मैं भौचक्का खडा था...........दिमाग सुन्न होता जा रहा था .............. पर उसके चेहरे पर एक भरपूर चमक थी मानो कायनात की शहँशाई मिली है उसे........... बड़ा खुश होकर वह कह रहा था..........
"यार जिन्दगी जीने का असली मजा ही अब आ रहा है, सब काम अपने हिसाब से करता हूँ. किसी भी काम के लिए किसी से कुछ परमिशन का झंझट ही नहीं . अनु भी बहुत खुश है जो जी करता है वही खाना बनाती है. कोई रोक टोक नहीं . अपनी पसंद के कपडे पहनती है. सच यार बड़ा मज़ा आ रहा है अब लाइफ में . पूरी आजादी है अब ."
अपने माँ बाप का इकलौता लड़का अभिनव अपने परिवार की कैद से आज़ाद हो गया.
( कहानी नहीं हकीकत )
सच यार बड़ा मज़ा आ रहा है अब लाइफ में . पूरी आजादी है अब ."
जवाब देंहटाएंगहरी बात कह दी आपने। नज़र आती हुये पर भी यकीं नहीं आता।
kya baat hai amit ji baat hi baat gahra ghaaw kar gaye
जवाब देंहटाएं10 of 10 hai ji aapka ye lekh
अमित जी
जवाब देंहटाएं"कहानी नहीं हकीकत" शृंखला के प्रथम पुष्प के लिए आभार !
निकले जग में ढूंढ़ने, श्रवण - सरीखा पूत !
श्रवण नहीं, घर-घर मिले पूत रूप जमदूत !!
लेकिन निराशा की भी बात नहीं … आप-हम हैं , हम जैसे और भी हैं ।
यह अवश्य है कि बहुत दुखदायी स्थिति भी है ।
राजस्थानी में तो इस विषय पर मैंने दो सौ से अधिक दोहे लिख रखे हैं ।
दो-तीन यहां प्रस्तुत हैं -
हेठै बूढै रूंख रै, बैठ्यो बूढो बाप !
छांनै-छांनै कर रह्या दोन्यूं जणा विलाप !!
पींजर बूढी गावड़ी, खिड़क – बा’र रंभाय !
पीड़ पिछाणै डोकरी, आंसूड़ा ढळकाय !!
सूवटिया नीं चिड़कल्यां, नीं पत्ता-फळ-फूल !
नीं छींयां, नीं पून; कुण नैड़ो आय फजूल ?!
शुभाकांक्षी
- राजेन्द्र स्वर्णकार
अमित जी ....अपनी और अपनी बीबी की ख़ुशी के लिए ये महाराज अपने माँ -बाप को छोड़ आए.
जवाब देंहटाएंइन्हें अपनी आज़ादी की ख़ुशी के पीछे अपने माँ -बाप के बिखरते हुए सपने नहीं दिखाई देते.
ये अपने उन माँ -बाप को भूल गया जो अब तक इसे अपने बुढ़ापे का सहारा मानते होंगे.
उनके सारे अरमान इसकी शादी के साथ ही धूल में मिल गए लगते हैं.
आपकी कहानी का "अभिनव" ये भूल गया कि
जिस आज़ादी पर वह इतना इतरा रहा है, उसकी इस आज़ादी के लिए, उसकी जिंदगी सवांरने के लिए, उसकी हर -एक खुशी के लिए किसी ने अपनी
सारी आज़ादी दाँव पर लगा थी. जिनको वो छोड़ आया है वो माँ - बाप आज भी उसकी ख़ुशी और सलामती की दुआ मांगते होंगे.
इस पर कोई आफत आई तो सबसे पहले वही अपने लाल की ख़ैर-ख़बर लेने के लिए दोड़े -दोड़े आयेंगे. बिना इस बात की परवाह किए कि
ये नालायक एक दिन उनके सारे सपनों पर पानी फेरते हुए उन्हें छोड़ कर यहाँ आज़ादी का ज़श्न मना रहा था.
ये अपने आप को भाग्यशाली समझता है मैं इसे बदनसीब समझता हूँ.
भगवान् इसको सदबुद्धि दे.
आपकी इस सच्ची कहानी के अगले भाग के इंतज़ार मे.....
जवाब देंहटाएंअभिनव को मेरी तरफ से मुबारक बाद दीजिये क्योंकि इसे वह सब मिल गया जिसे यह चाहता था !
मेरा विश्वास है कि इसे जीवन में कभी प्यार नहीं मिलेगा न इसकी पत्नी से और न बच्चों से ...कोई आश्चर्य नहीं होगा कि इसको आखिरी समय में सहारा देने वाला कोई न हो !
जो बीज इस बुजदिल हरा...... ने बोये हैं वह इसके पाँव में तो चुभेंगे ही बल्कि उस मासूम को भी नहीं बख्शेंगे जिसने इनके घर जन्म लेना है !
संस्कार बोलते रहे हैं और बोलेंगे !
