा को आगे बढ़ाया
@ प्रतुल गुरूजी, बंधु सुग्यजी, भाई गौरव, माननीय प्रवीण जी आप सभी का आभारी हूँ की आपने इस विषय पर इतनी सारगर्भित जानकारी पूर्ण चर्चा की, आपके चर्चा करने से मेरे जैसे लोगो का काफी ज्ञान वर्धन हुआ है . आभार !!!
जवाब देंहटाएं@ सम्माननीय जमाल साहब आपका विशेष आभार, इन संवाद-विषयों के लिए आप मेरे लिए उत्प्रेरक का काम करते है. आशा है मतभेदों को आप कभी मनभेद नहीं बनायेंगे और अपना निश्चल स्नेह बनाए रखेंगे !
जवाब देंहटाएं???????????????
जवाब देंहटाएंपरदे के पीछे से आती आवाजें.............
__________
अमित जी,
बड़े मौके पर कर दिया
पटाक्षेप.
कइयों के सवाल उनके हलक में ही रह गये.
अमित जी, शपथ-पत्र तो आने दिए होते.
उनकी संभावना नहीं थी क्या?
खैर, यह मंच एक २४ घंटों को लगा था.
टेंट वाले आ गये थे दरियाँ समेटने.बम्बू उखाड़ने. चलो अगले ठिकाने. वहीं जमायेगे सभा.
..
अरे नहीं गुरुदेव यह तो स्वागत भाषण था ................... पिक्चर अभी बाकी है गुरुदेव !!!!
जवाब देंहटाएंइसे पटाक्षेप ना माने :)
अबे कुटुओ हमारा जीव हत्या का विरोध इस लिये है क्योंकि हमारा
जवाब देंहटाएंमानना है कि मनुष्य योनि में मरने के बाद दुबारा जन्म लेता है।
और हमारे मरे हुऐ बाप महतारी दादा दादी भाई बहन आदि किस
जानवर योनि का रुप लेकर दुबारा जन्म लिये है।
और साले तुम लोग बेरहमी से हमारे बाप दादो को काट कर खा
लेते हो।
हमारे देवी देवता भी नपुन्सक हैं कुछ नही उखाड़ते तो हम ही आगे
आना पड़ता है। यहां तक की इनको बचाने के लिये इनको स्थपित
करने के लिये इन अलाल भगवानो की सुरक्षा से लेकर इनकी
लड़ाई तक हम को लड़ना पड़ रहा है।
पंडित आर्यों ने जब से मांस खाना शुरु तब से मांस की
जवाब देंहटाएंकीमत मे बहुत वृद्धी हो गयी है आज भी गाय का मांस बड़े चाव से
दोनो हाथ से खाते है क्योकि बकरा मंहगा है मुस्लिम होटलो मे जा कर देख लो
और ये साले हमें उपदेश दे रहे है
'शाकाहार में मांसाहार'
जवाब देंहटाएंसभी भाइयों को ईद मुबारक !
मेरे ब्लाग
hiremoti.blogspot.com
पर तशरीफ़ लाकर 'शाकाहार में मांसाहार' भी देख लीजिए ।
प्रिय मित्र प्रवीण
जवाब देंहटाएं@ अपनी लड़ाइयां स्वयं लड़ने में समर्थ हूँ... ;)
मेरे अनुसार यहाँ लड़ाई नहीं चल रही :)
@मैंने काफी समय इंतजार किया कि आप कुछ कहेंगे
उप्स ..... इस लेख को सीरियसली लेना था क्या ?? :))
बंधुओं,
जवाब देंहटाएंविचारधाराओं पर चर्चा, किसी भी वैचारिक लडाई के लिये नहिं होती। क्योंकि लडाई में जीत-हार अपेक्षित होती है। बल्कि यह चर्चा तो हमारे विचारों के परिमार्जन के लिये होती है।
इसे व्यक्तिगत लेना,ग्रुप समर्थित बनाना अथवा लडाई मान लेना। उन्ही विचारोधाराओं को दूषित करना है।
सम्भवतः धर्म-दर्शन ऐसी ही हमारी पूर्वाग्रंथियों से दूषित हुए है।
@क्योंकि लडाई में जीत-हार अपेक्षित होती है। बल्कि यह चर्चा तो हमारे विचारों के परिमार्जन के लिये होती है।
जवाब देंहटाएंबात तो एकदम सही कही सुज्ञ जी ने
मासूम जी,
जवाब देंहटाएं@सुज्ञ जी आप एक अच्छे इंसान हैं, यह ग़लती अनजाने मैं ही हुई होगी ऐसा मेरा मान ना है. इस ग़लती को सूधार लें.
मासूम जी, आप भी अच्छे इंसान हैं,मैं ग़लती को सूधार लुं,अगर सच ज्ञात हो जाय…"ला तुकातिलुन्नफ्स मा हर्रमल्लाह " यह आयत है या नहिं?, इसका क्या अर्थ है? और सही संदर्भ क्या है?
