रविवार, 9 मई 2010

"कुपुत्रो जायेत क्वचिदपि कुमाता न भवति" --------- अमित शर्मा

बच्चों ने माँ को गुलदस्ता देते हुए, मदर्स डे की शुभकामनाये दी.माँ ने मुस्कुराते हुए गुलदस्ता ले तो लिया, पर चेहरा कुछ और ही बयान कर रहा था. माँ अपने कामों में व्यस्त हो गयी; बच्चे समझ नहीं पाए क्या हुआ!!!!!!!!!!!!!!

भी  अचानक  बच्चो  के समझ  में  सब आया है 
हरदम  हँसतीं  माँ  का  चेहरा  क्यों  कुम्हलाया है 
 माँ  ने  हर  दिन   जिन  बच्चों  के नाम किया  था
उन  बच्चो ने सिर्फ  एक दिन  माँ  के  नाम  रखा था 
बचपन  से  पढ़ी  बात  आज  पूरी  समझ  में  है आती
क्यों कहते "कुपुत्रो जायेत क्वचिदपि कुमाता न भवति"



19 टिप्‍पणियां:

  1. बहती धार से अलग विचार आप जैसे ही दे सकते है, बिलकुल मार्के की बाट कही है आपने

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  2. माँ ने हर दिन जिन बच्चों के नाम किया था
    उन बच्चो ने सिर्फ एक दिन माँ के नाम रखा था

    bilkul karari chot

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  3. ना मंत्रं न यंत्रं तदपिच न जाने स्‍तुति कथा ....


    आपको मातृत्‍व दिवस की शुभकामनाएं.

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  4. मां वाकई में सबसे महान है..

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  5. कमबख्त आप कभी फीके भी पड़ोगे क्या :)
    हर बार वाह ही निकलती है मुहँ से

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  6. वैसे "मदर्स-डे" वे मनायें जो माँ से दूरी महसूस करते हों.
    मेरा मानना तो यह भी है कि अपना "बर्थ-डे" वे मनायें जो अपने जन्म को माँ या मातृ- भूमि के लिए सार्थक समझते हों.
    केक काटना, मोमबतीयाँ बुझाना, गुबारे फोड़ना, और बर्गर-पीजा खाने को ही जो जन्म दिवस मानते रहे हैं. मुझे लगता है वे "पा" के "ओरो" की तरह से प्रोग्रेसिया बीमारी का शिकार हैं जिनकी उम्र तो बढ़ गयी है लेकिन दिमाग नहीं. अपने जन्म दिवस पर फूकने वाले पैसे से 'किसी' वृद्ध माँ की सेवा करें' मदर्स-डे को कुछ सार्थकता मिलेगी.

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  7. अमित आप बिलकुल ठीक हैं की माँ का प्रत्येक दिन तो केवल अपने बच्चो के लिए ही होता है और वही बच्चे केवल एक दिन अपनी माँ को समर्पित करते बाकि दिनों तो वो केवल एक बोझ हो जाती है। कुछ इसी ही भावनाए शेफाली जी ने अपने ब्लॉग पर अपनी कविता में व्यक्त की हैं। अभी थोड़ी देर पहले ही पढ़ा था। बड़ी लाजवाब कविता है उनकी। मैं आपके भावों से सहमत हूँ।

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  8. जी हां पर ये भारत हैं जहां आज भी अधिकांश दिन मां के ही साथ बीतता है....मदर्स डे की मोहताज नहीं है मां....हां जो बच्चे किसी कारण से दूर हैं तो उनकी मजबूरी है..पर मां का आर्शिवाद हमेशा उनके साथ रहता है और मां उनके दिल मे.....

    पर हां ये कलयुग है ......माता भी कहीं कहीं कुमाता हो जाती है अमित....क्या करें....सच्चाई कड़वी है पर सच है...

