शुक्रवार, 1 अप्रैल 2011

अब आप ही बताईये कन्यादान हो या वरदान .............. क्या बुराई है :)

मेरे पास आपकी कोई भी धरोहर है, और मैं उसे आपको वापस कर दूँ तो वह क्या कहलायेगा ???? नहीं नहीं ईमानदारी या नेकनीयती या कर्त्तव्य के रूप में मत बताना, आपके पास उस अमानत के पहुँचने के भाव को आप किस शब्द द्वारा व्यक्त करेंगे यह बताना

अब आप बोलोगे अजीब खब्ती है सीधे सीधे कहेंगे जिसकी अमानत थी उसे वापस लौटा दी 
यानी यही मतलब ना कि "वापस दी" या "देना" 
अरे जरा ठरिये तो सही........ इस "देना" नामक क्रिया का भाव "दान" से भी तो व्यक्त होता है
वैसे दान का अर्थ हाथी के मस्तक से निकलनेवाला मद भी होता है, एक प्रकार का मधु या शहद भी होता है तो धर्म, परोपकार, सहायता आदि के विचार से अथवा उदारता, दया आदि से प्रेरित होकर किसी को कुछ देने की क्रिया या भाव भी होता है और आजकल खैरात के रूप में तो ज्यादा प्रसिद्द है ही
अब जिस शब्द अर्थ देना होता है उसी का अर्थ शहद भी है, पर दान शब्द रूढ हुआ देने के भाव में और उसमें भी "खैरात" के अर्थ में ज्यादा प्रचलित है

बस हो गया ना "दान" का "कुदान" मतलब कि अर्थ का अनर्थ किन्ही महानुभावों ने दान का अर्थ सिर्फ खैरात से जोड़कर कन्या के साथ लगे दान शब्द पर धावा बोल मारा

और धावा भी इस दावे के साथ मारा है कि वेदों में तो कन्यादान शब्द का प्रयोग नहीं हुआ फिर इस निकृष्ट (उनके हिसाब से ) शब्द का प्रयोग विवाह में क्यों किया जाता है

लो करल्यो बात यह भी कोई बात हुयी मैं जिस जयपुर नामक भूभाग में रहता हूँ उस जगह का नाम तो ढाई-तीन सौ साल पहले जयपुर नहीं "ढूंढ़ाड" था, और उससे भी पहले वैदिक काल में इसका कोई हिस्सा "मरू-धन्व" कहलाता था, तो कोई हिस्सा "जाँगल" के नाम से जाना जाता था तो काफी सारा भाग "मत्स्य जनपद" का भाग था
अब जयपुर को आज क्या कहेंगे कि नहीं भाई तेरा नाम तो पुरा-साहित्य में जयपुर कहीं मिलता ही नहीं तो अब भी तू जयपुर कहलाने का अधिकारी नहीं है जयपुर क्या करेगा खुद का करमडा फोड़ेगा ऐसा कहने वाले ज्ञानियों के आगे, जैसे कन्यादान शब्द फोड़ रहा है

कन्यादान शब्द तो चीख चीख कर कह रहा है की भाई लोगो तुम मुझे, सृष्टी चक्र को गती देने वाले दो तत्वों स्त्री-पुरुष को आपस में एक सूत्र में अटल रूप से पिरोने वाले "विवाह" के सन्दर्भ में ही देखो न कि  "आज मैं बनी तेरी लुगाई परसों किसी और से होगी सगाई" की भावना वाले मैरिज नामक समझौते के सन्दर्भ में

सन्दर्भ के धुंधलाते ही तो अर्थ के अनर्थ हो जाते है कन्यादान का सन्दर्भ है विवाह नामक संस्कार इस सृष्टी में मानव जीवन की उत्पत्ति  के लिए स्त्री-पुरुष का मिलन आवश्यक है, उस जीवन को सुचारु तरीके से आगे बढाने के लिए दांपत्य जीवन परम आवश्यक है
जिस तरह स्त्री-पुरुष में से कोई अकेला संतानोत्पत्ति नहीं कर सकता, उन दोनों के एक होने पर ही नए अस्तित्व का निर्माण होता है
 उसी तरह गृहस्थी भी अकेले से नहीं बनती है जब तक दो अस्तित्व आपस में मिलकर एक नहीं होते इस एक होने का नाम ही तो विवाह है कहने का मतलब एक के बिना दूसरा अधूरा है दोनों के मिलने पर ही एक बनेंगे
अब एक कैसे बनेंगे आधा शरीर तो एक जगह है और आधा शरीर दूसरी जगह, यानि एक तत्व किसी के घर में जन्म ले कर बैठा है और शेष तत्व दूसरे के घर में पुरुष के आधे अंग को यानि उसकी अमानत को एक दंपत्ति पाल रहे हैं रक्षण कर रहे है उसके प्रति अपने उत्तरदायित्वों का निर्वहन कर रहें है, और नारी की अमानत किसी दूसरी जगह स्थित हो पालन पोषण प्राप्त कर रही है

इन दोनों अधूरे तत्वों को मिलाने की विधि का नाम विवाह है। जिसके अंतर्गत दोनों एक दूसरे की जिम्मेदारियों के वहन की प्रतिज्ञा के साथ पूर्णतत्व बनते है

अब जगत की रीत यह कि  नारी विवाह करके पुरुष के घर जाती है इसलिए कन्या का उतरदायित्व निभाने वाले दंपत्ति उसके अधिकारी को विवाह द्वारा अपनी कन्या सौंपते हैं, यह रीत उल्टी होती तो वर के माता पिता स्त्री को उसका अर्धांग यानी अपना पुत्र देते

अब जिसकी धरोहर  जिसे लौटा दी वह भी स्पष्ट घोषणा के साथ की --
"......................विष्णुरूपिणे वराय, भरण-पोषण-आच्छादन-पालनादीनां, स्वकीय उत्तरदायित्व-भारम्, अखिलं अद्य तव पतनीत्वेन, तुभ्यं अहं सम्प्रददे । "
हे विष्णु स्वरुप वर, भरण-पोषण पालन आदि के सारे उत्तरदायित्व मैंने तुम्हारी पत्नी के प्रति निभाए हैं, उन सारे उत्तरदायित्वों को तुम्हें  देते हुए तुम्हारी पत्नी तुम्हें  सम्यक रूप से प्रदान करता हूँ
देखलो जी ऐसे जेब में से चवन्नी की तरह निकाल कर खैरात नहीं पटक रहे हैं
सम्यक रूप से जो जिसके अधिकारी है उन्हें आपस में दायित्वों के वहन के लिए विवाह द्वारा दे रहें है

तो पिता द्वारा अपनी कन्या को उसके योग्य वर को जो की उसके प्रति दायित्वों के निर्वहन का अधिकारी है को देता तो उसे "कन्यादान" नहीं कहेंगे तो क्या कहेंगे
रीत उल्टी होती तो "वरदान" कह देते पर शायद तब पुरुष जागृति  दूतों को इस "वरदान" से चिढ होती

आनन्दाश्रूणि रोमाञ्चो बहुमानः प्रियं वचः।
तथानुमोदता पात्रे दानभूषणपञ्चकम् ॥

क्या यह सब भूषण हिन्दू विवाह के आठ प्रकारों में सबसे श्रेष्ठ ब्रह्म-विवाह में "कन्यादान" के समय नहीं दिखाई देते ? 

