मैं एक बात साफ़ कर देना चाहता हूँ कि ये लेख मै किसी के पक्ष विपक्ष में नहीं लिख रहा हूँ, मुझे ब्लॉग माध्यम लगा अपने मन कि बात कहने का तो मन में जो विचार आते रहतें है उनको संजोने का प्रयास मात्र है ,अगर मेरे लेखों से किन्ही बंधुओं के दिल को ठेश पहुँचती है तो मै उन से माफ़ी मांगना चाहूँगा.पाठकों को मेरे लेख पसंद ना आयें तो अच्छा बुरा कह सकतें है.
पिछली पोस्ट क्या हिन्दू धर्म एक पंथ (रिलिजन) है? के विषय पे आगे चलते हुए आज रिलिजन का मतलब समझने कि कमोबेश कोशिश करते है -
यूँ तो पश्चिमी विचारको ने रिलिजन को परिभाषित करने की कोशिश की है ,पर मैक्समूलर ने सभी दार्शनिको की परिभाषाओं को नकारते हुए 1878 में "रिलिजन की उत्पत्ति और विकास " विषय पे भाषण देते हुए रिलिजन की परिभाषा इस तरह दी है -"रिलिजन मस्तिष्क की एक मूल शक्ति है जो तर्क और अनुभूति के निरपेक्ष अन्नंत विभिन्न रूपों में अनुभव करने की योग्यता प्रदान करती है". यहाँ मैक्समूलर ने कल्पना की है की ईश्वर जैसी कोई सत्ता है जो असीम है,अनन्त है. इस से तो यह लगता है की मैक्समूलर यहाँ आस्तिकवाद की परिभाषा दे रहा है .
असल बात तो यह लगती है की विश्व में दो ही रिलिजन है, एक आस्तिकवाद और दूसरा नास्तिकवाद . आस्तिक ईश्वर की सत्ता में यकीन रखता है और नास्तिकवाद ईश्वर को चाहे जिस नाम से पुकारो, उसके अस्तित्व को ही नकारता है .
समय के साथ साथ आस्तिकवाद और नास्तिकवाद दोनों ही रिलिजन अनेक मतों और पंथों में बँट गए है .इनमे से इसाईयत और इस्लाम दो ऐसे आस्तिकवादी पंथ है जिनमे अनेको शाखाएं और उपशाखाएँ बन गयी है. और हर शाखा अपने को असल इस्लाम या ईसाईयत बताता है. वेटिकन के पोप की अगुवाई में रोमन कैथोलिक अपने को असली ईसाई रिलिजन का दावेदार मानते है,जबकि इसके विरोधी प्रोटेस्टेंट चर्चें रोमन कैथोलिकों को जाली ईसाई बतातें है .आज ईसाईयत की करीब 120 से ज्यादा शाखाएं है.
इसी तरह इस्लाम की दो मुख्य शाखाएं है शिया और सुन्नी, और दोनों ही अपने को असल इस्लाम बताते है. हालाँकि दोनों में काफी अंतर है सुन्नी मुसलमान कहतें है कि "अल्लहा एक है और हजरत मोहम्मद उसके रसूल है" जबकि शिया कहतें है कि "इसके अलावा अली भी अल्लहा के उप रसूल है". आज इस्लाम कि 313 शाखाएं है.
और इसके अलावा इस्लाम में अहमदिया जमात भी अपने को इस्लाम का अनुयायी मानता है पर हजरत मोहम्मद साहब को अंतिम रसूल नहीं मानता है.उधर आम मुसलमान अहमदी जमात को मुसलमान ही नहीं मानता है .
इस प्रकार रिलिजन कि कोई संतोष जनक परिभाषा अभी सामने नहीं आ पाई है,फिर भी "थोमस पेन" कि परिभाषा जो कि उसने अपनी किताब "एज ऑफ रीजन" में की है शायद सबसे आगे निकल गयी है, जो है तो इसाई पंथ के लिए पर सभी आस्तिक पंथों पर पर सटीक बैठती है .-"मुझे तो ईसाइयत संबंदी सभी आस्थाएं एक प्रकार का नास्तिकवाद या एक प्रकार से ईश्वर को धार्मिक स्तर पे नकारना प्रतीत होता है. यह आदि सृष्ठा में विश्वाश करने के स्थान पे मनुष्य में विश्वाश करने की शिक्षा देता है ,यह नास्तिकवाद के उतने ही पास है जितना की अँधेरे के पास धुंधला प्रकाश. यह मनुष्य और सृष्टि कर्ता के बीच एक पारदर्शी शरीर प्रस्तुत करता है, जिसे यह उद्धारक कहता है जैसे चन्द्रमा का पारदर्शी स्वरुप जब पृथ्वी और सूर्य के बीच आ जाता है तो ग्रहण हो जाता है,वैसे ही यह प्रकाश का धार्मिक ग्रहण है ."
यहाँ पेन का यह कथन गौर करने लायक है - "यह मनुष्य और सृष्टि कर्ता के बीच एक पारदर्शी शरीर प्रस्तुत करता है, जिसे यह उद्धारक कहता है".
