ओ भारत के नायको इक बार आ जाओ
हमारे मृत शरीरों में प्राण बन समा जाओ
राम तुम्हारी थापी मर्यादा हो रही तार तार
आदर्श तुम्हारे जीवन के अब लगते बेकार
ओ गायक गीता के तुम तो फिर से आओ
विनाशाय च दुष्कृताम सिद्ध कर दिखलाओ
प्रताप ! तुम्हारी कीर्ति का ताप अब ढल रहा
निज राष्ट्र गौरव स्वाधीनता स्वप्न बिखर रहा
शिवा ! शिव-प्रेरणा को हमने अब भुला दिया
अटल छत्र जो रोपा तुमने उसे छितरा दिया
सवा सवा लाख का काल एक को बनाने वाले
गुरु नाम की लाज रख अमृतपान करा जाओ
ओ मर्दानी झांसी वाली देख देश की लाचारी
फिरंगी नहीं अपने बैठे सिंहासन पर अत्याचारी
तम-नीलिमा नाश को प्राची से हो उदित आ जाओ
भारत वैभव को अटल करने अमित शौर्य बन आओ
हमारे मृत शरीरों में प्राण बन समा जाओ
राम तुम्हारी थापी मर्यादा हो रही तार तार
आदर्श तुम्हारे जीवन के अब लगते बेकार
ओ गायक गीता के तुम तो फिर से आओ
विनाशाय च दुष्कृताम सिद्ध कर दिखलाओ
प्रताप ! तुम्हारी कीर्ति का ताप अब ढल रहा
निज राष्ट्र गौरव स्वाधीनता स्वप्न बिखर रहा
शिवा ! शिव-प्रेरणा को हमने अब भुला दिया
अटल छत्र जो रोपा तुमने उसे छितरा दिया
सवा सवा लाख का काल एक को बनाने वाले
गुरु नाम की लाज रख अमृतपान करा जाओ
ओ मर्दानी झांसी वाली देख देश की लाचारी
फिरंगी नहीं अपने बैठे सिंहासन पर अत्याचारी
तम-नीलिमा नाश को प्राची से हो उदित आ जाओ
भारत वैभव को अटल करने अमित शौर्य बन आओ
शानदार है वीररस से ओतप्रोत!!
जवाब देंहटाएंभारत वैभव को अटल करने अमित शौर्य बन आओ
कविता का एक एक शब्द प्रेरित करता हुआ और जागृत करता हुआ है. समय को ऐसी ही रचनाओं कि ज़रुरत है.
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जवाब देंहटाएंनिजि ठिकाने की बधाई :)
जवाब देंहटाएंजो दिख रहा है उसे देख देख कर
जवाब देंहटाएंछोटे से मन में बड़ी-बड़ी उधेड़बुन है!
अपनों के बीच में आज अर्जुन नहीं दुर्योधन है,
गीता गायी जाए तो किसके आगे ये भी उलझन है!
बेशर्मी और बदनामी गौरव का कारण बन रही,
सच्चाई,ईमानदारी,देशभक्ति इनसे कहाँ अब जीवन है!
कुंवर जी
बहुत प्यारी रचना और अपनी वेब साईट के लिए बधाई अमित !!
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंराम ही तो करुणा में है, शान्ति में राम है
जवाब देंहटाएंराम ही है एकता में, प्रगति में राम है
राम बस भक्तों नहीं शत्रु के भी चिन्तन में है
देख तज के पाप रावण, राम तेरे मन में है
राम तेरे मन में है, राम मेरे मन में है -२
राम तो घर घर में है, राम हर आंगन में है
मन से रावण जो निकाले, राम उसके मन में है
क्यों युवा आज का अर्जुन से बस
जवाब देंहटाएंसंशय ही करना सीखा है
देख के इतना ज्यादा कन्फ्यूजन
"समय" भी उस पर चीखा है
दूसरे की संस्कृति पे प्यार लुटाता
अपनी संस्कृति के प्रति तीखा है
बन के फोलोवर[?] कृष्ण के
सिर्फ मना लो फ्रेंडशिप[?] डे
इसने तो इतिहास के पात्र से
अपने मन का ही सीखा है
बेटा संशय छोड़ दे
आराम दे मन की दौड़ पे
अति किसी चीज की अच्छी नहीं होती
तुझे देख के सारी दुनिया है हंसती
केवल भारत मान है रोती
अमित भाई, करो इन्तजार
देखें, सुबह कब है होती ?
