"भारतीय काल गणना पूर्णतया वैज्ञानिक विधान पर आधारित है।" जब यह बात मैने अपने दोस्त राजुल से कही तो वह बोला की रहने दे, ज्यादा ज्ञान मत बघारे।
साल सिर्फ ३६५ दिन का होता है, जो सिर्फ ग्रेगरियन कैलेण्डर में ही होता है। लीप ईयर से एक दिन ऊपर नीचे होता है जो ख़ास फर्क नहीं है। पर हिंदी कैलेण्डर का तो कुछ समझ में ही नहीं आता है, कभी कोई तिथि घट जाती है तो कोई बढ़ जाती है। कभी पूरा महीना ही बढ़ जाता है। २००८ से संक्रांति भी तुम्हारे पोंगे पंडतो के हिंदी पंचांग के कारण १४ के बजाये १५ तारीख में झूलने लगी है।
उसके बकवादन से मैं थोडा अकबकाया, फिर पूछा की भईये तूने कभी जानने की कोशिश भी करी है क्या की ऐसा क्यों होता है।
वह बोला की इसमें जानने लायक क्या बात है, सब तुम्हारे पंडतों की पोंगापंथी है।
मैं तमका और जोर से बोला की "ओ लॉर्ड मैकाले के सन-इन-लॉ तेरी भी गलती नहीं है। यह तो भारत का ही करमडा फूटा हुआ है की जो बात सामान्य ज्ञान के नाते हर हिंदुस्थानी को मालूम होनी चाहिये, वह हमारी एज्यूकेशन का हिस्सा ही नहीं बन पायी। फिर हमारी पुरानी पीढ़ियों का भी दोष रहा है की अपनी संतानों को कभी कुछ सांस्कृतिक ज्ञान ही नहीं दिया। और देंगे भी किस मुंह से भाप्डों को खुद ही नहीं पता।"
फिर थोडा ठंडा मैं हुआ थोडा उसे किया और पूछा की अब तू बता की इस बारे में कुछ जानना चाहता है या अपनी कमजोरी का ठीकरा पंडतों के माथे ही फोड़ते रहने की इच्छा है।
तो वे जनाब फ्रिज के एक एड की नक़ल करते हुए कानों में उंगली डालकर बोले की "गाओ बेटा गाओ"
तो साहब हमने भी अपने अस्त्र-शस्त्र निकाल लिए बुकशेल्फ में से और गाने लगें :)
मैंने उससे पूछा की काल मतलब की समय को हम कितनी यूनिट में बाँट सकते है, तो बताया की - सेकेण्ड,मिनिट,घंटा,दिन,महिना और साल।
मैंने कहा की देख अब वैदिक काल गणना की सबसे छोटी इकाई से लेकर सबसे बड़ी इकाई के बारे में तुझे अभी बताने बैठूं तो मुझे डर है की तू जो की मेरा पहला चेला भी है, अभी उठकर भाग जाएगा। इसलिए तेरे बताये इन मोटे विभागों को ही लेकर आगे बढतें है।
अब देख ----
६० सेकेण्ड = १ मिनिट
६० मिनिट = १ घंटा
२४ घंटे = १ दिन-रात
अब यह तो अंग्रेजी घंटा, मिनिट, सेकेण्ड हुए इन्हें हिंदी में घटी,पल और विपल कहते है।
ढाई घटी = १ घंटा
ढाई पल = १ मिनिट
ढाई विपल = १ सेकेण्ड
अब इन्हें इस तरह समझो -----
६० विपल = १ पल
६० पल = १ घटी
६० घटी = १ दिन रात
अब महीने को समझो हिंदी में दो पूर्णिमा के बीच का समय एक महीना है। पर यह गणना उत्तर भारत में है, जबकि दक्षिण भारत में अमावस्या से अमावस्या के बीच का समय एक महिना माना जाता है। एक महीने का समय २९।५ दिन का होता है।
पृथ्वी सूर्य की परिक्रमा लगभग ३६५।२४२२ दिन में करती है। इस समय को सायन वर्ष कहते है।
लेकिन भारतीय काल गणना निरयण वर्ष से होती है भारतीय ज्योतिष में काल-गणना और पंचांग बनाने की विधि (सायन से भिन्न) जो अयन अर्थात् राशि-चक्र की गति पर अवलंबित या आश्रित नहीं होती, बल्कि जिसमें किसी स्थिर तारे या बिंदु से सूर्य के भ्रमण का आरंभ स्थान माना जाता है। जिसका समय ३६५ दिन ६ घंटे ९ मिनिट ९।७ सेकेण्ड के लगभग है।