मासूम जी,
जवाब देंहटाएंआपने अभी तक हमारी जिज्ञासा का समाधान न किया, और इन्सानियत की शहिदी पर सुंदर पोस्ट भी लगा दी। वहां भी हमने पुछा है,उत्तर की अपेक्षा और प्रतिक्षा है।
आपने वहां लिखा था…"टिप्पणी शतक ना बन सकने का अफ़सोस हमें भी रहा" .… चलो इस टिप्पणी के साथ ही यह पूरा शतक!!
अब शायद मासुम भाई का दुक दूर हो जाएगा सेंचुरी हो गयी और येह एक सो एक का शगून भी
जवाब देंहटाएंचर्चा तो बढ़िया रही !
जवाब देंहटाएंप्रतुल जी शायद कभी अपने ब्लॉग पर चर्चा करें उन मुद्दों पर जिनके उत्तर की बड़ी अपेक्षा हमें थी ? मजबूरी मेरी कि हमारे शपथ पत्र से वह पिघ्लेगे नहीं :-)
..........वैसे बस ऐसे मन आ रहा है कि चर्चा में भाग लेने वाले सभी टीपकार वास्तव में स्वयं मांसाहारी हैं या फिर शाकाहारी ?
उत्तर की शुरुआत मै ही किये दे रहा हूँ कि मैं शाकाहारी हूँ !
..
जवाब देंहटाएंमेरे पुराने परिचित मित्र प्रवीण त्रिवेदी जी
पिघलने का प्रश्न ही नहीं है?
— शपथ-पत्र उनसे भरवाए जाते हैं जिनसे भरोसा तोड़ने की उम्मीद होती है.
— ईसाई भाई भी उन आदिवासी भाइयों की बातें सुनते-मानते हैं जिनके ईसाइयत स्वीकारने की उम्मीदें पक्की होती हैं.
— कोई एक भी मांसाहारी शपथ-पत्र दे दे तो मैं आगे बढूँ. मुझे धर्मांतरण नहीं करवाना.
मुझे अपनी मेहनत का कुछ तो मूल्य चाहिए ही.
..
@प्रतुल जी .
जवाब देंहटाएंक्या करूँ .....मैं तो शाकाहारी ही हूँ !........इसीलिए इन्तजार के सिवा कोई चारा नहीं !
..
जवाब देंहटाएंप्रवीण जी,
इंगित भर किये देता हूँ.
जीव जब नष्ट होता है, तब वह पञ्च तत्वों में विलीन होता है,
कोई गर्भवती जीव जब किसी अपने जैसे अन्य जीव की सृष्टि करता है
तब वह उन पञ्च तत्वों से ही अपनी खुराक अर्जित भी करता है.
आत्मा एक ऊर्जावान इकाई है जो विशेष गुणों से आवेशित [charged] होती है,
वह इन पञ्च तत्वों में ही गमन भी करती है और उन्हीं के माध्यम से
पुनः अपने उपयुक्त शरीर की तलाश भी करती है.
हम जो भी भक्षण करते हैं, उनमें वे इकाइयाँ भी रहती हैं जो विशेष गुणों से आवेशित होती हैं. जिसे हम आत्मा कहते हैं.
यह बात सरलता से स्वीकारी नहीं जायेगी, कि हम आत्मा का ही भक्षण करते हैं.
आत्मा अजर-अमर है, उसके भक्षण कर लेने से वह समाप्त नहीं होती.
वह तो उसकी तलाश है किसी उपयुक्त शरीर को पाने की,
जैसे ही उसे अपने उपयुक्त शरीर मिलता है वह प्रविष्ट हो जाती है.
अब मैं यह कहूँ कि प्रत्येक जीव को जीने का अधिकार है और वंश बढ़ाने का भी.
मासूम जीवों का मासूमियत से क़त्ल कर देना कहाँ की इंसानियत है? कहाँ का न्याय है?
केवल नाम के पीछे मासूम लगाने से मासूम नहीं हो जाते और ना ही शरीफ हो जाते हैं. और ना ही इंसानियत की दुहाई देकर हम इंसान हो जाते हैं.
यह तो रहम दिल लोग बताएँगे कि हममें कितनी इंसानियत है?
वैज्ञानिक दृष्टि से भी यह दुष्कार्य हमारे उस क्रम को बिगाड़ता है जो आत्मा अपने उपयुक्त शरीरों की तलाश के लिये करता है.
'जीव-वध' तो हम केवल जीभ के स्वाद के लिये और अपने कुत्सित रिवाजो की सुरक्षा की खातिर करते हैं.
___________________
अभी आपको ट्रेलर दिया है, अब यदि शपथ-पत्र आयेंगे तो बात को अवश्य विस्तार दिया जाएगा.
..
..
जवाब देंहटाएंचिंतन को विस्तार दें :
— विशेष गुणों से मेरा तात्पर्य ....... संस्कारों से है.
