मंगलवार, 20 अप्रैल 2010

श्रीमान जमाल साहब !

श्रीमान जमाल साहब,
जैसा की शाह नवाज़ भाई ने कहा था ----यह सब लिखने से बेहतर है, दोनों धर्मों में क्या समानताएं हैं, इस पर रौशनी डालते. शांति और भाईचारे की आज पुरे विश्व को ज़रुरत है."
मेरी भी आपसे यही कामना है की हम लोग इस्लाम को जानना चाहते है, हमे अपनी लेखनी से इस्लाम के बारे में अवगत कराइए, बिना आमंत्रण की भावना के, सिर्फ उपासना पद्दति मानने वालों की संख्या बढ़ने का लक्ष्य अपने दिमाग में ना रखिये, इस्लाम का प्रचार तो यूँ ही हो जायेगा जब उसकी सात्विक रौशनी में मानवता दिखलाई देगी.
इसके अलावा कुछ ऐसा भी लिखिए की मुस्लिम समाज में शिक्षा का स्तर बड़े, समाज के परिवारों में घूम-घूम के उन्हें समझाओ की सिर्फ एक पीड़ी को ग्रेजुएट बना दो पूरा समाज ग्रेट बन जायेगा. अपने लेखन कर्म से शिक्षा और सद्भाव का वातावरण बनाइये.  आखिरी प्रार्थना और है अपने इस संकल्प में थोडा परिवर्तन कीजिये अगर कर सकतें है तो ---------

        "और अब जो भी दिल छलनी करने वाली पोस्ट आएगी................................................................... प्रश्नकत्र्ता को तो जवाब दिया ही जाएगा । "

आप जवाब दीजिये उन अक्ल के दुश्मनों को अपनी विद्वता से. वे जो प्रश्न उठाते है उनका समाधान कीजिये, लेकिन यह कहा का न्याय की उनको जवाब देने की आड़ में आप हमारे ग्रंथों का मनमाना अर्थ करें.

आप ही के साथ-साथ मेरी अन्य सभी बंधुओं से भी अपील है की अपनी आस्था के मंडन के लिए दूसरे की आस्था का खंडन ना करें.

ज्यादा क्या कहूँ आप सभी बड़ें है.

अमित शर्मा

24 टिप्‍पणियां:

  1. आप पर गर्व है अमित और आपके माता पिता को ऐसे सुपुत्र के लिए बधाई !
    शुभकामनायें !

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  3. आदरणीय सतीश सक्सेना जी आपके और दूसरे सभी बुजुर्गों के इस वात्सल्य का मान रखने पूरी कोशिश जिन्दगीभर करता रहूँगा. आप सभी का आशीर्वाद हमेशा बना रहे .

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  4. "आप जवाब दीजिये उन अक्ल के दुश्मनों को अपनी विद्वता से. वे जो प्रश्न उठाते है उनका समाधान कीजिये, लेकिन यह कहा का न्याय की उनको जवाब देने की आड़ में आप हमारे ग्रंथों का मनमाना अर्थ करें."
    सभी ने पढ़ा लिया होगा!

    काश! अब ही कुछ फर्क पड़ जाए!हो जाए उन "बड़ो" को अपने बड़े होने का एहसास!मुझे बड़ी ख़ुशी होगी कि आप के समझाने से भी ये "i am the best " वाली गलत तरीके से लगी होड़ रूक जायेगी तो!हालांकि मुझे ऐसा नहीं लगता!

    कुंवर जी,

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  5. अमित जी, आपका लेख सर आँखों पर.
    इनकी चांडाल चौकड़ी ने बहुत समय तक हिन्दुओं के धार्मिक ग्रंथों और देवी-देवताओं के बारे में चटखारे ले-लेकर अश्लील बातें लिखीं.
    मगर जब फ़िरदौस जी, ने लिखना शुरू किया तो सभी बौखला गए.
    इनसे फ़िरदौस जी के किसी सवाल का जवाब तो दिया नहीं जाता.
    यह फ़िरदौस जी के लेखन का ही असर है कि अब ये लोग हिन्दू धर्म के गुणों का बखान कर रहे हैं.

