सोमवार, 19 अप्रैल 2010

वेदाग्या -- "मा हिंस्यात सर्व भूतानि " (किसी भी प्राणी की हिंसा ना करे)

कैसी अजीब दास्ताँ है यह कहा शुरू कहा खत्म. सिर्फ एक सज्जन की कार्यशैली का अध्यन कीजिये, आपको पूरी की पूरी परंपरा की  मान्यता का दर्शन हो जायेगा . इन सज्जन ने मानव मात्र के कल्याण का बीड़ा उठाते हुए ब्लॉग चालू किया और दुनिया को समझाने के लिए लेखन करने लगे, की सिर्फ इस्लाम ही भ्रान्तिहीन है; केवल कुरआन के शरण से ही मनुष्य का कल्याण हो सकता है. ये सारी मानव जाती के प्रति दयालु होकर उसे  अपने धर्म की शरण में लाने का पावन प्रयास कर रहे है .और इनकी यह दया की भावना इतनी तेज स्पीड से काम कर रही है की सिर्फ अपने पवित्र धर्म और पवित्र शास्त्र के शुभ उपदेशो से ही इनका काम नहीं चल पा रहा है. प्रलोभन, बलप्रयोग, छल-कपट और न जाने क्या क्या तरीके अपनाये जा रहे है. मनुष्य जाती का कल्याण जो करना है.
बलप्रयोग और प्रलोभनों का तो क्या बताया जाये,ऐसा कौन है जो मानव हित के लिए इनके द्वारा अपनाये गए बलप्रयोग और प्रलोभनों के बारे में नहीं जनता होगा.
छल-कपट कपट की कहानी भी दुनिया देख ही रही है . कैसे इन्होने धीरे धीरे अपने कदम बढाएं है पहले तो कपट फैलाया हिन्दू धर्मं ग्रंथों के अन्दर इस्लाम की प्रशंशा बताते हुए, २-४ पोस्टों के बाद ही धीरे धीरे हिन्दू शास्त्रों के ऊपर कीचड़ उछालने लगे.
अरे जिन विषयों को आपने अध्यन ही नहीं किया कैसे उनकी व्याख्या करेंगे आप, लेकिन व्याख्या करने की बात भी भ्रम ही है जब मकसद ही बैर फैलाना हो. खुद के धर्म ग्रंथो के बारे में तो तिल भर भी इधर उधर ना होने की कसम खाई है तो ,हमारे ग्रंथो  को क्या खालाजी का घर समझ रखा है जो धमाचोकड़ी मचा लो खालाजी कुछ नहीं कहेंगी क्यों जी !!!
बड़े विद्वान बनकर कभी वेदों के,कभी पुराणों के मन्त्रों का अर्थ का अनर्थ करते फिर रहे हो तो फिर खुद के सम्मानीय ग्रन्थ के चीर हरण के लिए भी तो तैयार रहना चहिये ना. 
खुद के ग्रन्थ का चीर हरण होते देख कैसे टांडने  लगे ? मैं व्यक्तिगत रूप से इस प्रकार के चीर हरण के पक्ष में नहीं हूँ . पर किसी को क्या दोष दिया जाये रास्ता ही आपने ऐसी ही चुना है तो ??? पर कोई  किसी के पागल पने पर ज्यादा क्या कहे.


जब विद्वान  इस बात पे सहमत है की वेद ज्ञान का भण्डार है. और ज्ञान उस चीज को कहते है जो हमें क्या करना चहिये और क्या नहीं करना चहिये का बोध करता है. क्या  करना अच्छा है, क्या करना बुरा है.इस विवेक का नाम ज्ञान है.  विवेक सम्मत रूप से परमार्थ करना धर्म है . तो जब कोई ना करने वाले दुर्जनीय काम करेगा और मानवता का अहित करेगा तो उन दुर्जनों को मारने का उपदेश धर्म होगा या अधर्म, या फिर जो आपकी उपासना पद्दति को ना माने उनका सफाया करना ही धर्म है. मानवता की नजरों में तो नहीं है चाहे आप की नजरों में हो. सज्जनता (सर्वकल्याण) धर्म है या दुर्जनता (स्वयंकल्याण ) धर्म है . 