वह थोडा चकराया, मुझे भी अपनी गुरु-गद्दी हिलती महसूस हुयी की अब अगर इसने और गहराई से समझाने को कहा तो!!!!!! उससे पहले ही मैंने कहा की घबराये मत "कालो हि दुरतिक्रमः" इसकी गति समझने के लिए गहन अध्यन की जरुरत होती है मैं तुझे सिर्फ मोटा मोटी बात बता रहा हूँ ।
यह कहकर मैं आगे कूदा और पोथी-पन्ने संभाल कर बताने लगा की इस तरह गणना की अलग अलग पद्दतियों के कारण कुछ विद्वानों ने बारह चन्द्र महीनो का एक साल मान लिया।
अब एक महिना लगभग २९।५ दिन का होता है, इसलिए एक साल ३५४ दिन का ही हुआ। क्योंकि इस विधि में चन्द्रमा को ज्यादा तवज्जो दी गयी है, इसलिए इसे चन्द्र-वर्ष कहते है। इस्लामिक कैलेण्डर इसी हिसाब से चलता है। अब चूँकि चन्द्र-वर्ष चन्द्रमा के आधार पर चलता है तो इसमें मौसम का तालमेल गड़बड़ाया हुआ है, सारे त्योंहार सारे मौसमों की सैर करते रहतें है ईद कभी गर्मी में आएगी तो कभी सर्दी में,कभी भर बरसात में। इस तरह इस गणना में ही बड़ा भारी लोचा है।
सौर वर्ष पृथ्वी के सूर्य की परिक्रमा लगाने जो की लगभग ३६५।२५ दिन की है को एक वर्ष मानकर अपनाया गया है।
और यह तुम्हारा हैप्पी न्यू ईयर वाला ईस्वी सन सायन सूर्य के भ्रमण पर ही आधारित है। अब पंडितो की सच्ची वैज्ञानिक गणना तो थोड़ी देर बाद में समझेंगे जिसको तू पोंगा-पंथी कहता ,पर पहले ईस्वी सन की पोप-लीला का बखान सुन :)
अब जिसको हजरत ईसा के नाम पर ईस्वी सन कहतें है, उसमें ईसा का जन्म २५ दिसंबर बताया गया है तो नया साल १ जनवरी से क्यों मनाते है?
जब कहतें है की ईसा के जन्म से इसका सम्बन्ध है तो नया साल २५ दिसंबर क्यों नहीं या ईसा का जन्म १ जनवरी क्यों नहीं। और घनचक्करी देखो इनकी की पहले ईस्वी साल १० महीनो का ही हुआ करता था। और नया साल मार्च से शुरू होता था। बाद में भूल पता लगने पर दो नए महीने - जेन्युअरी और फेब्रुअरी - क्रमशः ग्यारहवें और बारहवें महीने के रूप में जोड़े। लेकिन इनके साल के दस महीनो नाम क्या रहे होंगे इनका अंदाजा आखिरी छह महीनो के नाम पर आसानी से समझा जा सकता है।
राजुल ने पूछा कैसे मैंने कहा देख ऐसे ------
जब दस महीने थे और मार्च से साल शुरू होता था तो सेप्टेम्बर कौनसे नम्बर पर आता था, सिंपल सी बात है सातवे पर।
और संस्कृत में सात को क्या कहतें है ???? "सप्त" ....... आठ "अष्ट" ..... नौ "नवम" ..... दस "दशम" .......... sept (सेप्ट --सप्त ) ...... oct (ओक्ट -- अष्ट ) novem (नवेम -- नवम) decem (डेसम -- दशम ) अब इसमें भी अष्ट ओक्ट इसलिए बना क्योंकि अंग्रेजी में "C"को प्रायः "क"(K) के रूप में बोला जाता है। अगर स की ही ध्वनी से बोलें तो अष्ट ही कहलायेगा.
अब इनके साल के और हाल भी सुन लो कैलेण्डर जुलियस सीजर ने आवश्यक सुधार किये। अब सुधार किये तो उनका हक तो बनता ही है ना की उनके नाम पर एक महिना हो सो पांचवे महीने का नाम बदलकर जुलियस सीजर के नाम पर जुलाई रख दिया गया, पांचवा इसलिए चुना गया क्योंकि इसी महीने में जुलियस का जन्म हुआ था.