— आत्मा वैसे तो पुल्लिंग शब्द है पर मैंने उसे इकाई शब्द के साथ स्त्रीलिंग रूप में प्रयुक्त किया है
— आत्मा परमात्मा का ही अंश है.
— परमात्मा अंशी है तो आत्मा अंश.
..
पहन फकीरों जैसे कपडे
जवाब देंहटाएंपरम ज्ञान की बात करें
वेद क़ुरान,उपनिषद ऊपर
रोज नए व्याख्यान करें,
गिरगिट को शर्मिंदा करते , हुनर मिला चतुराई का !
बड़ी भयानक शक्ल छिपाए रचते ढोंग फकीरी का !
..
जवाब देंहटाएंविपरीत चिंतन :
— कई परमात्माओं से मिलकर आत्मा बनती है.
— तब क्या आत्मा परमात्मा से गुरु (बड़ी) है ?
@ जो सूक्ष्म है या सूक्ष्मतम है वह दरअसल विशाल है. वही अंशी है.
@ एक विशालकाय चट्टान की माता (अंशी) एक सूक्ष्मतम कण है.
@ कण-कण जुड़कर एक कंकण बनता है, कंकण-कंकण जुड़कर एक पाषाण बनता है, कई पाषाणों का पुंज ही चट्टान हुआ करता है.
..
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जवाब देंहटाएंस्पष्ट चिंतन :
— कण-कण में परमात्मा है.
— दूसरे शब्दों में - कण-कण ही परमात्मा है.
— जिसे हम परमाणु कहते हैं क्या वही तो परमात्मा नहीं.
— इन परमाणुओं से ही यह जगत क्या सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड संचालित है. हमारी प्रत्येक गतिविधि संचालित है.
.
..
जवाब देंहटाएंसतीश जी की कविताई में एक स्वस्थ व्यंग छिपा है.
मैं दिनकर जी के शब्दों में कहता हूँ :
"जो असुर, हमें सुर समझ, आज हँसते हैं,
वंचक शृगाल भूँकते, साँप डसते हैं.
कल यही कृपा के लिये हाथ जोड़ेंगे,
भृकुटी विलोक दुष्टता-द्वंद्व छोड़ेंगे.
..
सुज्ञ जी को शानदार शतक मारने के लिए धन्यवाद्. लेकिन सुज्ञ जी इस मैच की शुरोआत , यानि पहला रन ही झूट पे आधारित था. ऐसे किसी शतक का समाज को फैदा होगा या नुकसान?
जवाब देंहटाएंझूट के सहारे जब भी बात की जाएगी, झगडे ही होंगे और भाई सुज्ञ मुझे इसमें कोई दिलचस्पी नहीं की कोई शाकाहारी है या मांसाहारी. हाँ मुझे इस बात मैं अवश्य दिलचस्पी है की किसको दो वक़्त की रोटी नहीं मिलती.
आशा है झूट की नीव पे मरे इस शतक की ख़ुशी कम से कम आप जैसे नेक इंसान नहीं करेंगे.
अमित जी प्रतुल वशिष्ठ जी सतीश सक्सेना जी सुज्ञ जी गौरव
जवाब देंहटाएंअग्रवाल जी एवं सभी टिप्पड़ी कर्ता जी
मै आप लोगो से एक सवाल पूछना चाहता हूं अगर हो सके तो
जरुर जवाब दीजिये गा।
आप लोग मुसलमानो को जानवरो की हत्या करने से रोकने
का प्रयास कर रहे हो जानवरो की हत्या करना घ्रणित कृत्य है।
मुसलमान लोग अवने बचाव मे आपको वेदों मे से निकाल कर
बताते है कि पहले हिन्दू धर्म मे भी बलिया चढ़ाई जाती थीं
फिर आप सफाई देते हो।
फिर आप इंसानियत की बात करने लगते हैं।
जबकी मै देख रहा हूं कि दोनो एक दूसरे के कट्टर विरोधी
हो। यानी इंसान विरोधी हो
आप हिन्दू कट्टर वादी विचार धारा के हो गुजरात उड़ीसा
वगैरा उदाहरण है।
मुसलमान भी कट्टर मुस्लिम विचारधारा के है इनके कारनामे
भी सबको मालूम है।
दोनो के धर्म अलग लेकिन रास्ते एक हैं। मतलब
मार काट मे दगां फसाद में एक जैसे है फर्क कोई नही है
आप इंन्सान को मार के माने तो ठीक नही तो मार डालो
इंसान को हिन्दू बनाना चाहते हो । हिन्दू राष्ट्र् बनाना है।
मुसलमान का भी यही उद्ेश्य है कि भारत को अंशांत कर दो। उड़ा दो।
मेरा सवाल है कि जानवर इंसान से ज्यादा महत्व पूर्ण है क्या
और इंसानियत की परिभाषा क्या है।
मित्र बेनामी [पहले वाले ] ने बात तो काफी हद तक लोजिकल कही है [बाबा राम देव वाली बात छोड़ कर]
जवाब देंहटाएंअब दो केटेगरी बना लेते हैं यार| ये हैं मन के आधार पर .