वेदों में हो या गीता में या और कही गलत काम करने वाले के लिए तो सजा ही निर्धारित की जाएगी . 
पूरे मानव समाज में दो तरीके के प्राणी बताते हुए  ; वेद गीता और अन्य शास्त्रों में उनको दो भागो में विभक्त किया गया है--एक दैवी प्रकृति के और दूसरी आसुरी प्रकृति के ----भय का आभाव,मन की स्वच्छता ,तत्वज्ञान की जिज्ञासा,दान,संयम,स्वाध्याय,ताप,सरलता,अहिंसा,सत्य का पालन,क्रोध का आभाव,त्याग,शांति,चुगली ना खाना, सारे प्राणियों पे दया,अलोलुपता,मृदुता,लज्जा,अचंचलता ,क्षमा ,कहीं भी वैर भाव न होना --- ये सब दैवीय प्रकृति के लोगो के लक्षण बताये गए है. 
इनके ठीक उलट प्रकृति के लोगो को असुर बताया गया है.   लेकिन वे  यह कैसे समझेंगे जो आतंकवादियों को भी असमानता का शिकार बता कर उनकी पैरवी करते हो.
वेदों की तो यह स्पष्ट आज्ञा है की--- "मा हिंस्यात सर्व भूतानि \" (किसी भी प्राणी की हिंसा ना करे) लेकिन संसार के प्राणियों को कष्ट देने वाले आतातियों को और पापियों को दंड देना किस विधान से हिंसा है ? दंड अपराधी को ही दिया जाता है,निरपराधी को नहीं .
लेकिन  इस बात को वे लोग कैसे समझेंगे जो खुद दुर्गुणों से ही  भरे हो और अपने पंथ का अनुयायी बनाने के लिए मारकाट को उचित मानते हो , आतंकवादियों को भी सरकारी  तंत्र का पीड़ित बताते हुए उनका पक्ष लेते हो .

इन लोगो ने  अजब धमाचोकड़ी मचा रखी है वेदों और दुसरे शास्त्रों के प्रसंगों पर . वेद के द्वारा परमात्मा ने जीव मात्र के कल्याण की राह दिखाई है. सिर्फ किसी उपासना पद्दति के कल्याण की नहीं.सत्य से असत्य की  राह पे चलने का प्रकाश दिया है . इतने पर भी कुछ लोग वेदों के अर्थ जाने बगैर दोषारोपण कर रहे है , कभी विज्ञान विरोधी बताते है, कभी उनके मन्त्रों का कुअर्थ करते है (अर्थ कैसे करेंगे बिचारों में इतनी बुद्धि भी तो होनी चहिये) कभी उनमे मांस भक्षण का दोषारोपण करते है,कभी अश्लीलता का तो कभी हिंसा  और युद्दोंमाद  भड़काने का. 
पर इसमें इन बिचारों का क्या दोष. यह निर्विवाद सत्य है की प्रकाश (ज्ञान) में अन्धकार (अज्ञान) नहीं रह सकता . फिर भी जब हम प्रकाश में खड़े होते है तो वहां हमें अपनी ही छाया दिखाई देती है. अब अगर कोई  उस काली छाया को भी प्रकाश का ही अंग मान ले ये प्रकाश का दोष थोड़े है ये तो हमारी अज्ञानता का ही प्रदर्शन है .
ये लोग फिर भी किस तरीके से अपने ही अज्ञान के अंधे कीचड़ उछाल रहे है, ये पिछले  दिनों में सबको मालूम चल ही गया है.  
खुद तो अनपढ़ों  की तरह से किसी भी घटिया मैगजीन के लेखों से ज्ञान प्राप्त करके बकवादन कर रहे है और हम से हमारे गुरूजी का नाम जानना चाहते है. अब इनके इतनी ही मरोड़ उठ रही है तो इनको बता ही दूँ की आप जिन महानुभाव का कयास लगा रहे है, उनके वेद जिज्ञासु होने से मैं उनका आदर तो करता हूँ, लेकिन उनका अनुसरण नहीं करता हूँ . पिछली पोस्ट में बताए गए  मंत्रो के ये अर्थ तो मैंने जयपुर संस्कृत विश्वविद्यालय से शास्त्री कर रहे मेरे एक मित्र से पूछे थे. अब देखिये की एक शास्त्री कर रहे स्टुडेंट ने ही जो अर्थ बताये है, उनसे ही आपके पाप का भंडाफोड़ हो गया तो जब किसी वेद विद्वान् से आप का पाला पड़ जाये तो आप जैसों का क्या हाल हो हर कोई समझ सकता है .