अब आप ही बताईये कन्यादान हो या वरदान .............. क्या बुराई है :)

67 टिप्‍पणियां:

  1. साँप को न मारकर लकीर पीटते हैं लोग। दूसरे के दोष निकालकर खुद को ज्ञानी साबित भी तो करना होता है। भाव न देखकर शब्दों को पकड़ना इसी प्रक्रिया का हिस्सा है।

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  2. बहुत सुन्दर! जो भारतीय संस्कृति को नहीं समझते वे विवाह की पवित्र भावना को कैसे समझेंगे?

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  3. वैसे आप जितने सिंपल तरीके से समझाते हैं मेरे बस की तो बात नहीं है :) आपका धन्यवाद देने के लिए मेरे पास शब्द भी मिल पाएंगे | हिंदी ब्लोगिंग में गिनती के ही पल सही मायनों में सुखद होते हैं ये पोस्ट पढना अब उनमें से एक है |

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  4. मेरे जैसे बेवकूफ लोग एक बार जरूरी जानकारी लेने के बाद कोई टिप्पणी करते या लेख बनाते हैं और कुछ बुद्धिजीवी इधर उधर से लेख उठा कर समझे बिना कोपी-पेस्ट करने में व्यस्त हैं

    इनसे बस यही कहना है .....

    अरे मित्रों सार्थक ना लिखो तो आप लोगों इच्छा....... लेकिन ऐसा तो मत लिखो या कोपी पेस्ट करो जिसकी या तो आपको समझ नहीं है या आप समझना ही नहीं चाहते और जिससे दुर्भावनाएं फैले , और ऊपर से शाबाशी देने वाले शाबाशी देने में भी देरी नहीं करते | अगर इन्हें अब भी कोई नया लेख मिले तो ये आत्मविश्वास[?] दिखाने में देरी नहीं करेंगे | ऐसा भी क्या जूनून है अपनी संस्कृति(माता) पर पत्थर फेकने का ???

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  5. मेरे जैसे बेवकूफ लोग एक बार जरूरी जानकारी लेने के बाद कोई टिप्पणी करते या लेख बनाते हैं और कुछ बुद्धिजीवी इधर उधर से लेख उठा कर समझे बिना कोपी-पेस्ट करने में व्यस्त हैं

    इनसे बस यही कहना है .....

    अरे मित्रों सार्थक ना लिखो तो आप लोगों की इच्छा....... लेकिन ऐसा तो मत लिखो या कोपी पेस्ट करो जिसकी या तो आपको समझ नहीं है या आप समझना ही नहीं चाहते और जिससे दुर्भावनाएं फैले , और ऊपर से शाबाशी देने वाले शाबाशी देने में भी देरी नहीं करते | अगर इन्हें अब भी कोई नया लेख मिले तो ये आत्मविश्वास[?] दिखाने में देरी नहीं करेंगे | ऐसा भी क्या जूनून है अपनी संस्कृति(माता) पर पत्थर फेकने का ???

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  6. भावार्थ के मर्म को स्पष्ठ उजागर किया आपने अमित जी।

    कन्यादान शब्द का हीन स्वरूप अभी तो नारीवादियों नें तैयार किया है, ऐसे ही हीन भाव ग्रसित किसी वर के हाथ लगा तो विवाह-विधी के बीच वह सुसुर से कहेगा 'क्या भिखारी समझ रखा है जो दान-वान कर रहा है'(शब्द भाव पतन-खैरात)

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  7. ये भविष्य में होने वाले सभी कन्फ्यूजन के लिए -------

    ये लोग donation बोलते होंगे donum (लेटिन शब्द ) से उच्चारण में समान होने से , लेकिन कईं पाश्चात्य विद्वान भी इससे सहमत नहीं हैं (आगे खोज जारी है.....), इन विद्वानों / विदुषियों की सोच का पता नहीं | सीधी सी बात है संस्कृत का अन्य भाषाओं में ट्रांसलेट करके गलत मतलब निकालना लोगों का ट्रेंड बन गया है

    इनकी बात सुनिए ----

    "संस्कृत वह भाषा है जो ग्रीक से अधिक पूर्ण है, लेटिन से अधिक समृद्ध है, और दोनों से हि अधिक सूक्ष्म-शुद्ध है । सर्व भाषाओं की जननी संस्कृत, सबसे प्राचीन, सबसे पूर्ण है ।"
    सन 1786 में------ सर विलियम जॉन्स,

    आज चीन जिस तरह दिन दूनी, रात चौगुनी तरक्की कर रहा है, आश्चर्य नहीं कि इस शताब्दी के मध्य तक चीनी भाषा विश्व में उतनी ही महत्वपूर्ण हो जाय जितनी अंग्रेज़ी. (इसके संकेत अमेरिका में अभी से दिखने लगे हैं.) तब हम और दयनीय लगेंगे.

    यदि भारत को कभी उन्नत देशों की श्रेणी में गिना जाना है तो जरूरी है कि हम अंग्रेज़ी की बेड़ियों से मुक्त हों. उसे एक अतिथि सा सम्मान दें, गृहस्वामिनी न मानें. आम आदमी को उसी की भाषा में शिक्षा और शासन दिया जाय.


    वैसे एक शोर्ट ट्रिक भी है ----
    किसी से पूछ लिया करें ,

    बाकी अपनी अपनी इच्छा है , ये ब्लॉग बनाये किसलिए हैं अपनी मानसिकता दिखाने के लिए ही तो :)

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  8. सुज्ञ जी ने जो कहा है वही मेरा अगला कमेन्ट था :)

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  9. आपने हमारी संस्कृति में दान की अतिश्रेष्ठता को पुनः स्थापित करने का शुभभाव दिया है।

    आनन्दाश्रूणि रोमाञ्चो बहुमानः प्रियं वचः ।
    तथानुमोदता पात्रे दानभूषणपञ्चकम् ॥

    आनंदाश्रु, रोमांच, लेनेवाले के प्रति अति आदर, प्रिय वचन, सुपात्र को दान देने का अनुमोदन – ये पाँच दान के भूषण हैं ।

    यह संस्कृति याचक का बहुमान करते हुए उसे पूजनीय मानती है। दान देने का सौभाग्य देने के लिये याचक के सम्मुख कृतज्ञ रहती है। इसलिये दान शब्द में बहुमान निहित है।

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  10. जिन्हें इस-से आपत्ति है, वह खुद वर-दान क्यों नहीं करते. क्यों नहीं शादी के बाद लड़के को अपने घर रख लेते हैं, नहीं करेंगे ऐसा. क्योंकि यह हमारी संस्कृति को नीचा दिखाने की चेष्टा भर है. चाहे खुद हजार कुकर्म करें, उसे उचित ठहराने के लिये तमाम कुतर्क लेकर कूद पड़ेंगे और मजे की या अफसोस की बात यह कि हमारे ही कुछ अपने खुद को प्रगतिशील और निरपेक्ष दिखाते हुये उनकी हां में हां मिलाते हैं...

