शुक्रवार, 1 अक्तूबर 2010

जयति कोशलाधीश कल्याण कोशलसुता, कुशल कैवल्य - फल चारु चारी ।



जयति सच्चिदव्यापकानंद परब्रह्म - पद विग्रह - व्यक्त लीलावतारी ।
विकल ब्रह्मादि, सुर, सिद्ध,संकोचवश,विमल गुण - गेह नर -देह -धारी ॥१॥
जयति कोशलाधीश कल्याण कोशलसुता, कुशल कैवल्य - फल चारु चारी ।
वेद - बोधित करम - धरम - धरनीधेनु, विप्र - सेवक साधु - मोदकारी ॥२॥
जयति ऋषि - मखपाल, शमन - सज्जन - साल, शापवश मुनिवधू - पापहारी ।
भंजि भवचाप, दलि दाप भूपावली, सहित भृगुनाथ नतमाथ भारी ॥३॥
जयति धारमिक - धुर, धीर रघुवीर गुर - मातु - पितु - बंधु - वचनानुसारी ।
चित्रकूटाद्रि विन्ध्याद्रि दंडकविपिन, धन्यकृत पुन्यकानन - विहारी ॥४॥
जयति पाकारिसुत - काक - करतूति - फलदानि खनि गर्त्त गोपित विराधा ।
दिव्य देवी वेश देखि लखि निशिचरी जनु विडंबित करी विश्वबाधा ॥५॥
जयति खर - त्रिशिर - दूषण चतुर्दश - सहस - सुभट - मारीच - संहारकर्ता ।
गृध्र - शबरी - भक्ति - विवश करुणासिंधु, चरित निरुपाधि, त्रिविधार्तिहर्त्ता ॥६॥
जयति मद - अंध कुकबंध बधि, बालि बलशालि बधि, करन सुग्रीव राजा ।
सुभट मर्कट - भालु - कटक - संघट - सजत, नमत पद रावणानुज निवाजा ॥७॥
जयति पाथोधि - कृत - सेतु कौतुक हेतु, काल - मन - अगम लई ललकि लंका ।
सकुल, सानुज, सदल दलित दशकंठ रण, लोक - लोकप किये रहित - शंका ॥८॥
जयति सौमित्रि - सीता - सचिव - सहित चले पुष्पकारुढ़ निज राजधानी ।
दासतुलसी मुदित अवधवासी सकल, राम भे भूप वैदेहि रानी ॥९॥

