शुक्रवार, 2 अप्रैल 2010

बहता पानी सदा निर्मल

ज्ञान तो अपने आप में हमेशा पूर्ण है, कहीं से नया नहीं पैदा होता और ना ही कभी उसका क्षरण होता है.
सिर्फ संस्कृतियों को,मानव जीवन को संचालित करने वाली नीतिया समय समय पे बदलती रही है,
बहता पानी ही सदा निर्मल हुआ करता है, जहाँ कहीं भी पानी ठहर जाता है तो उसमे सडन पैदा होने लगती है.  भारतीय संस्कृति की धारा सदा प्रवाहमान रही है. इस संस्कृति ने परिवर्तन को संसार का नियम माना है, नए विचारों को कभी पूर्व ज्ञान का विरोधी नहीं माना.
क्योंकी  "ज्ञान" ज्ञानी की व्याख्याओं के कारण ज्ञान नहीं होता है, बल्कि "ज्ञान" की उपलब्धता से कोई "ज्ञानी" बनता है.
जिस समय ध्यान  की सहायता से उस पूर्णब्रह्म का सहज में साक्षात्कार किया जा सकता था,तदनुरूप समाज की नीतिया थी,समय के साथ मानव की बुद्धि को वह ज्ञान कठिन लगने लगा तो उस हिसाब से नीतिगत परिवर्तन हुए.
ज्ञान को सरलता से बुद्धि गम्य बनाने के लिए व्याख्या स्वरुप उपनिषदों का निर्माण हुआ पुराणों- स्मृतियों के माध्यम से ज्ञान को समझने में सहायता मिली.
ब्रह्मं के स्वरुप का बोध करने वाले ध्यान को स्पष्ठ करने के लिए और मन की एकाग्रता को स्थिरता के लिए मूर्ति पूजा का प्रचलन हुआ था, भाव मूर्ति ही भगवान है नहीं, बल्कि मूर्ति में भी भगवान है ,ये ही रहा . मूर्ति उस चैतन्य के स्वरुप का बोध कराने में किस तरह सहायक हो पाती है , यह इस विष्णु ध्यान मंत्र की सहायता से समझने की कोशिश कर सकते है.

शास्त्रों में शेषशायी भगवान विष्णु का ध्यान इस प्रकार किया गया है कि-
ध्यायन्ति दुग्धादि भुजंग भोगे ।
शयानमाधं कमलासहायम्॥
प्रफुल्लनेत्रोत्पलमंजनाभ, चर्तुमुखेनाश्रितनाभिपद्म । आम्नायगं त्रिचरणं घननीलमुद्यछ्रोवत्स कौन्तुभगदाम्बुजशंखचक्रम् ।
हृत्पुण्डरीकनिलयं जगदेकमूलमालोकयन्ति कृतिनः पुरुषं पुराणम्॥
अर्थात्-भगवान क्षीर सागर में शेषनाग पे  सोये हुए हैं, लक्ष्मी रूपणी प्रकृति उनकी पादसेवा कर रही है, उनके नाभिकमल से चर्तुमुख ब्रह्मा जी की उत्पत्ति हुई है, उनका रंग घननील है, उनके हाथ हैं जिनमें शंख, चक्र, गदा और पद्म सुशोभित हैं- वे जगत् के आदि कारण तथा भक्त-जन हृत्सरोज बिहारी हैं ।
इनके ध्यान तथा इनकी भावमयी मूर्ति में तन्मयता प्राप्त करने से भक्त का भवभ्रम दूर होता है ।
क्षीर का अनंत समुद्र सृष्टि उत्पत्तिकारी अनन्त संस्कार समुद्र है जिसको कारणवीर करके भी शास्त्र में वर्णन किया है । कारणवीर जन्म न होकर संसारोत्पत्ति के कारण अनन्त संस्कार है ।

संस्कारों को क्षीर इसलिये कहा गया है कि क्षीर की तरह इनमें उत्पत्ति और स्थिति विधान की शक्ति विद्यमान है । ये सब संस्कार प्रलय के गर्भ में विलीन जीवों के समष्टि संस्कार हैं ।
अनन्त ननाश अथवा शेषनाग अनंत आकाश को रूप है जिसके ऊपर भगवान् विष्णु शयन करते हैं ।
शेष भगवान् की सहस्रफण महाकाश की सर्वव्यापकता प्रतिपादन करती है, क्योंकि शास्त्र में ''सहस्र '' शब्द अनन्तता-वाचक है ।

