आज रात को मुझे गजब का सपना आया। वैसे तो सपने मुझे कभी कभी ही आते है, और जो आते है उन्हें मैं भूल जाता हूँ। पर यह सपना अभी तक भी स्मृति पटल पे बिलकुल ताजा बना हुआ है। और हो भी क्यों नहीं सपना ही ऐसा था। रात को जब गहरी नींद में था तो क्या देखता हूँ की एक महान विभूति बिलकुल चाँद की मानिंद उज्जवल वस्त्र पहिने,पूर्णिमा के चन्द्रमा की भांति चमकदार चेहरा,विशेष गरिमामय व्यक्तित्व लिए मेरे सामने प्रकट हुए। मैं उन्हें पहचान नहीं पाया पर उनके गरिमामय व्यक्तित्व से सम्मोहित हुआ, उन्हें परमेश्वर का अंश जानकर उनके सामने दंडवत हो गया। मैंने विस्मित होते हुए पूछा की आप कौन है और किस प्रकार कृपा कर मुझे दर्शन दिए है। उन्होंने मुझे उठाया और कहा की मै तेरी सोच पे अपनी मोहर लगाने आया हूँ। मैंने कहा की मै कुछ समझ नहीं पा रहा हूँ। तब उन्होंने निर्मल मुस्कराहट के साथ मुझसे कहा की "मैं उस परवरदिगार का रसूल हजरत मुहम्मद हूँ , और कुरआन को लेकर तेरे मन में जो विचार उत्पन्न हुए है उन पर अपनी मुहर लगता हूँ ". इतना कहते ही वह दिव्य स्वरुप अन्तर्निहित हो गया और मेरी नींद खुल गयी।
अब आप जानना चाहते होंगे की श्रीमोहम्मद साहब ने मेरे कुरआन विषयक किन विचारों पे अपनी मोहर लगायी थी. (चाहे सपने में ही लगायी हो,और सपने दिनभर के विचारों की परिणिति ही क्यों ना हो)
तो बंधुओ गौर से पढिये मेरे कुरआन विषयक विचार और सोचकर मुझे बताइए की क्या यह भी हो सकता है ?,या यही हुआ है ? ---
मुझे शक है की वर्तमान में जिस किताब को पवित्र कुरआन कहा जाता है, वही असल कुरान है, जिसे परमेश्वर ने श्रीमोहम्मद साहब पे नाजिल किया था। क्योंकि श्रीमोहम्मद साहब की जीवनी पढते हुए उल्लेख मिलता है की श्रीमोहम्मद साहब के जनाजे में काफी कम लोग शामिल हुए थे। क्योंकि उनके अनुयायी खलीफा पद की लड़ाई में उलझ गए थे। अब बताइए की जो अनुयायी आज तक उनके ऊपर शान्ति नाज़िल होने की प्रार्थना करते है, वो उनकी पार्थिव देह को भी शांति से सुपुर्दे-खाक नहीं कर सके।
तो जो लोग अपने मसीहा की उनकी पार्थिव देह को भी उचित सम्मान नहीं दे पाए और सत्ता के लिए लड़ने लगे हों, क्या उन्होंने सत्ता के लिए श्रीमोहम्मद साहब की शिक्षाओं की हत्या करके कुरआन में सत्ता प्राप्ति की सहायक आयतों का समावेश नहीं किया होगा।
इस तथ्य की पुष्टि इस्लाम के लगभग सौ से ज्यादा पंथों द्वारा एक दूसरे को फ़र्ज़ी इस्लाम वाला घोषित करने, एक दूसरे को समाप्त करने, एक दूसरे की मस्जिदों को जिन्हे खुदा का घर कहा जाता हैं को ढहाने आदि से होती हैं।
आमतौर पर लोग मुसलमानों के दो ही फिरकों शिया और सुन्नी के बारे में ही सुनते रहते है ,लेकिन इनमे भी कई फिरके है। इसके आलावा कुछ ऐसे भी फिरके है ,जो इन दौनों से अलग है। इन सभी के विचारों और मान्यताओं में इतना विरोध है की यह एक दूसरे को काफ़िर तक कह देते हैं, और इनकी मस्जिदें जला देते है। और लोगों को क़त्ल कर देते है .शिया लोग तो मुहर्रम के समय सुन्नियों के खलीफाओं ,सहबियों ,और मुहम्मद की पत्नियों आयशा और हफ्शा को खुले आम गलियां देते है।
सुन्नियों के फिरके -हनफी ,शाफई,मलिकी ,हम्बली ,सूफी ,वहाबी ,देवबंदी ,बरेलवी ,सलफी,अहले हदीस .आदि -
शियाओं के फिरके -इशना अशरी ,जाफरी ,जैदी ,इस्माइली ,बोहरा ,दाऊदी ,खोजा ,द्रुज आदि
अन्य फिरके -अहमदिया ,कादियानी ,खारजी ,कुर्द ,और बहाई आदि
इन सब में इतना अंतर है की ,यह एक दुसरे की मस्जिदों में नमाज नहीं पढ़ते, और एक दुसरे की हदीसों को मानते है .सबके नमाज पढ़ने का तरीका, अजान सब अलग है इनमे एकता असंभव है।
श्रीमोहम्मद साहब ने तत्कालीन अरब में फैली बर्बर कबीलाई परम्पराओं को तोड़ते हुए शुद्ध वैदिक धर्म की महिमा का पुनर्स्थापन किया था। जिसे उनके अनुयायियों ने अपनी वासनाओं,और हैवानियत की राह में रोड़ा मानते हुए, पवित्र कुरआन में बर्बर और अनर्गल आयातों का समावेश कर दिया, जिससे की उन्हें खलीफा पद के रूप में कौम की बादशाहत, और लुटेरों के रूप में दुनिया की बेशुमार दौलत प्राप्त हो सकें।