अब इनकी हत्या होने के बाद शासक बने सम्राट आगस्टस, उन्होंने कहा की एक महिना उसके नाम पर भी होना , और इतना ही नहीं वह छटा महिना हो लेकिन ३१ दिन का ही हो; जो हुकुम मेरे आका, नाम रखने में क्या परेशानी होती है नानाजी का खेत ही तो है, जो चाहे रख लो नाम पर पांचवे महीने में ३१ दिन होते है तो क्रमानुसार अगला ३० का ही होगा। तो किसी दूसरे महीने का नाम अपने नाम पर रख दो, पर साहब नहीं माने क्योंकि इन्होने इसी महीने में प्रमुख विजय प्राप्त की थी। ठीक है साहब छठे महीने का नाम अगस्त निश्चित कर दिया पर अब ३१ दिन के लिए १ दिन की व्यवस्था कहा से करें ???? बस गरीब फरवरी की गर्दन पर छुरी चलाकर एक दिन की व्यवस्था कर ली गयी।
अब राजुल मुझे ईसवी सन का पाला छोड़ कर सम्राट विक्रमादित्य की शरण में आता दिखाई देने लगा, लेकिन मैं भी ईस्वी के लगाव को बिलकुल जड़ से ही काट डालना चाहता था।
इसलिए बोला की और सुन आगे की बात --- यह काम रोमन सम्राट जुलियस सीजर के राज में हुआ , इस लिए यह रोमन या जुलियन कैलेण्डर कहलाया। इसमें चार साल में एक बार ३६६ दिन वाले लीप ईयर की व्यवस्था की गयी। पहला लीप ईयर अपनाए जाने के बाद भी भ्रम बना रहा, जब जूलियस सीज़र के किसी अधिकारी की ग़लती के कारण प्रत्येक तीसरे साल को लीप ईयर बनाया जाने लगा। इसे 36 साल बाद जूलियस के उत्तराधिकारी ऑगस्टस सीज़र ने ठीक किया, उसने तीन लीप ईयर बिना किसी अतिरिक्त दिन जोड़े गुज़र जाने दिए और 8 A.D. से दोबारा हर चौथे साल लीप ईयर को नियमपूर्वक लागू करना निश्चित किया।
पर भोंटी बुद्धि से तो मोटी गणना ही होती है सो इसमें भी कमी रह गयी जिसे लुइजि गिग्लियो ने दूर किया। पर ताल से ताल अब भी नहीं मिली, इस बेताल के कारण १५८२ तक इस कैलेण्डर में १० अतिरिक्त दिन इक्कट्ठे हो गए। तब पोप ग्रेगोरी ने पोप-लीला से चार अक्तूबर के बाद सीधे १५ अक्तूबर तारीख घोषित कर दी। लोग चार अक्तूबर को सोये थे; पर जागे पंद्रह अक्तूबर को। साल का आखिरी बारहवां महिना दसवें महीने दिसंबर को बना दिया। नया साल मार्च के स्थान पर १ जनवरी से घोषित किया गया, और लीप ईयर की व्यवस्था फरवरी के हिस्से आयी। इस गडबडझाले के झोले से निकला कैलेण्डर ही ग्रेगोरियन कैलेंडर कहलाता है।
सबसे पहले कैथोलिकों ने और १७०० ईo में प्रोटेस्टेंट ईसाईयों ने इसे अपनाया। १७५२ ईo में इसे ब्रिटेन ने अपनाया और अपने अधीनस्थ सारे उपनिवेशों में भी लागू कर दिया जिसमें नया नया शामिल हुआ अपना भारत भी था।
राजुल जी के समाधि में से डूबे वाक्य सुनाई दिए " कितना दुर्भाग्य है की जिस हिन्दुस्थान की काल गणना की छाप दूसरें देशों पर पड़ी फिर भी वे उसको सटीक नहीं निभा पाए और अंट-शंट तरीके से सुधार पर सुधार करते हुए खोखले पंचांग को हमारे उन्नत पंचांग के ऊपर जबरिया थोप दिया, और हम उसी गुलामी के नशे में ३१ दिसंबर की काली रात में हैप्पी न्यू ईयर का बेसुरा राग अलापतें है"
भाई साहब अपनी मेहनत को सफल जान मैं भी ब्रह्मानंद के समान आनंद लेने लगा, पर अभी तो ग्रेगोरियन कैलेंडर का कुछ और तिया-पाँचा करना बाकी था, और भारतीय काल गणना की वैज्ञानिकता और उन्नत्ता भी सिद्ध करनी थी, राजुल को समाधी से बाहर लेकर आया और एक दो पन्ने उलटे-पुल्टे करके आगे की बात सीधी की।
मैंने उससे पूछा की क्या अब तुम यह मान सकते हो की प्राचीन काल में पूरा संसार भारत के प्रभाव में था, उसका जवाब सकारात्मक आया।
महीनो के नाम ज्यों के त्यों संस्कृत के है इसके अलावा यह जानकर आश्चर्य होगा की अपनी पोप लीला में वे भले ही अपना नया साल १ जनवरी से मना लें, पर भारतीय आधीनता के अवशेष के रूप में पूरे संसार में नया वित्तीय-वर्ष १ अप्रैल को शुरू होता है। (भारतीय नव-वर्ष के आसपास) .
