यस्यप्रणम्य चरणौवरदस्यभक्त्या
जिन वरदायक भगवान के चरणों में भक्तिपूर्वकप्रणाम करने तथा आलस्य रहित निर्मल वाणी द्वारा जिनकी स्तुति करके सूर्य देव अपनी उद्दीप्त किरणों से जगत का अंधकार दूर करते हैं, उन शरणदाता भगवान शंकर की शरण ग्रहण करता हूं।स्तुत्वाचवाग्भिरमलाभिरतंद्रिता भि:।
दीप्तैस्तमासिनुदतेस्वकरैर्वि वस्वां
तंशंकरं शरणदं शरणं व्रजामि॥
श्रीजमाल साहब ने अपनी पोस्ट में शिव तत्त्व का विश्लेषण किया है पर दूसरों की आस्थाओं पे आघात और अपनी आस्था का मंडन ही किसी प्रकार कल्याणकारी कैसे हो सकता है
श्रीजमाल साहब, शिव तत्व ठीक से समझने-समझाने की कोशिश की है आपने.धन्यवाद
इसी तत्त्व को सदियों से महान मनीषियों का अनुसरण- कर्त्ता सनातन मतावलंबी समझता आ रहा हैऔर
अपने जीवन को शिवमय अर्थात कल्याणमय बनाता चला जा रहा है .आज की जीवनशैली जिसमें धर्म की कोई सम्भावना ही नहीं छोड़ी जा रही है ,को छोड़ दें तो आम भारतीय ने कभी किसी का अकल्याण नहीं चाहा है,कण -कण में उसी का दीदार किया है.कभी अपनी मान्यता किसी के ऊपर थोपने की कोशिश नहीं की है .सिर्फ अपनी सामान मान्यता वालों के ही सुख की ही कामना न करके सृस्ठी के कण कण के कल्याण की भावना एक भारतीय की रही है .
आप ही बताईये,जिसका सामर्थ्य कण कण में व्याप्त होने का हो ,जो सर्व कर्म समर्थ है, जिसके संकल्प मात्र से पूरी सृस्ठी उत्पन्न होती है,क्या उस पे यह तोहमत लगाई जा सकती है की वह एक मूर्ति में नहीं समा सकता बात मूर्ति को भगवान् मानने न मानने की नहीं है , बात उस सर्व समर्थ के सामर्थ्य की है, वह क्यों नहीं मानव रूप में प्रकट हो सकता है ,ध्यान दीजिये "प्रकट" शास्त्रों में कही भी उसके अवतार लेने की चर्चा आई है तो वहां "प्रकट" होना ही लिखा है नौ महीने गर्भवास करके गर्भद्वार से जन्मने का उल्ल्लेख नहीं आया है.और अगर वह गर्भवास करके गर्भद्वार से भी निकलता तो भी उसकी सामर्थ्यता ही सिद्ध होती है
और कोई शिवतत्त्व को जानने समझने का दावा करके भी ये ही आग्रह रखे की सारी कायनात अपनी अपनी मान्यताए त्याग के अपना खतना करवाएं, पांच बार नमाज पढ़ें, अपने सारे पुराण शास्त्र सभी को आग के हवाले कर दें ,तिलक जनेऊ को त्याग दें , सारे मंदिरों की मूर्तियों को बुलडोजर के निचे पिसवा दे.तो फिर उसने कहे का शिवतत्त्व जाना
कम से कम एक वैदिक धर्मावलम्बी तो कभी किसी से नहीं कहेगा की आप अपनी मान्यता,विश्वाश को त्याग के मूर्तिपूजा करें,तिलक लगायें ,जो सारी सृस्ठी में रम रहा है , उसे दसरथ पुत्र राम भी माने.
सनातन धर्म अपने ईश्वर को किसी भी रुप मे अपनाने की छूट देता है , मीरा श्री कृष्ण की भक्ति किसी रुप मे करती है , क्षत्रिय शक्ति की अराधना भवानी के रुप मे करता है , वही एक विद्यार्थी शक्ति की अराधना सरस्वती के रुप मे करता है , सनातन धर्म किसी एक किताब के अनुसार नही चलता है , यह एक शैली है जो मनुष्य को किसी भी रुप मे बाध्य नही करती जैसे की अन्य धर्मो मे है कि आप पाँच बार नमाज कीजीये , खतना कीजीये, बाल बढाईये , मूछ मत रखिये आदि-आदि ।, सनातन धर्म प्रमाण और सत्य पर अधारित है ।
जवाब देंहटाएंयह हिंदू समाज की अजीब ही लीला ही है कि यदि आप द्वेष भाव से लिखेंगे, झूठा लिखेंगे ,अतार्किक लिखेंगे, मन-गढ़ंत लिखेंगे तभी आपके ब्लॉग पर लोग आयेंगे और पढकर टिप्पणियाँ भी करेंगे अन्यथा सत्य कितना ही लिखो उसको पढ़ने वाले आज कम ही हैं.
जवाब देंहटाएंछल भरा यह व्यभिचारी युग है जहाँ तार्किकता नहीं छल का बोलबाला है, सुरक्षात्मक नहीं आक्रामकता दिखाओगे तो लोग अधिक सुनेंगे.
जैसे झूठो का पुलिंदा जमाल टाइप बकवास लोगो को आप यदि तर्क देंगे तो कभी भी उसका पलट कर जवाब नहीं देंगे बल्कि और कोई बकवास करके वार करेंगे या फिर यदि जवाब देंगे तो भी अतार्किक बकवास भरा होगा. ये हिंदू समाज की अपनी धर्म पुस्तकों से अनभिज्ञता और उसीके कारण आवश्यकता से अधिक सहनशीलता और निकम्मी सरकारों की सहायता का लाभ उठाने का प्रयास कर रहे हैं और इससे अधिक कुछ भी नहीं है. और इसमें इनके इस उद्देश्य की पूर्ती में विदेशी पैसा भी लगा है.
Dear Amit ,
जवाब देंहटाएंI like all your writings . I want to give you only one suggestion , please don't become Jamaal centric . Do not write as reaction because due to this entire post becomes justification of certain points and main massage is lost. In the process the content also loses it's taste.
Thanks.
अमित जी बहुत अच्छा लिखा है कितु जाकिर नाइक के चेलों का नाम अपने ब्लॉग में मत लिखो,जमाल के स्थान पर एक बुद्धिहीन ब्लोगर लिखे तो ज्यादा अच्छा रहेगा.
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