शुक्रवार, 9 जुलाई 2010

एक काव्य-संवाद सा बन पड़ा है. सोचा आप लोगों के साथ बाँट लूँ .-------- अमित शर्मा

(इसमें जो लाल रंग वाली कविता है वह प्रतुलजी की है, और जो नीले रंग से है वोह मेरी उनकी पोस्ट पर की गयी टिपण्णी है. बातों ही बातों में एक काव्य-संवाद सा बन पड़ा है. सोचा आप लोगों के साथ बाँट लूँ .)

कवि अपनी बी.एड. परीक्षा की तैयारी के कारण काफी दिनों तक अपनी प्रियतमा "मसि"(कलम) से दूर रहा, और जब मिला तो अपने मिलन हर्ष के भाव कुछ यूँ व्यक्त किये -----------------

अरी!
अकेली देख तुम्हें
पाणि-पल्लव हिलने लगते.
उर-तरु से शब्दों के फल
आ-आकर के गिरने लगते.

वधु-नवेली बनकर मेरे

पास आप आती सकुचा.
पहले भय, लज्जा फिर मुख पर
मिलन-भाव सकुचा पहुँचा.

मसी-सहेली!

प्रेम किया करता है कवि तुमसे इतना.
नहीं एक पल रह सकता
तेरा आलिंगन किये बिना.


पर मसि सहेली तो विरह-ज्वाला से दग्ध हुयी बैठी थी, और इस बीच उसने ना जाने क्या क्या सोच लिया था. माननी नायिका का मान मुखर हो उठा और उपालंभ देने लगी-----------
 

एहो प्रियवर! रुष्ट हूँ तुम से जाओ
बितायी कहाँ इतनी घड़ियाँ बतलाओ

निज पाणी-पल्लव की द्रोण-पुटिका में भरकर
उर-तरु के मधुर फल का सार किसे पिलाया

मैं वधु-नवेली मिलन आस में सिकुड़ी सकुचाई
भय मन में क्या उनको नगरवधू कोई भायी

भय शमन करो आस पूर्ण करो करो त्रास निर्वाण
कवि आलिंगन मसि का करो हो अमित निर्माण


कवि बापुरा रंक समान अपनी प्रियतमा से, अपने विरह के कारण बताते हुए मसि सहेली के दग्ध मन को अपनी शीतल वाणी फुहार से शमित करने का उपक्रम करते हुए बोला----------

अरी! रूठ मत मुझसे प्यारी.

भाव नहीं अपना व्यभिचारी.
तुझको ही हर कलम-वपु में
पाया मैंने है संचारी.

एक बेड* शिक्षा-व्यापारी

उनकी परि-इच्छाएँ** कुँवारी
उनके मोह जाल में मैंने
समय दिया था बारी-बारी.

लेकिन तेरी भय बीमारी

अविश्वास करती है भारी.
ह्रदय-वृक्ष के शब्द-फलों का
सार छिपाया सबसे प्यारी.

तुम मेरी स्थूल अर्चना

मैं तेरा हूँ शब्द-पुजारी.
यदा-कदा टंकण से भी मैं
तुझको पूजा करता प्यारी.


कवि के शब्दों से मसि सहेली कुछ नर्म हुयी, पर फिर भी उसकी रोष-अग्नि को शांत होने में समय लगा, पर जब शांत हुयी तो कवि से एकाकार हो गई------------------

अहो! क्या सोचा था क्या पाया
संकल्प एक भी पूरा ना हो पाया

नियति की मारी मैं, चाहा था एकनिष्ठ
पर हाय विधाता तुम भी ना बने विशिष्ठ

प्रथम मिलन बेला में तुमने जब थामा था
नारायण रामचंद्र  मान घनानंद पाया था

पर दोष नहीं तुम्हारा  द्रौपदी सा भाग हमारा

जहाँ इच्छाएं उलूपी,सुभद्रा सम होती सह्दारा

कवि ना हो दुखी यह वितृष्णा नहीं मात्र तृष्णा है
अर्जुन सम सन्नद्ध रहो महारण में राजी कृष्णा है

जो इच्छा-सुभद्रा आदि संग ना होता परिणय तुम्हारा
किस विध से होता  भरत - सम्राट सम उत्कर्ष हमारा

तुम प्रतुलकवि,  तुम विशिष्ठमनी, हम-तुम एकाकार
अमित तो अर्चक कविकलम भारती का करे जयकार 


पर बड़ा ही अजीब है प्रेमी और प्रेमिका का आपसी मान मनोव्वल का दृश्य. नायिका जब अपना रोष शांत कर सामान्य होने लगती है तब तक प्रेमीजी का, पौरुषीय दर्प सर उठा चुका होता है. और फिर नायक गर्म फुफकार अपनी प्रेयसी पर छोड़ने लगता है--------------


ह्रदय के कोमल भावों पर

लगाता हूँ फिर से प्रतिबंध.
कंठ में बाँध रहा हूँ पाश
कहीं न फैले नेह की गंध.

