वो गुदाज-ए-दिल-ए-मरहूम कहां से लाऊं
अब मैं वो जज्बा-ए-मासूम कहां से लाऊं
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मैं तन्हा था मगर इतना नहीं था,
तेरी तस्वीर से करता था बातें,
मेरे कमरे में आईना नहीं था,
समन्दर ने मुझे प्यासा ही रखा,
मैं जब सहरा में था प्यासा नहीं था,
मनाने रुठने के खेल में,
बिछड जायेगे हम ये सोचा नहीं था,
सुना है बन्द करली उसने आँखे,
कई रातों से वो सोया नहीं था,
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भावपूर्ण प्रस्तुति ||
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर |
हमारी बधाई स्वीकारें ||
http://dcgpthravikar.blogspot.com/2011/10/blog-post_10.html
http://neemnimbouri.blogspot.com/2011/10/blog-post_110.html
सुना है बन्द करली उसने आँखे,
जवाब देंहटाएंकई रातों से वो सोया नहीं था,
बहुत खूब भाई !
बड़ी प्यारी अभिव्यक्ति ....बधाई !
भावपूर्ण है यह श्रद्धासुमन!!विनम्र श्रद्धांजलि
जवाब देंहटाएंसभी का मन व्यथित है उनके जाने से..... नमन ..श्रद्धांजलि...
जवाब देंहटाएंविनम्र श्रद्धांजलि।
जवाब देंहटाएंविनम्र श्रद्धांजलि।
जवाब देंहटाएंकोई शब्द पूरे नहीं हैं जगजीत सिंह जी के जाने के भाव को व्यक्त करने के लिए ... श्रद्धांजलि ...
जवाब देंहटाएंहमारी तरफ़ से भी श्रद्धांजलि।
जवाब देंहटाएं♥
जवाब देंहटाएंअमित भाई
बहुत दुखी हूं मैं भी … … …
जगजीत सिंह जी को विनम्र श्रद्धांजलि !
उनकी स्मृति में मेरा एक छंद -
जग जीतने की चाह ले’कर लोग सब आते यहां !
जगजीत ज्यों जग जीत कर जग से गए कितने कहां ?
जग जीतने वाले हुनर गुण से जिए तब नाम है !
क्या ख़ूब फ़न से जी गए जगजीत सिंह सलाम है !!
-राजेन्द्र स्वर्णकार
श्रद्धांजलि!
जवाब देंहटाएंजगजीत का जाना
जवाब देंहटाएंएक ग़ज़ल गायकी का अध्याय समाप्त होना है.
उनकी स्मृति को नमन.