आज से लगभग 20 वर्ष पहले की बात होगी। प्रमोद अपनी राजदूत मोटरसाइकल से रात 9 बजे अपने कार्यस्थल से अपने घर वापस जा रहा था।
सर्दियों का समय था,सर्दियों में गाँवों में 7 बजते बजते सूनसान हो जाया करती हैं। गाँव की सिंगल सूनसान रोड पर उसे दिखाई दिया कि एक मोटरसाइकल पेड़ से टकरा कर पड़ी है और साथ ही दो व्यक्ति खून से लथपथ पड़े हैं। उसने अपनी बाइक की लाइट के उजाले में देखा एक तो उसके ही गाँव व्यक्ति था दूसरा पडोसी गाँव का। उसने मोटरसाइकल से उतर कर उन्हें हिलाया डुलाया, दोनों के सर में चोट थी और काफ़ी खून बह रहा था।
दोनों ज़िंदा थे लेकिन बेहोश। गाँव वाले व्यक्ति से तो इनकी लड़ाई हो रखी थी आपस में आन-जान और बोलचाल भी बंद थी। लेकिन इसके मन में एक पल को भी ये नहीं आया की इनकी सहायता ना करूँ या इन्हे कुछ हो गया तो शक मेरे ऊपर आयेगा।
वह तुरंत भागकर कुछ कदम की दूरी पर स्थित ढाणी में गया और आवाज लगाकर लोगों को बुलाया।
कुछ महिलायें और बच्चे बाहर आये।
स्थिति ये निकली की 5 घरों की उस ढाणी के सभी पुरुष वहाँ के एकमात्र वाहन ट्रेक्टर ट्रॉली सहित किसी बरात में गए हुए थे, तो न तो वहाँ कोई साधन था और ना कोई सबल सहायक।
व्यक्ति ने महिलाओं से उनकी चार पांच ओढ़निया ली और पाँच - छ: किशोर -बालकों को साथ चलने के लिए
कहा। उसने कहा की तुम इन दोनों को मेरे पीछे बैठा दो और इन ओढणियों से कसकर मेरे बाँध दो। मशक्कत पूर्वक ऐसा किया गया और वो उन दोनों ज़िंदा लोथ को 9 किलोमीटर दूर एक क्लिनिक पे जा पहुंचा। क्लिनिक के पीछे ही स्थित घर से डॉक्टर को बुलाया गया और उनका उपचार शुरू हुआ। डॉक्टर ने उसके साहस और युक्ति की प्रशंसा करते हुए कहा की यदि ये रात भर ऐसे ही पड़े रहते तो खून के रिसाव और ठंढ के कारण ये वहीँ मर लेते।
दोनों स्वस्थ होकर घर आ गए और इनके परिवारों में भी पुनः मेलजोल हो गया।
अच्छी कहानी हैं ना ???
लेकिन कहानी अभी पूरी नहीं हुई। अब सत्रह बरस आगे चलिए। 11 नवम्बर 2012 धनतेरस के दिन वही व्यक्ति अपने डीलरों से बकाया वसूली करके लिए बीकानेर/श्रीगंगानगर एरिया से वापस लौट रहा था।
ड्राईवर साथ नहीं था तो इनोवा खुद ही चला रहा था। उस समय जयपुर-सीकर हाइवे पे फोर लेन बनाई जा रही थी।
जगह जगह ट्रैफिक डायवर्जन किया हुआ था, दोनों साइड के वाहन एक ही रोड पर आ जा रहे थे। ये भी त्योंहार पे घर पहुँचने के उल्लास में गाडी चला रहा था, जयपुर अभी लगभग 52 किलोमीटर दूर था ज्यादा नहीं दूरी और ट्रैफिक के अनुपात से डेढ़ घंटे की ही दूरी थी।
लेकिन कहानी अभी पूरी नहीं हुई। अब सत्रह बरस आगे चलिए। 11 नवम्बर 2012 धनतेरस के दिन वही व्यक्ति अपने डीलरों से बकाया वसूली करके लिए बीकानेर/श्रीगंगानगर एरिया से वापस लौट रहा था।
ड्राईवर साथ नहीं था तो इनोवा खुद ही चला रहा था। उस समय जयपुर-सीकर हाइवे पे फोर लेन बनाई जा रही थी।
जगह जगह ट्रैफिक डायवर्जन किया हुआ था, दोनों साइड के वाहन एक ही रोड पर आ जा रहे थे। ये भी त्योंहार पे घर पहुँचने के उल्लास में गाडी चला रहा था, जयपुर अभी लगभग 52 किलोमीटर दूर था ज्यादा नहीं दूरी और ट्रैफिक के अनुपात से डेढ़ घंटे की ही दूरी थी।
अरेरे यह क्या सामने से एक वीडियोकोच वाला डायवर्जन में दनदनाता हुआ आता दिखा, इसने गाडी बाईं तरफ दबाई लेकिन उस साइड भी एक मोटरसाइकिल वाला था, साइड दबाते ही वो बाइक सहित नीचे खेत में कूद गया ये संभालता उससे पहले ही बस इसकी इनोवा को दायीं तरफ़ से पूरी छिलता हुआ घसीट गया।
एक धमाका हुआ और दिमाग सुन्न!!!!!!