शाकाहारी [मन से] ,मांसाहारी [मन से]
यानी १. जानते हुए मांस खाना और २. अनजाने में मांस खाना
अगर मैं अनजाने में हो रही गलती को देख कर कोई जानबूझ कर वही करे दोनों में फर्क होगा ना [चाहे किसी भी धर्म का हो ]
जहां तक मानवता की बात है मैं उसका उत्तर दे चुका हूँ मांसाहार मानव स्वास्थ्य की दृष्टि से अनुकूल तो नहीं लगता
@मित्र बेनामी [दूसरे वाले ]
जवाब देंहटाएंमैं तो बेसिकली मांसाहार के पुरजोर समर्थन के खिलाफ हूँ, कोई भी धर्म फोलो करने वाला करे, इतनी सी चर्चा में आप ये ही नहीं समझ पा रहे तो मानवता की डेफिनेशन कैसे समझेंगे ?
एक बात पर गौर करें :
जवाब देंहटाएंमैंने लगभग सारे कमेन्ट तब किये हैं जब प्रवीण शाह जी, जो अपने आप को नास्तिक मानते हैं [जहां तक मैं समझ पाया हूँ] ने ये कहा है
"केवल शाकाहार ही सही आहार है यह भी एक तरह का कुतर्क ही है..."
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जवाब देंहटाएं..
जवाब देंहटाएंहे परदे की पीछे से बोलने वाले बेनामी !
मैं बहुत ही सरल शब्दों में समझाता हूँ.
इंसानियत ..... मतलब जिसकी नियत इंसाफ पसंद हो.
जारी....
..
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जवाब देंहटाएं..
जवाब देंहटाएंजब हम किसी कुकृत्य को रोकने की कोशिश करते हैं या विरोध करते हैं.
तब यह कतई ध्यान नहीं रहता कि अमुक किस मज़हब का व्यक्ति है?
यह तो हमारी उसी प्रकार की कोशिश है जब कोई विद्यार्थी समझना ना चाहे तो उसके मर्म पर चोट करके समझाया जाता है.
जैसे उसे कह दिया जाता कि तुम्हे इतना भी नहीं पता ! क्या तुम भांग तो नहीं खाए हो.
यदि विद्यार्थी संवेदनशील हुआ तो चेत जाता है अन्यथा गुरु फिर से कोई अन्य कटु उक्ति बोलकर उसे चेताने की युक्ति सोचता है.
समझे बेनामी.
"मैं आपको बार-बार बेनामी इसलिये कहता हूँ कि आपको शर्म आने लगे और आप सामने आ जाएँ."
जारी .....
..
..
जवाब देंहटाएंआपका मत है कि हम सभी इंसान विरोधी हैं.
निश्चिन्त रहें, हमसे घबराने की कोई ज़रुरत नहीं, हम जीव ह्त्या नहीं करते, जीव के अंतर्गत इंसान नाम का जीव भी आता ही है.
यदि हमें हिंसा की आवश्यकता भी पड़ेगी तो पहले मानसिक हिंसा करेंगे.
मानसिक हिंसा का मतलब
'शत्रु या आदमखोर / खूंखार जानवर को मारने की योजना बनाना.
योजना क्रियान्वित करने से पहले हम वध करने वाले को अल्टीमेटम भी देंगे. न कि माला पहनाकर उसके विश्वास के साथ घात करेंगे.
जारी...
..
मासूम साहब,
जवाब देंहटाएंशतक का व्यंग्य आपने ही किया है, अपनी पोस्ट पर,अच्छे इन्सान से यह अपेक्षित नहिं था।
मैं प्रकट कर चुका हूँ कि दया-अहिसावश उस गलत आयत संख्या का प्रयोग हो गया, वह असावधानी थी। आप तो ईमानवाले है, हक़ बात ही बताएंगे। साहस से यह तो कह दिजिए कि 'कुरआन में कहीं भी जीव-दया है ही नहिं' उसमें जीव-अहिसा ढूंढना मिथ्या प्रयत्न,झुठा काम है।
कह दो ऐ ईमान वालों जमाने से अल्लाह के राह में जानवरों पर तो क्या किसी पर भी रहम जाइज नहीं है
जवाब देंहटाएं..
जवाब देंहटाएंहिन्दू और हिदू राष्ट्र के सन्दर्भ में कहता हूँ. ....
@ आप अपने घर में सुख शांति के लिये पहले क्या करते हैं.
क्या दो मानसिकता के लोग एक घर में रह सकते हैं?
पिछले दिनों मेरे घर में एक किरायेदार था मुझे उससे और उसे मुझसे कोई प्रोब्लम नहीं थी. लेकिन एक दिन रात को उसने आमलेट बनाया तो पूरे घर में बदबू फ़ैल गई. उसे उसने गैस खुली छोड़ कर उसकी गंध में दबाना भी चाहा लेकिन मैंने उसे समझाया कि वह ऐसा न करे जैसा की मकान देते समय शर्त रखी गयी थी. पर उसने यह कार्य चोरी-छिपे जारी रखा. दो बार उसे मैंने फिर चेताया कि वह ऐसा न करे. जब वह नहीं माना तो मैंने अपने पिता से कहा कि मेरा जीना दूभर हो रहा है. इसे यहाँ से छोड़ने को कहो. और वह महीना समाप्त होते ही चला गया.