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  11. हालांकि दान (दाता और याचक दोनो के लिए) एक श्रेष्ठ कर्म है फिर भी विवाह विधि के कन्यादान सूत्र में दान का आशय उससे भी श्रेष्ठ है।

    अन्यथा इस सूत्र में "हे विष्णु स्वरुप वर" की जगह "हे याचक स्वरुप वर" न होता?

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  12. पता नहीं, वरदान का सही अर्थ आपके विचारों तक ले जायेगा सबको। बहुत सटीक विवेचन।

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  13. मेरी पहली टिप्पणी में:
    #...आपका धन्यवाद देने के लिए मेरे पास शब्द भी मिल पाएंगे
    @ आपका धन्यवाद देने के लिए मेरे पास शब्द भी नहीं मिल पाएंगे

    [थोड़ी सी टाइपिंग मिस्टेक की वजह से एक टिप्पणी दो बार हुयी है ]

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  14. बहुत खूब .... !!
    नया कलेवर बहुत प्यारा लगा ..शुभकामनायें !

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  15. अमित जी

    कुछ भी लिखने से पहले ये बता दूँ मै बुद्धिजीवी नहीं हूँ सो जो भी कहूँगी वो जमीनी धरातल से जुडा होगा

    कन्यादान एक कुप्रथा हैं जिस कि वजह से लड़की का अपने परिवार पर से अधिकार ख़तम होजाता हैं
    कन्या + दान ये क्यूँ किया जाता हैं इसकी कोई वजह खोजने से पहले ये देखे कि
    "जिसका दान हो रहा हैं क्या वो खुश हैं " अगर वो खुश हैं तो क्या उसको ज्ञात हैं कि अब उसके माता पिता का अधिकार उस पर से ख़तम हो रहा हैं
    अगर उसको ज्ञात हैं और वो फिर भी खुश हैं तो ठीक हैं लेकिन अगर
    "जिसका दान हो रहा हैं वो अनभिज्ञ हैं " कि ये एक कु प्रथा हैं और वो इसको केवल इस लिये स्वीकार रही हैं क्युकी पहले सबने किया हैं तो वो " कंडीशन " का शिकार हैं
    जिसका दान हो रहा हैं "अगर वो ना खुश हैं" तो क्या किसी को उसको दान करने का अधिकार हैं .
    क्यूँ हैं कन्यादान कु प्रथा क्युकी इसके बाद लड़की का मायके से दाना पानी उठ जाता हैं . उसकी अर्थी अगर उठती हैं तो बस ससुराल से . इस में गलत क्या हैं बस इतना ही अगर लड़की पर मुसीबत भी हो तो माता पिता उसका साथ नहीं देते . लड़की को मायके से शादी के बाद पैत्रिक सम्पत्ति में से कुछ नहीं मिलता था
    इस कुप्रथा का तोड़ निकालने के लिये ही कानून बनाये गये जहां बेटी का पत्रिक सम्पत्ति पर अधिकार माना गया हैं .
    अब जब पैत्रिक पर अधिकार ही मिल गया तो दान तो अपने आप में ही एक विसंगंती होगया हैं .

    कानून तभी बनते हैं जब कुप्रथाए समाज मे हावी होती हैं .

    एक कहावत हैं
    बहिन के घर भाई कुत्ता ससुर के घर जमाई कुत्ता
    ये सब कहावते इन्ही कुप्रथाओ से उपजी हैं जहां विभेद हैं

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  16. रचनाजी
    शायद आपका कथन जमीनी धरातल पर नहीं उतर पाया है.
    आप तो इतना बताइये की दान शब्द से आपका आशय क्या है, या स्पष्ट कहूँ को आपकी सरल प्रज्ञा दान का आशय क्या खैरात ही लेती है ?
    कन्या+दान पितृ-सत्तात्मक व्यवस्था में हो रहा है, व्यवस्था उल्टी होती तो "वरदान" यानी पुत्र+दान होता. इस बारे में आपका क्या कहना है.
    अगर विवाह ही होना है तो एक को तो अपना घर छोड़ना पडेगा ही. तो जिसे दूसरे घर जाना है उसके घर वाले उसे देंगे ही ना की फेकेंगे.
    और हाँ जहाँ विवाह का मतलब ही मात्र दैहिक सम्बन्ध हो वहाँ तो किसी प्रकार की रीत या प्रथा की जरुरत ही नहीं है.
    किस ने कहा की आपके बताने से पहले किसी भी विवाहिता को यह नही मालूम चला की "अब उसके माता पिता का अधिकार उस पर से ख़तम हो रहा हैं" और किस तरह ख़त्म होता है यह भी नहीं समझ में आया.

    आपके हिसाब से विवाह का सही स्वरूप क्या होना चाहिये यह बताने की कृपा करें. अगर भारतीय विवाह पद्दति की बात करें तो उसमें तो कन्या दान होगा ही, मत्रसत्तात्मक व्यवस्था होती तो पुत्रदान भी होता.
    हो सकता है आपका जीवन उन्ही परिस्थितियों को देखने में बीता हो जहाँ किसी स्त्री का विवाह के बाद उसके पीहर वालों ने उसका ध्यान नहीं रखा हो. बाकी विवाह से लेकर म्रत्यु -पर्यंत कदम दर कदम हर ख़ुशी-गम के मौके पर पीहर पक्ष के यथा अपेक्षित योगदान को निभाते हुए ही मैं तो अब तक देखता आ रहा हूँ.
    और हर लड़की को पीहर से ससुराल में कदम रखते ही वहाँ की हर बात को आत्मसात कर लेने की क्षमता को मैं बचपन से ही कौतुहल से देखता आया हूँ.

    बिना इस कानून के बने भी पीहर पक्ष से लड़की को समय समय पर पीहर से आत्मीयता और सम्मान पूर्वक भेंट, उपहार, संतान होने पर, संतान के विवाह के अवसर और ना जाने ता-उम्र कितने ही अवसरों पर किये जाने खर्चे जो की लड़की का अधिकार मानकर ही पीहर पक्ष द्वारा अपना कर्तव्य मानकर किये जातें है और इनमें जो मिठास है उसमें जहर घोलने का काम ही यह कानून ज्यादा कर रहा है.
    जहाँ तक जंवाई-भाई के कुत्ता होने की बात है तो मेरी नज़र में तो हर वह व्यक्ति कुत्ता-कुत्ती है जो खुद की मेहनत से कमा कर ना खाता हो और दूसरों के आश्रित रहकर उनके दरवाजे पर पडा हो.
    और यह कहावत भी भाई के निठल्ले बहिन के घर और जवाई के ससुराल में पड़े रहने को लक्ष्य में रखकर ही बनी है.

