आखिर क्या कारण है कि हमारे समाज के कुछ बुजुर्ग नई पीढ़ी के किसी भी काम को सहजता से नहीं स्वीकार कर पाते है. हमारे कुछ बुजुर्ग (सभी नहीं ) हमेशा से नौजवानों को कोसते नज़र आते है कि जवान अपनी संस्कृति के बारे में कुछ भी नहीं जानते ,अपने धर्म-संस्कारों से बिलकुल कटे हुए है. बड़ो का सन्मान नहीं करते आदि काफी शिकायते है. और काफी हद तक यह सभी शिकायते बिलकुल सही है.
लेकिन क्या आप बुजुर्ग ही इस बात का जवाब दे सकतें है कि हमें इस गर्त में धकेलने वाला कौन है. कितने परिवारों में इस नई पीढ़ी को अपने संस्कार हस्तांतरित करने का फ़र्ज़ निभाया जाता है . कितने परिजन खुद अपने धर्म-संस्कारों को ठीक-ठीक समझ सकें है और हमें उनकी तार्किक व्याख्या करके समझा पायें है .
कितने परिवार में माता पिता हम बच्चों को सच बोलना सिखाते है, और अगर सिखाते है तो सिर्फ इतना कि केवल अपने माता-पिता से झूंठ ना बोले कि कहाँ जा रहे है, कहाँ से आ रहे है .
कितने माता पिता हमे पैसे के बारे में सच्चाई पे चलना सिखाते है, अगर सिखाते है तो सिर्फ इतना कि बच्चा कहीं घर कि अलमारी से रूपये निकालकर दोस्तों के साथ मजे ना करे .
कितने बुजुर्ग हमें अपने इतिहास नायकों कि कहानिया सुनते है और हमारे अन्दर देश गौरव के भावना भरतें है, बजाये टाटा,बिडला और अम्बानी की वैभव गाथाओं को सुनाने के
कितने बुजुर्ग हमें सिर्फ 100 में से 100 नंबर लाने की होड़ में धकेलने की बजाये, सिर्फ अच्छी शिक्षा पाने का प्रबंध देखतें है .
कितने बुजुर्ग हमें समाज के लिए सोचने की प्रेरणा दे पाते है.
जहाँ होना यह चहिये की हमारे बड़े हमें यह सिखाये की सिर्फ अपने और अपने परिवार के बारे में ही मत सोचो समाज का भी ध्यान रखो. हर बात के लिए सरकारी तंत्र को ही मत कोसो, कभी खुद भी तंत्र का हिस्सा बनो.
कौन सिखाता है की अपने घर की सफाई करके कचरा बहार गली में डाल दो. और अगर बाहर कोई गंदगी पड़ी है तो उस से जरा बचके निकला करो. क्यों हमें यह नही सिखा रहे हमारे बुजुर्ग की बच्चो अगर कही भी गंदगी पढ़ी देखो तो उसे अपना काम ही समझ कर सफाई करा करो इससे अपनी गली ही साफ़-और सुन्दर दिखेगी .
लेकिन अगर कोई बच्चा इस तरह का काम करता है तो हमारे बुजुर्ग ही उसके गालों पे तड़ा-तड थप्पड़ बरसा रहे है की बोल तूने ऐसा काम क्यों किया, सारे कपडे गंदे कर लिए.
क्या बुजुर्गों का फर्ज नहीं बनता की अपने बच्चों को समझाए की बेटा ऐसा ही किया करो जब भी कोई जानवर कही गंदगी फैला जाये और उस टाइम तुम अगर उस गंदगी को साफ़ करने की हालत में हो तो जरूर किया करो.
लेकिन अब हम ज्यादा क्या कहें हम तो आज-कल के लपाड़े है.आप बड़े है आप ज्यादा समझते है.
बहुत ही विचारणीय सवाल उठा दिये जी आपने
जवाब देंहटाएंआशा है बुजुर्ग हमें सही रास्ता दिखायेंगें
प्रणाम
ise hi to kahte hai bhed chaal koi bhi asli mujrim ko dosh nahi de raha hai sabhi ko ek hi lapete men lapet rahe hai, wah re DHARMNIRPEKSHTA
जवाब देंहटाएंबिल्कुल सही कहा .. बुजुर्ग ही ढकेल रहे हैं नई पीढी को पतन के रास्ते पर !!