किया जब तक तेरा गुणगान

बढ़ाया तुमने मेरा मान.
उलाहना क्यों देती  हो अब
किया करती  हो क्यों अपमान?

आपसे भी सुन्दर गुणवान

किया करते मुझसे पहचान
दूर कैसे कर दूँ उनको
गाऊँ न क्यों उनका गुणगान?

आप ही न केवल बलवान

रूप, गुण-रत्नों की हो खान.
किया करता सबका सम्मान
सभी लगती  मुझको भगवान्.

पर नायिका ने तो अपने आपको पूर्ण संयत का लिया था, इसलिए अपने अनन्य समर्पण को वक्त कर दिया ----------------

 
जब तक नायिका करती मान व्यवहार
नायक भी रिझाने को हर संभव तैयार

पर अद्भुत मान लीला होत है बीच पिय प्यारी

ज्यो ज्यो नर्म होत कामिनी कान्त होत भारी

मानिनी तो मान तज्यो सर्वस कियो एकाकार

तौ कंत पर गुमान चड़त है बरजत बारम्बार

प्रियवर यह तो मान हो श्रृंगार नायिका को है

याही निज अपमान ना मानो नेह हमारो है

भंत यह पंथ है क्लिष्ट बड़ो, तौ बिन ना गुजारो है

अमित सखियन संग रहूँ पड़ी जो साथ तुम्हारो है 




31 टिप्‍पणियां:

  1. पहले भी आनंदित हुआ और अब यह दुहरा आनंद है !

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  2. कमाल की प्रतिभा है आपमें अमित ! आज के समय में आपके गुण दुर्लभ हैं ! हार्दिक शुभकामनायें !

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  3. भई वाह क्या बात है. बेहतरीन कवितामय संवाद.

    मैं कविता तो कर पता नहीं हूँ पर दो लाइने चुरा कर ये कहूँगा....

    दो सितारों का मिलन है ये अबकी बार.......

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  4. हालांकि कविता इत्यादि की तो हमें कुछ समझ नहीं है..लेकिन आपकी प्रतिभा देखकर जरूर आपकी तारीफ करने का मन कर रहा है...आप वाकई में गुणी आदमी है.

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  5. अरे भैया अमित अब तो सही में आपसे जलन होने लगी है. साहित्य का कोई रंग नहीं छोड़ रहे हो और हर रंग में सारे रसों को उधेल रहे हो. और अगर डॉ. उमाशंकर चतुर्वेदी कंचन जैसे विद्वान् से आप तारीफ पगाये हो तो भैया समझ लो की हमारी जलन का तापमान क्या हो रहा है

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  6. हम तो अब उम्मीद कर रहे हैं कि संगीतकार जोड़ियों की तरह कवि-द्वय अमित-प्रतुल की जोड़ी भी धमाल मचाने को तैयार है।
    आप दोनों ही प्रतिभा के धनी हैं।
    अभिभूत कर दिया है आप दोनों ने, बधाई और आभार।

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  7. क्या कहें सब कुछ तो बड़े लोगों ने कह दिया, वास्तव में अमित-प्रतुल की जोड़ी ने तो कहर ही ढ़ा दिया है, सुबह से कई बार पढ़ चुका हूँ और कमेन्ट करने को शब्द ही नहीं मिल रहे है , गज़ब,शानदार

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  8. आप दोनों ही प्रतिभा के धनी हैं।
    अभिभूत कर दिया है आप दोनों ने, बधाई और आभार।

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  9. आप दोनों ही प्रतिभा के धनी हैं।
    अभिभूत कर दिया है आप दोनों ने, बधाई और आभार।

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  10. वाह उस्ताद वाह! नहीं नहीं वाह उस्तादों वाह !
    कमाल का काव्य बना है आप दोनों का मज़ा ही आ गया, स्कूल में पड़े रीतिकाव्य की मिति यादें फिर से ताज़ा हो गयी

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  11. अरे! आप तो कहानी गढ़ दिए. मैं तो आप के ब्लॉग पर भगवत [धर्म] कथा के सुनने के लोभवश आता था. आपने तो वैयक्तिगत संवादों में ही रसमय कथा ढूँढ ली. वाह अमित पुजारी जी आप धन्य हैं. मैं नतमस्तक हुआ. आपके ब्लॉग पर आकर सभी बड़ी साहित्यिक हस्तियों के एकसाथ दर्शन हो जाते हैं. सभी एक-से-एक धुरंधर जिनके ब्लॉग पर जाकर एक शब्द आलोचना का नहीं सूझता. प्रशंसा करने में कंजूस रहा हूँ. जैसे प्रशंसा करके मेरी पूँजी कुछ कम हो जायेगी - ये अवचेतन में भय बना रहता है.