हम जब अंग्रेजों की अधीनता में थे तब भारत का बजट रात के समय पेश होता था,( यह परंपरा गुलाम मानसिकता के नेताओं के कारण पिछले कुछ वर्षों तक मौजूद थी ) क्योंकि तब गौरांग-महाप्रभुओं के देश में दिन रहता था. जिससे की वे वहाँ बैठे सूचनाये प्राप्त कर सकें। अगर यहाँ दिन में बजट पेश किया जाता तो वहाँ उन्हें रात में जागना पड़ता। पराधीन होने के कारण ही यहाँ का काम वहाँ के दिन के हिसाब से तय हुआ मतलब शासकों के समय से कदमताल बैठने के लिए। तब यह सोचो की अंग्रेज रात को बारह बजे अपना नव वर्ष क्यों मानते है ????? जबकि दिन की शुरुवात तो सूर्योदय से होती है ना की आधी रात से !!!!
क्योंकि पूरे विश्व को भारत ने अपने आधीन रखा था, और भारत में दिन का प्रारंभ ब्रह्म मुहूर्त यानी की 4.30 से 5.30 के करीब मानते हैं, और उस समय इंग्लैण्ड आदि देशों में आधी रात होती है, इसलिए अपने शासकों के दिन के उदयमान से अपनी कदमताल मिला कर रखने के लिए वहाँ आधी रात को तारीख बदलने की परिपाटी चालू हुयी थी, इसके अलावा दूसरा कोई कारण नही है।
जारी ..........
साल सिर्फ ३६५ दिन का होता है, जो सिर्फ ग्रेगरियन कैलेण्डर में ही होता है। लीप ईयर से एक दिन ऊपर नीचे होता है जो ख़ास फर्क नहीं है। पर हिंदी कैलेण्डर का तो कुछ समझ में ही नहीं आता है, कभी कोई तिथि घट जाती है तो कोई बढ़ जाती है। कभी पूरा महीना ही बढ़ जाता है। २००८ से संक्रांति भी तुम्हारे पोंगे पंडतो के हिंदी पंचांग के कारण १४ के बजाये १५ तारीख में झूलने लगी है।
उसके बकवादन से मैं थोडा अकबकाया, फिर पूछा की भईये तूने कभी जानने की कोशिश भी करी है क्या की ऐसा क्यों होता है।
वह बोला की इसमें जानने लायक क्या बात है, सब तुम्हारे पंडतों की पोंगापंथी है।
मैं तमका और जोर से बोला की "ओ लॉर्ड मैकाले के सन-इन-लॉ तेरी भी गलती नहीं है। यह तो भारत का ही करमडा फूटा हुआ है की जो बात सामान्य ज्ञान के नाते हर हिंदुस्थानी को मालूम होनी चाहिये, वह हमारी एज्यूकेशन का हिस्सा ही नहीं बन पायी। फिर हमारी पुरानी पीढ़ियों का भी दोष रहा है की अपनी संतानों को कभी कुछ सांस्कृतिक ज्ञान ही नहीं दिया। और देंगे भी किस मुंह से भाप्डों को खुद ही नहीं पता।"
फिर थोडा ठंडा मैं हुआ थोडा उसे किया और पूछा की अब तू बता की इस बारे में कुछ जानना चाहता है या अपनी कमजोरी का ठीकरा पंडतों के माथे ही फोड़ते रहने की इच्छा है।
तो वे जनाब फ्रिज के एक एड की नक़ल करते हुए कानों में उंगली डालकर बोले की "गाओ बेटा गाओ"
तो साहब हमने भी अपने अस्त्र-शस्त्र निकाल लिए बुकशेल्फ में से और गाने लगें :)
मैंने उससे पूछा की काल मतलब की समय को हम कितनी यूनिट में बाँट सकते है, तो बताया की - सेकेण्ड,मिनिट,घंटा,दिन,महिना और साल।
