चलिए कुछ ऐसी तरन्नुम गुनगुनायी जाये
दीवारे भरम की सारी जड़ों से गिराई जाये
उकताहट बहुत होती है ज़माने की गर्मी से
ठंडाई मुहब्बत की ज़माने को पिलाई जाये
जगमगाते मस्जिद -ओ- मंदिर क्या रोशन करें
चलिए गफलत के मारे किसी घर में उजाला करें
खुद ही इल्मे किताबत क्या करते रहेंगे उम्रभर
चलिए किसी मुफलिस के बच्चों को पढाया जाये
छायाँ नहीं मिलती कंही सुकूँ की मुरझाए दरख़्त पुराने
चलिए क्यारियां रोपें, मुहब्बत बरसाएंगे जो होंगे सयाने
सूखता सा ही क्यों चला जा रहा है दरिया ये मुहब्बत का
देखना जरा "अमित" रोड़ा अटका न हो आपसी अदावत का
सूखता सा ही क्यों चला जा रहा है दरिया ये मुहब्बत का
जवाब देंहटाएंदेखना जरा "अमित" रोड़ा अटका न हो आपसी अदावत का
kuch kahne ke liye hi baki nahi chodte aap
bahut badiya
BAHUT KOOB!
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंघर से मस्जिद है बहुत दूर... चलो यूं कर लें, किसी रोते हुए बच्चे को हंसाया जाए
जवाब देंहटाएंबाग़ में जाने के आदाब हुआ करते हैं, किसी तितली को न फूलों से उडाया जाए..
Pushpendra ji से सहमत हूं :)
Great Post :)
वाह जी क्या बात है , लाजवाब प्रस्तुति रही ।
जवाब देंहटाएंदोस्त सुबह वाली पोस्ट खुल नहीं रही थी। अब जाकर आपकी कविता का आनंद ले पाया हूँ। बहुत बढ़िया। मेरे दो प्रिय मित्र कवि हैं अब मुझे भी एक पोस्ट लिखनी पड़ेगी "चला पाण्डेय कवि बनाने"।। मित्र आपके भीतर का ये स्रोत्र जाग्रत हो चूका है इसे कभी सूखने ना देना । आपकी कवितायेँ यूँ ही निर्झर बहती रहनी चाहिए।
जवाब देंहटाएंआपकी बडाई में कुछ भी कहना बेइमानी होगी ।
जवाब देंहटाएंआपकी रचनाएं तो सारी बडाइयों से परे हैं ।
आपको पढकर मन प्रसन्न हो जाता है ।
यूं ही हमेशा साथ बने रहिये , खुशियां बांटते रहिये, गम बंटाते रहिये ।
धन्यवाद
@ आपकी बडाई में कुछ भी कहना बेइमानी होगी ।
जवाब देंहटाएंbilkul sahmat
आपकी बडाई में कुछ भी कहना बेइमानी होगी ।
जवाब देंहटाएंbilkul sahmat
bahut khoob...
जवाब देंहटाएं"जगमगाते मस्जिद -ओ- मंदिर क्या रोशन करें
जवाब देंहटाएंचलिए गफलत के मारे किसी घर में उजाला करें
खुद ही इल्मे किताबत क्या करते रहेंगे उम्रभर
चलिए किसी मुफलिस के बच्चों को पढाया जाये"
बेहद उम्दा रचना...बिल्कुल सोने सी खरी बात कह गए....लेकिन किताबों में धर्म को खोजने वाले इन बातों को क्या जानें.....
अमित भाई कही ये जमाल & पार्टी को तो नसीहत नहीं है??
जवाब देंहटाएंक्योंकि आपने पहले भी कई बार उसे समझाया है-----------------
इसके अलावा कुछ ऐसा भी लिखिए की मुस्लिम समाज में शिक्षा का स्तर बड़े, समाज के परिवारों में घूम-घूम के उन्हें समझाओ की सिर्फ एक पीड़ी को ग्रेजुएट बना दो पूरा समाज ग्रेट बन जायेगा. अपने लेखन कर्म से शिक्षा और सद्भाव का वातावरण बनाइये.
bahut khub
जवाब देंहटाएंजगमगाते मस्जिद -ओ- मंदिर क्या रोशन करें
जवाब देंहटाएंचलिए गफलत के मारे किसी घर में उजाला करें
हम तो पहली बार आपके ब्लॉग पर आये पर अब लगातार आना पड़ेगा.....इतना अच्छा लेखन जो करते हैं आप. वर्तमान परिदृश्य को उजागर करती रचना...यह कविता अच्छी लगी
....बधाई.
acchhe bhaav hai is kavita me ..bahut badhiya
जवाब देंहटाएंशानदार... बढ़िया... बेहतरीन...
जवाब देंहटाएंअच्छी कविता है, आज कल आपका कविता पर जोर ज्यादा दिख रहा है । बढ़िया बात है , जारी रहनी चाहिए ।
जवाब देंहटाएंAMIT G KALAM KI DHAR TAJ OR TAJ HOTI JA RAHI HAI
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंचलिए किसी मुफलिस के बच्चों को पढाया जाये.
जवाब देंहटाएं________ यह केवल कविता ही नहीं है यह तो उचित उपदेश भी है. जो कि कविता का सर्वप्रथम उद्देश्य होना चाहिये.
-------------- अरे आप पीछे काफी कविताई किये हैं. आपके जन्म दिवस पर आपकी रचनाएँ सेवन कर रहा हूँ. इस तरह आपसे करीब हो रहा हूँ.