ये लोग  वेद शास्त्र पढते ही इसलिए है की शास्त्र का मनमाना अर्थ करके अपने मत की पुष्टि कर सके.इसलिए शास्त्र से यथार्थ ज्ञान भी नहीं सीख पाते है. शब्दों को खेंच-तान के जो चाहे  अर्थ निकाल कर खुद को और दूसरों को भी धोखा दे रहे है .
वेद परम ज्ञान कहलाता है .ऋषियों ने वेदार्थ को समझने के लिए कुछ पद्दतियां निश्चित की है; उन्ही के अनुसार चल कर हम  श्रद्धापूर्वक वेदार्थ को समझ सकते है. 

सभीसे मेरी प्रार्थना है की भूलकर भी इन महानुभावो की बातों में ना आकर स्वधर्म में अटल विशवास रखते हुए . अपने धर्मशास्त्रों में पूर्ण विशवास रखें. उनमें कहीं भी दुराचार की शिक्षा नहीं है, कही भी अश्लीलता नहीं है, कहीं भी हिंसा का समर्थन नहीं है , कहीं भी अपनी बात मनवाने के लिए मारकाट का समर्थन नहीं है.
अगर कुछ है तो सिर्फ जीव मात्र के प्रति सद्भावना का भाव रखते हुए, सद्गुणों की सहायता से जीवन को सफल बनाने की रीति का वर्णन .






31 टिप्‍पणियां:

  1. किसी भी धर्म की बखिया उधेड़ने का अधिकार किसी को नही है ! हजारों साल पहले अस्तित्व में आए धर्मों की व्याख्या आधुनिकता के नाम पर करने की इजाज़त किसी को नही होनी चाहिए ! मज़हब हमारी आस्था और श्रद्धा है, जो हमारे बुजुर्गों ने निर्देशित किया है, उस पर किसी और की व्याख्या, सिर्फ़ उसकी कमअक्ली है और कुछ नहीं !

    जवाब देंहटाएं
  2. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

    जवाब देंहटाएं
  3. खुद के धर्म ग्रंथो के बारे में तो तिल भर भी इधर उधर ना होने की कसम खाई है तो ,हमारे ग्रंथो को क्या खालाजी का घर समझ रखा है जो धमाचोकड़ी मचा लो खालाजी कुछ नहीं कहेंगी क्यों जी !!

    JAI SHRI RADHE - RADHE BADE BHAISAAHAB

    जवाब देंहटाएं
  4. amit bhai itne moti bhare hai aapke gyaan pitare men pad pad ke dimag samadhi men chala jaata ha

    जवाब देंहटाएं
  5. khob naga kiya h aapne in haramkhdo ko. fir bhi inko sram nahi aati

    जवाब देंहटाएं
  6. मात्र मैं और मैं ही सही हूं और दूसरा कोई सही नहीं....और जो ऐसी हिमाकत करे उसकी गर्दन उतार दो.....ये एक ऐसी अंधी गली हैं या गुफा है....जिसमें घुसे हुए ये लोग यही जाप लगाये हैं....इनसे किसका भला होने वाला है....ये तो राम जाने....पर आपकी पिछली और इसबार वाली दोनों ही सार्थक पोस्टों के लिए साधुवाद....

    जवाब देंहटाएं
  7. koi 26 saal ka jawan itni gahri baat kar sakta hai, meri bivi ne nahi mana jab aapki blog ki samagri ka prin-out use dikhaya. fir use cayber cafe lejakar batya tab jakar vishwas kar payi or bhagwan se prarthna karti h ki hamara beta bhi es hi bane.
    bhagwan aapki bhawna yu hi banaye rakhe mera ashirwad aake saath h

    जवाब देंहटाएं
  8. अमित जी,

    अच्छा किया नाम नहीं लिया , अशिष्ट से बहस का क्या लाभ । आपकी किसी बात का उत्तर कभी नहीं दिया , केवल एक के बाद एक कीचड़ उछालो पोस्ट लिख मारी है । जैसा मैने कुछ दिन पहले लिखा था , इरादा केवल और केवल टिप्पड़ी बटोरना है क्योंकि इस तरह के अहमकना बातों से कोई किसी धर्म को अच्छा मानेगा और अनुयायी बन जायेगा यह सोचना ही बेवकूफ़ी होगी । ब्लॉग पर आने वाले सभी एक स्तर तक पढ़े लिखे हैं और सूचना क्रांति के इस युग मे किसी भी बात पर जानकारी एक क्लिक की दूरी पर है ऐसे मे गलत बातें कौन मानेगा ।

