शुक्रवार, 18 फ़रवरी 2011

देश,संस्कृति को छोड़, शीला की चिंता खात है

भंड भांड बहुत फिरे पी वारूणी मतवारे
हरी कीर्तन भूले, गावें मुन्नी गान सारे

जोबन युवान को सारो गर्त में ही चल्यो जात है
देश,संस्कृति को छोड़, शीला की चिंता खात है

मोहल्ला में कौन मर्यो बस्यो कछु खबर नहीं
पर आर्कुट,फेसबुक पर सिगरो जगत बतरात है

अरे यह काहे को जोबन और कैसी जबानी है
खाली फूंकनी सी नसान में बहयो जात पानी है

अब भी ऊठ चेत करलो रे संगी, बनजा सत्संगी
देश-संस्कृति की कीरत को अमित वृक्ष बड़ो जंगी
***************************************************

वारूणी ---- शराब
सिगरो ---- सारा, सभी
चेत ---- जागना, होश
बतरात ---- बात करना
नसान ---- नसों में (स्थानिक रूप में प्रयुक्त)
कीरत ---- कीर्ती

14 टिप्‍पणियां:

  1. .

    जोबन युवान को सारो गर्त में ही चल्यो जात है
    देश,संस्कृति को छोड़, शीला की चिंता खात है

    अमित जी, आपने पूरे काव्य में आधुनिक युवाओं को दर्पण दिखा दिया है. हम नित्य अपने घर-परिवार, पास-पडौस, शहर-गाँव सभी तरह के समाज में यही स्थिति देख रहे हैं.
    स्त्रियों को उपभोग वस्तु सिद्ध करने में लगे हैं प्रचार-तंत्र.
    इस प्रचार-तंत्र को निष्प्रभावी करने का एक ही मंत्र है - 'अपनी संस्कृति के प्रति सतत जागरूकता अपनी सामर्थ्य-सीमाओं तक फैलाना.' और यह कार्य आप बाखूबी कर रहे हैं.

    .

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  2. वाकई आजकल यही हो रहा है। कविता बेहद पसंद आई।
    सुन्दर और सार्थक कविता के लिए आपको आभार।

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  4. सारा लम्पट प्राइवेसी की करे बात है
    निजी जीवन याँको मीडिया फेर खुल के दिखात है
    आधुनिकता बस अतरी ही औकात है
    असा ही होवे छ पर्सनालिटी डेवेलपमेंट आजकाल
    पर नेचर को नी छोड़े
    वा तो करे इन्साफ है
    इंडीपेंडेंट ओलादां असा माई बाप की देवे बुढापा लात है
    तब जा के याँकी अक्ल ठिकाना प आत है
    पर जब तक चिड़िया खेत चुग ही जात है
    पछतावा से अंत में खाई ना आवे हाथ है

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  5. बहुत ही सार्थक चिंतन......... समाज की बदलती दशा को बहुत ही अच्छी तरह से आप ने दिखाया है

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  6. एक बात और बोलूं ये पढ़ कर मुझे एक शेर (या जो भी है ) याद आ गया .... थोडा सा मैं आगे बना रहा हूँ

    वो कौनसा है जाम
    वो किसने पिला दिया ?
    कुछ सरफिरों ने सारा
    सिस्टम हिला दिया ?
    इतने हुए हमले इस देश पर
    कृपा ने जिनकी झूठ को सच पर
    कुछ ऐसे बिठा दिया
    टेस्टिंग के मेथड सारे फेल हुए
    सच्चाई को गप्प कहना सिखा दिया
    अरे हाँ , हुआ है फायदा भी
    आधी अधूरी होने पर भी नोलेज
    हर दूसरे को साइंटिफिक सोच का तमगा दिया

    (थोड़ी जल्दी में बनाए हुयी रचना है ....)

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  8. .

    ग्लोबल जी की कविताई में न केवल आशुत्व के लक्षण नज़र आये अपितु उनकी पैनी धारदार मूल्यांकन दृष्टि के भी दर्शन हुए.
    गौरव जी आपका इस वर्ष का ग्लोबलावतार भी धूम मचाता दिख रहा है.

    .

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  9. sundar post .. kuchh-kuchh alag sa ..achchha laga aapko padhana ..badhai.

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  10. अरे यह काहे को जोबन और कैसी जबानी है
    खाली फूंकनी सी नसान में बहयो जात पानी है
    व्यवस्था पर सीधे चोट की है अमित भैया

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  11. मोहल्ला में कौन मर्यो बस्यो कछु खबर नहीं
    पर आर्कुट,फेसबुक पर सिगरो जगत बतरात है

    waah Amit ji bahut khub bayan ki hai aapne aaj ki hakikat ko
    bahut karar vyangya .........
    blog per aane k baad bahut accha laga.abhar hai aapka

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  12. सटीक रचना

    देश विदेश की खबर धरी पल पल मगर ,देश में बैठी माँ की दवा की फिक्र नही
    घंटो बतियाते रहते है फेसबुक पर मगर ,उसमे कही भी आत्मियता का जिक्र नही

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  13. प्रिय बंधुवर अमित जी
    सस्नेहाभिवादन !

    आपकी काव्य भाषा के कितने रूप हैं …
    मोहल्ला में कौन मर्यो बस्यो कछु खबर नहीं
    पर आर्कुट,फेसबुक पर सिगरो जगत बतरात है

    कभी संस्कृतनिष्ठ , कभी उर्दू मिश्रित , कभी ब्रज का स्पर्श !
    … और हां , राजस्थानी भी !

    रचना कमाल की लिखी है …
    बहुत ख़ूब ! बधाई !

    बसंत ॠतु की हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं !

    - राजेन्द्र स्वर्णकार

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  14. रोचक,प्रेरक,जनजागरण के भावों से पूर्ण अतिसुंदर रचना.

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