मैंने कहा की देख अब वैदिक काल गणना की सबसे छोटी इकाई से लेकर सबसे बड़ी इकाई के बारे में तुझे अभी बताने बैठूं तो मुझे डर है की तू जो की मेरा पहला चेला भी है, अभी उठकर भाग जाएगा। इसलिए तेरे बताये इन मोटे विभागों को ही लेकर आगे बढतें है।
अब देख ----
६० सेकेण्ड = १ मिनिट
६० मिनिट = १ घंटा
२४ घंटे = १ दिन-रात
अब यह तो अंग्रेजी घंटा, मिनिट, सेकेण्ड हुए इन्हें हिंदी में घटी,पल और विपल कहते है।
ढाई घटी = १ घंटा
ढाई पल = १ मिनिट
ढाई विपल = १ सेकेण्ड
अब इन्हें इस तरह समझो -----
६० विपल = १ पल
६० पल = १ घटी
६० घटी = १ दिन रात
अब महीने को समझो हिंदी में दो पूर्णिमा के बीच का समय एक महीना है। पर यह गणना उत्तर भारत में है, जबकि दक्षिण भारत में अमावस्या से अमावस्या के बीच का समय एक महिना माना जाता है। एक महीने का समय २९।५ दिन का होता है।
पृथ्वी सूर्य की परिक्रमा लगभग ३६५।२४२२ दिन में करती है। इस समय को सायन वर्ष कहते है।
लेकिन भारतीय काल गणना निरयण वर्ष से होती है भारतीय ज्योतिष में काल-गणना और पंचांग बनाने की विधि (सायन से भिन्न) जो अयन अर्थात् राशि-चक्र की गति पर अवलंबित या आश्रित नहीं होती, बल्कि जिसमें किसी स्थिर तारे या बिंदु से सूर्य के भ्रमण का आरंभ स्थान माना जाता है। जिसका समय ३६५ दिन ६ घंटे ९ मिनिट ९।७ सेकेण्ड के लगभग है।
वह थोडा चकराया, मुझे भी अपनी गुरु-गद्दी हिलती महसूस हुयी की अब अगर इसने और गहराई से समझाने को कहा तो!!!!!! उससे पहले ही मैंने कहा की घबराये मत "कालो हि दुरतिक्रमः" इसकी गति समझने के लिए गहन अध्यन की जरुरत होती है मैं तुझे सिर्फ मोटा मोटी बात बता रहा हूँ ।
यह कहकर मैं आगे कूदा और पोथी-पन्ने संभाल कर बताने लगा की इस तरह गणना की अलग अलग पद्दतियों के कारण कुछ विद्वानों ने बारह चन्द्र महीनो का एक साल मान लिया।
अब एक महिना लगभग २९।५ दिन का होता है, इसलिए एक साल ३५४ दिन का ही हुआ। क्योंकि इस विधि में चन्द्रमा को ज्यादा तवज्जो दी गयी है, इसलिए इसे चन्द्र-वर्ष कहते है। इस्लामिक कैलेण्डर इसी हिसाब से चलता है। अब चूँकि चन्द्र-वर्ष चन्द्रमा के आधार पर चलता है तो इसमें मौसम का तालमेल गड़बड़ाया हुआ है, सारे त्योंहार सारे मौसमों की सैर करते रहतें है ईद कभी गर्मी में आएगी तो कभी सर्दी में,कभी भर बरसात में। इस तरह इस गणना में ही बड़ा भारी लोचा है।
सौर वर्ष पृथ्वी के सूर्य की परिक्रमा लगाने जो की लगभग ३६५।२५ दिन की है को एक वर्ष मानकर अपनाया गया है।
और यह तुम्हारा हैप्पी न्यू ईयर वाला ईस्वी सन सायन सूर्य के भ्रमण पर ही आधारित है। अब पंडितो की सच्ची वैज्ञानिक गणना तो थोड़ी देर बाद में समझेंगे जिसको तू पोंगा-पंथी कहता ,पर पहले ईस्वी सन की पोप-लीला का बखान सुन :)
अब जिसको हजरत ईसा के नाम पर ईस्वी सन कहतें है, उसमें ईसा का जन्म २५ दिसंबर बताया गया है तो नया साल १ जनवरी से क्यों मनाते है?