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भावार्थः-- श्रीरामचन्द्रजीकी जय हो । आप सत, चेतन, व्यापक आनन्दस्वरुप परब्रह्म हैं । आप लीला करनेके लिये ही अव्यक्तसे व्यक्तरुपमें प्रकट हुए हैं । जब ब्रह्मा आदि सब देवता और सिद्धगण दानवोंके अत्याचारसे व्याकुल हो गये, तब उनके संकोचसे आपने निर्मल गुणसम्पन्न नर - शरीर धारण किया ॥१॥
आपकी जय हो - आप कल्याणरुप कोशलनरेश दशरथजी और कल्याणस्वरुपिणी महारानी कौशल्याके यहाँ चार भाइयोंके रुपमें ( सालोक्य, सामीप्य, सारुप्य और सायुज्य ) मोक्षके सुन्दर चार फल उत्पन्न हुए । आपने वेदोक्त यज्ञादि कर्म, धर्म, पृथ्वी, गौ, ब्राह्मण, भक्त और साधुओं को आनन्द दिया ॥२॥
आपकी जय हो - आपने ( राक्षसोंको मारकर ) विश्वामित्रजीके यज्ञकी रक्षा की, सज्जनोंको सतानेवाले दुष्टोंका दलन किया, शापके कारण पाषाणरुप हुई गौतम - पत्नी अहल्याके पापोंको हर लिया, शिवजीके धनुषको तोड़कर राजाओंके दलका दर्प चूर्ण किया और बल - वीर्य - विजयके मदसे ऊँचा रहनेवाला परशुरामजीका मस्तक झुका दिया ॥३॥
आपकी जय हो - आप धर्मके भारको धारण करनेमें बड़े धीर रघुवंशमें असाधारण वीर हैं । आपने गुरु, माता, पिता और भाईके वचन मानकर चित्रकूट, विन्ध्याचल और दण्डक वनको, उन पवित्र वनोंमें विहार करके, कृतकृत्य कर दिया ॥४॥
श्रीरामचन्द्रजीकी जय हो - जिन्होंने इन्द्रके पुत्र काकरुप बने हुए कपटी जयन्तको उसकी करनीका उचित फल दिया, जिन्होंने गङ्ढा खोदकर विराध दैत्यको उसमें गाड़ दिया, दिव्य देवकन्याका रुप धरकर आयी हुई राक्षसी शूर्पणखाको पहचानकर उसके नाक - कान कटवाकर मानो संसारभरके सुखमें बाधा पहुँचानेवाले रावणका तिरस्कार किया ॥५॥
श्रीरामचन्द्रजीकी जय हो - आप खर, त्रिशिरा, दूषण, उनकी चौदह हजार सेना और मारीचको मारनेवाले हैं, मांसभोजी गृध्र जटायु और नीच जातिकी स्त्री शबरीके प्रेमके वश हो उनका उद्धार करनेवाले, करुणाके समुद्र, निष्कलंक चरित्रवाले और त्रिविध तापोंका हरण करनेवाले हैं ॥६॥
श्रीरामचन्द्रजीकी जय हो - जिन्होंने दुष्ट, मदान्ध कबन्धका वध किया, महाबलवान् बालिको मारकर सुग्रीवको राजा बनाया, बड़े - बड़े वीर बंदर तथा रीछोंकी सेनाको एकत्र करके उनको व्यूहाकार सजाया और शरणागत विभीषणको मुक्ति और भक्ति देकर निहाल कर दिया ॥७॥
श्रीरामचन्द्रजीकी जय हो - जिन्होंने खेलके लिये ही समुद्रपर पुल बाँध लिया, कालके मनको भी अगम लंकाको उमंगसे ही लपक लिया और कुलसहित, भाईसहित और सारी सेनासहित रावणका रणमें नाश करके तीनों लोकों और इन्द्र, कुबेरादि लोकपालोंको निर्भय कर दिया ॥८॥
श्रीरामचन्द्रजीकी जय हो - जो लंका - विजयकर लक्ष्मणजी, जानकीजी और सुग्रीव, हनुमानादि मन्त्रियोंसहित पुष्पक विमानपर चढ़कर अपनी राजधानी अयोध्याको चले । तुलसीदास गाता है कि वहाँ पहुँचकर श्रीरामके महाराजा और श्रीसीताजीके महारानी होनेपर समस्त अवधवासी परम प्रसन्न हो गये ॥९॥

41 टिप्‍पणियां:

  1. श्री राम स्तुति बड़े वर्षों बाद देखने को मिली ! आपका आभार अमित !

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  2. प्रिय बंधुवर अमित जी

    अलौकिक आनन्दप्रदायक इस पोस्ट के लिए आभार !


    शुभकामनाओं सहित
    - राजेन्द्र स्वर्णकार

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  3. hame yeh dekh kar badi khushi hui ki aaj bhi hamare desh me ram bhagto aur desh bhagto ki kami nahi hai,aur pura visswas hai ki aap logo ke hote ram ke desh me unke bhagto ki kabhi nahi hogi. kripya apna pryash jari rakhe.

    jai hind.jai ram

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  4. .

    आपकी जय हो - आप कल्याणरुप कोशलनरेश दशरथजी और कल्याणस्वरुपिणी महारानी कौशल्याके यहाँ चार भाइयोंके रुपमें ( सालोक्य, सामीप्य, सारुप्य और सायुज्य ) मोक्षके सुन्दर चार फल उत्पन्न हुए । आपने वेदोक्त यज्ञादि कर्म, धर्म, पृथ्वी, गौ, ब्राह्मण, भक्त और साधुओं को आनन्द दिया ॥२॥

    जय सिया-राम ।

    ..

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  5. वाह्! प्रभु श्री राम के स्तुतिवन्दन से आपने तो आज का दिन ही सार्थक कर दिया...जय जय राम!

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  6. मैं भी यही दोहराता हूँ
    अमित भाई ,
    "प्रभु श्री राम के स्तुतिवन्दन से आपने तो आज का दिन ही सार्थक कर दिया...जय जय राम!"

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  7. मैं भी एक बात बोलूँगा .....

    मुझे लगता है उन्हें "केरेक्टर सर्टिफिकेट" की भी जरूरत महसूस होती होगी इस दुनिया के लोगों में उनके बारे फैले भ्रम और अफवाहों को देखते हुए :))

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  8. अमित भाई राम को सब मानते है, लेकिन उन की बात कितने लोग मानते है?