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  17. आपका जीवन उन्ही परिस्थितियों को देखने में बीता हो जहाँ किसी स्त्री का विवाह के बाद उसके पीहर वालों ने उसका ध्यान नहीं रखा हो.

    amit ji

    yae dharatal ki sachhaii meri yaa kisi vyakti vishesh ki nahin
    kaanyaadaan karkae ladki ko paraya kardiyaa jaataa haen us par sae adhikaar hataa liyaa jataa haen

    किस ने कहा की आपके बताने से पहले किसी भी विवाहिता को यह नही मालूम चला की "अब उसके माता पिता का अधिकार उस पर से ख़तम हो रहा हैं" और किस तरह ख़त्म होता है यह भी नहीं समझ में आया.
    amit ji
    maere bataney naa na batane ki baat nahin haen mera kament mae kewal various options haen

    कन्या+दान पितृ-सत्तात्मक व्यवस्था में हो रहा है, व्यवस्था उल्टी होती तो "वरदान" यानी पुत्र+दान होता. इस बारे में आपका क्या कहना है.
    amit ji
    isiiliyae samanta ki baat jarurii haen wo samntaa jo kaanun aur samvidhaan detaa haen taaki kisi kae saath bhi galat naa ho

    अगर भारतीय विवाह पद्दति की बात करें तो उसमें तो कन्या दान होगा ही, मत्रसत्तात्मक व्यवस्था होती तो पुत्रदान भी होता.
    amit ji
    badlaav har jagah hota haen vivaah padhtee mae bhi ho rahaa haen . padhtee kaa matlab lakir peetna nahin hona chahiaye


    बिना इस कानून के बने भी पीहर पक्ष से लड़की को समय समय पर पीहर से आत्मीयता और सम्मान पूर्वक भेंट, उपहार, संतान होने पर, संतान के विवाह के अवसर और ना जाने ता-उम्र कितने ही अवसरों पर किये जाने खर्चे जो की लड़की का अधिकार मानकर ही पीहर पक्ष द्वारा अपना कर्तव्य मानकर किये जातें है और इनमें जो मिठास है उसमें जहर घोलने का काम ही यह कानून ज्यादा कर रहा है.

    amit ji kanunu samaan adhikaar ki baat kartaa haen aur kanun tabhie bantaa haen jab ati hotee haen asamantaa ki

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  18. रचना जी
    ये पोस्ट पढने के मेरे मासूम से मन में जो जिज्ञासा उठती है वो ये है की क्या हमने कभी जाने अनजाने में नारी जाति को "वस्तु" कहने का या कहे जाने पर उसका समर्थन करने का उनुचित कदम उठाया है या नहीं, वर्ना कल को लोग "ब्लोगिंग" को "कुप्रथा" या "भड़ास" कहने लगें तो जिम्मेदार "ब्लोगिंग" हुयी या "ब्लोगर" ???

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  19. जिज्ञासा नंबर दो
    कुछ महिलायें ऐसा क्यों नहीं मानती

    Some marriage rituals are hated and deemed abusive by the feminists and the Un/Mis-informed Hindus. Kanyadaan being one.
    It is also considered by the Ritualistic Hindu as a means to wash off one's sins.

    http://manukhajuria.blogspot.com/2009/08/ritual-of-marriage-and.html
    आधुनिक युग में :

    “Thank God everything was diagnosed overnight and her dad was given the correct treatment on time or he wouldn’t have been able to do the kanyadaan. If that had happened, Shilpa would have been devastated. Even now, the whole thing has cast a shadow on the marriage proceedings, but Shilpa is happy that her dad will be able to give her away!”

    http://www.indiangossips.com/2009/11/21/shilpa%E2%80%99s-father-won%E2%80%99t-attend-sangeet/

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  20. जिज्ञासा नम्बर तीन:

    कन्यादान से सद्भाव फैलता है क्या हम इस और कभी ध्यान देते हैं ???

    Jayesh Dalwadi is not related to Shehnaz Sheikh, Rahima Kadiya and Shehbani Sheikh. But on Sunday, he performed 'kanyadaan' for three Muslim girls, a ritual usually performed by the father in Hindu weddings.

    http://articles.timesofindia.indiatimes.com/2011-02-28/india/28641131_1_mass-nikaah-muslim-couples-muslim-girls

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  21. जिज्ञासा नंबर चार
    अगर किसी रिचुअल के प्रति कभी कोई बुरी लगने वाली कहावत बना दे तो क्या उसे त्याग देना समझदारी है ?? यही "नाक की नथ" वाली बात पर कहा गया था | जबकि वो नारी स्वास्थ्य के लिए उपयोगी साबित की जा सकती है

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  22. जिज्ञासा नम्बर पांच :
    एक संपन्न आत्मनिर्भर कन्या को कन्यादान से क्या आपत्ति हो सकती है (माना उसे इस बात की जानकारी नहीं है ) कईं विदेशी यहाँ आकर हिन्दू रीती से विवाह करते हैं ......... और अगर कोई संपन्न नहीं है और कोई पुण्य कमाने के लिए ही सही कोई उसका कन्यादान कर रहा है तो इसमें बुराई क्या है ??

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  23. अमित भाई बहुत अच्छा लेख है. अपने कन्यादान शब्द के पीछे का मनोविज्ञान बड़े अच्छे ढंग से समझाया गया है. पर पता नहीं मुझे लगता है कि हम अनावश्यक रूप से इस शब्द के बचाव में खड़े हैं. कल अगर मैं अपनी पुत्री का कन्यादान करने कि जगह उसका विवाह करना चाहूँ तो इससे क्या फर्क पड़ेगा. कन्यादान कि जगह अगर हम विवाह शब्द का उपयोग करें तो क्या कुछ गड़बड़ होगी?



    सच कहूँ मैं आज अपनी पुत्री का लालन पालन किसी भी नजरिये से उसे किसी और कि पत्नी समझ कर नहीं कर रहा. कोई मुझे भले ही कितनी ही प्रतीकात्मकता से समझाए मैं अपनी पुत्री और पुत्र का लालन पालन ये समझ कर नहीं करूँगा कि कल ये किसी का पति बनेगा और वो किसी कि पत्नी बनेगी. अरे वो अच्छे संस्कारवान इन्सान बन जाएँ यही काफी है बाकि कि चीजे तो खुद ही हो जाएँगी.



    बहुत पहले इस विषय में मेरी अपनी पत्नी के साथ बहस हुयी. उनका भी कहना था कि हमारी संस्कृति में लड़की को वस्तु समझा जाता है. इस बात को प्रमाणित करने के लिए उन्होंने एक और उदहारण भी दिया. पहले जब राजा महाराजाओं के महल में कोई ऋषि मुनि आते थे तो वे अपनी पुत्रियों को उनकी सेवा के लिए प्रस्तुत कर देते थे. मेरी पत्नी जानना चाहती थी कि राजा लोग अपने पुत्रों को या फिर अपनी पत्नियों को ऋषि मुनि कि सेवा में क्यों नहीं प्रस्तुत करते थे. और वापस जाते वक्त ये ऋषि मुनि उन कन्याओं को पुत्रवती होने के मंत्र भी दे जाते थे जैसा शायद कुंती के साथ हुआ था. अपनी पत्नी के ये तर्क (जिन्हें कोई भी परंपरावादी पुरुष कुतर्क ही मानेगा) सुनकर मैंने तो नतमस्तक होकर कन्यादान शब्द कि जगह विवाह शब्द के प्रयोग में ही भलाई समझी :))



    दोस्त अपना तो बचपन अम्मा कि मार खाते हुए बीता, जवानी पत्नी के अधीन बीत रही है और पूरा विश्वास है कि बुढ़ापा बिटिया कि छत्र छाया में ही बीतेगा क्योंकि पुत्र तो अभी से धमकी देता है कि अगर एक घंटे से ज्यादा नेट पर बिताया तो खैर नहीं.

