मेरे प्यारे अमित जी, मैं एक वैष्णव हूँ, और मंदिर भी जाता हूँ, मूर्ति पूजा भी करता हूँ, लेकिन आप से एक घटना का जिक्र करना चाहता हूँ, २६ जनवरी की परेड देखने गया, वापस आते समय कनाट प्लेस स्थित शिवाजी टर्मिनल के सामने जो दृश्य देखा वह हिन्दुओं को शर्मसार करने वाली thee, एक साहब दीवार पर धर बहा रहे थे, उस दीवार पर जिस पर जमीन से दो - ढाई फूट की ऊँचाई पर हिन्दू देवी देवताओं की फोटो लगी हुई थी, दीवार पर जगह बिलकुल खाली न थी, धार बहाने वाले साहब से कौम पूछी तो बोले हिन्दू ! मुसलमान और ईसाई मूर्ति पूजा करतें भी हैं तो हमसे अछि तरह ही करते है, जिसे भगवान् कह कर पूजते हैं, उसकी,ना तो बेइज्जती करते हैं और ना ही करने देते हैं, अनवर साहब को ही देख लो वो चार हैं, हम हजार हैं फिर भी गुरूजी निडरता से डेट हुए हैं, नाकारा तो हम हुए न बड़ी आसानी से सह लेते हैं, वो भी हंसकर . साहब vinatee hai आप से की इस विषय पर अपने ब्लॉग में लिखे, क्यों दूसरों के धर्म में सर खपाते हैं ! याद रखिये ! श्रेयान्स्वधर्मो विगुणः परधर्मात्स्वनुष्ठितात | स्वधर्मे निधनं श्रेयः परधर्मो भयावह: || (गीता ३/३५) कृपा करके लिंक देख लें - http://rashtradharmsewasangh.blogspot.com/2010/02/blog-post_283.html
जब आपके विचार जानने के लिए टिपण्णी बॉक्स रखा है, तो मैं कौन होता हूँ आपको रोकने और आपके लिखे को मिटाने वाला !!!!! ................ खूब जी भर कर पोस्टों से सहमती,असहमति टिपियायिये :)
मेरे प्यारे अमित जी,
जवाब देंहटाएंमैं एक वैष्णव हूँ, और मंदिर भी जाता हूँ, मूर्ति पूजा भी करता हूँ, लेकिन आप से एक घटना का जिक्र करना चाहता हूँ, २६ जनवरी की परेड देखने गया, वापस आते समय कनाट प्लेस स्थित शिवाजी टर्मिनल के सामने जो दृश्य देखा वह हिन्दुओं को शर्मसार करने वाली thee, एक साहब दीवार पर धर बहा रहे थे, उस दीवार पर जिस पर जमीन से दो - ढाई फूट की ऊँचाई पर हिन्दू देवी देवताओं की फोटो लगी हुई थी, दीवार पर जगह बिलकुल खाली न थी, धार बहाने वाले साहब से कौम पूछी तो बोले हिन्दू !
मुसलमान और ईसाई मूर्ति पूजा करतें भी हैं तो हमसे अछि तरह ही करते है, जिसे भगवान् कह कर पूजते हैं, उसकी,ना तो बेइज्जती करते हैं और ना ही करने देते हैं, अनवर साहब को ही देख लो वो चार हैं, हम हजार हैं फिर भी गुरूजी निडरता से डेट हुए हैं, नाकारा तो हम हुए न बड़ी आसानी से सह लेते हैं, वो भी हंसकर .
साहब vinatee hai आप से की इस विषय पर अपने ब्लॉग में लिखे, क्यों दूसरों के धर्म में सर खपाते हैं !
याद रखिये !
श्रेयान्स्वधर्मो विगुणः परधर्मात्स्वनुष्ठितात |
स्वधर्मे निधनं श्रेयः परधर्मो भयावह: || (गीता ३/३५)
कृपा करके लिंक देख लें - http://rashtradharmsewasangh.blogspot.com/2010/02/blog-post_283.html
पहली बार आपके ब्लोग पर आया हुँ । बहुत अच्छा लगा , आशा है आप ऎसे ही भारत की संस्कृति को आगे बढाते रहोगे , धन्य्वाद
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