जब कहतें है की ईसा के जन्म से इसका सम्बन्ध है तो नया साल २५ दिसंबर क्यों नहीं या ईसा का जन्म १ जनवरी क्यों नहीं। और घनचक्करी देखो इनकी की पहले ईस्वी साल १० महीनो का ही हुआ करता था। और नया साल मार्च से शुरू होता था। बाद में भूल पता लगने पर दो नए महीने - जेन्युअरी और फेब्रुअरी - क्रमशः ग्यारहवें और बारहवें महीने के रूप में जोड़े। लेकिन इनके साल के दस महीनो नाम क्या रहे होंगे इनका अंदाजा आखिरी छह महीनो के नाम पर आसानी से समझा जा सकता है।
राजुल ने पूछा कैसे मैंने कहा देख ऐसे ------
जब दस महीने थे और मार्च से साल शुरू होता था तो सेप्टेम्बर कौनसे नम्बर पर आता था, सिंपल सी बात है सातवे पर।
और संस्कृत में सात को क्या कहतें है ???? "सप्त" ....... आठ "अष्ट" ..... नौ "नवम" ..... दस "दशम" .......... sept (सेप्ट --सप्त ) ...... oct (ओक्ट -- अष्ट ) novem (नवेम -- नवम) decem (डेसम -- दशम ) अब इसमें भी अष्ट ओक्ट इसलिए बना क्योंकि अंग्रेजी में "C"को प्रायः "क"(K) के रूप में बोला जाता है। अगर स की ही ध्वनी से बोलें तो अष्ट ही कहलायेगा.
अब इनके साल के और हाल भी सुन लो कैलेण्डर जुलियस सीजर ने आवश्यक सुधार किये। अब सुधार किये तो उनका हक तो बनता ही है ना की उनके नाम पर एक महिना हो सो पांचवे महीने का नाम बदलकर जुलियस सीजर के नाम पर जुलाई रख दिया गया, पांचवा इसलिए चुना गया क्योंकि इसी महीने में जुलियस का जन्म हुआ था.
अब इनकी हत्या होने के बाद शासक बने सम्राट आगस्टस, उन्होंने कहा की एक महिना उसके नाम पर भी होना , और इतना ही नहीं वह छटा महिना हो लेकिन ३१ दिन का ही हो; जो हुकुम मेरे आका, नाम रखने में क्या परेशानी होती है नानाजी का खेत ही तो है, जो चाहे रख लो नाम पर पांचवे महीने में ३१ दिन होते है तो क्रमानुसार अगला ३० का ही होगा। तो किसी दूसरे महीने का नाम अपने नाम पर रख दो, पर साहब नहीं माने क्योंकि इन्होने इसी महीने में प्रमुख विजय प्राप्त की थी। ठीक है साहब छठे महीने का नाम अगस्त निश्चित कर दिया पर अब ३१ दिन के लिए १ दिन की व्यवस्था कहा से करें ???? बस गरीब फरवरी की गर्दन पर छुरी चलाकर एक दिन की व्यवस्था कर ली गयी।
अब राजुल मुझे ईसवी सन का पाला छोड़ कर सम्राट विक्रमादित्य की शरण में आता दिखाई देने लगा, लेकिन मैं भी ईस्वी के लगाव को बिलकुल जड़ से ही काट डालना चाहता था।
इसलिए बोला की और सुन आगे की बात --- यह काम रोमन सम्राट जुलियस सीजर के राज में हुआ , इस लिए यह रोमन या जुलियन कैलेण्डर कहलाया। इसमें चार साल में एक बार ३६६ दिन वाले लीप ईयर की व्यवस्था की गयी। पहला लीप ईयर अपनाए जाने के बाद भी भ्रम बना रहा, जब जूलियस सीज़र के किसी अधिकारी की ग़लती के कारण प्रत्येक तीसरे साल को लीप ईयर बनाया जाने लगा। इसे 36 साल बाद जूलियस के उत्तराधिकारी ऑगस्टस सीज़र ने ठीक किया, उसने तीन लीप ईयर बिना किसी अतिरिक्त दिन जोड़े गुज़र जाने दिए और 8 A.D. से दोबारा हर चौथे साल लीप ईयर को नियमपूर्वक लागू करना निश्चित किया।
पर भोंटी बुद्धि से तो मोटी गणना ही होती है सो इसमें भी कमी रह गयी जिसे लुइजि गिग्लियो ने दूर किया। पर ताल से ताल अब भी नहीं मिली, इस बेताल के कारण १५८२ तक इस कैलेण्डर में १० अतिरिक्त दिन इक्कट्ठे हो गए। तब पोप ग्रेगोरी ने पोप-लीला से चार अक्तूबर के बाद सीधे १५ अक्तूबर तारीख घोषित कर दी। लोग चार अक्तूबर को सोये थे; पर जागे पंद्रह अक्तूबर को। साल का आखिरी बारहवां महिना दसवें महीने दिसंबर को बना दिया। नया साल मार्च के स्थान पर १ जनवरी से घोषित किया गया, और लीप ईयर की व्यवस्था फरवरी के हिस्से आयी। इस गडबडझाले के झोले से निकला कैलेण्डर ही ग्रेगोरियन कैलेंडर कहलाता है।