अब आप बताइये कि मुझे किससे द्वेष था?
क्या मैं सब कुछ बर्दाश्त करूँ क्योंकि यह घर उसका भी हो गया है.
या फिर मैं वह उपक्रम करूँ जिससे मैं भी जी पाऊँ. और इस हवा में खुलकर सांस ले पाऊँ.
यदि कोई अन्य समस्या हो तो वह भी लिखना ........ पर एक शपथ-पत्रक के साथ लिखें.. चोरी-छिपकर नहीं. ........ समझे...
..
..
जवाब देंहटाएंमुझे इस बात मैं अवश्य दिलचस्पी है की किसको दो वक़्त की रोटी नहीं मिलती.
@ अब मासूम साहब बड़ी मासूमियत से चल रही बात का विषय ही बदल देना चाहते हैं.
यदि आपको इस बात में दिलचस्पी है कि किसे दो वक्त की रोटी (?) नहीं मिल रही. तो स्पष्ट करें कि आपकी इस रोटी में क्या-क्या खाने की चीज़े शामिल हैं?
..
..
जवाब देंहटाएंमासूम साहब
झूठ की नीव पे मरे इस शतक की ख़ुशी कम से कम आप जैसे नेक इंसान नहीं करेंगे.
@ यह शतक हम सभी ने मिलकर लगाया है. आपने इतनी नो-बोल और वाइड बोल फैंकी कि हमारे रन तो बनने ही थे.
अब आप हमारे व्यक्तिगत रन (टिप्पणियाँ) काउंट करके हमें जल्दी बताइये. क्या मेरा अर्ध शतक तो नहीं लग गया?
..
प्रतुल वशिष्ठ जी
जवाब देंहटाएंजब हम किसी कुकृत्य को रोकने की कोशिश करते हैं या विरोध करते हैं.
तब यह कतई ध्यान नहीं रहता कि अमुक किस मज़हब का व्यक्ति है?
इसका मतलब जानवर और आप मे कोई फर्क नही है।
मेरा सवाल है कि जानवर इंसान से ज्यादा महत्व पूर्ण है क्या?
जवाब देंहटाएंऔर इंसानियत की परिभाषा क्या है?
मेरे दोनो सवालो का जवाब आपने स्पष्ट नही दिया
गोल मोल जवाब आप कहानी बना कर दे रहे है
आप निरुत्तर है।
मानवता या इंसानियत का पाठ आपने पढ़ा ही नही है तो कैसे
दे पायेगें। और अगर कही पढ़ा भी होगा तो चाह कर भी नही
दे सकते है आप।
क्योकि मानवता आपके रास्ते मे बाधा बन जायेगी।
इसलिये जो प्रयास मानवता के लिये करने चाहिये आप पशु या
जानवर के लिये कर रहे हैं।
हिन्दू और हिदू राष्ट्र के सन्दर्भ में कहता हूँ. ....
जवाब देंहटाएं@ आप अपने घर में सुख शांति के लिये पहले क्या करते हैं.
क्या दो मानसिकता के लोग एक घर में रह सकते हैं?
पिछले दिनों मेरे घर में एक किरायेदार था मुझे उससे और उसे मुझसे कोई प्रोब्लम नहीं थी. लेकिन एक दिन रात को उसने आमलेट बनाया तो पूरे घर में बदबू फ़ैल गई. उसे उसने गैस खुली छोड़ कर उसकी गंध में दबाना भी चाहा लेकिन मैंने उसे समझाया कि वह ऐसा न करे जैसा की मकान देते समय शर्त रखी गयी थी. पर उसने यह कार्य चोरी-छिपे जारी रखा. दो बार उसे मैंने फिर चेताया कि वह ऐसा न करे.
>>>>>>>>>> जब वह नहीं माना तो मैंने अपने पिता से कहा कि मेरा जीना दूभर हो रहा है. इसे यहाँ से छोड़ने को कहो.
>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>><<<<<<<<<<<<<<<<<<<<<<<<<<<<<<<<<<,
और वह महीना समाप्त होते ही चला गया.
अब आप बताइये कि मुझे किससे द्वेष था?
क्या मैं सब कुछ बर्दाश्त करूँ क्योंकि यह घर उसका भी हो गया है.
या फिर मैं वह उपक्रम करूँ जिससे मैं भी जी पाऊँ. और इस हवा में खुलकर सांस ले पाऊँ.
यदि कोई अन्य समस्या हो तो वह भी लिखना ........ पर एक शपथ-पत्रक के साथ लिखें.. चोरी-छिपकर नहीं. ........ समझे...