तो यह है पवित्र कुरआन को लेकर मेरी चिंता और मेरे सपने में पधार कर श्रीमोहम्मद साहब द्वारा इसकी पुष्टि करने का हाल।
वैसे सपना तो सपना हैं, लेकिन जिज्ञासा का समाधान तो होना चाहिये, क्यों एक किताब, एक खुदा और एक रसूल को मानने वाले आपस में मारकाट मचाये हुए हैं। वहीँ दूसरी और असंख्य शास्त्रों, एक ब्रह्म के असंख्य रूपों और असंख्य गुरुओं को मानने वाले आपस में भी एक होकर रहतें हैं और सम्पूर्ण विश्व के लिए भी शान्ति की प्रार्थना करतें हैं।
अब आप जानना चाहते होंगे की श्रीमोहम्मद साहब ने मेरे कुरआन विषयक किन विचारों पे अपनी मोहर लगायी थी. (चाहे सपने में ही लगायी हो,और सपने दिनभर के विचारों की परिणिति ही क्यों ना हो)
तो बंधुओ गौर से पढिये मेरे कुरआन विषयक विचार और सोचकर मुझे बताइए की क्या यह भी हो सकता है ?,या यही हुआ है ? ---
मुझे शक है की वर्तमान में जिस किताब को पवित्र कुरआन कहा जाता है, वही असल कुरान है, जिसे परमेश्वर ने श्रीमोहम्मद साहब पे नाजिल किया था। क्योंकि श्रीमोहम्मद साहब की जीवनी पढते हुए उल्लेख मिलता है की श्रीमोहम्मद साहब के जनाजे में काफी कम लोग शामिल हुए थे। क्योंकि उनके अनुयायी खलीफा पद की लड़ाई में उलझ गए थे। अब बताइए की जो अनुयायी आज तक उनके ऊपर शान्ति नाज़िल होने की प्रार्थना करते है, वो उनकी पार्थिव देह को भी शांति से सुपुर्दे-खाक नहीं कर सके।
तो जो लोग अपने मसीहा की उनकी पार्थिव देह को भी उचित सम्मान नहीं दे पाए और सत्ता के लिए लड़ने लगे हों, क्या उन्होंने सत्ता के लिए श्रीमोहम्मद साहब की शिक्षाओं की हत्या करके कुरआन में सत्ता प्राप्ति की सहायक आयतों का समावेश नहीं किया होगा।
इस तथ्य की पुष्टि इस्लाम के लगभग सौ से ज्यादा पंथों द्वारा एक दूसरे को फ़र्ज़ी इस्लाम वाला घोषित करने, एक दूसरे को समाप्त करने, एक दूसरे की मस्जिदों को जिन्हे खुदा का घर कहा जाता हैं को ढहाने आदि से होती हैं।
आमतौर पर लोग मुसलमानों के दो ही फिरकों शिया और सुन्नी के बारे में ही सुनते रहते है ,लेकिन इनमे भी कई फिरके है। इसके आलावा कुछ ऐसे भी फिरके है ,जो इन दौनों से अलग है। इन सभी के विचारों और मान्यताओं में इतना विरोध है की यह एक दूसरे को काफ़िर तक कह देते हैं, और इनकी मस्जिदें जला देते है। और लोगों को क़त्ल कर देते है .शिया लोग तो मुहर्रम के समय सुन्नियों के खलीफाओं ,सहबियों ,और मुहम्मद की पत्नियों आयशा और हफ्शा को खुले आम गलियां देते है।
सुन्नियों के फिरके -हनफी ,शाफई,मलिकी ,हम्बली ,सूफी ,वहाबी ,देवबंदी ,बरेलवी ,सलफी,अहले हदीस .आदि -
शियाओं के फिरके -इशना अशरी ,जाफरी ,जैदी ,इस्माइली ,बोहरा ,दाऊदी ,खोजा ,द्रुज आदि
अन्य फिरके -अहमदिया ,कादियानी ,खारजी ,कुर्द ,और बहाई आदि
इन सब में इतना अंतर है की ,यह एक दुसरे की मस्जिदों में नमाज नहीं पढ़ते, और एक दुसरे की हदीसों को मानते है .सबके नमाज पढ़ने का तरीका, अजान सब अलग है इनमे एकता असंभव है।
श्रीमोहम्मद साहब ने तत्कालीन अरब में फैली बर्बर कबीलाई परम्पराओं को तोड़ते हुए शुद्ध वैदिक धर्म की महिमा का पुनर्स्थापन किया था। जिसे उनके अनुयायियों ने अपनी वासनाओं,और हैवानियत की राह में रोड़ा मानते हुए, पवित्र कुरआन में बर्बर और अनर्गल आयातों का समावेश कर दिया, जिससे की उन्हें खलीफा पद के रूप में कौम की बादशाहत, और लुटेरों के रूप में दुनिया की बेशुमार दौलत प्राप्त हो सकें।
तो यह है पवित्र कुरआन को लेकर मेरी चिंता और मेरे सपने में पधार कर श्रीमोहम्मद साहब द्वारा इसकी पुष्टि करने का हाल।
वैसे सपना तो सपना हैं, लेकिन जिज्ञासा का समाधान तो होना चाहिये, क्यों एक किताब, एक खुदा और एक रसूल को मानने वाले आपस में मारकाट मचाये हुए हैं। वहीँ दूसरी और असंख्य शास्त्रों, एक ब्रह्म के असंख्य रूपों और असंख्य गुरुओं को मानने वाले आपस में भी एक होकर रहतें हैं और सम्पूर्ण विश्व के लिए भी शान्ति की प्रार्थना करतें हैं।
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