आप सभी ने वह कहानी तो पढ़ी होगी ना जिसमें ठग राजा से ऐसा कपडा बुनने कि बात कहता है कि यह कपडा मुर्ख को दिखाई नहीं देगा और उसे ठग ले जाता है........................ शातिर ठग ने राजा से आकर कहा कि वह ऎसा कपडा बुन सकता है, जो सिर्फ समझदार को दिखलाई देगा। ठग ने कपडा बुना, उससे वस्त्र बनाए और राजा को पहना दिए। राजा को कपडा दिखाई ही नहीं दिया, पर उसके दरबारियों ने एक स्वर में कहा कि वाह कपडा कितना लाजवाब है। आखिर नए वस्त्र पहने राजा का जुलूस निकला। राजा नंगा था, पर किसी का साहस नहीं कि राजा को वस्त्रहीन कहे। आखिर एक मासूम बच्चे ने चिल्ला कर कहा- अरे राजा तो नंगा है।
क्या आप को नहीं लगता कि ऐसे ठग और ऐसे राजा के भाई-बंधु हमारे आस-पास ही खूब मौजूद है . आये दिन अख़बारों में पढने को मिलता रहता है कि दुगने का लालच देकर कोई रूपये ठग ले जाता है तो कोई सोना चाँदी.
अब लो एक मजेदार बात और घटी है जयपुर में कि कुछ ठग लोगों को एक ऐसा शीशा बेचने के नाम पर लाखों रुपयों कि चपत लगा गए, जिससे कपड़ों के अन्दर शरीर को भी देखा जा सकता है.
अब बिचारे ठगी के शिकार लोक-लाज के मारे ना तो पुलिस में शिकायत करने जैसे और ना घरवालो को बताने जैसे. भापडे मुहँ छिपाकर रोने के अलावा कुछ नहीं कर सकते थे .ठग पहले तो दलालों के मार्फ़त पुरामहत्व कि चीजों के नाम पे ग्राहक ढूंढते थे फिर उन्हें इस शीशे का झांसा देकर, अग्रिम भुगतान लेकर गायब हो जाते थे. है ना कमाल के ठग और कमाल के ठगाने वाले.
अनपढ़ लोगों कि कौन कहे पढ़े लिखे लोग ही जब ऐसे झांसो में आ जाते है तो फिर भगवान् ही मालिक है!!!!!!!!!!!!!!!!
ये सही है की हमारे ऐसे ठगे जाने के मामले बढ़ते जा रहे है....पर ये भी सच है कि ये हमारे दोहरे व्यक्तित्व और छिपे हुए लालच के कारण कारण ज्यादा हो रहा है.....
जवाब देंहटाएंहम भले भी बने रहना चाहते है और दो नम्बर का लाभ भी लेना चाहते है...
मोह में दोनों चले जाते है...ना माया मिलती है ना राम....
कुंवर जी,
लोभ-लालच सबकुछ करवाता है मेरे भाई।
जवाब देंहटाएंसुन्दर लेख पर बधाई
बहुत खूब कही अमित जी !
जवाब देंहटाएंNice Post .
जवाब देंहटाएंएक किरदारे-बेकसी है मां
ज़िन्दगी भर मगर हंसी है मां
दिल है ख़ुश्बू है रौशनी है मां
अपने बच्चों की ज़िन्दगी है मां
ख़ाक जन्नत है इसके क़दमों की
सोच फिर कितनी क़ीमती है मां
http://blogvani.com/blogs/blog/15882
3rd vote for your smile .
जवाब देंहटाएंअब मै भी कैसे बताऊ कि मै कैसे लुट रहा हूँ ब्लोग्वानी, चिट्ठाजगत टिप्पणियों कि संख्या पांच बता रहे है, जबकि ब्लॉग पे सिर्फ दो ही दिखाई दे रही है. बाकी तीन टिप्पणियां कौन लूट ले गया भाई!!!!!!!!!!!!!
जवाब देंहटाएंलुटती है दुनिया लुटने वाला चाहिये!!!!!!!!!!
जवाब देंहटाएंबाकि ये तो गजब ही हो रहा है, तीन टिप्पणिया पर वाकई में कोई डाका डाल गया
जागरूकता ज़रूरी है, बहुत ही बेहतरीन बात की तरफ इशारा किया है अमित भाई. बहुत खूब!
जवाब देंहटाएंएक पसंद का चटका हमारी तरफ से भी
टिप्पणी में भी ठगी?
जवाब देंहटाएंये भी खूब रही.
जवाब देंहटाएंवाह इस वाकये को पढ़कर मजा आ गया। ये ठग भी मानव मन की कमजोरियों का ही फायदा कैसे उठाना है ये खूब समझते हैं।
जवाब देंहटाएंha ha ha mazedaar...ye ajeeb si chaahat unhe le doobi
जवाब देंहटाएंसही कहा है मित्र ,,,,,हमारे गाँव में भी पहले सोना-चांदी के जेवर साफ़ करने के बहाने ठग ...एक रसायन में उनकी कुछ मात्र घोल कर ले जाते थे ....पर आजकल लोग कुछ समझदार हो गए है इसलिए ऐसी वारदातों में कुछ कमी आई है ..परन्तु ये पूरी तरह समाप्त नहीं हुई ,,,
जवाब देंहटाएंखूब्! मानव मन की कमजोरियों को ऎसे ठग लोग बहुत अच्छे से पहचानते हैं......