    आपने भी बहुत अच्छी तरह इन लोगों के गलत लेखों का जवाब दिया है. इसे निरंतर जारी रखें.

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  6. "इसके अलावा कुछ ऐसा भी लिखिए की मुस्लिम समाज में शिक्षा का स्तर बड़े, समाज के परिवारों में घूम-घूम के उन्हें समझाओ की सिर्फ एक पीड़ी को ग्रेजुएट बना दो पूरा समाज ग्रेट बन जायेगा. अपने लेखन कर्म से शिक्षा और सद्भाव का वातावरण बनाइये."

    bahut khub sirf siksha hi kisi samaj ko manavtavadi bana sakti hai

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  7. प्रिय अनुज...अमित... मुझे आप पर गर्व है...

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  8. theek aisi hi salah aapko dusre logon ko bhi deni chahiye...

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  9. अमित यही अंतर है एक सनातनी हिन्दू और एक तलिबानी में..

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  10. @ Anonymous shyad aapne amit ji ki baat ko pura tasali se nahi pada h

    amit sharma ne apni post me hi lka h dhyan se padye "आप ही के साथ-साथ मेरी अन्य सभी बंधुओं से भी अपील है की अपनी आस्था के मंडन के लिए दूसरे की आस्था का खंडन ना करें."

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  11. @ कुंवरजी सभी को भगवान ने विवेक बुद्धि दी है ,यह हमारे ऊपर है की उस विवेक का इस्तेमाल हम किस दिशा में कर रहे है.

    @ मौसमजी धन्यवाद्

    @ पुष्पेन्द्रजी शिक्षा से ही जीवन के हर क्षेत्र में उन्नति संभव है. गरीबी भी शिक्षा से ही दूर हो सकती है जो आज सारे फसादों की जड़ बनती जा रही है .

    @ बड़े भाई महफूज़ अली जी, भारतीय नागरिक जी आप बड़ों से आस रखता हूँ की मुझे कभी भटकता महसूस करे तो उसी टाइम कान मरोड़कर समझा देंगे

    @ बेनामी जी आपकी बात का समाधान मेरे साथी पुष्पेन्द्र जी से हो ही गया होगा

    धन्यवाद्

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  12. daktar to tumhari baato se pani bin macli ki tarah tadpne laga ta. jo satish bhai ki baat ko daal banakar shanti se beth gya h. ab kare to sahi ved kuran ki baat

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  13. ye benami or koi nahi saleem bhai jaan hi hai inhone satishji ke blog pe aap se kuch puchna caha tha. pata nahi aap se samne aane men katrate kyon hai.

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  14. @nice post . आपने लिखा है ... 'लेकिन यह कहा का न्याय की उनको जवाब देने की आड़ में आप हमारे ग्रंथों का मनमाना अर्थ करें. भाई आप पूछिये तो सही कि अमुक मंत्र का अनुवाद किस का है ? मैं आपको उस के अनुवादक का नाम बता दूंगा . मैं पवित्र कुरान कि आयत का अनुवाद भी न खुद करता हूँ , न किसी मदरसे के छात्र से फ़ोन पर पूछता हूँ बल्कि मैं तो किसी प्रामाणिक आलिम से ही उधृत करता हूँ . अब मैं वेद कुरान कि समानता पर लिखूंगा .
    लेकिन प्रिय अनुज ! अभी आपने यह नहीं बताया कि क्या आप अभी भी बड़ा भाई बन कर ही बोल रहे हैं ?

