ईस्ट इण्डिया कंपनी ने मैक्समूलर को बहुत ऊँची रकम पे वेदों का जाली भाष्य बनाने और दूसरे ग्रंथों में वाहियात बाते ठूंसने के लिए अनुबंधित किया था. इतना ही नहीं ईसाईयों द्वारा लगातार कुप्रचार किया जाता रहा की हिंदुत्व कोई धर्म नहीं है यह तो सम्प्रदायों का जोड़ मात्र है. ब्रिटिश कुप्रचार "हिंदुत्व कोई धर्म नहीं है" ने आज अपनी जड़ें काफी मजबूत कर ली है. घोर दुखद आश्चर्य तो यह है की जिन विद्वानों को हिन्दू लोग धर्मशास्त्रों का विशेषज्ञ मानते है वे भी यही भाषा बोलने लगें है.
असंख्य हिन्दू और अहिंदू विद्वानों ने हिंदुत्व की ऐसी-ऐसी उड़न-परी सी परिभाषाये दी है जो की वास्तव में कोई परिभाषा ही नहीं है .हर परिभाषा एक दुसरे से अलग होते हुए भी सिर्फ एक ही बात का रोना रोती है की "हिंदुत्व कोई धर्म नहीं है"
ब्रिटिश राज के के दो-सौ सालों तक "हिंदुत्व कोई धर्म नहीं है" के थोथे प्रचार का क्या यही मतलब समझा जाये की करीब सौ करोड़ हिन्दुओं का कोई धर्म नहीं था और न अभी है?
ऐसे कुप्रचार का एक मात्र लक्ष्य केवल हिन्दू धर्म के प्रति अश्रद्धा,हीनता,संदेह की भावना पैदा करना रहा है ताकि हिन्दुओं को धर्मान्तरित करके हिंदुत्व को मिटा दिया जाये. और इसमें ईसाई मिशनरिया, और इस्लाम के अनुयायी जी जान से लगे हुए है, और उन का साथ देने के लिए हिन्दू पैदा होकर भी हिंदुत्व से अनजान सेक्युलर जमात (जिन्हें शायद सेक्युलर का अर्थ भी नहीं पता ) तैयार बैठी है.
मगर हिन्दू धर्म में आस्था रखने वालों की अटल धारणा है की हिंदुत्व ईसाइयत और इस्लाम की तरह किसी मानव द्वारा स्थापित कट्टरवादी पंथ(रिलिजन) नहीं है,क्योंकि हिन्दुधर्म ईश्वरीय ज्ञान पर आधारित,पक्षपात रहित स्वतंत्र विचारों का स्वागत करने वाला,प्रगतीशील,मानव-कल्याणकारी,संपूर्ण ब्रह्माण्ड में स्थित जीव मात्र का हित चाहने वाला,संपूर्ण मानव धर्म है.
इसलिए हिंदुत्व धर्म है कोई पंथ (रिलिजन) नहीं है.क्योंकि रिलिजन शब्द धर्म शब्द का समानार्थक या पर्यायवाची शब्द नहीं है. दोनों शब्दों में पर्याप्त मौलिक अंतर है.अतः रिलिजन और धर्म की परिभाषा और उनके अंतर को समझना गंभीर रूप से जरूरी है. तभी हम इस्लाम और ईसाइयत को हिन्दू धर्म की तुलना में अच्छी तरह से समझ पायेंगे.
अगली पोस्टों में रिलिजन और धर्म की परिभाषा और उनके अंतर को समझने की कोशिश की जायेगी
मंजिल की ओर बढ़ते चलो यह न देखो की कोई पीछे आ रहा है या नहीं !
जवाब देंहटाएंमंजिल मिल जाने पर हर हाल में खुद को हमराही कहने वाले मिल ही जायेंगे !
Pankaj Singh Rajpoot
Bahut khoob!
जवाब देंहटाएंSwagat hai!
जवाब देंहटाएंswagat hai.
जवाब देंहटाएंhindu dharm se tataparya jeevaa jine ki paddhti hai....jo logon ko aasani se mahattam sukh ki or le jane me sahyog deti hai........pratek dharm ka apna alag tarika hota hai.....