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  24. उफ़ ! कितना जिज्ञासु मन है मेरा ? , मेरी बातों के उत्तर कोई भी दे सकता है बाकी जिज्ञासाएं बाद में .. आप लोग चर्चा जारी रखिये ......

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  25. जिज्ञासा नम्बर छः :
    कानून के मामले में भी ये कहा गया है
    यहाँ देखें , क्या मुझे इस पर यकीन करना चाहिए
    http://www.youtube.com/watch?v=4tHLAQVPZ48

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  26. पाण्डेय जी कुछ लोग कहते हैं
    विवाह का शाब्दिक अर्थ है 'उठाकर ले जाना'।
    क्या आप इस (कु)तर्क को मानते हुए कोई कदम उठाएंगे ??, कन्यादान से कोई नुकसान नहीं होता लग रहा हमारी मानसिकता से होता रहा है

    जवाब देंहटाएं
  27. कन्यादान लड़की का ही क्यों ??

    इसके जवाब में था नहीं पता नहीं पर मैंने कहीं ये भी पढ़ा था
    "हम दोनों पैर एक साथ ऊपर क्यों नहीं उठा सकते ??"

    इससे हम गिर जायेंगे यहाँ "हम" का आशय है "परिवार" व्यवस्था से | विदेशों में फिर भी वृद्धों के लिए अच्छी स्कीम्स होंगी मुझे नहीं लगता भारत में उतनी हैं

    जवाब देंहटाएं
  28. ये शायद अंतिम कमेन्ट .......
    जो कमी है वो है शिक्षा पद्दति में, उसके अलावा सारी दुनिया भर के सुधार करते रहे तो हमारी स्थिति और दयनीय होती चली जायेगी | (मेरे पिछले कमेन्ट अवश्य पढ़ें) ना तो हम आयुर्वेद पढ़ते हैं, ना चरक संहिता, ना गीता और अब हमने प्रथा को कुप्रथा कहना भी शुरू कर दिया, हम होते कौन है ये कहने वाले ??
    इन महान ग्रंथों की जानकारी ना होने से होते हुए नुकसान को ना देखना सबसे बड़ी बेवकूफी है

    जवाब देंहटाएं
  29. कन्यादान शब्द के विरुद्ध इतने तगड़े तगड़े विचार पढ़कर अब तो मुझे इन शब्दों से भी घृणा होने लगी है -----
    "धन्य है वे नारियां जिन्होंने देश की रक्षार्थ अपने सुहाग का बलिदान कर दिया"
    "धन्य है वें माएं जो देश की सीमाओं की रक्षा के लिए अपने बेटे का बलिदान करने में भी नहीं हिचकिचाती"
    "धन्य हैं वे वीर जो हँसते हँसते अपने प्राणों का बलिदान देश की रक्षा के लिए कर देतें है"

    क्यों साहब यह देश रक्षार्थ बलिदान में भी तो दान आ रहा है क्या देश कोई भिखमंगा है या बलिदान होने वाले किसी की संपत्ति है जो उनके परिजन उन्हें इसके लिए प्रेरित करतें है, या यों कहे की सेना में जाकर प्राण गवाने वालों को तो पता ही नहीं होता की मेरे परिजन मुझे एक वास्तु मात्र समझते है उनके लिए मेरी कोई अहमियत नहीं है इसलिए मुझे मरने के लिए सेना में भारती होने की स्वीकृति सहज ही में देदी. वोह तो सिर्फ इसलिए सेना में चले जाते हैं की उनसे पहले भी लाखों सैनिक बन चुके है ;)

    जवाब देंहटाएं
  30. हाँ और यह भी तो हो सकता हैं ना की देश की रक्षा में प्राण गंवाने को बलिदान क्यों कहा जाये सदा सीधा मरना ही क्यों ना कहा जाए. मरता ही तो है तो मरने में भी विशेष रूप से "बलिदान" कहकर किशी शब्द विशेष का पक्ष क्यों लिया जाये ............. यह भी तो एक कु प्रथा है की एक तो जीव जीवन से जाए और उसे बलिदान और कहा जाये क्या उसके प्राण इतने सस्ते थे या किसी की संपत्ति थे जो दान कर दिए .

    जवाब देंहटाएं
  31. @पाण्डेय जी

    ये वीडियो कुछ कहता है ??

    http://www.youtube.com/watch?v=z_OCmWEEkcQ

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  32. @देश की रक्षा में प्राण गंवाने को बलिदान क्यों कहा जाये
    अमित भाई,
    गजब की बात कही है

    मुझे नेत्रदान, रक्त दान याद आ रहे हैं, ये सब वस्तु हैं क्या ??? जिज्ञासा ही है

    जवाब देंहटाएं
  33. एक बहुत आसान प्रश्न हैं
    "कन्या " का अर्थ क्या हैं
    दूसरा प्रश्न हैं
    "किस आयु " तक कन्या मानी जाती हैं

    जवाब देंहटाएं
  34. अमित जी का ... सूक्ष्म चिंतन विस्तार लेता हुआ.
    रचना जी का ... सतही चिंतन संकुचित होता हुआ.
    दीप जी का ....... भौतिक चिंतन जो स्व के खोल से निकलना नहीं चाहता.
    गौरव जी का ...... प्रश्नपरक चिंतन जो सुलझा हुआ होते हुए भी अपने प्रियजनों को उलझा रहा है.
    .................... आनंद आ रहा है.

    जवाब देंहटाएं
  35. रचना जी का प्रश्न .......... सतह से ऊपर उठता हुआ. कन्या का अर्थ क्या है ? शाब्दिक अथवा व्यवहारिक ?

    जवाब देंहटाएं
  36. दीप पाण्डेय जी,

    निर्दोष संस्कारों के लिये प्रयुक्त शब्दो का अवमूल्यन होता रहेगा, शब्द के अन्यार्थ देखकर हम संस्कार ही हटाते चलेंगे तो एक दिन सारे सभ्य संस्कार ही समाप्त प्राय हो जायेंगे।

    या शब्द के सतही विरोध के कारण हम संस्कारों से ही परहेज करने लगे तो शायद संस्कृति हमें कसम खाने तक को इतिहासों में भी न मिले।

    जवाब देंहटाएं
  37. रचना जी,

    कुप्रथाएँ क्या है………?

    मानव समाज अपने जीवन को सुगम बनाने के लिये कुछ नियम संस्कार लागु करता है वे संस्कार प्रथाएं बनती है। पुनः मानव अपने स्वार्थ वश संस्कारों को दूषित करता है। इस तरह प्रथाएँ प्रदूषित होकर कुप्रथाएं बन जाती है। अब आवश्यकता उन प्रथाओं को प्रदूषण मुक्त करने की है न कि प्रथाओं(संस्कारो) को जड-मूल से ही खत्म करने की।

    जवाब देंहटाएं
  38. कन्यादान विधि से पुत्री के पैत्रिक अधिकार समाप्त हो जाते है यह बात सर्वथा गलत है।

    पैत्रिक सम्पति में अधिकार का कानून बना, कानून का हम सम्मान करते है पर क्या कोई बता सकता है कितने प्रतिशत पुत्रियों ने इसके लिये न्यायालय की शरण ली?