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जवाब देंहटाएंअमित जी
आपकी कविताई से पहले से बसी हृदय में वेदना ज्वाला को आहुति मिली.
ग्लोबल ने अपनी टीप-बातों में अपनी पीड़ा को कुछ अलग अंदाज़ में बयान किया.
यदि प्रताप, शिवाजी, गुरु गोविन्द, लक्ष्मीबाई के नाम से सच में कहीं जोश आता है तो वहीं आता है जो अभी
आधुनिक ऐश्वर्य संसाधनों के आदी नहीं हुए हों. और जो अभी भी शिक्षित होकर अभावों में जीते हों.
मुझे ऐसा लगता है, लेकिन शायद यह अंदाजा ग़लत भी हो सकता है.
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सवा सवा लाख का काल एक को बनाने वाले
जवाब देंहटाएंगुरु नाम की लाज रख अमृतपान करा जाओ
अंगारों को हवा देने वाली रचना
श्रीमान अमित जी! अब भारत के नायकों का आसरा देखने
जवाब देंहटाएंसे कोई फ़ायदा नहीं कोई नहीं बचाने को आने वाला.
हमें देश को सबल बनाने के लिए खुद को सबल बनाना होगा.
आज हमारी मानसिक निर्बलता का कारण ही यही है
की हम विकट परिस्थिति का मुकाबला करने के बजाय
किसी मसीहा का इन्तजार करते हैं.
हमारी शुभकामनाएं आपको !!
.
जवाब देंहटाएंमदन जी ने सत्य कहा.
ise दिनकर के शब्दों में कहता हूँ :
वे पियें शीत, तुम आतप-घाम पियो रे!
वे जपें नाम, तुम बनकर राम जियो रे!!
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आदरणीय मदनजी आप इसे कुछ भी कहें पर अभी एक बजे से तीन बजे तक मैं इसी प्रकार के चिंतन में बैठा था (और उन्हें शब्दों में ढाला भी है, जो कि अगली पोस्ट है ) क्या यह वैचारिक संक्रमण है !!!!! कि जो आप मेरे प्रति इतनी दूर बैठे सोच रहें है वही चिंतन मेरे मानस में प्रकट हो रहा है .
जवाब देंहटाएंओजस्वी विचारों से ओतप्रोत !
जवाब देंहटाएंकुछ लोगों में तो जोश जगा ही देगी ...
सुन्दर !
ये सब प्रचार तंत्र का काम है
जवाब देंहटाएंस्केप्टिक[?] बना हर ख़ास और आम है
फिर भी अमित भाई
इस प्रयास के लिए आपको सलाम है
सभ्य लोगों को कहाँ विश्राम है
बनाओ एक और रचना
कहो सबसे
ये जीवन नहीं मौज
ये तो एक संग्राम है
"खूब जी भर कर पोस्टों से सहमती/ असहमति टिपियायिये :)"
जवाब देंहटाएंमेरे जैसे टिप्पणीकारों[?] को ऐसी बात पढ़ कर बड़ा उत्साह मिलता है :))
अन्य ब्लोग्स पर अक्सर पोस्ट पर मुद्दे तो बड़े बड़े उठा दिए जाते हैं और मेरे बड़े बड़े कमेन्ट(लेकिन मुद्दे की साइज से छोटे) हटा दिए जाते हैं :))
बेहतरीन कविता । मदन शर्मा जी के विचार बहुत अच्छे लगे ।
जवाब देंहटाएंअमित जी,
जवाब देंहटाएंनये मकाम नये रंग-रोगन की बधाई!!
अब आ रही है पोस्टों की सूचना!!स्वागत है।
बहुत सुन्दर रचना...
जवाब देंहटाएंbahut khoob.
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