ब्रिटिश हुकूमत के षड़यंत्र को आपने ठीक-ठीक व्यक्त किया ऐसा ही मैंने भी अपने धर्म गुरुओं से सुना है। भारत में रह रहे विभिन्न मतावलंबियों को अपनी वास्तविकता से परिचित होना भी चाहिए इसलिए मैं भी इससे सहमती रखता हूँ। आप जिसे हिन्दू धर्म कहकर समझते हैं उसे मैं वैदिक धर्म के रूप में स्वीकारता हूँ। इसलिए मेरी परिभाषाएं कुछ भिन्न हैं :
जवाब देंहटाएंभारतीय मुसलमान — एक समुदाय, जो भारतीय नागरिकता प्राप्त कर धार्मिक स्वतन्त्रता के अधिकार का आकंठ (पूर्णतया) भोग करते हुए विवशतावश भारतीय शासन को स्वीकार कर किसी की प्रतीक्षा में समय बिता रहा है।
'इस्लाम' — एक प्रदेश विशेष का पूर्णतया बाह्य और अंशतया आंतरिक धर्म है, जो कभी भौगोलिक परिस्थितियों के अनुकूल धारण किया गया था और आज भी किया जाता है। लेकिन ...
'हिन्दू' — कोई धर्म नहीं, वरन वह तो भारत की विभिन्न समुदायों और रूढ़ियों का इकलौता संबोधन मात्र है। अतः ...
"वैदिक" — ही एक ऐसा धर्म है जो सार्वभौमिक है, सभी समुदायों के लिए पूर्णतया आंतरिक है, जिसमें बाह्य धर्म ऐच्छिक है।
Anek shubhkamnayen!
जवाब देंहटाएंबहुत बढिया ,लिखते रहो
जवाब देंहटाएंब्लॉग जगत में आपका स्वागत है... इसी तरह तबियत से लिखते रहिये, हिंदी में आपका लेखन सराहनीय है, धन्यवाद
जवाब देंहटाएंAap yun hi likte raho ye dua h hmari
जवाब देंहटाएंमित्र अमित जी,
जवाब देंहटाएंआप संबोधन शब्द और धर्म सूचक शब्दों में क्या अंतर मानते हैं?
हिन्दू, मुसलमान, अंग्रेज, सिक्ख आदि शब्द संबोधन के रूप में प्रयोग में आते हैं।
वर्तमान में केवल हिन्दू शब्द ही ऐसा है जो बहु अर्थों में प्रयुक्त हो रहा है।
क्योंकि आप देखेंगे :
मुसलमान शब्द — संबोधन है।
उसका धर्मसूचक शब्द है — इस्लाम
अंग्रेज शब्द — संबोधन है।
उसका धर्मसूचक शब्द है — ईसाई
हिन्दू शब्द — संबोधन है, जाति सूचक भी है, धर्म सूचक भी है।
जबकि इसके लिए अलग-अलग शब्दों की उपस्थिति पहले से ही मौजूद है —
संबोधन — हिन्दू (वर्तमान में सभी इस्लामेतर और ईसायेतर धर्मावलम्बियों के लिए)
व्यक्तिप्रधान पुराना संबोधन — आर्यपुत्र !
जाति — आर्य जाति
धर्म — वैदिक (धर्म किसी न किसी पर आधारित होता है) जैसे वैदिक धर्म वेदों पर आधारित है। अन्यों का आप पता करें या पाठकगण बतायें
कृपया चिंतन को विस्तार दें। कोरी बकवास लगे तो भी तर्क सम्मत बात रखें।
ya kun patul bina kaam ki bgaad ra h
जवाब देंहटाएंYOU R WRITING VERY WELL CONTINUE IT. AND PLEASE DONOT SAY ANYTHING DIRECTLY FOR ANY OTHER RELIGION. HOPE FOR THE BEST.
जवाब देंहटाएं@ya kun patul bina kaam ki bgaad ra h
जवाब देंहटाएंसभी टिप्पणीकारों से निवेदन है की लेख और मेरे बारे में जो भी अच्छा बुरा कहे.पर दूसरे टिप्पणीकारों के लिए कोई आपत्तिजनक भाषा का उपयोग कृपया कर ना करें.नहीं तो लाचारी में मुझे कमेंट्स एक्सेप्ट और रिजेक्ट का ऑप्शन अपनाना पड़ेगा.
धन्यवाद
मुझसे तुम घृणा करो चाहे
जवाब देंहटाएंचाहे अपशब्द कहो जितने
मैं मौन रहूँ, स्वीकार करूँ.
तुम दो जो तुमसे सके बने.
मुझपर तो श्रद्धा बची शेष.
बदले में करता वाही पेश.
छोडो अथवा स्वीकार करो.
चाहे अपनत्व का करो लेश.
इस नए चिट्ठे के साथ हिंदी ब्लॉग जगत में आपका स्वागत है .. नियमित लेखन के लिए शुभकामनाएं !!
जवाब देंहटाएंbahut ganda
जवाब देंहटाएंधर्म अर्थात् सत्य / न्याय और नीति
जवाब देंहटाएंअधर्म अर्थात् जो धर्म के विपरीत हो
गीता के अनुसार धर्म की हानि अर्थात् सत्य / न्याय एवं नीति का न होना