जवाब देंहटाएंयही है मेरे मन का उत्तर जो आपके द्वारा कहलवाकर उसे पौरोहित्यिक प्रमाण-पत्र मिल गया. यह अभिव्यक्ति ब्लॉगजगत में फैलती भ्रान्ति को रोक सकेगी.
जवाब देंहटाएंहाँ, भ्रान्ति तभी रुकेगी जब चटके लगाने वाले बिना-भेद-भाव अपनाए आपके घर की तरफ आ जाएँ.
जवाब देंहटाएंविचारणीय चिंतन. धन्यवाद.
जवाब देंहटाएंअमित, पुत्र समान हो तो अमित ही लिखूंगी। आज किसी युवा ने अपनी जुबान खोली अच्छा लगा। हम एक तरफा प्रलाप सुन-सुनकर बौरा गए थे। मैं यहाँ जितने भी युवक हैं उन्हें भी यही कहती हूँ कि तुम अपनी पीढ़ी के प्रश्न उठाओ, बुजुर्ग मत बनो। तुमने अच्छे प्रश्न किये हैं। इसी प्रकार युवा वर्ग की सोच को दिशा दो जिससे हम भी कुछ सीख सकें।
जवाब देंहटाएंअरे भाईजी तुमणे तो कमाल कर दीया। गजब का लीख मारा। सचमुच ऐ बूढ़े लोग जवान लोगों की जवानी कै बारै में कुछ नहीं सोचते। जब खुद जबान रहते हैं तो जितनी... मसती करते हैं वो याद नहीं ऱहता। लैकिन बाईजी ऊपर तो कुछ बूढ़े लोग ठीक बात कर गऐ हैं. लगता है यै बुढऊ लोग समझदार है।
जवाब देंहटाएंभैये मैं तो यह कहता हूं वह बुज्रुर्ग जो अपने बच्चों से यह कहता है कि वह कह रहा है इसलिये मान लो, उसकी बात केवल इस कारण मान ली जाये कि वह बड़ा है. नाजायज है. ऐसे बुजुर्ग अपने गलत कार्यों को या कमजोरियों के कारण ही ऐसा कहते हैं और वह ऐसा कर युवाओं का नुकसान करते हैं...
जवाब देंहटाएंभाई अमित मैं आपसे अपनी सहमती दर्ज करता हूँ। मुझे भी लगता है की अगर मेरे शारीर पर कोई फोड़ा या फुंसी निकले तो मैं उससे पैदा होने वाले दर्द को भूल नहीं सकता। मैं तो उसमे चीरा ही लगवाना पसंद करूँगा चाहे कितना ही खून निकले या एक वक्त बेहद दर्द हो। पर इससे वो ठीक तो हो जायेगा ना।
जवाब देंहटाएंअमित भाई आप की बात से १०० % सहमत हूँ पर हमें अपने बड़े बुजुर्गो की बातों पर विचार करना चाहिये क्यूंकि उन्हें जिंदगी का तजुर्बा होता हैं
जवाब देंहटाएंपुरानी पीढ़ी का एक बुज़ुर्ग - अमित पहली बार यहाँ आना हुआ...इसमें कोई शक नहीं कि आज नई पीढ़ी जो है हमारे कारण ही है...अगर संस्कारों को बचपन से ही उनकी जड़ों में जमा दिया जाए तो फिर बाहर की दुनिया में उन्हें सही और गलत की पहचान आसानी से होने लगती है.
जवाब देंहटाएंयह पीड़ा पत्र ही नहीं ,अश्रु पत्र है !और वाजिब है !