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  9. @भाटिय़ा जी
    मुझे ऐसे प्रश्न का जवाब देने में आनन्द आता है इसलिए ...

    मानना तो दूसरी स्टेप है पहली है जानना और समझना
    और उसके लिए भी गुरु सही हो तब तो हर घर में राम होगा
    लोग जाने बिना मानते हैं इसलिए उनकी बात नहीं मानते हैं
    बाकी तो अमित भाई बताएं जो सही है

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  10. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  11. ॰मुझे लगता है उन्हें "केरेक्टर सर्टिफिकेट" की भी जरूरत महसूस होती होगी इस दुनिया के लोगों में उनके बारे फैले भ्रम और अफवाहों को देखते हुए :))
    गौरव जी,

    जैसी मति होती है, वैसा ही चिंतन होता है।

    धोबियों की हम क्यों परवाह करें, राम नें भी धोबी की परवाह नहिं की थी। अपने चरित्र प्रकाश का चिंतन किया था।

    चिंतन जिसका निम्न हो, उसका निम्न नशीब।
    दुनिया का समझो उसे, सबसे बडा गरीब ॥

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  12. @धोबियों की हम क्यों परवाह करें, राम नें भी धोबी की परवाह नहिं की थी।

    @ सुज्ञ जी

    आपकी बात से सहमत...... पर लगता है अब बात के नए आस्पेक्ट से देखने होंगे.. ये है पब्लिक इमेज का चक्कर

    लोगों को दोनों पक्ष पता ही नहीं है तो चुनने के लिए विकल्प कहाँ रहा ??

    वो तो उपलब्ध विकल्प ही चुनेंगे,इसलिए भक्ति सिर्फ उपरी हो रही है इससे मन का विशवास में मजबूती नहीं आती
    भक्त खुद मौन धारण कर लेते हैं प्रश्न पूछने पर :))

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  13. हां सही कहा गौरव जी,

    पहला स्टेप 'मानना' अर्थार्त दृष्टि 'दर्शन'
    दूसरा स्टेप 'जानना' अर्थार्त ज्ञान
    तीसरा स्टेप है उपास्य बनाना अर्थार्त गुणानुकरण का प्रयास।

    ज्ञान के बाद ही हमें हेय,ज्ञेय,उपादेय का विवेक प्राप्त होता है।

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  14. एक टिप्पणी आपने प्रवीण शाह जी के ब्लोग पर छोडी थी,आपके व मेरे प्रश्नों पर प्रवीण शाह जी की प्रतिक्रिया न आई। लेकीन उसके एक अंश के बारे में कुछ ज्यादा जानने की अभिलाषा है……

    धर्म वो है जिसके आदेशानुसार की गयी हिंसा भी स्वीकार की जाती है क्योंकि उससे धार्मिक[ऊपर दी डेफिनेशन के अनुसार ] मानवों की रक्षा या उन तक सन्देश पहुँचता है

    क्या स्पष्ठ भाव है कृपया ज्ञानदान करें

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  15. @सुज्ञ जी
    ये तो सिंपल है :)
    मैंने वहां धर्म की परिभाषा ये देनी चाही है

    "एक छोटी सी परिभाषा दे रहा हूँ [एक नजरिया है बस ]
    मानवता है धर्म [सबसे आसान , सबसे स्पष्ट , सबसे आधुनिक , अजर , अमर , भाषाओँ के परे ]
    अगर कोई पीड़ित रोता दिखता है और आपको उससे सुख में बाधा पहुँचती है तो मेरी नज़रों में आप धार्मिक हैं "


    जैसे अर्जुन, कृष्ण, राम आदि को करना पड़ा था
    अब बेसिकली ये किसी धर्म विशेष[जो आज माने जाते हैं ] का बचाव नहीं कर रह थे , ये मानवता को ही सन्देश दे रहे थे
    जैसे ऋषि मुनि [जो शारीरिक रूप से बहुत ताकतवर नहीं होते ] यज्ञ आदि कर रहे हैं और वहां बलवान राक्षस आकर बेवजह उन्हें परेशान करें तो राम को तो हिंसा करनी पड़ेगी ना
    ये भी है मानवता के लिए .... न की धर्म विशेष के लिए

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  16. @कृपया ज्ञानदान करें
    @ सुज्ञ जी
    काहे शर्मिंदा करते हो :)