    गीता मे युद्धोन्माद वाले जिस प्रसंग पर आप उद्वेलित हैं उसके जिन लेखक की जिस किताब ’ हिंदू इतिहास हारों की दास्तान ’ का जिक्र है वह किताब मैने पढ़ी है और आप को बताऊं उसके बारे मे यही कहा जा सकता है कि वह ’ not worth the paper on which written है , क्योंकि उसमे न कोई तथ्य न तारतम्य बस दो चार बातें बार बार लिखी हैं । उस पुस्तक का एक उदाहरण दूं - हिंदुओं की बड़ी हारों मे पानीपत मे बाबर से इब्राहीम लोदी की हार का भी जिक्र है और पूरा एक चैप्टर है । इसलिए मेरा मानना है कि इस तरह के लेखों को अकेला छोड़ना ही उनका इलाज है और कुछ नहीं ।

    गीता मे ज्ञान योग , भक्ति योग , कर्म योग हर विषय पर गूढ़ उपदेश हैं जिन्हे जानने के लिए एक IQ Level जरूरी है ।

    बस एक लाभ हुआ आप जैसे जानकार से बहुत कुछ नया जानने को मिला , इस लिए आपको Provoke करने के लिए उन सज्जन का धन्यवाद देना ही होगा । नॉबल विजेता अमर्त्य सेन ने अपनी पुस्तक ' The Argumentative Indians ' मे लिखा है कि भारतीय परम्परा और संस्कृति मे ज्ञान को आगे बढ़ाने के लिए प्रश्न- उत्तर और शास्त्रार्थ का ही रास्ता चुना गया है । इसमे कोई मत अन्तिम नहीं होता और तर्क चलता रहता है उसी ज्ञान की परम्परा आगे बढ़ती है । इसका एक उदाहरण आपका ब्लॉग है जहां उत्तर के रूप मे आप बहुत सारी जानकारी दे रहे हैं ।

    जवाब देंहटाएं
  9. जय श्री राम.
    "सत्संगति कथय किम न करोति" यह इस ब्लॉग से सीखा.
    धन्यवाद.

    जवाब देंहटाएं
  10. kya dharm ke naam pe unmaad failane wale kuch seekhenge is lekh se yaa hungama khada karna hi maksad hai

    जवाब देंहटाएं
  11. bhai murkhraj ji
    (ab atpata to lag raha hai par kya karu aapne ye naam rakh hamare saath bada majak krlia hai)
    aapka dhanyawad

    bhai मेरा देश मेरा धर्म ji aapka saath milta rahe yonhi

    जवाब देंहटाएं
  12. @ pushpendra ji gyaan ke moti to har taraf bikhre hai jarurat un motiyon ko bujurgo ke nirdeshan men mala banane ki hai

    @ raghav ji jinhone nanga hone ki hi thaan rakhi hai unhe sharam kaise aayegi

    जवाब देंहटाएं
  13. @ mihir ji saadhuwad ke adhikari to sirf hamare rishi or bujurg hai jinhone sabhi ko jeevan jene ki kala sikhyi hai, yeh to hamare hi upar hai ki hum unke nirdesho ka kitna palan kar paate hai

    @ Shrikant Sharan ji aapke is vatsalya ke liye hardik dhanyawad

    जवाब देंहटाएं
  14. विजय प्रकाश सिंह जी,
    आपका सुझाव गृहणिय है पर क्या करूँ उम्र का असर कभी उबाल खा जाता है काफी कोशिश करता हूँ की बक बका के चुप हो जायेंगे, पर फिर सोचता हूँ की इन कीचड़ उछालने वालों को तो हकीकत पता है की हम क्या गलत कर रहें है . पर जो कुछ भोले पाठक भी इन को पढतें है तो ख्याल आता है की कहीं वे इन्हें ही सही ना समझे इसलिए कुछ लिखने से अपने आप को रोक नहीं पाता हूँ

    @ राजीव जी धन्यवाद

    @ शिरीष जी बिलकुल ठीक कहा आपने सिर्फ हंगामा खड़ा करना ही इनका असल उद्देश्य है

    जवाब देंहटाएं
  15. kafi adhyan or mehnat se likha gaya jankaripurna leh badhai swekare

