मांस लोलुप आसुरी वृतियों के स्वामी अपने जड़-विहीन आग्रहों से ग्रसित हो मांसाहार का पक्ष लेने के लिए बालू की भींत सरीखे तर्क-वितर्क करते फिरते है । इसी क्रम में निरामिष के एक लेख जिसमें यज्ञ के वैदिक शब्दों के संगत अर्थ बताते हुये इनके प्रचार का भंडाफोड़ किया गया था । वहाँ इसी दुराग्रह का परिचय देते हुये ऋग्वेद का यह मंत्र ----------
अद्रिणा ते मन्दिन इन्द्र तूयान्त्सुन्वन्ति सोमान् पिबसि त्वमेषाम्.
पचन्ति ते वृषभां अत्सि तेषां पृक्षेण यन्मघवन् हूयमानः . -ऋग्वेद, 10, 28, 3
लिखते हुये इसमें प्रयुक्त "वृषभां" का अर्थ बैल करते हुये कुअर्थी कहते हैं की इसमें बैल पकाने की बात कही गयी है । जिसका उचित निराकरण करते हुये बताया गया की नहीं ये बैल नहीं है ; इसका अर्थ है ------
हे इंद्रदेव! आपके लिये जब यजमान जल्दी जल्दी पत्थर के टुकड़ों पर आनन्दप्रद सोमरस तैयार करते हैं तब आप उसे पीते हैं।
हे ऐश्वर्य-सम्पन्न इन्द्रदेव! जब यजमान हविष्य के अन्न से यज्ञ करते हुए शक्तिसम्पन्न हव्य को अग्नि में डालते हैं तब आप उसका सेवन करते हैं।
इसमे शक्तिसंपन्न हव्य को स्पष्ट करते हुये बताया गया की वह शक्तिसम्पन्न हव्य "वृषभां" - "बैल" नहीं बल्कि बलकारक "ऋषभक" (ऋषभ कंद) नामक औषधि है ।
लेकिन दुर्बुद्धियों को यहाँ भी संतुष्टि नहीं और अपने अज्ञान का प्रदर्शन करते हुये पूछते है की ऋषभ कंद का "मार्केट रेट" क्या चल रहा है आजकल ?????
अब दुर्भावना प्रेरित कुप्रश्नों के उत्तर उनको तो क्या दिये जाये, लेकिन भारतीय संस्कृति में आस्था व निरामिष के मत को पुष्ठ करने के लिए ऋषभ कंद -ऋषभक का थोड़ा सा प्राथमिक परिचय यहाँ दिया जा रहा है ----
दुर्लभ वैदिक औषधि ॠषभकंद का "निरामिष" पर सहज बोध……
यह सार्थक पहल जारी रहे, आभार!
जवाब देंहटाएंजिन्हें यह नहीं पता कि गो का अर्थ गाय ही नहीं इन्द्रियां भी होता है उनकी समझ पर क्या कहा जाए..
जवाब देंहटाएंतार्किक निवारण..
जवाब देंहटाएंआभार
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति ...वेद तथा हमारे धार्मिक ग्रंथों के हमारे तथाकथित धार्मिक आचार्यों द्वारा किये गए स्वार्थ परक अनुवाद के कारण ही वैदिक धर्म का ह्लास् हवा है तथा हिंदू जाती की अवनति हुई है ....कृपया यही परोपकार भाव आगे भी जारी रखिये ...
जवाब देंहटाएंघुमाये जाओ प्यारे, अनुराग जी के यहाँ से इधर आये अब जहाँ भेजोगे वहाँ भी जायेंगे।
जवाब देंहटाएंयज्ञ हो तो हिंसा कैसे ।। वेद विशेष ।।
जवाब देंहटाएंनिरामिष पर प्रकाशित इस पोस्ट और इस पर आए आपके सभी कमेंट्स मैने पढ़े तो आपके ज्ञान की प्रशंसा करने से अपने आप को रोक नहीं सका......आपने अपने ज्ञान के दम से सारे कुर्तकों को की हवा निकाल दी। स्वघोशित विद्धानों ने अघोषित रूप से आपके ज्ञान का लोहा माना। ऐसे मुझे लगा।
आपकी उत्तम सोच और ज्ञान पर मुझे बेहद खुशी है। आपको ढेरों शुभकामनाएं।