सबसे पहले कैथोलिकों ने और १७०० ईo में प्रोटेस्टेंट ईसाईयों ने इसे अपनाया। १७५२ ईo में इसे ब्रिटेन ने अपनाया और अपने अधीनस्थ सारे उपनिवेशों में भी लागू कर दिया जिसमें नया नया शामिल हुआ अपना भारत भी था।
राजुल जी के समाधि में से डूबे वाक्य सुनाई दिए " कितना दुर्भाग्य है की जिस हिन्दुस्थान की काल गणना की छाप दूसरें देशों पर पड़ी फिर भी वे उसको सटीक नहीं निभा पाए और अंट-शंट तरीके से सुधार पर सुधार करते हुए खोखले पंचांग को हमारे उन्नत पंचांग के ऊपर जबरिया थोप दिया, और हम उसी गुलामी के नशे में ३१ दिसंबर की काली रात में हैप्पी न्यू ईयर का बेसुरा राग अलापतें है"
भाई साहब अपनी मेहनत को सफल जान मैं भी ब्रह्मानंद के समान आनंद लेने लगा, पर अभी तो ग्रेगोरियन कैलेंडर का कुछ और तिया-पाँचा करना बाकी था, और भारतीय काल गणना की वैज्ञानिकता और उन्नत्ता भी सिद्ध करनी थी, राजुल को समाधी से बाहर लेकर आया और एक दो पन्ने उलटे-पुल्टे करके आगे की बात सीधी की।
मैंने उससे पूछा की क्या अब तुम यह मान सकते हो की प्राचीन काल में पूरा संसार भारत के प्रभाव में था, उसका जवाब सकारात्मक आया।
महीनो के नाम ज्यों के त्यों संस्कृत के है इसके अलावा यह जानकर आश्चर्य होगा की अपनी पोप लीला में वे भले ही अपना नया साल १ जनवरी से मना लें, पर भारतीय आधीनता के अवशेष के रूप में पूरे संसार में नया वित्तीय-वर्ष १ अप्रैल को शुरू होता है। (भारतीय नव-वर्ष के आसपास) .
हम जब अंग्रेजों की अधीनता में थे तब भारत का बजट रात के समय पेश होता था,( यह परंपरा गुलाम मानसिकता के नेताओं के कारण पिछले कुछ वर्षों तक मौजूद थी ) क्योंकि तब गौरांग-महाप्रभुओं के देश में दिन रहता था. जिससे की वे वहाँ बैठे सूचनाये प्राप्त कर सकें। अगर यहाँ दिन में बजट पेश किया जाता तो वहाँ उन्हें रात में जागना पड़ता। पराधीन होने के कारण ही यहाँ का काम वहाँ के दिन के हिसाब से तय हुआ मतलब शासकों के समय से कदमताल बैठने के लिए। तब यह सोचो की अंग्रेज रात को बारह बजे अपना नव वर्ष क्यों मानते है ????? जबकि दिन की शुरुवात तो सूर्योदय से होती है ना की आधी रात से !!!!
क्योंकि पूरे विश्व को भारत ने अपने आधीन रखा था, और भारत में दिन का प्रारंभ ब्रह्म मुहूर्त यानी की 4.30 से 5.30 के करीब मानते हैं, और उस समय इंग्लैण्ड आदि देशों में आधी रात होती है, इसलिए अपने शासकों के दिन के उदयमान से अपनी कदमताल मिला कर रखने के लिए वहाँ आधी रात को तारीख बदलने की परिपाटी चालू हुयी थी, इसके अलावा दूसरा कोई कारण नही है।
जारी ..........
( जुलाई अगस्त की कहानी में एक भारी भूल हो गयी थी, जिसकी ओर श्री अनुराग शर्माजी के ध्यान दिलाने के बाद सुधार कर दिया है। शर्मा जी का आभार )
राजुल का धन्यवाद मान लेना कि वो इन बातों से सहमत हुआ:))
जवाब देंहटाएंमस्त अंदाज में अपने नजरिये की बानगी दिखाई है। अलग अलग सभ्यतायें\देश अपने अपने ज्ञान के मुताबिक इन गणनाओं को करते रहे हैं। जब परिवहन व संचार के साधन बहुत उन्नत नहीं थे तो सबका काम अपने अपने कैलेंडर से चल जाता था। हालात बदलने के साथ समान अंतर्राष्ट्रीय कैलेंडर का महत्व बढ़ा और वरीयता तो विजेता पक्ष का ही अधिकार रहा है।
अपने कैलेंडर का ज्ञान होना आवश्यक है, मजेदार तरीके से हम जैसे भी इन बातों को मोटामोटी समझ सकें, शानदार प्रयास है। ऐसी पोस्ट्स जारी रखना।
शुभकामनायें।
इस पोस्ट पर कमेन्ट करने का दम नहीं है अपना :))
जवाब देंहटाएंसही विषय चुना है, एक अच्छी शुरूआत के लिये बधाई!