ईसाइयत में जीसस को और इस्लाम में हजरत मोहम्मद साहब को एक पारदर्शी शरीर की तरह खड़ा किया गया है. इन दोनों में मुक्ति की प्राप्ति के लिए क्राइस्ट और हजरत साहब अनिवार्य है . और इस कसौटी पे ये दोनों ही रिलिजन हो गए है.
यही बात एक दूसरे मापदंड से भी परखी जा सकती है की क्या कोई आस्तिकवादी,कोई पंथ , रिलिजन बन सकता है या नहीं ? क्या इसमें किसी को कोई आपत्ति होगी की इस सृष्टि में जो कुछ है उसी सार्वभौम सर्जनहार परमात्मा ने बनाया है. जिसे अल्लहा ,खुदा ,गाड,ईश्वर ,भगवान् किसी भी नाम से पुकारो. अतः यह भी स्पष्ठ है की एक विश्व सत्ता जो कुछ भी बनाएगी ,अपनी सारी सृस्ठी के लिए एक से ही नियम बनाएगी .अलग अलग समुदायों की लिए अलग अलग व्यवस्था नहीं करेगा .
इसलिए जो लोग किसी ऐसे मत में विश्वाश करते है जो उन्हें जो उन्हें किसी एक विशिष्ट नियम पद्दति और पैगम्बर पे विश्वाश करना आवश्यक बतलाता है, किसी विशेष रिलिजन के अनुयायी ही माने जायेंगे.
मतलब आस्तीक्वादियों के लिए रिलिजन वह जीवन पद्दति है जिसमें मनुष्य और ईश्वर के बीच कोई एक मानव शरीर जरूरी हो और उसके वचन,कर्म,और,नेतृत्व में उसके अनुयायियों को कट्टरता की परकस्ठ्ता तक पूर्ण आस्था हो.
आज इस्लाम और ईसाइयत अपने उस रूप में नहीं रह गएँ है जैसा की जीसस क्राइस्ट और हजरत मोहम्मद साहब की मूल धारणा थी. समय के साथ इन रिलिजनो की परस्पर विरोधी कई शाखाएं बन गयी है.इस्लाम के कई सम्प्रदाय मोहम्मद साहब को आखिरी नबी नहीं मानते है तथा ईसाईयों में भी कई सम्प्रदाय जैसे -क्राइस्टलैस क्रिस्चियन, जीसस को देव दूत नहीं मानते है.
इस प्रकार ईसाइयत और इस्लाम रिलिजन (पंथ) है धर्म नहीं.
aapne bahut acchi baat kahi hai , padh kar bahut accha laga.
जवाब देंहटाएंहिन्दीकुंज
बड़े भाईसाहब शानदार -
जवाब देंहटाएंएक बार जमाल साहब को भी पढ़ा देते -
मेरी नई पोस्ट दया करके देखें और हो सके तो एक टिप्पड्डी भी कर दें !
!!!!!!!!!!!!! बस एक ही धुन जय-जय भारत !!!!!!!!!!!
Pankaj Singh Rajpoot
बहुत ही सधे शब्दों में बात कही. यही जानकारियाँ तो चाहियें अपनी बात को वजनदार करने को. आज आपके लेखन में गजब का स्वाद आया. जटिल विषय है शायद इसलिए एक-आद जगह खुलकर भाव स्पष्ट नहीं हो पा रहे. कुलमिलाकर लाजवाब.
जवाब देंहटाएंलाजवाब भाई साहब!
जवाब देंहटाएंऐसे ही भटको हुओ को राह दिखाते हुए लेख लिखते रहो! शुभकामनाये स्वीकार करे....
आपका ये शोध कार्य निर्विघ्न चलता रहे...
कुंवर जी,
Dear Amit,
जवाब देंहटाएंThanks for your e mail. As you see I am follower of your blog, therefore I regularly visit & read all your posts. Every time I may not have given comments. I appreciate you for accepting my suggestion of not being person specific. I have regulary visited Dr. Jamaal's blog also & read all his post but never commented because I found that his writings were old ploy of attracting comments. Secondly for people with communal bent of mind it is highly impossible to make them understand deep meaning & value of Dharma. It is like a primary school student reading books of post graduate level.
I assure you to visit your blog regularly in future also.
www.mireechika.blogspot.com
ईसाइयत में जीसस को और इस्लाम में हजरत मोहम्मद साहब को एक पारदर्शी शरीर की तरह खड़ा किया गया है. इन दोनों में मुक्ति की प्राप्ति के लिए क्राइस्ट और हजरत साहब अनिवार्य है . और इस कसौटी पे ये दोनों ही रिलिजन हो गए है.
जवाब देंहटाएंbahu hi thek lekh likha hai.
धर्म और धार्मिकता को परिभाषित करना आसाननहीं है। इस विषय पर आपका तथ्यपरक लेख वाकई में काबिले तारीफ है। ये वो वक्त है जब इस दृष्टी से ही धर्मं को देखा जाना चाहिए। आपका लेख पढ़कर मुझे बहुत कुछ मिला इसके लिए मैं आपको दिल से धन्यवाद देता हूँ। इस विचार को क्रमशः आगे बढ़ाते रहिये। मेरी शुभकामनायें आपके साथ है।
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