शुक्रवार, 26 नवंबर 2010

आप जो पूछा किया करते हो हाल-ऐ-अमित तफ़ज्जुल है आपका


आप कहते हो ग़मज़दा क्यों हो, कुछ कहकहाया भी किया करो
कहकहा क्या ख़ाक लगाएं पर, जब तबियत-ऐ-जहाँ नासाज हो

कोई ना, हामी-ऐ-गैरत यहाँ पर , बस गैरियत सी जमी जहाँ पर
कह ना पाए बात अपनी रवानी में, ठण्ड सी घुली है हर जवानी में

आप जो पूछा किया करते हो हाल-ऐ-अमित तफ़ज्जुल है आपका
वरना ज्यादा  तफावत से ही पडा करता है आजकल हमारा वास्ता

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हामी-ऐ-गैरत --------- सद्भावना के तरफदार 
गैरियत -------------  परायापन 
तफ़ज्जुल -----------  बड़प्पन
तफावत-------------  वैर-विरोध आदि के कारण आपस में होनेवाला अन्तर। मन-मुटाव।

25 टिप्‍पणियां:

  1. हम तो है सद्भावना के तरफदार!!

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  2. राम राम जी,



    क्या खूब दिल की बात कहीं है जी!

    "कोई ना, हामी-ऐ-गैरत यहाँ पर" ऐसा नहीं है...

    अरे आप है,हम है....अब सुज्ञ जी भी है....



    कुंवर जी,

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  3. मैं काफी समय से ध्यान नहीं दे पाया अमित , मगर लगा कि कहीं न कहीं वेदना है !

    ब्लॉग जगत में कमेंट्स भी कई बार संवेदनशील लोगों को दुःख देते हैं ! मेरा विचार है कि आप अनाम कमेन्ट न छापा करें ! अनाम कमेन्ट को हटाने से काफी गन्दगी साफ़ हो जायेगी !

    मुझे विश्वास है कि नैतिक बल और आत्मविश्वास कि तुम्हे कोई कमी नहीं फिर यह उदासी कम से कम मुझे अच्छी नहीं लगी ....
    सस्नेह !

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  4. अगर ये शायरी-वायरी है तो फिर तो वाह! वाह्! किए देते हैं..बहुत बढिया लिखा है, क्योंकि कविता, शायरी वगैरह की अपनी समझ जरूरत से कुछ अधिक ही कम है.....लेकिन अगर कहीं इसके पीछे कुछ ओर बात है तो फिर यही कहना चाहेंगें कि "हिम्मत न हारिये, बिसारिये न राम को"....इस उदासी को त्याग दीजिए ओर अपने कर्म में लगे रहिए..सब भली करेंगें राम!

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  5. हम नहीं करते वाह-वाही इस उदास गज़ल पर तुम्हारी।
    रोने-रुलाने को हम मर गये हैं क्या?
    सकारात्मक सोचा करो यार, तुम जैसों को देखकर तो हम प्रेरणा पाते हैं।

    गज़ल अच्छी है, हम नहीं लिख सकते ऐसी, इसलिये जल रहे हैं:)

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  6. मो सम कौन जी से सहमत

    @कह ना पाए बात अपनी रवानी में, ठण्ड सी घुली है हर जवानी में
    ???????

    अमित भाई,
    आखिर बात क्या है ?

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  7. मुझे ये तो पता नहीं क्या बात है लेकिन हो सके तो इस पोस्ट ....

    http://my2010ideas.blogspot.com/2010/10/blog-post_24.html

    ..... के सभी विडियो एक बार फिर देखें

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  8. मुझे ये तो पता नहीं की बात क्या है लेकिन हो सके तो इस पोस्ट ....

    http://my2010ideas.blogspot.com/2010/10/blog-post_24.html

    ..... के सभी विडियो एक बार फिर देखें

    जवाब देंहटाएं
  9. ..

    कह ना पाए बात अपनी रवानी में, ठण्ड सी घुली है हर जवानी में

    @ मैंने भी तो यही बात कही थी एक जगह :

    कटु सुनकर भी चिकने भन्टे प्रतिक्रिया हीन
    अपशब्द नहीं कहते, मनोरंजन करें, बीन
    महिषा-समक्ष मैं बजा गाल करता बकबक
    उसका होता मन-रंजन मेरा शुष्क हलक.
    _____
    भन्टे मतलब बैगन
    महिषा मतलब भैंस

    मैंने जितना बुरा-बुरा बोला वह इसलिये था कि मुझे कोई अपशब्द तो कहता लेकिन उसका असर केवल असंवेदनशील विधर्मियों पर हुआ और कुछ संवेदनशील लोगों पर हुआ. लेकिन अधिकांश तटस्थ ही रहे, प्रतिक्रियाहीन, सभी शांतिपसंद हैं. ताली वाली कवितायें और चुटकुले खोजते घूमते हैं ब्लॉगजगत में.

    क्या इस ब्लॉग जगत का प्रयोग केवल चुटकुले सुनने-सुनाने को ही होना चाहिए?

    ..

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  10. अजी नहीं जी सहेबलोगान कोई उदासी फूदासी का मामला नहीं है, पर लगता है कहीं ना कहीं तो है ..................तभी तो पता नहीं यह शेर है की सवा शेर,,,,, लिख गया.................. इत्ता तो मैंने सोचा ही नहीं था वोह तो सतीश अंकल ने कहा की मैं उदास क्यों रहता हूँ आजकल तो अन्दर से यह कूद पडा ..........................बाकी जब आप लोग सर माथे मौजूद हैं तो गम/उदासी की ऐसी की तैसी :)

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  11. क्यों आज आस ही उदास है,

    किस रंज के सायें में उल्लास है!