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  12. बेहद सुन्दर काव्य संवाद है अमित भाई , हम सभी के साथ बाँटने के लिए आपका आभार

    जितनी प्रशंसा की जाये कम है

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  13. Part 1of 4

    बहुत दिनों से एक विचार मेरे मन की गहराइयों में हिलोरे खा रहा था लेकिन उसे मूर्त रूप प्रदान करने के लिए आप सबका सहयोग चाहिए इसलिए उसे आप सबके समक्ष रखने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहा था की पता नहीं कहीं वो असफल और अस्वीकार ना हो जाए लेकिन तभी ये विचार भी आया की बिना बताये तो स्वीकार होने से रहा इसलिए बताना ही सही होगा .

    दरअसल जब भी मैं इस देश की गलत व्यवस्था के बारे में कोई भी लेख पढता हूँ, स्वयं लिखता हूँ अथवा किसी से भी चर्चा होती है तो एक अफ़सोस मन में होता है बार-2 की सिर्फ इसके विरुद्ध बोल देने से या लिख देने से क्या ये गलत व्यवस्थाएं हट जायेंगी , अगर ऐसा होना होता तो कब का हो चुका होता , हम में से हर कोई वर्तमान भ्रष्ट system से दुखी है लेकिन कोई भी इससे बेहतर सिस्टम मतलब की इसका बेहतर विकल्प नहीं सुझाता ,बस आलोचना आलोचना और आलोचना और हमारा काम ख़त्म , फिर किया क्या जाए ,क्या राजनीति ज्वाइन कर ली जाए इसे ठीक करने के लिए ,इस पर आप में से ज़्यादातर का reaction होगा राजनीति !!! ना बाबा ना !(वैसे ही प्रकाश झा की फिल्म राजनीति ने जान का डर पैदा कर दिया है राजनीति में कदम रखने वालों के लिए ) वो तो बहुत बुरी जगहं है और बुरे लोगों के लिए ही बनी है , उसमें जाकर तो अच्छे लोग भी बुरे बन जाते हैं आदि आदि ,इस पर मेरा reaction कुछ और है आपको बाद में बताऊंगा लेकिन फिलहाल तो मैं आपको ऐसा कुछ भी करने को नहीं कह रहा हूँ जिसे की आप अपनी पारिवारिक या फिर अन्य किसी मजबूरी की वजह से ना कर पाएं, मैं सिर्फ अब केवल आलोचना करने की ब्लॉग्गिंग करने से एक step और आगे जाने की बात कर रहा हूँ आप सबसे

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  14. आप सबसे यही सहयोग चाहिए की आप सब इसके मेम्बर बनें,इसे follow करें और प्रत्येक प्रस्ताव के हक में या फिर उसके विरोध में अपने तर्क प्रस्तुत करें और अपना vote दें
    जो भी लोग इसके member बनेंगे केवल वे ही इस पर अपना प्रस्ताव पोस्ट के रूप में publish कर सकते हैं जबकि वोटिंग members और followers दोनों के द्वारा की जा सकती है . आप सबको एक बात और बताना चाहूँगा की किसी भी common blog में members अधिक से अधिक सिर्फ 100 व्यक्ति ही बन सकते हैं ,हाँ followers कितने भी बन सकते हैं
    तो ये था वो सहयोग जो की मुझे आपसे चाहिए ,
    मैं ये बिलकुल नहीं कह रहा हूँ की इसके बदले आप अपने-२ ब्लोग्स लिखना छोड़ दें और सिर्फ इस पर ही अपनी पोस्ट डालें , अपने-2 ब्लोग्स लिखना आप बिलकुल जारी रखें , मैं तो सिर्फ आपसे आपका थोडा सा समय और बौद्धिक शक्ति मांग रहा हूँ हमारे देश के लिए एक बेहतर सिस्टम और न्याय व्यवस्था का खाका तैयार करने के लिए


    1. डॉ. अनवर जमाल जी
    2. सुरेश चिपलूनकर जी
    3. सतीश सक्सेना जी
    4. डॉ .अयाज़ अहमद जी
    5. प्रवीण शाह जी
    6. शाहनवाज़ भाई
    7. जीशान जैदी जी
    8. पी.सी.गोदियाल जी
    9. जय कुमार झा जी
    10.मोहम्मद उमर कैरान्वी जी
    11.असलम कासमी जी
    12.राजीव तनेजा जी
    13.देव सूफी राम कुमार बंसल जी
    14.साजिद भाई
    15.महफूज़ अली जी
    16.नवीन प्रकाश जी
    17.रवि रतलामी जी
    18.फिरदौस खान जी
    19.दिव्या जी
    20.राजेंद्र जी
    21.गौरव अग्रवाल जी
    22.अमित शर्मा जी
    23.तारकेश्वर गिरी जी