>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>><<<<<<<<<<<<<<<<<<<<<<<<<<<<<<<<<<<,
आपने अपने पिता से कहा क्यो ???
आप खुद क्यो नही खाली करा सके ???
इसमे सरा जवब है मगर आप ने लिख दिया और आपको पता नही ये आपकी न समझी है
आपने पिता जी से कहा इस लिये क्योकि वो मालिक है मेरे और मकान के भी =========
इसी तरह इंसानों का मालिक भी है जिसने दुनिया को बनाया है आप उससे न बोल कर खुद खाली करा रहे हो ।
>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>><<<<<<<<<<<<<<<<<<<
मुझे नगीने की नाईं अपने ह्रदय पर लगा रख, और ताबीज की नाई अपनी बांह पर रख; क्योंकि प्रेम मृत्यु के तुल्य सामर्थी है, और ईर्षा कब्र के समान निर्दयी है। उसकी ज्वाला अग्नि की दमक है वरन परमेश्वर ही की ज्वाला है। पानी की बाढ़ से भी प्रेम नहीं बुझ सकता, और न महानदों से डूब सकता है। यदि कोई अपने घर की सारी सम्पिित्त प्रेम की सन्ती दे दे तौभी वह अत्यन्त तुच्छ ठहरेगी।।
जवाब देंहटाएंजब हम अपने वश में करने के लिये घोड़ों के मुंह में लगाम लगाते हैं, तो हम उन की सारी देह को भी फेर सकते हैं।देखो, जहाज भी, यद्यपि ऐसे बड़े होते हैं, और प्रचंड वायु से चलाए जाते हैं, तौभी एक छोटी सी पतवार के द्वारा मांझी की इच्छा के अनुसार घुमाए जाते हैं।
जवाब देंहटाएंवैसे ही जीभ भी एक छोटा सा अंग है और बड़ी बड़ी डींगे मारती हैः देखो, थोड़ी सी आग से कितने बड़े वन में आग लग जाती है।
जीभ भी एक आग हैः जीभ हमारे अंगों में अधर्म का एक लोक है और सारी देह पर कलंक लगाती है, और भवचक्र में आग लगा देती है और नरक कुंड की आग से जलती रहती है।
क्योंकि हर प्रकार के बन-पशु, पक्षी, और रेंगनेवाले जन्तु और जलचर तो मनुष्य जाति के वश में हो सकते हैं और हो भी गए हैं।
पर जीभ को मनुष्यों में से कोई वश में नहीं कर सकता; वह एक ऐसी बला है जो कभी रूकती ही नहीं; वह प्राण नाशक विष से भरी हुई है।
इसी से हम प्रभु और पिता की स्तुति करते हैं; और इसी से मनुष्यों को जो परमेश्वर के स्वरूप में उत्पन्न हुए हैं श्राप देते हैं।
एक ही मुंह से धन्यवाद और श्राप दोनों निकलते हैं।
क्या सोते के एक ही मुंह से मीठा और खारा जल दोनों निकलता है? हे मेरे भाइयों, क्या अंजीर के पेड़ में जैतून, या दाख की लता में अंजीर लग सकते हैं? वैसे ही खारे सोते से मीठा पानी नहीं निकल सकता।।
तुम में ज्ञानवान और समझदार कौन है? जो ऐसा हो वह अपने कामों को अच्छे चालचलन से उस नम्रता सहित प्रगट करे जो ज्ञान से उत्पन्न होती है।
जीभ के वश में मृत्यु और जीवन दोनों होते हैं, और जो उसे काम में लाना जानता है वह उसका फल भोगेगा।
जवाब देंहटाएंमांसाहार पृष्ठ्भूमि वाले सज्जन भी शाकाहारी है। और मांसाहार का समर्थन नहिं करते। और उल्टे क्रूर जीवहिंसा का समर्थन करते प्रतित होते है। शायद पृष्ठ्भूमि ही कारण हो? या मन से त्याग न हो पाया हो?
जवाब देंहटाएंकिसी को चांस नहिं मिलता इसलिये शाकाहारी है, वह तो निश्चित ही मन से मांसाहार ही कर रहे होते है। क्योंकि उसकी अहिसा मनोवृति प्रबल नहिं बन पाती।
ऐसा तो कोई सफल रास्ता नहिं है कि मानवता के प्रति पूर्ण अहिंसा स्थापित हो तो फ़िर ही जीवों की तरफ अहिंसा बढाई जाय।
मानव के साथ होने वाली हिंसाएं द्वेष और क्रोध के कारण है, और द्वेष और क्रोध पूर्ण जीत संदिग्ध है। अब जीव के साथ हमारे सम्बंध इसप्रकार नहिं बिगडते, अतः मै समझता हू मानव के कोमल भावों की वृद्धि के लिये अहिंसा जीवों से ही प्रारंभ की जा सकती है।
..
जवाब देंहटाएंबेनामी महोदय
आपने कहा "इसका मतलब जानवर और आप मे कोई फर्क नही है।"
@ मैंने असल इंसान नहीं देखा कृपया इंसान महाशय अपने दर्शन दें. परदे के पीछे से सामने आयें.