    कर के मंथन कोई खुद ही,


    कालकूट पीने का सा भास है!
    दिल का दर्द यही था बस,

    या उसे छिपाने का ही ये प्रयास है!

    बात छोटी हो या बड़ी,

    भला क्यों ये अकेलेपन का एहसास है!



    कुंवर जी,

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  12. समझ सकते है तो समझ लो दिल के छाले,
    बाकि कुरेद कुरेद कर जान लोगे क्या? :))

    जान द्विअर्थी है……

    जान : जीवन
    जान : जानना

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  13. अमित जी
    नमस्कार !
    सोचा की बेहतरीन पंक्तियाँ चुन के तारीफ करून ... मगर पूरी नज़्म ही शानदार है ...आपने लफ्ज़ दिए है अपने एहसास को ... दिल छु लेने वाली रचना ...

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  14. बहुत खूबसूरत ब्लॉग मिल गया, ढूँढने निकले थे। अब तो आते जाते रहेंगे।

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  15. आस पाली है जमाने से, क्या ख़ाक उल्लासी देगा
    बन शिवमय कालकूट को अब कौन भला पी लेगा

    दिल तो दर्दे जहाँ को समेटे जा रहा है आजकल
    मुहर्रिक क्या बनेगा किसी का, बैठ गया कोने में

    यह छाले भी मिटा लेंगे, मुहसिन जो आपसे है
    आती जाती बात है, कोई बुरा ख़्वाब एहसास नहीं

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  16. @ संजय भास्कर जी
    ढूंढा ही किया करोगे गर इसी तरह
    मिलेंगे मुहिब्ब हर राह पर जिंदगानी की

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  17. लक्ष्य है उँचा हमारा, हम विजय के गीत गाएँ।
    चीर कर कठिनाईयों को, दीप बन हम जगमगाएं॥
    तेज सूरज सा लिए हम, ,शुभ्रता शशि सी लिए हम।
    पवन सा गति वेग लेकर, चरण यह आगे बढाएँ॥
    हम न रूकना जानते है, हम न झुकना जानते है।
    हो प्रबल संकल्प ऐसा, आपदाएँ सर झुकाएँ॥
    हम अभय निर्मल निरामय, हैं अटल जैसे हिमालय।
    हर कठिन जीवन घडी में फ़ूल बन हम मुस्कराएँ॥
    http://shrut-sugya.blogspot.com/2010/10/blog-post_25.html

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  18. भाई क्या गजब कर रहे हो पोस्ट गजब , कमेन्ट में भी गजब! तुम छुपे रुस्तम हो यार

    जवाब देंहटाएं
  19. कुछ हम कहें तो कुछ तुम कहा करो
    दुख हमें दे दो, खुश तुम रहा करो

    शोले, शरारे बरसाएगी जवानी तुम्हारी
    मुग़ोँ-माही न सही, केसर ही तुम पिया करो

    किसी की कही दिल पे न लिया करो
    हमें देखो और बेफ़िक्र होकर जिया करो

    जवां दिल का भी कुछ हक है तुमपर
    ज्ञान किसी जोगन से तुम लिया करो

    वेद ओ कुरआन का तक़ाज़ा है बस यही
    दाता की ख़ातिर नादानों को क्षमा करो


    आपकी खुशी की चाहत में आपका भाई
    शुभकामनाएं !

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  20. Nice .
    बलात्कार पर सर्वथा अद्भुत चिंतन
    http://www.ahsaskiparten.blogspot.com
    पर , आज, अभी तुरंत ।
    भाई अमित जी, आप अभी तक आए नहीँ ?
    आइये और देखिए

    एक साथ दो पोस्ट एक ही ब्लाग पर
    तशरीफ़ लायेँ और हल सुझाएँ

    क्योंकि बलात्कार एक ऐसा जुर्म है जो अपने घटित होने से ज़्यादा घटित होने के बाद दुख देता है, सिर्फ बलात्कार की शिकार लड़की को ही नहीं बल्कि उससे जुड़े हर आदमी को , उसके पूरे परिवार को ।
    क़ानून और अदालतें हमेशा से हैं लेकिन यह घिनौना जुर्म कभी ख़त्म न हो सका बल्कि इंसाफ़ के मुहाफ़िज़ों के दामन भी इसके दाग़ से दाग़दार है ।

    क्योंकि जब इंसान के दिल में ख़ुदा के होने का यक़ीन नहीं होता, उसकी मुहब्बत नहीं होती , उसका ख़ौफ़ नहीं होता तो उसे जुर्म और पाप से दुनिया की कोई ताक़त नहीं रोक सकती, पुलिस तो क्या फ़ौज भी नहीं । वेद कुरआन यही कहते हैं ।

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  21. कोई ना, हामी-ऐ-गैरत यहाँ पर , बस गैरियत सी जमी जहाँ पर
    कह ना पाए बात अपनी रवानी में, ठण्ड सी घुली है हर जवानी में

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  22. मेरे हिसाब से तो बहुत उम्दा शायरी है........पढ़कर मज़ा आया.

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  23. मगर पूरी नज़्म ही शानदार
    शुभकामनाएं !

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  24. aap to chhupe rustam nikle anuj.......

    sundar prawahmayi nazm .......


    sadar

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जब आपके विचार जानने के लिए टिपण्णी बॉक्स रखा है, तो मैं कौन होता हूँ आपको रोकने और आपके लिखे को मिटाने वाला !!!!! ................ खूब जी भर कर पोस्टों से सहमती,असहमति टिपियायिये :)