    जवाब देंहटाएं
  16. अमित जी प्रणाम,

    क्या खूब उदहारण दिया है आपने की ज्ञान के प्रकाश के सामने खड़े मुर्ख को अपनी कमियों की काली छाया उसी प्रकाश का फल दिखाई पड़ती है और वो उस प्रकाश का विरोध करता है। वाह बहुत बढ़िया।

    आपकी पुरे लेख में किसी दुसरे धर्म का कहीं भी उपहास नहीं हुआ है। ये आपकी मानसिक श्रेष्ठता का परिचय है। इसे कहते हैं क्रिया की प्रतिक्रिया । हाँ कुछ लोग ऐसे भी हैं इस जगत में जो क्रिया की प्रतिक्रिया स्वरुप भोंकते हुए कुत्ते को काट खाना पसंद करते हैं। और इसे ही अपना धर्म मानते हैं।

    आपका आचरण उत्तम है। अरे अगर किसी की रेखा को छोटा ही दिखाना है तो उसे मिटने की जगह अपनी एक बड़ी रेखा तो खीच कर दिखाओ। पर यहाँ तो ऐसे लोग हैं जो कहेंगे की रेखा तो बूढी हो गयी है किसी नयी हिरोइन का उदहारण दो। अर्थ का अनर्थ करने वाले इन लोगों को आप ज्ञान का प्रकाश दिखाते रहिये अब उसमे उन्हें खुद की काली छाया दिखे तो कोई क्या कर सकता है।

    दुबारा कहूँगा अति उत्तम।

    जवाब देंहटाएं
  17. क्या बताया जाये विचारीजी , पता ही नहीं चल पा रहा है की कोई क्या चाहता है, रेखा बड़ी हो जाये तो भी उसका कोई मतलब भी तो निकलना चहिये. सिर्फ अपने पास की वस्तुओं को श्रेष्ट और दुसरो की वस्तुओं को निकृष्ट बता कर रेखा बड़ी करके भी क्या फायदा. मैंने जमाल साहब से भी प्रार्थना की है की अपने लेखन कर्म का कुछ फायदा समाज को पहुँचाने के लिए कुछ ऐसा लिखो की मुस्लिम समाज में शिक्षा का स्तर बड़े, समाज के परिवारों में घूम-घूम के उन्हें समझाओ की सिर्फ एक पीड़ी को ग्रेजुएट बना दो पूरा समाज ग्रेट बन जायेगा. अपने लेखन कर्म से शिक्षा और सद्भाव का वातावरण बनाइये, क्यों माहौल भारी कर रहे है. कहीं ऐसा ना हो की जिस तरह से नेता शब्द आज गाली बनगया है, उसी तरह से जमाल मुसलमानों के लिए और अमित हिन्दुओं के लिए गाली बन जाये की . "बड़ा जमाल बना फिर रहा है" या "बड़ा अमित बन रहा है" .

    जवाब देंहटाएं
  18. इस टिप्पणी को एक ब्लॉग व्यवस्थापक द्वारा हटा दिया गया है.

    जवाब देंहटाएं
  19. अमित जी आपने लिखा कि अनुवाद आपके मित्र से पूछकर लिखा आपके मित्र ने यह अनुवाद कहाँ से लिया वह कौन से विद्वान से लाभ उठाते है

    जवाब देंहटाएं
  20. आपका लेख ज्ञानवर्धक है... सदियों से ये वेद-पुराण ही मानव सभ्यता के विकास में सहायक साबित हुए हैं... बाक़ी ग्रंथ तो बहुत बाद में आए हैं...
    इतिहास गवाह है कि भारत बहुत पहले से शिक्षा का केंद्र हुआ करता था... जबकि अरब में तो इस्लाम से पहले सिर्फ़ जंगली लोग ही बसते थे...
    भारत का दुनिया में कोई सानी नहीं है... मेरा भारत महान...
    सभी धर्मों का सम्मान किया जाना चाहिए... जब हम किसी और के मज़हब का सम्मान नहीं करेंगे तो फिर किसी और से कैसे उम्मीद कर सकते हैं कि वो भी हमारे मज़हब को अच्छा समझे...

