आज फिर से रात भर आपकी याद आई
आज फिर से रात भर हुई नींद से रुसवाई
तस्वीर जो देखी आपकी चली फिर से पुरवाई
गुजरी हर एक बात दौड़ी आँखों में भर आई
जिन्दगी की धूप से जब कभी परेशां हुआ था
आप का ही साया मैंने हमेंशा सर पे पाया था
साये तो वैसे अब भी जिन्दगी में खूब मिले है
पर मिला ना अब तक आप सा हमसाया कोई है
याद आती है अब भी बैठ काँधे पे घूमना आपके
घुमाता हूँ जब बैठा काँधे पे पडपोते को आपके
यादों में ही आएंगे क्या अब दिने क़यामत तक
कहिये तो फिर आ चले "अमित" जरा बाज़ार तक
यादों में ही आएंगे क्या अब दिने क़यामत तक
जवाब देंहटाएंकहिये तो फिर आ चले "अमित" जरा बाज़ार तक
jo chale jate hai fir shayad hi kahte hai "आ चले "अमित" जरा बाज़ार तक"
kafi hriday sparshi bhav
जवाब देंहटाएंwaah sir aankhein nam kar di...aage kuch nahi keh paunga...
जवाब देंहटाएंबड़ों और बुजर्गों के प्रति श्रद्धा सुमन अच्छे लगे - सिर्फ यादें ही रह जाती है वक्त निकाल कर उन्हें याद कर लें उनके लिए यही सच्ची श्रद्धांजलि है आप सच्चे सपूत/पोते हैं
जवाब देंहटाएंHimmat hi sahara hai
जवाब देंहटाएंयह पोस्ट दिल को छू गई......
जवाब देंहटाएंकहिये तो फिर आ चले "अमित" जरा बाज़ार तक
जवाब देंहटाएंबेइंतिहा दर्द समाया है इस पंक्ति में अपनों से बिछड़ने का
"कहिये तो फिर आ चले "अमित" जरा बाज़ार तक"
जवाब देंहटाएंबेइंतिहा दर्द समाया है इस पंक्ति में अपनों से बिछड़ने का
यादों को सम्मान देती पोस्ट ,उम्दा प्रस्तुती /
जवाब देंहटाएंउस देह, रूप में न सही, साथ ही हैं स्वयं भी और उनका आशीर्वाद भी
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर और भावपूर्ण रचना!!बढिया प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंBahut gahrai hai aapmen !
जवाब देंहटाएंभाव भीनी कविता
जवाब देंहटाएंहमारी विनम्र श्रद्धांजलि
निश्बद हूँ , ह्रदय स्पर्शि व मार्मिक रचना ।
जवाब देंहटाएंसुक्ष्म रुप में आपके साथ ही है
जवाब देंहटाएंहमेशा मार्गदर्शन के लिए।
बड़े हमेशा ही आपके साथ होते हैं आपके अन्दर...
जवाब देंहटाएंaapki rachna ..bas man ko chhoo gayi ...bhaavnaao ko ....ek kavita me khoobsurati ke saath piroya hai aapne
जवाब देंहटाएंhttp://athaah.blogspot.com/
touching post...
जवाब देंहटाएंअमित !
जवाब देंहटाएंबहुत दर्द नाक है इन जाने वालों को याद करना , बरसों पहले रोते रोते यह रचना लिखी थी जिसे आज भी नहीं पढ़ पाता !
ज्यों ज्यों कटता समय तुम्हारी याद सताती रे !
इस बगिया के पेड़ तड़पते याद तुम्हारी में !
जितने पेड़ लगाये तुमने
झूम रहे थे सब मस्ती में
इस हरियल बगिया में
किसने आग लगाई रे !
सबसे ऊँचा पेड़ गिरा ! सन्नाटा छाया रे
इस बगिया में जान तुम्हारी
फिर क्यों रूठे इस उपवन से
किस पौधे से भूल हुई ?
कुछ तो बतलाओ रे !
सारे प्यासे खड़े ! कहीं से माली आओ रे
तुमने सबसे प्यार किया था
तन मन धन सब दान दिया था
बदला चाहा नहीं किसी से !
फिर क्यों रूठे इस आँगन से
सबसे प्यारी अनू सिसकती ! याद तुम्हारी में !
हर आँगन से तुम्हे प्यार था
भूले बिसरे रिश्ते जोड़े !
कई घरों में खुशिया बांटी
अपने दुःख का ध्यान नहीं था
कल्पब्रक्ष अवतार ! यहाँ दावानल आई रे !
bhaavnaao ko khoobsurati ke saath piroya hai aapne
जवाब देंहटाएंtouching post...
बस यादें ही रह जाती है, अपनों की लेकिन फिर भी हम कुछ ना कुछ ऐसा कर सकते है , जो उनकी स्मृति को चिरस्थायी रख सकता है. कुछ भी सेवा कार्य ...........