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  9. संवेदित कर दिया आपकी बातों ने अमित जी। मुनव्वर राणा साहब कहते हैं कि

    मेरे गुनाहों को इस कदर धो देती है
    माँ जब गुस्सा में हो तो रो देती है

    सादर
    श्यामल सुमन
    09955373288
    www.manoramsuman.blogspot.com

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  10. अमित आप बिलकुल ठीक हैं :)

    मैं ये पोस्ट करने वाला था फिर पता नही क्यों ?? "टाइम मशीन" पोस्ट कर दी

    हर रोज ईश्वर ने जिसे हमारे लिये दुआ करते पाया

    हमने उसके लिये सिर्फ़ एक दिन "मदर्स डे" बनाया..


    सारी उम्र वो देती ममता का साया

    बदले में हमसे सिर्फ़ मदर्स डे पाया ..


    हमारी कराहने की आवाज सुन, हर बार उसका दिल घबराया

    उसको धीरज देने को हमने "सिर्फ़ एक दिन" मदर्स डे बनाया ...

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  11. आप लिखते है तो लगता है .... किसी पवित्र ग्रंथ को पढ़ रहा हूं

    आपके लेखन का जवाब नही ....हर चीज़ नपी तुली लगती है

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  12. माँ-बाप का ऋण एक दिन में चुकता करने की ये पश्चिमी सोच यहाँ भी अपने पैर पसारने काफी हद तक सफल होती दिखाई दे रही है!ये दुर्भाग्य ही तो है!अरे भगवान् का सबसे शुद्धतम रूप जो प्रत्यक्ष हमारे पास है वो माँ-बाप ही तो है!समस्त जीवन उनको देने पर भी हम उनका ऋण नहीं उतार सकते तो साल में एक दिन उनके नाम पर मस्ती करने से क्या ऐसा हो जाएगा?

    पश्चिमी समाज में ये सही हो होता होगा या हो सकता है!वहा की जीवन शैली ऐसी हो चुकी है की माँ-बाप जैसी चीज़ वहा याद नहीं रहती होगी बच्चो के!ऐसे में एक-आध दिन बच्चे मस्ती तो हर रोज वाली करे पर वो उस दिन अपने माँ-बाप के नाम पर करे तो उनके तड़पते माँ-बाप की तरसती आत्मा को ये ही सुख देने वाला लगता होगा!तो वहा तो उचित हो सकता है,लेकिन अपने यहाँ......!

    अपने यहाँ बच्चे अभी इतने नहीं गिरे है!वो बस देखा-देखी ये सब कर रहे है!इसका सबसे सटीक और प्रत्यक्ष उदाहरण आप सब लोग है!क्यों क्या नहीं हो...........



    कुंवर जी,

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  13. @ पुष्पेन्द्र जी, ज्योतिपाण्डेय जी, विपुल जी, संजीव तिवारी जी, भारतीय नागरिक जी, .ऋतुपर्ण जी, फ़िरदौस ख़ान जी, आनन्‍द पाण्‍डेयजी, आप का आभार की आप भारतीयता को पच्छिम की हवा से बचाने के लिए तत्पर है

    @ प्रतुल जी, विचारीजी, बिंदास जी, श्यामल जी,गौरव जी, कुंवर जी, बिलकुल सही है प्यार एक दिन, माँ एक दिन, पिता एक दिन सारी भावनाए एक दिनी हो गयी है, यह उनके लिए ठीक हो सकती है जो अलग अलग रहते है. पर जब हम भारतीय संस्कृति के सन्दर्भ में बात करे तो जब सारा आधार ही आपसी भावनाओं पे टिका है तो, ये भावनाए सिर्फ एक दिन की महुताज़ क्यों कर बनती जा रही है, सोचना तो हमें ही पड़ेगा ना ..................

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  14. सच है माता कभी कुमाता नहीं हो सकती

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  15. आपने बहुत सही बात कही है लेकिन आज के समय में मदर्स डे की प्रासंगिकता बढ़ती ही जा रही है और भविष्य में और बढ़ने वाली है .

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जब आपके विचार जानने के लिए टिपण्णी बॉक्स रखा है, तो मैं कौन होता हूँ आपको रोकने और आपके लिखे को मिटाने वाला !!!!! ................ खूब जी भर कर पोस्टों से सहमती,असहमति टिपियायिये :)