मेरे प्यारे भाई अमित ! अभी एग्रीगेटर पर आपका नाम देखकर क्लिक किया लेकिन नेताओं पर लिखे आपके लेख को google ने not found दिखा दिया ।
जवाब देंहटाएंतलाशता हुआ यहां आया तो एक अच्छा लेख पढ़ना नसीब हुआ , शुक्रिया !
अपना ग़म भूल गए तेरी जफ़ा भूल गए
हम तो हर बात मुहब्बत के सिवा भूल गए
फ़ारूख़ क़ैसर की एक ग़ज़ल , जो दिल को छूते हुए आत्मा में जा समाती है ।
स्वच्छंदता और स्व स्वार्थ भरी इस आजादी को पुनः परिभाषित किया जाना चाहिए।
जवाब देंहटाएंसामाजिक लाभ प्राप्त करते हुए भी यह कहना कि 'मेरी अपनी भी जिन्दगी है मैं जैसे चाहुं जीऊं' बडा स्वार्थी सा कथन लगता है
शायद अगले अंको में हमें उत्तर प्राप्त हो, अगले भाग के इंतज़ार रहेगा।
अमित, आप तो इकलौते की बात कर रहे हैं, आज के युग में ऐसे ऐसे श्रवण कुमार भी हैं कि गिनती में पांच-छ भाई होंगे लेकिन बूढ़े मां-बाप अपना चूल्हा-बासन अलग लेकर बैठे हैं।
जवाब देंहटाएंअगली कड़ी का इंतज़ार रहेगा।
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जवाब देंहटाएंविलुप्त हुआ परिवार विज़न
कमरे-कमरे में टेलिविज़न
जो भी चाहे जैसे कर ले
चौबीस घंटे मन का रंजन
सबकी अपनी हैं एम्बीशन
अनलिमिटेशन, नो-बाउंडएशन
फादर-इन-ला कंसल्टेशन
इंटरफेयर, नो परमीशन
बिजली पानी चूल्हा ईंधन
न्यू कपल सेपरेट कनेक्शन
--पर्सनल लाइफ पर्सनल किचन
पीड़ा होती झन झन झननन।
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जवाब देंहटाएंअमित जी, मैंने एक पुरानी रचना से इस पोस्ट को अपनी आहुति दी. पुरानी समिधाएँ यज्ञ में अच्छी जलती हैं इस भावना से ही यह किया है.
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जवाब देंहटाएंअपने सुख और शांति को तरजीह देने वाले प्रायः यह सोचते हैं कि उनके अपने आत्मीय उनके दुख की वजह हैं.
वास्तव में .... उनकी अति सुख पाने की लिप्साएँ ही .... माता-पिता से असंतोष का कारण हैं.
वे अपने कर्तव्यों की बात न करके हमेशा अपने अधिकारों की बात करते हैं.
श्रवनकुमारों का ...आज़ स्वारथ नाम के दशरथ आखेट कर देते हैं.
और पत्नियाँ [जनक-सुतायें] अपने-अपने पतियों [रामों] को लेकर कंकरीटी जंगल [सेपरेट फ्लेट] में रहना पसंद करती हैं.
और दशरथ पुत्र राम की नाईं 'अभिनव' अपनी-अपनी सीताओं को लेकर रावण-नगरी में विचरते घूमते हैं.
कैसे रहे सुरक्षित सीता? कैसे राम श्रवणकुमार बनने की सोचे? वह तो हर बार वन-वास में ही आवास किये रहता है.
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जवाब देंहटाएंसंयुक्त परिवार में रह रहे वानप्रस्थी और संन्यासी आयु के बुजुर्ग भी मोह और सुख में इतना आसक्त हो गये हैं कि उनमें बढ़ती उम्र में भी विरक्ति नहीं आ पा रही है...... यह भी एक समस्या है.
परिवारों के बिखरने की एक वजह ..... बड़े-बूढों की अत्यंत आसक्ति है ... उनके पारिवारिक मोह और स्वयं के शारीरिक सुख को ही प्राथमिकता देना भी कारण माना जा सकता है कि उनके श्रवनकुमार अब विवाहित हैं.
उन्हें सोचना चाहिए कि उनके पुत्रों के दायित्व और उनके द्वारा की जा रही सेवा में हिस्सेदार बढ़ गये हैं.
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अमित जी चिंतित ना हों. ये सब एक वो क्या कहते हैं vicious circle है ( इकोनोमिक्स तो कभी पास नहीं कर पाया पर ये शब्द अभी तक याद है) जैसा हम बोते हैं वैसा ही हम काटते हैं. यह क्रम तब तक चलता रहता है जब तक कोई अपने विशेष प्रयास के द्वारा इस दुष्चक्र को ख़त्म नहीं करता. उस इकलौते पुत्र के पिता ने भी ऐसा ही कुछ अपने माता पिता के साथ किया होगा जो अब उसके सामने है. आज का पुत्र इस चक्र को तोड़ सकता था जो वो नहीं कर पाया.
