डी.पी.राणाजी,विजयप्रकाश जी,सौरभ आत्रेय जी,नवीन जी त्यागी,जैसे आदरणीय महापुरषों का अमूल्य निर्देशन पाकर निहाल हो गया.
और मेरे बड़े भाई दीपपांडे जी,कुंवरजी, संजीवजी,जीत भाई का प्यार तो सदा तैयार है ही बरसने के लिए.
प्रतुल वशिस्ठजी आपने जो पूछा था तो जितनी बुद्धि है उस के अनुसार जवाब देने की कोशिश की है-
— यदि आप मुसलमान परिवार में जन्म लेते क्या तब भी लोगों को यही धार्मिक मजबूती दिखती?
@अब सरजी यह तो कुछ ऐसा प्रश्न है की "एक निबंध लिखो की अगर मै प्रधानमंत्री होता तो क्या करता "
— क्या परमात्मा की हिन्दू धर्म वाले परिवार में जन्म लेने पर सहमती- असहमति हुआ करती है?
@परमात्मा की सहमती सिर्फ सर्वकल्याण की भावना रखते हुए मानव धर्म की पलना करने वाले की साथ होती है ऐसा मेरा मानना है, जो की मुझे बुजुर्गो ने समझाया है .
— क्या एक पाखण्ड के गढ़ को तोड़कर दूसरा पाखण्ड स्थापित करना उचित है?
@क्या आप रात के समय रेड-लाइट पे गाडी रोकना पाखंड समझेंगे जब कोई पुलिसवाला वहां नहीं हो?
इसी तरह जो भी परम्पराए हमें विरासत में मिली है, हरेक का कोइ-ना-कोई मतलब जरूर रहा है . अब हमने ही अपने स्वार्थों की खातिर उनमे छेड़छाड़ करके उन्हें पाखंड बना के रख दिया तो,इसमें परम्पराओ की गलती तो नहीं है ना ?
इसलिए मान्यताओ को पाखंड बताना मैं ठीक नहीं समझता. फिर एक को तोड़ने और और दूसरी के स्थापना की बात फिर रह ही नहीं जाती .
जग-जाहिर वैचारिक द्वंद्व
जवाब देंहटाएंमित्र अमित जी
धोबी पछाड़ विधर्मियों के लिए है। मित्र और भाइयों के लिए केवल प्रेम है। देश हितेषियों को पहचानने की आँखे आप पर भी हैं मुझ पर भी। उत्साहवर्धन झूठा कभी नहीं करना चाहिए। सो मैंने भी नहीं किया, जैसा लगा वैसा कहा।
लेकिन प्रश्नों का जवाब कभी प्रतिप्रश्न नहीं हुआ करता। ये वास्तविकता से बचना है।
अगर आप इस जन्म में वैदिक संस्कारोचित व्यवहार करते हैं तो यह निश्चित है कि आप का जन्म वहीँ होगा जहाँ आप इच्छा रखते हैं। अर्थात एक संस्कारित और धार्मिक विवाहित युगल के यहाँ। जिसप्रकार एक विशेष ऊर्जा से आवेशित बैटरी किसी विशेष प्रकार के यांत्रिक उपकरण में ही लग पाती है सभी उपकरणों में नहीं।
— जहाँ तक 'प्रधानमन्त्री बनने पर' निबंध लिखने का प्रश्न रहा। उतनी क़ाबलियत आपमें दिखाई देती है। आप यह भी बता सकते हैं कि प्रधानमंत्री होने पर राष्ट्रधर्म किस तरह निभाया जा सकता है।
— हाँ, परमात्मा की सहमती-असहमती जन्म लेने में हुआ करती है। किस रूप में.... आप समझें ... उपजाऊ भूमि में कांटेदार और फलदार दोनों तरह के ही वृक्ष होते हैं लेकिन विषबीज और कल्पबीज की समझ भूमि को होती है। आप जानते हैं कि परमात्मा कण-कण में विद्यमान है। उसे नए रूप में समझें "कण-कण ही परमात्मा है"... फिर इस चिंतन को विस्तार दें। यदि इस चिंतन में सहयोग की आवश्यकता हो तो सदा उपस्थित रहूंगा। वैसे आपका अधिक स्वाध्याय है भारतीय संस्कृति पर। बस दृष्टिकोण को कुछ और अधिक विस्तार देना है।
आपने जो उत्तर दिया 'सर्वकल्याण' सम्बन्धी, वह तो धर्म का मूलमंत्र है, एक सार्वभौमिक सत्य। उसे कोई समझाए तो अच्छी बात है लेकिन विवेकशील स्वतः उस भावना को ग्रहण करलेते हैं।
— 'रेड लाईट' का अच्छा उदाहरण लिया। रात में रेड-लाईट पर रुकना-ना रुकना अपनी समझ पर ज़्यादा निर्भर करता है क्योंकि यातायात कम होता है। पुलिसवाले के डर से कायदों को निभाना भी नहीं चाहिए।
आपको मालूम होगा एक समय था कि जब इस तरह की परम्पराओं रुपी रेड-लाईट्स समाज में तमाम थीं जो समाज के बहुमुखी विकास में अवरोध थीं। इसे हटाने के लिए हमारे समाजसुधारकों ने काफी प्रयास किये। नाम आप भी जानते होंगे। परम्पराओं को बिना तर्क से समझे आत्मसात करना पहले भी होता रहा है इसी कारण उसे कुरीति या अंधविश्वास नाम दिया गया। बिना मतलब जाने परम्परा को ओढ़ लेना समीचीन नहीं होगा।
मित्र अमित, गली-परम्पराओं को छोड़ना और नयी परम्पराओं को निर्मित करना निःस्वार्थ भाव से होना चाहिए। ऎसी अपेक्षाएं आपसे नहीं होंगी तो किनसे हों नाम आप ही सुझाएँ।
प्रतुल वशिस्ठजी,
जवाब देंहटाएंइतनी धोबी पछाड़ मरने की क्या जरुरत थी महाराज. कोई द्वंदवश थोड़े लखा था मैंने. टाइम काफी कम मिल पा रहा है, आपको जवाब मेल से भेजना चाह रहा था पर, मेल सेंट नहीं हो पा रही थी. आपके ब्लॉग पे बताने गया तो वहा भी एक बार में बात नहीं बनी, इसलिए पोस्ट लिख के निवेदन किया था. पश्न-प्रतिप्रश्न की बात तो दिमाग में आई ही नहीं थी.