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  15. आदरणीय जमाल साहब ,
    आप सिर्फ एक बात बताइए की किसी एक बात का धरना ही क्यों देके बैठ जाते है आप. आप ही बता दीजिये की व्याकरण में शब्दार्थ नाम की कोई चीज होती है या नहीं ? अगर होती है तो फिर क्यों शब्दार्थ और भाष्य का भेद नहीं समझ पा रहे है. और अगर नहीं जानते है तो निवेदन करना चाहूँगा की प्लीज पहले कुछ चीजों को क्लियर कीजिये, जैसे की शब्दार्थ और भाष्य का भेद .और इन जैसी कई और बातें. सिर्फ किताबों के टीपन से ही तो काम नहीं चलता है ना . जैसे की सभी को पता है की बांधो से पानी रोककर फिर उससे बिजली बनायीं जाती है,पानी काफी स्पीड से टरबाईन पे गिराया जाता है. फिर वोह घूमता है फिर बिजली बनती है आदि आदि . यह सामान्य ज्ञान है . लेकिन सिर्फ इतने भर से ही तो बिजली नहीं बन जाती है. उसकी एक पूरी विधि होती है, जिसको उस विषय के अनुसंधानक ही बेहतर तरीके से सीख, समझ, और कार्यान्वित कर सकतें है. इसी तरह ऋषियों ने वेदार्थ को समझने के लिए कुछ पद्दतियां निश्चित की है; उन्ही के अनुसार चल कर हम श्रद्धापूर्वक वेदार्थ को समझ सकते है. और सिर्फ वेद ही की बात नहीं है किसी भी भाषा को समझने के लिए उस भाषा का एक निश्चित व्याकरण होता है.

    तो जिस भाषा में वेद लिखे गए है, उस भाषा के अर्थ को समझने के लिए तो उस भाषा और उस भाषा के व्याकरण का जानने वाला ज्यादा उन्नत तरीके से बता सकता है( ध्यान से समझिये सिर्फ शब्दार्थ, भाष्य विस्तार नहीं.) आप और मेरे जैसे ना जानने वालो से. जिस प्रकार बिजली उत्पादन इकाई के इंजिनियर और कर्मचारी बिजली बनाने की विधि किसी सामान्य व्यक्ति से ज्यादा जानते है और समझा सकते है .

    भाष्य हमेशा भाष्यकारों के आत्मानुसंधान का प्रतिफल होता की उन विद्वान् ने किस लीक से आबद्ध होकर किसी शास्त्र के भाष्य में अपनी लेखनी को प्रवत्त किया है. फिर आपसे प्रार्थना करूँगा की शब्दार्थ और भाष्य विस्तार को समझते हुए किसी चीज को समझिये. अब हो सकता है की आप आगे फिर कुछ इस विषय पे लिखेंगे फिर मै अपनी आदत से मजबूर आप तक अपनी बात पहुँचाने आ बैठूँगा. लेकिन अगर आप इस छोटी सी बात को समझने का प्रयाश कर लेंगे तो मै समझता हूँ की शायद आपके अहम् के आड़े आने का कोई सवाल नहीं पैदा होगा. यहाँ जो बाते हो रही थी आप ही के कथनानुसार परस्पर संवाद ही तो था. संवाद में दूर्वाद किस तरह आ घुसा. कोई छिपी हुई बात नहीं है.

    मै कोई धर्म, शास्त्र, व्याकरण या किसी भी विषय का विद्वान नहीं हूँ. सिर्फ एक जिज्ञासु भर हूँ . तो जिस प्रकरण में मुझसे ज्यादा कोई और जानता है तो उससे मालूम करने में मुझे तो कोई शर्म महसूस नहीं है मेरी कोई हेठी नहीं है. क्योंकि मुझे मालूम है की जहाँ शास्त्र निर्धारित रीती से अध्यापन हो रहा है तो वहां का विद्यार्थी ज्यादा अच्छी तरह से बता पायेगा बजाये बाजार में उपलब्ध कितोबों के. आप मत पूछिए किसी से अगर आप किसी से ज्ञान प्राप्त करने में अपनी हेठी मानते है तो. बाकी हमारे यहाँ तो यही सिखाया जाता है की ज्ञान कही से भी प्राप्त हो ग्रहण करने योग्य है, इसमें ज्ञान डाटा की उम्र कोई बाधा नहीं है.