जवाब देंहटाएं@ अंतर सोहिल जी हमेशा बुजुर्ग ही हमें रास्ता दिखाते आये है और सदा दिखाते रहेंगे
जवाब देंहटाएं@ पुष्पेन्द्र जी, पूरी ताईजी आपने ठीक कहा कुछ बड़े अपना बदपन भूलकर पता नहीं क्यों आँखे बंद कर निर्णय सुना देते है
@ प्रतुलजी यही तो दर्द हुआ था दिल में की बड़ो ने बड़प्पन दिखाते हुए सही गलत का निर्णय क्यों नहीं किया सभी को एक ही लपेटे में ले लिया बिना मुद्दे को समझते हुए सिर्फ कमेंट्स पढ़कर ही भ्रम पूर्ण निर्णय दे डाला और कमोड में कुदा दिया एक साथ
जवाब देंहटाएं@ तिवारी जी धन्यवाद्
जवाब देंहटाएं@ गुप्ता ताईजी अपने वात्सल्य से नहलाने के लिए नमन , इन एक तरफ़ा प्रलापों से मन काफी दुखी हो गया था इसीलिए आप सभी बड़ों से अपनी तकलीफ बयान की थी
@ जलजलाजी बात बड़ों ने क्या किया क्या नहीं किया की नहीं है. बात सिर्फ अपने अनुभव से हमें दिशा देने की है लेकिन हमारी बात को समझने का प्रयास करते हुए
@ नागरिकजी, वीरू भाई , मीनाक्षीजी धन्यवाद्
जवाब देंहटाएंसिर्फ इतना चाहते है की बड़े हमारी बात समझे. इस तरह ना हो जैसा की अभी एक बुजुर्ग ने अपने दिव्य विमान में से आकाशवाणी की और सभी को एक साथ दोषी ठहरा दिया और कमोड में धकेल देने का फरमान सुनाया जिसका सभी ने एक स्वर में अनुमोदन भी कर दिया .
@ विचारीजी यह कोई शिकायत या आक्रोश नहीं है बुजुर्गों के प्रति, सिर्फ थोडा सा गुबार था मन का और इस तरह के गुबार मैंने हमेशा बड़ों के सामने ही निकाले है आज तक क्योंकि बुजुर्ग ही मेरी बात को ठीक उसी अर्थों में समझते है जैसा मैं कहना चाहता हूँ . और शायद इस बार भी समझेंगे
जवाब देंहटाएं@ अरविन्द मिश्रजी सही पहचाना आपने अश्रु पीड़ा की अधिकता से ही निकलते है ,
aapka dard samajh sakte hai aapne bilkul sahi kiya tha, in bade blogrs men to ek bhi nahi aaya jab kuch log sanskrati ke kapde utaar rahe the, or ab jab aapne munh tod jawab diya to apni kami cupane ke liye blog jagat ki shanti ki duhai de rahe hai
जवाब देंहटाएंअमित भाई मै कहीं गायब नहीं हुआ हूँ!छुट्टिया थी,सो गाँव गया था और वहा ये 'इन्टरनेट' वाली सुविधा है नहीं!आज ही वापस आया हूँ,और आते सबसे पहले अपने विचारो का भार आप सब के ऊपर छोड़ा,फिर आपकी पोस्ट पढ़ी!
जवाब देंहटाएंइस विषय पर भी आपने अपनी शैली में खतरनाक लिखा!एक जरुरी और तार्किक लेख आपने प्रस्तुत किया!मैंने काफी पहले कहीं पढ़ा था कि कैसे एक छोटा पेड़ दुसरे बड़े पेड़ की छाव में रह कर सिर्फ पौधा ही रह जाता है!वो कभी पेड़ बनता ही नहीं!जबकि बड़ा पेड़ बस उस छोटे पेड़ को सरंक्षण करने के उद्देश्य मात्र से ही उसके ऊपर से हटना नहीं चाहता!कई बार कुछ अच्छा करने के चक्कर कुछ बहुत अच्छा अनदेखा रह जाता है!आप से सहमत!
कुंवर जी,
नेक ख्याल हैं अमित जी .....!!
जवाब देंहटाएं@अमित जी
जवाब देंहटाएंसच कहूँ तो आपने मेरे मन कि बात कही है.... बचपन में मैं सफाई से दूर रहता था, शर्म आती थी,... आज पसीने निकाल निकाल कर सफाई करने में ख़ुशी होती है... लेकिन मेरे ज्यादातर भैया सीनियर दोस्त वगैरह ऐसा नहीं कर पाते.... यह सामाजिक समस्या है.
ऐसे ही जनजागरण करते रहिये.
@ कुंवरजी
जवाब देंहटाएंहमसे सभी करते आस, करे हम तम का नाश
हुए हम जो कभी निराश, बड़ों ने दिलाया विश्वास
सभी नहीं पर कुछ है ऐसे, पेड़ खड़े हो बरगद जैसे
परवाह नहीं इन कुछ की,"अमित" रहो तुम हो जैसे
@ हरकीरत जी , सुलभ जी धन्यवाद्
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