    ( और भी कोई नाम अगर हो ओर मैं भूल गया हों तो मुझे please शमां करें ओर याद दिलाएं )

    मैं इस ब्लॉग जगत में नया हूँ और अभी सिर्फ इन bloggers को ही ठीक तरह से जानता हूँ ,हालांकि इनमें से भी बहुत से ऐसे होंगे जो की मुझे अच्छे से नहीं जानते लेकिन फिर भी मैं इन सबके पास अपना ये common blog का प्रस्ताव भेजूंगा
    common blog शुरू करने के लिए और आपको उसका member बनाने के लिए मुझे आप सबकी e -mail id चाहिए जिसे की ब्लॉग की settings में डालने के बाद आपकी e -mail ids पर इस common blog के member बनने सम्बन्धी एक verification message आएगा जिसे की yes करते ही आप इसके member बन जायेंगे
    प्रत्येक व्यक्ति member बनने के बाद इसका follower भी अवश्य बने ताकि किसी member के अपना प्रस्ताव इस पर डालते ही वो सभी members तक blog update के through पहुँच जाए ,अपनी हाँ अथवा ना बताने के लिए मुझे please जल्दी से जल्दी मेरी e -mail id पर मेल करें

    mahakbhawani@gmail.com

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  15. हमारे इस common blog में प्रत्येक प्रस्ताव एक हफ्ते के अंदर अंदर पास किया जायेगा , Monday को मैं या आप में से इच्छुक व्यक्ति अपना प्रस्ताव पोस्ट के रूप में डाले ,Thursday तक उसके Plus और Minus points पर debate होगी, Friday को वोटिंग होगी और फिर Satuday को votes की गणना और प्रस्ताव को पास या फिर reject किया जाएगा वोटिंग के जरिये आये हुए नतीजों से

    आप सब गणमान्य ब्लोग्गेर्स को अगर लगता है की ऐसे कई और ब्लोग्गेर्स हैं जिनके बौधिक कौशल और तर्कों की हमारे common ब्लॉग को बहुत आवश्यकता पड़ेगी तो मुझे उनका नाम और उनका ब्लॉग adress भी अवश्य मेल करें ,मैं इस प्रस्ताव को उनके पास भी अवश्य भेजूंगा .

    तो इसलिए आप सबसे एक बार फिर निवेदन है इसमें सहयोग करने के लिए ताकि आलोचना से आगे भी कुछ किया जा सके जो की हम सबको और ज्यादा आत्मिक शान्ति प्रदान करे
    इन्ही शब्दों के साथ विदा लेता हूँ

    जय हिंद

    महक

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  16. कोई भी स्त्री मेरे समान सौभाग्यशालिनी एवं उत्तम पुत्र वाली नहीं है। मेरे समान कोई भी स्त्री न तो पुरुष को अपना शरीर अर्पित करने वाली है और न संभोग के समय जाँघों को फैलाने वाली है।(ऋ. १०/८६/६) ऋग्वेद-डॉ. गंगा सहाय शर्मा, संस्कृत साहित्य प्रकाशन, नई दिल्ली, दूसरा संस्करण १९८५)

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  17. यार आप भी कवि हैं। आपका पांडित्य तो प्रशंसा योग्य है। कविता के प्रत्युत्तर में कविता। हर रंग को दिखाया है आपने। कालिदास तो नहीं बनने जा रहे। बन जाइए।

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  18. अमित बहुत अच्‍छा लगा, बस ऐसे ही लिखते रहो।

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  19. अति मधुर... रसयुक्त, आप अपने नाम समान काव्य रचते हैं साहब.
    बहुत अच्छा लगा यहाँ तक आना.

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  20. "हो सकता है मैं आपके विचारों से सहमत ना हो पाऊं फिर भी विचार प्रकट करने के आपके अधिकारों की रक्षा करूँगा" --- वाल्तेयर


    जितनी अच्छी आपकी लेखनी है उससे कहीं अच्छे हैं आपके विचार...साधुवाद!

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जब आपके विचार जानने के लिए टिपण्णी बॉक्स रखा है, तो मैं कौन होता हूँ आपको रोकने और आपके लिखे को मिटाने वाला !!!!! ................ खूब जी भर कर पोस्टों से सहमती,असहमति टिपियायिये :)