जवाब देंहटाएंदिल की कोमल भावनाओं व स्मृतियों को सामने लाने के लिए कविता श्रेष्ठ माध्यम है और आप इसका बखूबी प्रयोग कर रहे हैं। पूज्य दादाजी को मेरा नमन।
जवाब देंहटाएंजो कल थे,वो भी क्या पल थे.........!
जवाब देंहटाएंजो कभी साथ थे हमारे,
हर पल-घडी के थे सहारे,
कैसे बिना उनके ये पल गुजारे,
पलके खोले तो याद,मूंदे तो असल थे...
जो कल थे,
वो भी क्या पल थे.........!
कुंवर जी,
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंकल में कुछ नही था
जवाब देंहटाएंपर कुछ मेरे पास था
आज में बहुत कुछ हू मगर
क्या करू वो कुछ मेरे पास नही हैं
यादों में जीना और उनको एक अच्छी दिशा देना बहुत जरुरी हैं
मर्मस्पर्शी रचना,,,
जवाब देंहटाएंआपके इन्ही तरीकों के तो हम कायल हैं।
वस्तुत: शब्दों की सामान्यता में भी अद्भुत चमत्कार है।
धन्यवाद स्वीकारें।
Naman unko jinhen aapne yaad kiya..
जवाब देंहटाएंमर्मस्पर्शी रचना,,,धन्यवाद स्वीकारें।
जवाब देंहटाएंमर्मस्पर्शी रचना,,,धन्यवाद स्वीकारें।
जवाब देंहटाएंamit g apki is kavita ne mujhe mare baba ki yad dila di apne
जवाब देंहटाएंapki is kavita ne mujhe kush yad dila diya
जवाब देंहटाएंतुमको भुला दे इस की हमने बरसो दुआएँ माँगी थी
जवाब देंहटाएंरात तुम्हारा याद ना आना, याद आया तो रोए बहुत.
भावपूर्ण ,मन को छू गयी यह कविता .
जवाब देंहटाएंअपने ,हमारे साथ हमेशा आशीर्वाद के रूप में हमारे साथ रहते हैं.
आप के दादाजी को नमन.
यादों में ही आएंगे क्या अब दिने क़यामत तक
जवाब देंहटाएंकहिये तो फिर आ चले "अमित" जरा बाज़ार तक
in panktiyon ne to dil chhoo liya.
क्या आप सोच सकते है की कोई अगर अपने बड़ों को श्रधान्जली दे तो वो भी किसी की नापसंदगी का कारन हो सकता है. यही हो रहा है ब्लोग्वानी पर. अमित जी आपकी पोस्ट पे 3 नापसंदगी के वोट है .
जवाब देंहटाएंअब बताइए ये कोण कर सकता है??????
अरे भइये तुम्हारी तो पुच अब ख़तम हो गयी और अमित जी के काम को तो बंगलौर से निकलने वाली एक हिंदी मगज़ीन ने भी सराहा है और अपने ताज़ा अंक में ब्लॉग के ऊपर लिखे गए आर्टिकल में चार हिंदी ब्लोगरों का रेफरेंस दिया है उसमे से एक अमित भाई का भी है.
यह खबर कूद उस मग्जीन के मनेगर ने अमित भाई की पिछली पोस्ट पे दी है -------------
Bharatiya said...
Dear Sir / Madam,
Greetings from Bharatiya Opinion Hindi Magazine, Karnataka.
It is a pleasure for us to say that your blog has been featured as a reference
in a write-up in the latest issue of our Magazine,
You can read the Magazine online here --->>http://bharatiyaopinion.com
Your Blog is featured on the page 48.
We would like to send you a copy of the magazine if you could send
us the your postal details. Our mail id is
editorbo@gmail.com
With Regards,
Kamal Parashar
Relations Manager.
9945488001.
May 4, 2010 1:17 PM
अरे अकल के दुष्मनो नापसंद का वोट देने से कुछ नहीं होगा कुछ मतलब का लिखो जो तुम्हारी पोस्ट भी प्रसंसा पाए कोई भी http://bharatiyaopinion.com पे मग्जिन को ओन्लैन पड सकता है जिसके पेज 48 अमित जी के लेख का रेफरेंस है
बहुत भावपूर्ण अभिव्यक्ति.पुण्य नमन!! स्मृतियाँ यूँ ही संजोये रखिये.
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर भावों से बुनी है ये कविता...बढ़िया अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंआप सभी का हार्दिक आभार !
जवाब देंहटाएंकहिये तो फिर आ चले "अमित" जरा बाज़ार तक
जवाब देंहटाएं__________ इस तरह आपने भाव-विह्वलता की हद पार कर ली है. इन शब्दों में वह ताकत बन पड़ी है जिससे बिछड़े हुए बिलकुल करीब महसूस हो रहे हैं.