जवाब देंहटाएंअगस्त का नामकरण शायद ऑगस्टस सीज़र के नाम पर है। भविष्य पुराण में सन्दर्भ है कि म्लेच्छ भाषा के प्रभाव में नाम बदल जायेंगे, उदाहरणार्थ फाल्गुन को फरवरी कहा जायेगा। ईसा मसीह का जन्म 25 दिसम्बर को नहीं बल्कि 17 जून को हुआ था।
धन्यवाद!
बहुत मनोरंजक शैली में गम्भीर जानकारी प्रस्तुत की। अगले लेखों में सुक्ष्म समय और सबसे बडी समय ईकाई जानना रसप्रद रहेगा।
जवाब देंहटाएंठेठ राजस्थानी शब्द "भापडे" के अर्थ से पाठकों को अवगत करवा देते…
गंभीर चिंतन । अपनी संस्कृति तो बचानी ही होगी।
जवाब देंहटाएंआपका कहना सही है, सप्ताह का भी विश्लेषण कर दें तो तह में भारतीय पद्धति निकलेगी। दुर्भाग्य है कि राजनैतिक परवशता ने हमें नीचा दिखाया। अब तो लोग समझदार हैं।
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छा विश्लेषण किया है आपने. जितनी भी तारीफ की जाय कम ही होगा.
जवाब देंहटाएंइस विषय पर आज का जो इतिहास मान्य है वो किसी पच्छिमी विद्वान ने नहीं
अपितु हमारे ही तथाकथित धर्म निरपेक्ष हिन्दुओं तथा वामपंथीओं के द्वारा ही लिखा और समर्थन किया गया है.
इनके अनुसार ज्योतिष या विज्ञानं से संबंधित जो भी बातें है वो सब पच्छिम की देन है.
मै भी इसी विषय पर लिख रहा था किन्तु इतनी गहराई तक नहीं पहुँच पाया था .
यद्यपि मैं भाग्यवाद से अधिक कर्मवाद पर विश्वास रखता हूँ फिर भी जाने क्यूँ लगता है मेरा तथा आपका विचार काफी हद तक मिलता है.
मेरी भावनाओं को अपना शब्द देने के लिए आपका हार्दिक आभार.
इस चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से हमारा नव संवत्सर शुरू होता है इस नव संवत्सर पर आप सभी को हार्दिक शुभ कामनाएं ....
इतनी मजेदार पोस्ट और वो भी कविताई शैली में आनंद आ गया.
जवाब देंहटाएंइस गडबडझाले के झोले से निकला कैलेण्डर ही ग्रेगोरियन कैलेंडर कहलाता है। पढ़-पढ़कर जानकारी लेने के साथ आनंदित हो रहा हूँ. पढाई जारी है.
जानकारी तो अपनी जगह
जवाब देंहटाएंआपकी संवाद शैली ने मन मोह लिया.
राजुल जैसे मेकाले प्रेमियों के मन को अपने पक्ष में मोड़ लेना केवल तर्कों से ही संभव था.
बधाई आपने हमारे मन से भी काफी धूल हटा दी है.
अमित जी आप और प्रतुल जी एक ही रस्सी पर चलने वाले हैं ......):
जवाब देंहटाएंअब इस रस्सी के लपेटे में हमें क्यों फंसा रहे हैं .....):
नमन है गुरुदेव .....!!
हम लोग कितने महान हैं कि सत्तावन साल पीछे चले गये...
जवाब देंहटाएंआपकी पोस्ट पढ़ कर आनन्द आ गया.बहुत मेहनत की होगी आपने इसे लिखने में.ठीक से समझने के लिये तो बार बार पढनी पड़ेगी यह पोस्ट .बहुत बहुत आभार आपका.
जवाब देंहटाएंअमित जी आपने बहुत बेहतरीन ज्ञानवर्धक जानकारी उपलब्ध करई है.
जवाब देंहटाएंgyanvardhak jankari
जवाब देंहटाएंकाम की जानकारी। इसे ठीक से समझना पड़ेगा।..आभार।
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छा विश्लेषण किया है आपने| जितनी भी तारीफ की जाय कम ही होगा|
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