आकाश ही सबसे सूक्ष्म भूत है, उसकी व्यापकता से ब्रह्म की व्यापकता अनुभव होती है और उससे परे ही परम-पुरुष का भाव है इस कारण महाकाशरूपी अनन्तशैया पर भगवान सोये हुए हैं ।
लक्ष्मी अर्थात् प्रकृति उनकी पादसेवा कर रही है । इस भाव में प्रकृति के साथ भगवान का सम्बंध बताया गया है । प्रकृति रूप माया परमेश्वर की दासी बनकर उनके अधीन होकर उनकी प्रेरणा के अनुसार सृष्टि स्थिति, प्रलयंकारनी है ।
इसी दासी भाव को दिखाने के अर्थ में शेषशायी भगवान की पादसेविका रूप से माया की मूर्ति बनाई गई है ।
भगवान के शरीर का रंग घननील है । आकाश रंग नील है । निराकार ब्रह्म का शरीर र्निदेश करते समय शास्त्र में उनको आकाश शरीर कहा है, क्योंकि सर्वव्यापक अतिसूक्ष्म आकाश के साथ ही उनके रूप की कुछ तुलना हो सकती है ।अतः आकाश शरीर ब्रह्म का रंग नील होना विज्ञानसिद्ध है ।
भगवान के गलदेश में कौस्तुभ मणि विभूषित माला है । उन्होंने गीता में कहा है :-
मनः परतरं नान्यत् किंचिदरित्र धनंजय ।
मुचि सर्वमिद प्रोक्तं सूत्रे मणिगणा इव॥
भगवान की सत्ता को छोड़कर कोई भी जीव पृथक नहीं रह सकता, समस्त जीव सूत्र में मणियों की तरह परमात्मा में ही ग्रथित है । सारे जीव मणि है, परमात्मा सारे जीवों में विराजमान सूत्र है ।
गले में माला की तरह जीव भगवान में ही स्थित हैं । इसी भावन को बताने के लिए उनके गले में माला है ।
उक्त माला की मणियों के बीच में उज्ज्ावलतम कौस्तुमणि नित्य शुद्ध बुद्ध मुक्त स्वभाव कूटस्थ चैतन्य है ।
ज्ञान रूप तथा मुक्तस्वरूप होने से ही कुटस्थरूपी कौस्तुभ की इतनी ज्योति है । माला की अन्यान्य मणियाँ जीवात्मा और कौस्तुभ कूटस्थ चैतन्य है ।
यही कौस्तुभ और मणि से युक्त माला का भाव है ।
भगवान के चार हाथ धर्म अर्थ, काम और मोक्ष रूपी चतुर्वर्ग के प्रदान करने वाले है ।
शंक, चक्र,गदा और पद्म भी इसी चतुर्वर्ग के परिचायक है ।
(http://hindi.awgp.org/?gayatri/sanskritik_dharohar/bhartiya_sanskriti_aadharbhut_tatwa/karmakand_panrmparae/bahudev_vad/)

कोई भी उपासना पद्दत्ति प्रतिक पूजा से दूर नहीं है. चाहे फिर उसका कारण जो भी हो .
एक बार एक राजा ने मूर्ति पूजा का विरोध करते हुए स्वामी विवेकानंद जी से कोई ऐसा तर्क पेश करने को कहा जिससे वो मूर्ती पूजा को सही सिद्ध कर सके इस पर स्वामीजी ने राजा से उनके पिताजी की तस्वीर की और इशारा करते हुए कहा की आप इस तस्वीर पर थूक दीजिये तो राजा क्रोधित हो गए तब स्वामीजी ने कहा की ये तो एक कागज़ का टुकड़ा है आपके पिताजी तो नहीं हैं फिर आप क्रोधित क्यों हो रहे हैं तब राजा के बात समझ में आई की जिस प्रकार उसके पिता के प्रति उसका सम्मान और प्रेम उनकी अनुपस्थिति में अब उस तस्वीर से जुड़ गया है ठीक उसी  प्रकार मूर्ती रूप में भक्त की भगवान् से आस्था जुडी होती है

मुस्लिम बंधु "हज़े-अस्वद " को चूमने का कारण बताते हुए कहते है की श्रीमोहम्मद साहब ने इसे चूमा था इसलिए हम इसे चूमते है , और कोई कारण नहीं है.
फिर जब उनसे पूछा जाता है की श्रीमोहम्मद साहब ने इसे क्यों चूमा था तो बताते है की उनसे पहले से ही काबा के लोग इसे चुमते आ रहे थे, इसीलिए उन्होंने लोगो की भावनाओ को बेवजह कष्ठ  पहुँचाना  उचित ना समझ कर इसे चूमा था.(बात कुछ हजम नहीं हुई- जो श्रीमोहम्मद साहब अपनी छड़ी से काबा के सारे बुतों को तोड़ डालते है,बिना लोगो की भावनाओ का ख्याल किये हुए.वे किस प्रकार सिर्फ "हज़े-अस्वद " को लोगो की भावनाओ का ख्याल करके चूम लेते है.)

5 टिप्‍पणियां:

  1. आपके तर्क आस्था के मैदान में मज़बूत स्तम्भ की तरह से हैं।

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  2. अमित जी आप बेशक कुछ समय के लिए दृष्टि पटल से ओझल रहा करें पर जब भी प्रकट होए तो इसी प्रकार से हमारे मन के अँधेरे को दूर करने के लिए अपने ज्ञान का प्रकाश दें। आपका लेख अति उत्तम है.

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  3. vaise to m dharmil nhi hu par bhagwaan me kuch had tak shardha jarur rakhta hu aur har wo kaam jisme bhagwan ka naam ho ko poora karwane me tatpar rahta hu

    ab jab kabhi bhi aapka lekh padhta hu to man akaaak us parbraham ki aur chala jata hain.
    aap aise hi likhte rahiye
    hardeep rana se aapke baare me suna tha aur vaisa hi paya
    aise hi apni vednao aur sanvednao ki abhivayakti karte rahe aur hame aise hi aanandit karte rahe
    dhanyaawaad sahit
    sanjeev rana

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  4. बड़े भाई साहब बहुत अच्छी पोस्ट है!

    हिन्दू धर्म में आई कुरीतियों और उनके उन्मूलन के लिए लिखे तो बहतु अच्छा !

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