मुझे प्रेरणा मिले. दर्शन लाभ दें, परिचय भी तो ज़रूरी है.
..
@सुज्ञ
जवाब देंहटाएंला तुकातिलुन्नफ्स मा हर्रमल्लाह
ये आयत इस प्रकार है सुर: 6 आयत 152
وَلَا تَقۡتُلُواْ ٱلنَّفۡسَ ٱلَّتِى حَرَّمَ ٱللَّهُ إِلَّا بِٱلۡحَقِّ
व ला तक़तुलून्नफस अल्लती हर्रमल्लाहु ईल्ला बिल्हक़
और नाहक़ किसी जीव को क़त्ल न करो जिसको अल्लाह ने हराम किया हुआ है ,
नीम हकीम खतरे जान
तौसीफ़,
जवाब देंहटाएंवाकई, नीम हकीम खतरे जान
मुझे भी यही चाहिये था कि, जीव-दया कुरआन में कहीं है ही नहिं।
अब हराम को तो नाहक या हक कत्ल करोगे नहिं।:)
वह हक़ीमी इसलिये थी कि फिर ढूंढ के न ला सको कि हम भी जीवों पर दया करते है। अब यदि हदीसों में हुआ तो गलत होगा, जब मूल में नहिं शाखा में कैसे आयेगा।
तौसीफ़,
जवाब देंहटाएंआयत न तो ठीक है न?
और कत्ल को हराम किया है, हराम को कत्ल नहिं करना है?
आयत न तो ठीक है न?
जवाब देंहटाएंको
आयत नम्बर तो ठीक है न? पढें
@सुज्ञ
जवाब देंहटाएंआपने सिद्ध कर दिया की जो अज्ञानी होते हैं उनको अगर कहा जाये की कव्वा तुम्हारा कान ले गया तो अपने कानको नहीं देखते कव्वे के पीछे भागने लगते हैं ,
पहले तो आयतका हवाला गलत दो फिर आयत को तोड़ मरोड़ कर पेश करो फिर उसका अर्थ गलत बयान करो ,
अपने बात सिद्ध करने के लिए झूठ का सहारा झूठा इंसान लेता हैं सत्य का हमराही नहीं
हराम मतलब जिन पशुओं तथा पक्षियों को अल्लाह सुबहानहू तआला ने मारना जाएज़ करार नहीं दिया है उनको क़त्ल न करो
और फालतू में किसी पशु व पक्षियों को ऐसे ही न मारो ,
जब मूल में फल नहो होता क्या शाखा में भी फल नहीं उगता है
जवाब देंहटाएंपेड़ की पहचान जड़ और शाख दोनों से होती है
उसी प्रकार इस्लाम का निचोड़
कुरान व हदीस दोनों में है
अगर कुरान जड़ है तो हदीस उसकी शाखाओं की तरह फैली हुई हैं
तौसिफ़,
जवाब देंहटाएंठीक है, आप तो ज्ञानी है
जिन पशुओं तथा पक्षियों को अल्लाह सुबहानहू तआला ने मारना जाएज़ करार नहीं दिया है
किस किस को जायज करार नहिं दिया है?
किस किस को जायज करर दिया है और क्यों?
जवाब देंहटाएंविश्वभर के डॉक्टरों ने यह साबित कर दिया है कि शाकाहारी भोजन उत्तम स्वास्थ्य के लिए सर्वश्रेष्ठ है। फल-फूल, सब्ज़ी, विभिन्न प्रकार की दालें, बीज एवं दूध से बने पदार्थों आदि से मिलकर बना हुआ संतुलित आहार भोजन में कोई भी जहरीले तत्व नहीं पैदा करता। इसका प्रमुख कारण यह है कि जब कोई जानवर मारा जाता है तो वह मृत-पदार्थ बनता है। यह बात सब्ज़ी के साथ लागू नहीं होती। यदि किसी सब्ज़ी को आधा काट दिया जाए और आधा काटकर ज़मीन में गाड़ दिया जाए तो वह पुन: सब्ज़ी के पेड़ के रूप में हो जाएगी। क्योंकि वह एक जीवित पदार्थ है। लेकिन यह बात एक भेड़, मेमने या मुरगे के लिए नहीं कही जा सकती। अन्य विशिष्ट खोजों के द्वारा यह भी पता चला है कि जब किसी जानवर को मारा जाता है तब वह इतना भयभीत हो जाता है कि भय से उत्पन्न ज़हरीले तत्व उसके सारे शरीर में फैल जाते हैं और वे ज़हरीले तत्व मांस के रूप में उन व्यक्तियों के शरीर में पहुँचते हैं, जो उन्हें खाते हैं। हमारा शरीर उन ज़हरीले तत्वों को पूर्णतया निकालने में सामर्थ्यवान नहीं हैं। नतीजा यह होता है कि उच्च रक्तचाप, दिल व गुरदे आदि की बीमारी मांसाहारियों को जल्दी आक्रांत करती है। इसलिए यह नितांत आवश्यक है कि स्वास्थ्य की दृष्टि से हम पूर्णतया शाकाहारी रहें