सिर्फ तीनो ज़वाब ही दिलो-दिमाग से ज़ल्दबाजी में लिखा था.
" तार्किक विद्वान् अमित शर्मा जी!
@धोबी पछाड़ दे रहे है, या पोदीने के झाड पे चढ़ा रहे है."
यह तो सिर्फ ठिठोली थी. दोस्त साथ में बैठा था ,उसने इस बात पे मजाक करली,मैंने भी आप से पूछ लिया.गलती हो गयी आगे से ध्यान रखूँगा.
आपका स्नेहाकांक्षी
अमित
मैं इस मुद्दे के मध्य में हूँ। आदि का पता पहले कर लूँ फिर अंत साथ साथ करेंगे।
जवाब देंहटाएंभाईयो मैं भी इस महाभारत के युद्ध में शामिल होना चाहता हूँ मुझे भी शामिल करो। हालाँकि मेरा हमेशा से मां सेव्यं पराजितः पर विश्वास रहा है पर मेरे अन्दर बर्बरीक वाली प्रतिभा कतई नहीं है। अतः मुझे भी इस युद्ध में भाग लेने दो वर्ना में भाग जाऊंगा.
दीपभाई जी,
जवाब देंहटाएंजहाँ कहीं भी भागें मुझे भी साथ ले चलना. यहाँ तो हर बात में अर्थ का अनर्थ होने लग गया है.
अभी मैंने हमारे 90 साला बुजुर्ग ठाकुर साहब जो की मेरे मित्र भी है, उनसे इस मैटर पे चर्चा करी तो हँसने लग गए बोले यार तू तो बड़ा आदमी बन गया है, क्योंकि छोटो की तो कोई सुनता ही नहीं है और बड़े आदमियों की एक बात के हज़ार मतलब निकले जाते है. मैंने कहा की दाता आप भी....................
अब बताइए क्या करे,!!!!!!!!!
आपके साथ भागने की आकांक्षा में
अमित
अमित जी
जवाब देंहटाएंनमस्ते। बिना विशेषणों के लिखूंगा। प्रशंसा भी नहीं करूंगा। आपके कार्यों को मन-ही-मन सराहुंगा। धर्म-पताका लेकर आपको बढ़ते दूर से ही देखूंगा। क्योंकि अभी राष्ट्र निर्माण में लगे और लोगों से भी जुड़ना है। बतरस में लगे रहे तो समय निकल जाएगा। सुरेश चिपलूनकर जैसे लोगों का लिखा पढ़कर समझना है कि उनका चिंतन किस दिशा में जा रहा है। आप से अनुरोध है कि ऐसे विचारको से अवश्य जुड़ें और मुझे परिचित कराएं जो किसी-न-किसी रूप में समाज को अच्छी या बुरी भावना से प्रभावित करने में जुटे हुए है।
क्षमा। जो कहा-सुना वह केवल आपसे वैचारिक कुश्ती करके जुड़ने का एक ज़रिया था।
आप और साथी दीप जी कहीं भागें नहीं। अलग-अलग मोर्चों पर वैचारिक लड़ाई लड़ें। कारण, एक के संभाले इस अधर्म, भोंडी संस्कृति को फैलने से नहीं रोका जा सकता। विधर्मियों की कोशिशें ज़ारी है तो हमें भी दुगने उत्साह से अपनी क्षमताओं को परखने का अवसर है।
अब से बिना मतलब नहीं करेंगे वार्ता। मित्र ! देखो कोई ब्लॉगर कहीं कुछ अवैध तो नहीं कर रहा....