    जब कि बिना अधिकार की अपेक्षा किये ही कन्यादान के बाद भी बाप विभिन्न प्रथाओं के माध्यम से बेटी को निरंतर अर्थ सहाय करता रहता है। जिम्मेदारियां जब अचुक निभाई जाती है तो अधिकार मांगने या छीनने का प्रश्न ही नहीं आता। जब अधिकार छीनकर ही पाने की मंशा बनती है तो जिम्मेदारियां भी संकीर्ण हो उठती है।

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  39. जो अपनी वैचारिक दृष्ठी से ही समष्टि को देखने का प्रयत्न करते है वे सही मायनो में दृष्ठी दोष से पीड़ित हैं. कोई अपनी आंख से कितनी दूर देख सकता है .................... पर इसका मतलब यह तो नहीं की उसकी देखने की पहुँच से आगे संसार है ही नहीं, या उसे धुंधला दिखाई दे रहा है तो धुंधली दिखाई देने वाली वस्तु में खोट है. ऐसा ही आजकल तथाकथित प्रगतीशील तत्व करतें है, तथ्यों को समग्रता से देखने समझने की शक्ति स्वयं में नहीं होती और इसका दोष तथ्यों को विशेषकर सांस्कृतिक प्रतिमानों में खोट बतला कर उनके उन्मूलन में प्रवृत होते है .
    विवेक शक्ति स्वयं में हमें ही विकसित करनी होगी, अगर हम पुरातन प्रतिमानों के मायने नहीं समझ पायें तो तो खोट हमारा है प्रतिमानों का नहीं.

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  40. प्रतुल जी अवम सुयज्ञ जी
    मेरे प्रश्न मे सब उत्तर छुपे हैं .
    भारतीये संस्कृति मे { क्युकी बात हमेशा संस्कृति कि होती हैं } कन्या किसे कहते हैं और किस उम्र तक कन्या माना जाता हैं

    आप लोग इस प्रश्न का उत्तर दे दे इतना आग्रह हैं .

    प्रतुल जी अवम सुयज्ञ जी
    मेरे प्रश्न मे सब उत्तर छुपे हैं .
    भारतीये संस्कृति मे { क्युकी बात हमेशा संस्कृति कि होती हैं } कन्या किसे कहते हैं और किस उम्र तक कन्या माना जाता हैं

    आप लोग इस प्रश्न का उत्तर दे दे इतना आग्रह हैं . मै उसके बाद विस्तार से कुछ कह सकती हूँ . तब तक आप लोग चाहे तो मेरे ऊपर के कमेंट्स कोडिलीट मान ले

    जवाब देंहटाएं
  41. अगर हम पुरातन प्रतिमानों के मायने नहीं समझ पायें तो तो खोट हमारा है प्रतिमानों का नहीं.




    उन्ही प्रतिमानों के आधार पर मेरे प्रश्न का उत्तर दे अमित जी आप भी आभार होगा

    जवाब देंहटाएं
  42. मुद्दा नाजुक है इस लिए अभी कुछ नहीं बोल रहा हूँ (एक ब्लोगर की इतनी जिम्मेदारी होनी ही चाहिए, की बिना सोचे समझे कुछ भी न बोल दे , जो ब्लॉग जगत में होता रहा है )

    लेकिन कोई उत्तर नहीं आने पर मैं एक ओपिनियन दूंगा

    जवाब देंहटाएं
  43. मतलब आपको आपके प्रश्न का उतर मिलेगा जरूर ...उदाहरण के साथ

    जवाब देंहटाएं
  44. @ "कन्या " का अर्थ क्या हैं

    # कन्या स्त्री० [सं० कन्य+टाप्] १. अविवाहिता लड़की। क्वाँरी लड़की। २. पुत्री। बेटी। ३. बाहर राशियों में से छठी राशि जिसमें उत्तरा फाल्गुनी के अंतिम तीन चरण, पूरा हस्त और चित्रा के प्रथम दो चरण है। (विर्गो) ४. घीकुआँर। ५. बड़ी इलायची। ६. वाराही-कंद। गंठी। ७. एक प्रकार का वर्णवृत्त जिसके प्रत्येक चरण में चार गुरु होते हैं। ८. दे० ‘कन्या-कुमारी।’

    शब्द कोश के अनुसार कन्या का अर्थ अविवाहिता लडकी ही बताया गया है, पुत्री/बेटी तो सर्वमान्य और सर्व प्रचलित है ही.
    आज पैंतीस चालीस साल की लड़कियां शादी नहीं करती, पर लड़की की क़ानूनी आयु अट्ठारह साल मान्य है. पर आज से कुछ सौ साल पहले तक अगर लड़की को बारहवर्ष की आयु तक कुँवारी माना जाता था, या कह लीजिये की बारह वर्ष की आयु लड़की की विधि सम्मत आयु थी. तो क्या अनहोनी है.

    अष्टवर्षा भवेद् गौरी दशवर्षा च रोहिणी। सम्प्राप्ते द्वादशे वर्षे कुमारीत्यभिधीयते।।
    आपने इस स्मृति वाक्य का आछादन अपने प्रश्न में किया है. लेकिन क्या यह आयुमान स्मृति काल से पूर्व भी यही था ? वैसे लक्षणों के आधार पर सोलह वर्ष तक की लड़की भी कुमारी कही जाती है.
    और शास्त्रों में तो पांच विवाहिताओं को विवाहिता होने पर भी कन्याओं के समान ही पवित्र माना गया हैं—अहल्या, द्रौपदी, कुन्ती, तारा और मंदोदरी.

    अजित वडनेरकर जी अपने ब्लॉग पर बतलाते है की -- "कम् धातु में निहित लालसा, प्रेम और अनुराग जैसे भावों को संतति के प्रति वात्सल्य के अर्थ में ही देखना चाहिए। संतान के प्रति सहज प्रेम और अनुराग होता है इसलिए कम् धातु से बने कुमार शब्द में संतति का बोध है।"

    इसी से माता-पिता की मादा संतान कन्या कहलाती है, और जब पिता वर को अपनी कन्या सौंपता है तो यह "कन्यादान" कहलाता है. लेकिन संतति बोधक शब्द होने के कारण ही, वर अपनी अर्धांगिनी को अपनाते समय यह नहीं कहता की ---- हे "कन्या" सौभाग्यवृध्दि के लिए मैं तेरा हाथ ग्रहण करता हूँ.
    बल्कि वर कहता है, ---- हे "वधू" सौभाग्यवृध्दि के लिए मैं तेरा हाथ ग्रहण करता हूँ.

    जवाब देंहटाएं
  45. रचना जी,
    एक ओपिनियन आ गया अब आपकी सोच इस बारे में बताइये वर्ना चर्चा एक तरफ़ा टाइप की हो जाएगी, हमें भी तो पता लगे आप क्या सोचती हैं ?:) नारी ब्लॉग पर इतनी पोस्ट्स प्रकाशित हुई हैं ...कुछ सोच तो होगी ? ..है ना !

