गुरुवार, 30 सितंबर 2010

 
 
श्रीरामचन्द्र कृपालु भजु मन हरण भव भय दारुणं
नवकंज-लोचन कंज-मुख कर-कंज पद-कंजारुणं

कन्दर्प अगणित अमित छबि नवनील-नीरद सुन्दरं
पट पीत मानहु तड़ित रुचि शुचि नौमि जनक सुतावरं

भजु दीनबंधु दिनेश दानव-दैत्यवंश-निकंदनं
रघुनंद आनँदकंद कोशलचंद दशरथ-नंदनं

सिर मुकुट कुण्डल तिलक चारु उदारु अंग बिभूषणं
आजानुभुज शर-चाप-धर संग्राम-जित-खरदूषणं

इति वदति तुलसीदास शंकर-शेष-मुनि-मन-रंजनं।
मम हृदय-कंज निवास कुरु कामादि खलदल-गंजनं
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एक भरोस, एक बल , एक आस , विश्वास , एक रामघन हेतु चातक तुलसीदास

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