आसपास के लोग दौड़े आये पचखड़े हुई गाडी से इसे निकाला, दायें हाथ की कोहनी और कंधे के बीच हड्डी टूटकर मांस फाड़कर बाहर निकल आई थी नीचे दायें पाँव में भी जांघ की हड्डी टूटकर मांस और पैंट फाड़कर बाहर झाँकने लगी थी। दोनों जगह से बुरी तरह खून बहे जा रहा था।
तीन युवक गाडी का सारा सामान जिसमे कलेक्शन किये हुए पांच-सात लाख रुपये थे, सहित तुरंत अपनी स्कॉर्पियो में लिटा जयपुर रवाना हो गए। इसका शरीर और मन दोनों ही मजबूत हैं जहाँ लोग सोच रहे थे की ये आधे रस्ते में ही मर जाएगा इसे पूरा होश था।
एक धमाका हुआ और दिमाग सुन्न!!!!!!
आसपास के लोग दौड़े आये पचखड़े हुई गाडी से इसे निकाला, दायें हाथ की कोहनी और कंधे के बीच हड्डी टूटकर मांस फाड़कर बाहर निकल आई थी नीचे दायें पाँव में भी जांघ की हड्डी टूटकर मांस और पैंट फाड़कर बाहर झाँकने लगी थी। दोनों जगह से बुरी तरह खून बहे जा रहा था।
तीन युवक गाडी का सारा सामान जिसमे कलेक्शन किये हुए पांच-सात लाख रुपये थे, सहित तुरंत अपनी स्कॉर्पियो में लिटा जयपुर रवाना हो गए। इसका शरीर और मन दोनों ही मजबूत हैं जहाँ लोग सोच रहे थे की ये आधे रस्ते में ही मर जाएगा इसे पूरा होश था।
युवकों ने इससे नंबर पूछकर इसके बड़े भाई को सूचित किया और कहा की आप तुरंत हॉस्पिटल की व्यवस्था कीजिये और बताइये कहाँ लेकर पहुंचना हैं। बड़े भाई ने डूबते मन से कहा एक बार संभव हो तो मेरी बात करवा दो। पट्ठे की हिम्मत और मानसिक मजबूती देखिये फोन पे भाई से कहा भाईजी बस हाथ और पाँव की हड्डी ही टूटी हैं और कुछ ख़ून बह रहा हैं बाकी मैं बिलकुल ठीक हूँ। चिकित्सा राज्यमन्त्री इसके मित्र थे, भाई ने उन्हें फोन कर सारी स्थिति से अवगत कराया। SMS हॉस्पिटल की इमरजेंसी में तत्काल डॉक्टर तैनात हो गए, मन्त्री खुद पहुँच गए। बेसब्री बढ़ती जा रही थी गाडी इमरजेंसी के बाहर रुकी इसे तुरंत अन्दर पहुँचाया गया, टीम ने इलाज शुरू किया दूसरे दिन ऑपरेशन हुआ, दिवाली अस्पताल में ही मनी, 20 दिन में बन्दा घर पहुंचा।
उधर मरीज के घर वाले उन युवकों के पाँव पड़ रहे थे वो परिवार के लिए साक्षात भगवद् दूत थे।
युवक मासूमियत से कैश सम्भलाते हुए भाइयों से कह रहे थे देख लीजिये/संभाल लीजिये। :)
युवक मासूमियत से कैश सम्भलाते हुए भाइयों से कह रहे थे देख लीजिये/संभाल लीजिये। :)
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