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  46. और हाँ....... उसके बाद अमित भाई की टिप्पणी पर अपनी राय अलग से बताइयेगा ...... ये बेहद जरूरी है :)

    जवाब देंहटाएं
  47. @ सभी से

    जिज्ञासा नंबर सात :
    ये जो "कन्यादान" के विरोध पर जो पोस्टस बनती हैं वो "दान" शब्द पर बनती हैं , या "कन्या" शब्द को लेकर??? , अगर "कन्या" शब्द को लेकर थी तो इतनी सारी पोस्ट्स और उन पर की गयी मेहनत का क्या हुआ ?? क्या लेखक और पाठक दोनों यूँ ही समर्थन कर कर के जा रह थे ?? बिना मुद्दे को समझे ही ??

    जवाब देंहटाएं
  48. भईये गौरवजी आपकी यह जिज्ञासा मेरी भी जिज्ञासा है........ मैं भी यह ही पूछना चाहता हूँ की दान उठकर कन्या पर कैसे आरोपित हो गया ???

    जवाब देंहटाएं
  49. हाँ ... अगर "कन्या" पर ही पोस्ट बनानी थी तो पहले ही बना देनी थी इतने दिन तक "दान" पर मेहनत का क्या फायदा हुआ ??

    अब आगे किसी का भी उत्तर देने के पहले ये बात पूछ तो ली जानी चाहिए ना ?:)

    जवाब देंहटाएं
  50. रचना जी,

    एक बात तो स्वीकार करूंगा,भले कईं मु्द्दों पर आपसे सहमत न हो पाएं,पर नारी सम्बंधी विषयों पर आपके समर्पण भाव को सलाम करते है।
    कन्या के अर्थ माननीय अमित जी ने प्रस्तुत किये ही है। तथापि कन्या शब्द आयुष्य बोधक कतई नहीं है। जैसे किशोरी,षोडसी आदि होते है।
    मुख्यत: यह अविवाहित पुत्री के रूप में प्रयुक्त होता है। और साधारण दशा में मात्र पुत्री के लिये। जैसे विवाहित स्त्री के लिये भी पुछ लिया जाता है यह किसकी कन्या है।

    जवाब देंहटाएं
  51. रचना जी,

    अब कन्या शब्द का कन्यादान के सन्दर्भ में विचार करें तो एक मात्र अविवाहित पुत्री अर्थ ही ध्वनित होता है।

    अब आप ही स्पष्ठ करें आपके प्रश्न में क्या उत्तर गर्भित है।

    मैं जानता हूँ आप हमारी तरह ही संस्कृति समर्थक है, बस आप को वे सांस्कृतिक तथ्य मंजूर नहीं जो आपकी नजर में नारी विरोध में जाते हो।

    जवाब देंहटाएं
  52. बढ़िया वाद विवाद चल रहा है, उधर मेरे सिस्टम में अभी अभी गाना बज रहा था फ़िल्म ’पड़ौसन’ से जिसमें महमूद दुखी होकर कह रहा है ’कभी घोड़ा कभी नार’ ब्रेक ले लो मित्रों फ़िर तय कर लेना ’कन्या’ या ’दान’

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  53. अब सभी मित्रों से अनुरोध है (जो मित्र मानते हैं )

    "कन्या" शब्द पर इस वक्त प्रतिक्रिया बचा कर रखें (जरूरत पड़ेगी जरूर :) , हाँ अगर प्रतिक्रिया देना ही चाहें तो ये सिर्फ इतना ही बताएँ की "कन्या" शब्द पर कुछ विचार देना चाहेंगे, सच्चे दिल से निकले विचार बड़े कीमती होते हैं संभल संभल के खर्च करने का वक्त आ गया है दोस्तों :) सब एक साथ ही कुछ कहें तो बेहतर नतीजे आ सकते हैं :)

    अभी तो आप को अमित भाई और मेरी जिज्ञासा पर कंसंट्रेट करना था :(

    @अगर "कन्या" पर ही पोस्ट बनानी थी तो पहले ही बना देनी थी इतने दिन तक "दान" पर मेहनत का क्या फायदा हुआ ??

    जवाब देंहटाएं
  54. वर्ल्ड कप जीतने की बधाई और शुभ रात्रि :)

    जवाब देंहटाएं
  55. मैच जित गए सो बधाई
    इसी वजह से मै देर से आयी



    सुज्ञ जी कि आभारी हूँ जिन्होने ये माना कि मै भी भारतीये संस्कृति कि समर्थक और फक्र से कहती हूँ कि मै हिन्दू हूँ .
    मेरा ये कमेन्ट मात्र मेरा आत्म मंथन हैं .



    मुझे अपने तिरंगे से प्यार हैं , अपने संविधान से लगाव हैं और अपने कानूनों का मै सम्मान करती हूँ .


    ब्लॉग पर जो लिखती हूँ उसके लिये ९० प्रतिशत समय केवल देखा , सुना , सोचा , समझा ही आधार होता हैं . कोई रिफ्रेंसिंग ज्यतादर मेरे लेखो या कमेन्ट में नहीं मिलेगी .

    आप सब नई पीढ़ी के हैं और यहाँ केवल मै पुरानी पीढ़ी कि हूँ . मेरा निज का मानना हैं कि जब बात संस्कार के हो , पूजा पाठ के हो तो हम को वो पूरे रीती रिवाज से करना चाहिये या नहीं करना चाहिये अन्यथा उनका लाभ { वैसे क्या कुछ भी लाभ के लिये करना चाहिये } नहीं मिलता .

    नवरात्रि कल से शुरू हैं . कन्या कि पद पूजा और खिलाने का काम भी शुरू होगा . भारत में "कन्या " केवल और केवल वो कहलाती हैं जो रजस्वला नहीं हुई हैं . रजस्वला कि ना तो पद पूजा होती हैं ना उसको जिमाया जाता हैं . ये बात भारत कि हर स्त्री जानती हैं



    आप सब अगर किताबी बातो से हट कर किसी भी स्त्री से पूछे तो आप को यही बताया जायेगा . कन्या और अविवाहिता दो अलग अलग बाते हैं . मेरी मंशा किसी के ज्ञान को गलत कहने कि नहीं हैं

    पहले विवाह कि उम्र दस वर्ष से कम ही होती थी क्युकी तब तक ही कन्या कन्या मानी जाती थी . उस समय और कई जगह आज भी जहाँ पारम्परिक रीती रिवाज हैं विवाह कन्या का किया जाता हैं और गौना रजस्वला का .

    आज विवाह कि आयु कानून १८ वर्ष हैं जिस तक पहुचते पहुंचते हर कन्या रजस्वला हो चुकी होती हैं . तो अगर हमारी संस्कृति में "कन्यादान " किया भी जाता था तो आज अगर एक १८ वर्ष कि लड़की का कन्यादान होता हैं तो वो अपने आप में गलत प्रथा , परिपाटी या रीति रिवाज का अँधा अनुकरण मात्र हैं . पूजा यानी वैवाहिक रीती खंडित पहले ही हो जाती हैं .