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  17. प्रवीण जी भी आते ही होंगे
    वो अक्सर इसी समय टिप्पणियों के उत्तर देते हैं ... तेजी से :)
    उनका भी स्टाइल जोरदार है .. सच में :))

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  18. शरणागतवत्सल, भक्तवत्सल राम की जय हो।

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  19. आज चर्चा निकल ही पढ़ी है तो, स्तुति-गान आनंद के साथ साथ चर्चा रस भी मिलेगा जिसको सुग्यजी और भाई गौरव परिणिति तक पहुंचाएंगे ही. आज तो आनंद ही आनंद है.
    एक बात और मैं ज्ञानीजनो से जानना चाहता हूँ की ASI ने अयोध्या पर जो रिपोर्ट तैयार की थी वोह कहाँ और कैसे मिल सकती है................... यदि आप इसे प्राप्त करने का मार्गदर्शन का सकें तो आभारी रहूँगा

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  20. @ अमित भाई
    चिपलूनकर जी से कोई जानकारी मिले शायद

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  21. ..... ये उनके अपडेटेड ब्लॉग को देखकर लगाया अंदाजा भर है

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  22. अमित जी बहुत बढ़िया. सच में आनंद आया.

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  23. प्रभु श्री राम एवं ब्याज में कवि दास तुलसी की स्मरण-सेवा करने तथा ब्लाग दर्शनार्थियों को कराने हेतु साधुवाद|
    कौशलेश भगवान श्री राम...

    "शुचि जीवन-मूल्यों के मापक |
    हे पूर्ण-पुरुष ! अग-जग-व्यापक |
    यश-वाहक , संस्कृति-संवाहक |
    मर्यादाओं के संस्थापक||"

    जगत का कल्याण करें|
    - अरुण मिश्र

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  24. सिया राम मय सब जग जानी , करहुं प्रणाम जोरी जुग पानी |

    सर्वव्यापी प्रभु राम की जय |

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  25. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  26. काव्य की सुंदर विवेचना में आप निपुण हैं . लोग इस बात को जान ही जायेंगे कि भरमाने वालों ने सदियों भरमाया , लेकिन अब भरमा नहीं पाएंगे .

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  27. बहुत सुन्दर प्रस्तुति
    आप का बहुत आभार

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  28. जमाल जी ,
    आप सही कह रहे है आप की पोल खुल रही है .आप चाहे कितना भी भरमाये पर लोग आप की कुरानी चाल समझ चुके है .

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  29. अमित जी, गौरव जी,
    क्षमा चाह्ता हूं, शुक्रवार को ही यहां चर्चा करते करते आचानक चिकन गुनिया के लक्षण उभरने लगे। दो दिन के आराम के बाद आज थोडा स्वस्थ महसुस कर रहा हूं
    मुझे खेद है मैं चर्चा को आगे न बढा पाया। पुनः क्षमा करें।

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  30. गौरव जी,
    जानता हूं उम्र में आप अनुज है, लेकिन ज्ञान का सदा विनय होगा।
    मेरी शंका निर्मूल हुई, आपका कथन सापेक्ष था।

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  31. सुग्यजी जानकर अच्छा लगा की आप जल्द ही स्वस्थ हो गए. हमारी मंगलकामना आपके साथ है.

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  32. @सुज्ञ जी
    अब तक तो पूरे फिट हो गए होंगे
    चर्चा तो करते ही रहेंगे..... अमित भाई नयी पोस्ट डालें तो सही :)
    मुझ अल्पज्ञानी के भी समझ में आ गयी तो .... नयी चर्चा छेड़ेंगे :))
    वैसे ये पोस्ट तो सच में बेहद शांति दे रही है और ऊपर से अमित भाई ने टेम्पलेट भी बेहतरीन सेलेक्ट किया है

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  33. नवरात्रा स्थापना के अवसर पर हार्दिक बधाई एवं ढेर सारी शुभकामनाएं आपको और आपके पाठकों को भी!!
    आभार!!

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  34. नवरात्रा स्थापना के अवसर पर हार्दिक बधाई एवं ढेर सारी शुभकामनाएं

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जब आपके विचार जानने के लिए टिपण्णी बॉक्स रखा है, तो मैं कौन होता हूँ आपको रोकने और आपके लिखे को मिटाने वाला !!!!! ................ खूब जी भर कर पोस्टों से सहमती,असहमति टिपियायिये :)