    बड़े हमेशा आप ही रहेंगे. लेकिन मैंने मैंने आप से काफी पहले भी निवेदन किया था की, एकता की बाते करते है तो एक ही होइए. एक होने में भी आपका आग्रह यदि इसी बात पे रहता है की इस्लामिक उपासना पद्दति को मानकर ही एकता हो पायेगी अन्यथा नहीं. तो फिर तो आपसे सम्मान सहित यही निवेदन करना कहूँगा की आप एक बार फिर खाई पाटने की और नहीं खाई खोदने की तरफ ही कदम बढ़ाते प्रतीत होंगे.
    आगे आप ज्यादा समझदार है. ज्यादा बेहतर समझ सकतें है

    अमित शर्मा

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  16. सुन्दर विचार हैं आपके !
    ________________
    'पाखी की दुनिया' में इस बार माउन्ट हैरियट की सैर करना न भूलें !!

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  17. अमित ,

    अब क्या कहूँ! सच में शब्द नहीं हैं मेरे पास अपनी भावनाओं को व्यक्त करने के लिए। बस यही कहूँगा दोस्त बहुत बढ़िया। या फिर अब सिर्फ nice लिख कर ही काम चलाया करूँगा।

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  18. अबे चूतिओं तुम लोग ये हिन्दू मुस्लिम दंगा कब बंद करोगे मादरचोदों ?

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  19. .
    .
    .
    क्षमा करें अमित,

    मुझे तो सबसे बड़े ज्ञानी ऊपर वाले Anonymous भाई लगते हैं... भाषा गलत है... कहने का तरीका गलत है... मैं पुरजोर निंदा करता हूँ इस भाषा और शब्दों की...

    फिर भी उनका प्रश्न काबिले गौर है!

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  20. आदरणीय प्रवीण शाह जी ,
    माफ़ी चाहते हुए आपसे प्रति प्रश्न करना चाहुंगा की, अन्य वर्गों की प्रशंसा करते हुए हिन्दू को भला बुरा कहने से क्या कोई धर्मनिरपेक्षवादी हो जाता है, ईश्वर या धर्म से तटसत्ता दिखाकर ही क्या कोई आधुनिकतावादी कहला सकता है. बड़ा आसान है किसी को कुछ भी उपदेश दे देना - "पर उपदेश कुशल बहुतेरे" लेकिन आप ही से पूछना चाहुंगा की आप ही के घर के किसी सदस्य के लिए कोई बकवाद फैलेगा तो क्या आप इसी प्रकार शांति से बैठे रहेंगे ? शायद नहीं.
    एक बार फिर आपसे माफ़ी चाहता हूँ , की मेरे शब्दों से आपको तकलीफ हुई है, तो मुझे अपना ही समझ कर माफ़ करेंगे . क्योंकि ये मेरे मन का गुब्बार है जो हमेशा अपने किसी बुजुर्ग के सामने ही निकला है अब तक. क्योंकि बुजुर्गों ने ही मेरी बात को जैसा मैं कहना चाहता हूँ वैसा ही समझा है कोई दूसरा मतलब नहीं निकला है.
    आपका
    अमित शर्मा

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  21. एक बात कहना चाहूँगा, कमेन्ट प्रकाशित करने से पहले. नॉन अनोनिमस प्रोफाइल की भी जांच कर ले. जैसे यहाँ मुझे "मौसम" नाम भी फर्जी लग रहा है.
    कुछ लोग खाई पाटना ही नहीं चाहते. ऐसे तत्व सभी समुदाय में हैं जिनसे खतरा बरकरार रहता है.

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