    अब इसके परिणाम सुनिये
    आज कल विवाह के समय कन्या "महीने " से अगर होती हैं तो संस्कार वश वो पूजा में नहीं बैठना चाहती हैं , क्या करे अगर विवाह कि तारीख और "महीने " कि तारीख एक दिन ही पडे . क्या अपने पिता या भाई से वो कह सकती हैं ?? माँ से कहती हैं , और माँ और दोस्तों कि राय से कैमिस्ट के यहाँ जाती हैं और दवा लेती हैं { डॉक्टर के यहाँ नहीं जाती हैं क्युकी डॉक्टर नहीं देगी } वो दवा जो "महीने " को आगे ले जाति हैं . वही से खिलावाड़ शुरू होता हैं उसका अपने शरीर से .क्यूँ क्युकी संस्कार हैं कंडिशनिंग हैं .

    आप सब कन्या दान के महत्व कि बात करते हैं पर वो जिस समय होता था हम उस समय से बहुत आगे आगये हैं . पीछे mud कर देखने से , कन्यादान का महातम समझने से या वो कितना सही या गलत हैं ये विवाद करने से क्या हासिल होगा ?? आज अगर दान होता भी हैं तो "कन्या " का नहीं होता .

    मैने अपने पहले कमेन्ट इसलिये कहा कि डिलीट समझे जाए क्युकी मै एक दूसरे दृष्टि कोण से आप लोग को आप लोगो कि बात को दिखाने कि कोशिश करना चाहती थी .

    संस्कार , रीति रिवाज के नाम पर कन्यादान करके आप खुद वैवाहिक रीती कि शुचिता को नष्ट करने का आवाहन देते हैं .

    मेरी समझ धरातल कि समस्या से जुड़ी हैं

    आज के लिये इतना ही
    ये इस पोस्ट पर मेरा आखरी मंथन हैं

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  56. रचना जी, आपने बेहद उम्दा मंथन किया. पसंद आया.

    फिर भी कुछ तो कह मैं भी कह लूँ.
    हमारा सौन्दर्य बोध हमेशा वस्तु, व्यक्ति, समाज को संस्कारित करने का हिमायती रहा है.
    इसलिये वह वस्तु की बाह्य सज्जा करता है.
    इसलिये वह व्यक्ति को अलंकारों से भूषित करता है.
    इसलिये वह समाज को रीति और परम्पराओं से नवाजता है.
    ....... मतलब यह कि वह अलंकृत करके सभी को आदर्श रूप दे देना चाहता है. यह स्वभाव है ही.

    एक कुरूप से कुरूप भी सुन्दर दिखे इसके लिये वह कुछ न कुछ कसरत करता दिखायी देगा.
    इसी प्रकार हमारी भाषा में कई शब्द ऐसे हैं जो हमारे संस्कारों और परम्पराओं को अलंकृत करते हैं.
    यथा : 'कन्यादान', 'गौदान', 'अतिथि-सत्कार', 'अभिवादन', 'चरण-स्पर्श' 'तिलक' आदि अनेक शब्द ऐसे हैं जो न केवल अपने अर्थ तक सीमित हैं, अपितु उनके पीछे एक वृहत पवित्र भावना है.

    शेष बाद में... आज घर में एक पारिवारिक कार्यक्रम है, उसमें व्यस्त हूँ कल से...

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  57. रचना जी,

    ठहरिए, आप मात्र अपना ही दृष्टिकोण प्रस्तुत कर यूँ जा नहीं सकती। :) (आप बडी हैं आपको रोकने के लिये नटखट कथन)

    आपके मंथन के बाद मन में और भी कईं प्रश्न खडे हो गये है, मैं चाहता हूँ चर्चा को कुछ तो परिणामिक आधार मिले…

    कन्यादान को अप्रासंगिक मानने के लिए यह प्रयाप्त कारण नहीं है।
    लेखक और बाकी पाठको को भी अभिव्यक्ति का अवसर देते है।

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  58. रचना जी,

    जिज्ञासा नंबर आठ:
    कानून के बारे में भी भारत में बहुत कुछ एक्सपर्ट्स और "आम आदमी" द्वारा कहा जाता रहा है , लेकिन फिर भी आप (और मैं भी) उसका सम्मान करते हैं , (जैसे लोग कंज्यूमर फोरम जाने से आज भी बचते हैं, से लेकर बड़ी बड़ी बातों तक)
    क्या इसे "श्रृद्धा" कहा जा सकता है ????
    एक नयी कहावत बनायी है "बिन जानकारी सब सून"

    एक बात और सनी देओल स्टाइल में .......
    "कमेन्ट पर कमेन्ट मिलते रहे मी लोर्ड ....... जवाब नहीं मिला "

    मतलब आप ये मान रही हैं ना की "दान" के आधार पर बनी पोस्ट्स का कोई मतलब निकालता नजर नहीं आ रहा , और प्लीज चर्चा छोड़ कर मत जाइए आखिर आप भारतीय संस्कृति कि समर्थक है

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  59. और हाँ ये चर्चा ब्लॉगवुड के हित में भी है .....
    सोचिये कितने विद्वान ब्लोगर्स का समय बचेगा जो भविष्य में "दान" को आधार बना कर "कन्यादान" को बेवजह कोसने में लगे हैं, भारत की नारियां क्षमा शील हैं वो तो माफ़ कर ही देंगी लेकिन गलती तो गलती है

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  60. पहले तो "स्टेप वन" ही कम्प्लीट होनी चाहिए मित्रों

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  61. सारगर्भित आलेख और टिप्पणियां ...दुबारा ठीक से पढना होगा ...रोचक वाद विवाद हो गया है ...
    नव संवत्सर की हार्दिक शुभकामनायें !

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  62. कोई चाहे तो चर्चा आगे बढ़ाई जा सकती है
    अभी ढेर सारे सन्दर्भ बचे हुए हैं , मेरे साथ तो हमेशा यही होता है :(
    जब तक मेरे मासूम सवालों का जवाब नहीं मिलेगा तब तक शायद मैं मेरा बनाया हुआ लंबा चौड़ा उत्तर "पेस्ट" या "पोस्ट" नहीं करूँगा
    ये पोस्ट .......

    http://my2010ideas.blogspot.com/2011/04/blog-post_04.html

    वो उत्तर नहीं है जो मैं देने वाला था :)

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  63. ..... लेकिन ये पोस्ट

    http://my2010ideas.blogspot.com/2011/04/blog-post_04.html

    है वैसा ही नजरिया जो होना चाहिए और जिस दिशा में मैं उत्तर देता :)

    और आखिर में .........

    अमित भाई को धन्यवाद देता हूँ पोस्ट के रूप में इस बेहतरीन प्रयास और हमारी बात को ब्लॉग (मंच) देने के लिए

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  64. लेख उत्तम है.

    ...पर चर्चा....हे राम !!!

    चलता हूँ......जय श्री राम.

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  65. ये चर्चा भी पढियेगा मित्रों :)

    http://my2010ideas.blogspot.com/2011/04/blog-post_22.html

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जब आपके विचार जानने के लिए टिपण्णी बॉक्स रखा है, तो मैं कौन होता हूँ आपको रोकने और आपके लिखे को मिटाने वाला !!!!! ................ खूब जी भर कर पोस्टों से सहमती,असहमति टिपियायिये :)