जवाब देंहटाएंइस्लाम के प्रमुख कर्म वाक्य (कलमा) में एंव प्रत्येक अध्याय के आरम्भ में ”अर्रहमान” – “अर्रहीम” शब्द लिखे गये हैं, जिनका अर्थ है, कि परमात्मा सृष्टि की रचना के समय भी दयालू थे और सदैव ही दयालू रहेंगे। इस्लाम के सहाबा अकराम में एक हज़रत अली का उपदेश है, कि “तू पेट को पशु-पक्षियों की कब्र मत बना”। सम्राट अकबर का भी यही कथन था कि “मैं अपने पेट को दूसरे जीवों का कब्रिस्तान नही बनाना चाहता”। अल्लाह के रसूल ने फ़रमाया है, कि कुरान का फ़रमान है, कि “तुम जमीन वालों पर रहम करों, मैं तुम पर रहम करूँगा”।
जवाब देंहटाएंकरो मेहरबानी तुम अहलेजमीं पर। खुदा मेहरबाँ होगा अरशेबरीं पर॥
इसलिए हमारा कर्तव्य है,samajh jao
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जवाब देंहटाएंमासूम जी: इस बात में कोई दोराय नहीं है कि किसी भी धर्म का नाम लेने से बहस के मुद्दे बदल जाते हैं. लेखक को स्वयं ही इस बात का निर्णय करना होता है कि उसके पाठकों की इस पर क्या प्रतिक्रया रहेगी. यदि शर्मा जी के स्थान पर मैं होता तो शायद यह पोस्ट नहीं लिखता. परन्तु इस पर उठे सवालों से भी मैं सहमत नहीं हूँ. मासूम साहब, आपने तीन सवाल खड़े किये. उनके जवाब भी पढ़ लें:
जवाब देंहटाएं१. सिर्फ अपने धर्म के बारे में बोलें : शायद आप लेख आधा पढ़ कर ही रुक गए. नीचे दुर्गा नवमी पर पशु बलि देने वाले हिन्दू धर्मावलम्बियों से भी शिकायत की गयी है.
२. दूसरे के धर्म के बारे में ना बोलें : क्योंकि एक से अधिक धर्म की बात की गयी है, इसलिए धर्म पर आधारित नहीं है ये लेख. धर्म मानने वालों की आदतों के बारे में है.
३. अपनी दलीलें पेश करें, मज़ाक ना उड़ायें : दलीलें और कैसे पेश की जाएँ? यही तो कर रहे हैं इस लेख में. और रही मज़ाक उड़ाने की बात, तो मुझे तो इस लेख में हँसने जैसा कुछ नहीं दिखा. यह एक गंभीर लेख है.
आगे यह भी पढ़ें: पवित्र कुरआन की आयत 6:152 का तर्ज़ुमा आपने किया, बहुत खूब. आपको बहुत अच्छे से पता है की सुज्ञ जी ने आयत क्रमांक गलत दे दिया था. आपकी चतुराई यह है कि आपने "ला तुकातिलुन्नफ्स मा हर्रमल्लाह" का तर्ज़ुमा नहीं किया जो कि 6:151 क्रमांक की आयत है. अब लगे हाथ इसका भी तर्ज़ुमा कर दें.आप मुस्लिम हैं, और आप अपनी मर्जी से मांसाहारी हैं. इस बात के लिए मैं आपका सम्मान करता हूँ. अगर आप सुज्ञ जी की गलती बता कर इसी आयत का तर्ज़ुमा करते तो मेरा मन आपके लिए और अधिक सम्मान से भर जाता. अभी ऐसा लगता है कि आप चालाकी कर गए.
चमड़े के जूते और जक्केट किस किस ने पहने हैं ....चीते की खाल की भी बात थी मगर वो याद नहीं मुझे
जवाब देंहटाएं“O ye who believe! Fulfil (all) obligations. Lawful unto you (for food) are all four-footed animals with the exceptions named.”
जवाब देंहटाएं[Al-Qur’an 5:1]
“And cattle He has created for you (men): from them Ye derive warmth, and numerous benefits, And of their (meat) ye eat.”
[Al-Qur’an 16:5]
“And in cattle (too) ye have an instructive example: From within their bodies We produce (milk) for you to drink; there are, in them, (besides), numerous (other) benefits for you; and of their (meat) ye eat.”
[Al-Qur’an 23:21]
........निर्धनता के कारन अपनी संतान की हत्या न करो हम तुम्हे भी रोजी देते हैं और उसे भी .............किसी जीव की जिसे अल्लाह ने आदरणीय ठहराया हो हत्या न करो यह बात और है के हक़ के लिए ऐसा करना पड़े . ....
जवाब देंहटाएं(6:151)..
This is about killing human. actually if you will read the complete (6:151) you will understand .
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