जवाब देंहटाएं@ संजय जी
जवाब देंहटाएंयकीं करना पड़ रहा है ..... मुझे भी .....इसको काफी समझाया पर नहीं माना ना मेरी ना दूसरे दोस्तों या बुजुर्गों की
@ तौसिफ जी
घाव तो उन भोले माँ बाप के दिल में लगें है .
@ राजेंद्र जी
आप सही कह रहें है श्रवण कुमारों की कमी नहीं है ..........पर ये वाकिये रोज़ ब रोज़ बड़ते ही जा रहे है .
काफी पीर भरे हैं यह दोहे ........मर्मभेदी
आपसे एक निवेदन भी था की भारत भारती वैभवं पर ऐसे ही कुछ सांस्कृतिक उन्नयन वाली रचना का इन्तेजार है
@ विरेन्द्र जी
कहानी नहीं हकीकत ही है यह ......यह "अभिनव" मेरा दोस्त ही है..................आप सही कह रहे है आज ही पता चलने पर जब मैं अंकल के घर गया तो दोनों काफी उदास थे .........फिर भी आंटी अपनी प्रेग्नेंट बहु के बारे में चिंतित थी .........माँ-बाप का माँ दुखाकर कब तक खुश रहेंगे ???
@ सतीश जी
क्या भाटा सब कुछ मिल गया इस हरा....... को अभी तो इसके दो तीन महीने में बच्चा होने वाला है तभी सारी दुनियादारी ऊपर नीचे हो जाएगी इसकी ........... ससुराल में भी सासूजी नहीं है इसके अंत-पन्त गुहार तो इन्ही से होगी..........और वे तो संभालेंगे ही इस दुष्ट की करतूत भुलाकर
@ जमाल साहब
कुछ नासमझी में " मुझे शिकायत है " ब्लॉग का लिंक जुड़ गया था मेरे भी समझ में बाद में आई बात :)
बढिया गजल पढवाने के लिए आभार
@ सुज्ञ जी
इसे तो आज़ादी नाम देना ही गलत होगा................अगलें भागों में भी कुछ ऐसी ही हकीकत होगी जिन्हें अपनी आँखों से देख चुका हूँ .
@ मौसमजी
औलाद एक हो या अनेक पर माँ-बाप तो एक ही है ..............हरामखोर कुकर को पुत्तर बनाकर पाल लेंगे पर खुद जिनके पुत्तर हैं उनको पालने में इनकी खाल जलती है .
@ प्रतुलजी
आपकी इस समिधा से उत्पन्न चिंतन अग्नि से पोस्ट का मर्म खुलकर सामने आ पाया है ........आभार !!
@ विचारीजी
# उस इकलौते पुत्र के पिता ने भी ऐसा ही कुछ..............................
नहीं कतई नहीं पिता तो उनके बचपन में ही सिधार गए थे और माताजी मेरी आँखों के सामने अच्छी देखभाल भरी जिंदगी जी रही है .
वक़्त आएगा जब उन्हें बुज़ुर्ग भी याद आयेंगे
जवाब देंहटाएंविरेन्द्र जी.....
जवाब देंहटाएंकहानी नहीं हकीकत ही है यह- अमित शर्मा
अमित जी ..मैने 'कहानी' शब्द इस्तेमाल ज़रूर किया है लेकिन मैं
जानता हूँ कि आप एक सच्ची घटना का जिक्र कर रहे हैं. ये घटना आपके दोस्त से जुड़ी है अब ये भी पता चल गया।
यही हो रहा है आजकल..
जवाब देंहटाएंअमित भाई यह केद किस्मत बालो को ही नसीब होती हे, यह अनू एक दिन रोयेगा.... ओर इस के आंसूपोछने वाला कोई नही होगा, बहुत सुंदर ढंग से आप ने एक विचार को लघु कथा का रुप दिया, धन्यवाद
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जवाब देंहटाएंबेहतरीन पोस्ट लेखन के बधाई !
आशा है कि अपने सार्थक लेखन से,आप इसी तरह, ब्लाग जगत को समृद्ध करेंगे।
आपकी पोस्ट की चर्चा ब्लाग4वार्ता पर है - देखें - 'मूर्ख' को भारत सरकार सम्मानित करेगी - ब्लॉग 4 वार्ता - शिवम् मिश्रा
बताइए.....और हम इसी आजादी से परेशां हैं ..
जवाब देंहटाएं:) उनके बच्चे उनसे भी जल्दी चाहेंगे यही आज़ादी.......
जवाब देंहटाएं.
जवाब देंहटाएंराज जी,
राज की बात यह है कि अनु पत्नी है और अभिनव उसका पति है. प्रश्नपत्र में केवल संवाद देने मात्र से समझने में कभी-कभी ऎसी त्रुटि हो जाती है.
अनु के आँसू तो उसका पति पौंछ ही देगा लेकिन अभिनव जब रोयेगा तो शायद उसकी पत्नी उसके आँसू पौंछे.
आँसू पोंछने वाले तो अन्यों के आँसू आने [दुःख] की कल्पना से भी सिहर उठते हैं.
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आज कल परिवार कैद लगने लगा है ...अच्छी प्रस्तुति ..
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