    जय हिंद
    वन्दे मातरम्

    जवाब देंहटाएं
  21. @ अयाज़ साहब बड़े भोले है आप जिस बात को 1st स्टेंडर्ड का बच्चा भी जानता है उसे आप नहीं समझ पा रहे है , जनाब शब्दार्थ के लिए ग्रामर को फोलो करना होता है ना की किसी और की . कुछ ढंगका पड़ लिख लेते तो इस तरह के सवाल ना पूछते. महोदय कुछ अपने ज्ञान से भी तो कुछ लिखिए किसी भी रायटर की किताबो का प्रचार करने से या जमाल साहब की बातों को ही बार-बार दुहराने से ही काम थोड़े चल जायेगा आपका. बाकी आप खुद समझदार है

    जवाब देंहटाएं
  22. फिरदौस जी थी फ़रमाया आपने लेकिन ये लोग वेद शास्त्र पढते ही इसलिए है की शास्त्र का मनमाना अर्थ करके अपने मत की पुष्टि कर सके.इसलिए शास्त्र से यथार्थ ज्ञान भी नहीं सीख पाते है. शब्दों को खेंच-तान के जो चाहे अर्थ निकाल कर खुद को और दूसरों को भी धोखा दे रहे है .
    वेद परम ज्ञान कहलाता है .ऋषियों ने वेदार्थ को समझने के लिए कुछ पद्दतियां निश्चित की है; उन्ही के अनुसार चल कर हम श्रद्धापूर्वक वेदार्थ को समझ सकते है.

    जवाब देंहटाएं
  23. @aayaz sahaab ko aap samajhdaar bta rahe ho amit bhai,

    are wo to DOCTOR hai DOCTOR...

    kunwar ji,

    जवाब देंहटाएं
  24. राम-राम जी,खिसयानी बिल्ली खम्बा नौचे!सुना बहुत था,महसूस अब हो रहा है!अब भी इनकी समझ में कुछ नहीं आ रहा है तो मै खम्बा ना नौचूं तो क्या करूँ!ये जनाब अब उस भाई साहब के भी गुरुजी के बारे में जानना चाहते है!करेंगे क्या,पता नहीं?जब कुछ नहीं सूझा तो चलो ये ही पूछ लेते है!अब आप से सहमती जताने के लिए भी इमानदारी अपनानी पड़ेगी,और वो तो ......!

    खैर चलो छोडो!

    कुंवर जी,

    जवाब देंहटाएं
  25. @ kunwarji ayaz ji ki kuch samajh men hi nahi aa rahi hai mujhe. mere hisaab si to inko dipreshan ho gya hai jamaal ki publicity dekhkar isliye ab hatpanv maar rahe hai, nahi to kya inko itna bhi nahi pata kya ki shabdarth or bhashya en kya antar hai

    जवाब देंहटाएं
  26. Dr. Ayaz ahmad

    kyon bar bar inse maloom karte rehte hai, chaliye mai bata deta hun, un guru ji ka name hai

    Swami Dayanand Saraswati.

    ab to pata chal gaya, ab bataiye, kyon bar-bar maloom kar rahe the?

    जवाब देंहटाएं
  27. अयाज़ साहब मेरे मित्र ने किसी भाष्यकार के अर्थ को फालो करके नहीं बताया है, बल्कि उसके पास व्याकरण सब्जेक्ट होने से खुद को ही इतना सामान्य सा अर्थ पता है .मैंने उससे सिर्फ अर्थ, और सन्दर्भ के बारे में ही पूछा था. जो की उस ने बड़ी आसानी से बता दिए और किसी भी तरह की व्याख्या के लिए भी पूछा था. लेकिन आपकी बात के लिए तो इतना ही काफी था.
    और जो आप स्वामी श्रीदयानंद जी के बारे में कयास लगा रहे है तो इतना समझ लीजिये की, उन्होंने भले ही अपनी मान्यता के अनुसार वेद भाष्य किया होगा, पर शब्दार्थ तो व्याकरण के अनुसार ही किया था ना मेरे बंधु. अगर मेरे मित्र के बताये अर्थ और आप द्वारा प्रकाशुत किये जाने वाले दयानन्दजी के अर्थ की भाषा का मिलान हो जाये तो पाठक इतने मुरख थोड़े है की ये भी ना समझेंगे की, व्याख्या और शब्दार्थ में क्या भेद है. दयानंद जी के भाष्य से सहमती नहीं भी हो तो शब्दार्थ तो एक ही रहेगा श्रीमान. क्यों इतना परेशां हो रखे हो .

    जवाब देंहटाएं

जब आपके विचार जानने के लिए टिपण्णी बॉक्स रखा है, तो मैं कौन होता हूँ आपको रोकने और आपके लिखे को मिटाने वाला !!!!! ................ खूब जी भर कर पोस्टों से सहमती,असहमति टिपियायिये :)