जवाब देंहटाएंये टिप्पणियों की ठगी की समस्या का सामना लगभग सभी ब्लागर्स को करना पड रहा है....सब गूगल देव की माया है.
हाँ! भाई.... इस प्रकार के ठग पहले बहुत मिलते थे....अब सब हाई-टेक हो गए हैं.... बहुत अच्छी और सार्थक पोस्ट....
जवाब देंहटाएंशीशा या चश्मा?
जवाब देंहटाएंशीशा केवल जस को तस दिखाने का काम करता है. शायद आप चश्मा कहना चाहते हैं.
हाँ ऐसा एक चश्मा होता है जिससे कपड़ों के भीतर का नज़र आता है. जिनके कर्म गुण कम प्रभावी होते हैं उनके शारीरिक गुण [आकार और रूप] उस चश्मे से देखे जा सकते हैं. उस चश्मे का नाम है कामुकता.
नंगे राजा की कहानी फैशन डिजायनरों को शायद नयी-नयी कल्पनाएँ करने को प्रेरित करे.
जब लोग ठगे जाने को तैयार हों तो ठग की तो ऐश होना स्वभाविक है भई..किस कारण से चाहिये ऐसा शीशा..लो ठगाना था ही!!
जवाब देंहटाएं"...पढ़े लिखे लोग ही जब ऐसे झांसो में आ जाते है तो फिर भगवान् ही मालिक है!"
जवाब देंहटाएंसही कहा आपने
हमेशा लालची आदमी ही ज्यादा लुटता है और लालच अनपढ़ व पढ़े लिखे में भेद नहीं करता |
जवाब देंहटाएंGreed has no end. I really appreciate those innovative 'thags' who invented that imaginary mirror and shown mirror to the the idiots of society who had the filthy desire to look beneath clothes.
जवाब देंहटाएंThis is the right way to correct such people.
Hats off to such great reformative 'thags'.
सही कहा आपने
जवाब देंहटाएंबिलकुल सही बात है आप सभी कि, लालच ही पतन का कारण बनता है.
जवाब देंहटाएं@ प्रतुल जी शीशा तो शीशा ही है-----------
शीशा पुं० [फा०]---- १. एक प्रसिद्ध कड़ा और भंगुर पदार्थ जो बालू, रेह या खारी मिट्टी को आग में गलाने से बनता है, और जिससे अनेक प्रकार के पात्र, दर्पण आदि बनते हैं। २. उक्त का वह रूप जिसमें ठीक-ठीक प्रतिबिम्ब दिखाई देता है। आईना। दर्पण। पद—शीशा-बाशा=बहुत नाजुक चीज। मुहावरा—शीशे में मुँह तो देखो=पहले अपनी पात्रता या योग्यता तो देखों (व्यंग्य) ३. उक्त पदार्थ का बना हुआ वह पात्र जिसमें प्राचीन काल में शराब रखी जाती थी। पद—शीशे का देव=शराब। मुहावरा—शीशे में उतारना= (क) भूत, प्रेत आदि को मंत्र बल से बाँधकर शीशे के पात्र में बन्द करना। (ख) किसी को अपनी ओर आकृष्ट या अनुरक्त करके अपने वश में करना। ४. झाड़ फानूस आदि काँच के बने सजावट के सामान। ५. लाक्षणिक अर्थ में बहुत ही चिकनी तथा चमकीली वस्तु।
ये लोग इस शीशे को संगमरमर के फ्रेम में लगा कर देते थे. इसलिए इस घटनाक्रम में शीशा इसी रूप में है, चश्में के रूप में नहीं .
amit ji khub thgaai men aaye lekin hm bhi kyu btaayen ke kese thge aap. akhtar khan akela kota rajasthan mera hindi blog akhtarkhanakela.blogspot.com he
जवाब देंहटाएंch ch ch
जवाब देंहटाएंजब तक बाजार हमारे बीच खड़ा रहेगा तब तक लूट मची रहेगी। एक बार फिर आपकी पोस्ट शानदार है।
जवाब देंहटाएंamit ji ram-ram.... ati mahtvakansha hi samsaya ki jad hai, yeh tag iska hi fayda uthate hai ... isliye sam main rahne se apne man or vichar dono ko lutne se bachaya ja sakta hai....
जवाब देंहटाएंssudheer07@gmail.com
कुछ पुराने या हाईटेक तरीके हमें भी बता देते......
जवाब देंहटाएंवृत्ततस्तु हतो हत:
जवाब देंहटाएंचारित्रिक पतन के कारण ही ऐसी घटनाएं होती हैं ।
भला ऐसे सीसे की क्या जरूरत आ पडी थी ।
ठीक ही हुआ ।1